संपादकीय

पिछले डेढ़ बरस में इजराइल और हथियारबंद फिलीस्तीनी संगठन, हमास के बीच चल रही जंग में फिलीस्तीन का गाजा शहर दुनिया का सबसे बड़ा मलबा बन चुका है, और हाल के बरसों में सबसे तेज रफ्तार से बना हुआ इतना बड़ा कब्रिस्तान भी। इस दौर में गाजा में करीब 40 हजार जिंदगियां खत्म हुई हैं, और उस शहर का हाल ऐसा हो गया है कि अब अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प उस पर कब्जा करके उसकी पूरी तरह पुनर्निर्माण करके उसे एक सैरगाह बनाना चाहता है, गाजा के 20 लाख से अधिक फिलीस्तीनियों को दुनिया के दूसरे देशों में धकेलकर। अब जब पिछले महीनों से चले आ रहा युद्धविराम खत्म हो गया है, और एक बार फिर गाजा पर इजराइली हमले तेज हो गए हैं, पिछले 8-10 दिनों में ही हजार से अधिक लोग और मार दिए गए हैं, तो गाजा के मूल निवासी फिलीस्तीनियों के बीच से हमास के खिलाफ भी एक आवाज उठी है।
अभी गाजा में एक ऐसे प्रदर्शन की खबर आई है, तस्वीरें और वीडियो आए हैं जो चाहते हैं कि हमास इस शहर पर कब्जा छोड़ दे। आज वहां पर उसी का राज है, और अभी प्रदर्शन करने वाले लोगों का यह कहना है कि उन्होंने बहुत तबाही देखी है, और दुनिया में उनका साथ देने वाले लोग नहीं दिख रहे हैं, अपने दम पर फिलीस्तीनी अमरीका और इजराइल का मुकाबला नहीं कर सकते हैं, इसलिए हमास को यह हथियारबंद संघर्ष खत्म करके गाजा के प्रशासन से हट जाना चाहिए ताकि लोग कम से कम जिंदा रह सकें। डेढ़ बरस में 23 लाख आबादी में से 40 हजार से अधिक बेकसूर लोगों की मौतें कम नहीं होती हैं, आज इस शहर के अधिकतर लोगों के सिर पर कोई छत नहीं है, पांवतले को फर्श नहीं है, जख्मों के लिए मरहम नहीं है, कोई वर्तमान नहीं है, और कोई भविष्य नहीं है। ऐसे में आज एकध्रुवीय हो चुकी दुनिया में अमरीका और इजराइल की गिरोहबंदी का कोई मुकाबला मुमकिन नहीं है, दुनिया के बाकी कोई देश, यहां तक कि मुस्लिम अरब देश भी फिलीस्तीन का साथ देते नहीं दिख रहे हैं, किसी की औकात नहीं रह गई है कि अमरीकी गुंडागर्दी का मुकाबला कर सके, ऐसे में जिंदा रहना जरूरी है। और गाजा में अगर वहां की आजादी के लिए लड़ रहे हमास के खिलाफ लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, तो इस पर गौर करना जरूरी है।
यह भी हो सकता है कि वहां मौजूद अमरीकी और इजराइली ताकतें इस तरह का कोई प्रदर्शन प्रायोजित करवा रही हों जिनसे कि हमास की पकड़ ढीली होती साबित हो। लेकिन कुछ पर्यवेक्षकों का यह भी मानना है कि ये प्रदर्शन जनता की तरफ से खुद की मर्जी से हो रहे हैं क्योंकि वे लगातार हमलों से थक गए हैं, और सब कुछ खो बैठे हैं। आज जब संयुक्त राष्ट्र संघ, अंतरराष्ट्रीय अदालतें, मुस्लिम देशों के संगठन, यूरोपीय समुदाय, इनमें से किसी का भी कोई बस अमरीका-इजराइल गिरोह पर नहीं चल रहा है, और आज दुनिया जिसकी लाठी, उसकी भैंस दर्जे के लोकतंत्र पर उतर आई है, तो फिलीस्तीनी जनता को अपने जिंदा रहने की फिक्र करने का हक है। और जब अमरीका गाजा को फिलीस्तीनियों को हटाकर एक कारोबारी प्रोजेक्ट बनाने पर आमादा है, तो भूखे-प्यासे, निहत्थे फिलीस्तीनी कब तक अपने बच्चों की जिंदगी गंवा सकते हैं? इसलिए आज अगर वे हमास के शासन को खत्म करना चाहते हैं, तो वह उनके जिंदा रहने की एक जरूरत सरीखी है। इजराइल के भीतर यह सोच बहुत मजबूत है कि फिलीस्तीन में जो भी अगला शासन-प्रशासन हो, उसमें हमास की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। अब हमास को भी यह तय करना होगा कि क्या आबादी का एक इतना बड़ा हिस्सा खोकर, और आगे का हर दिन दर्जनों या सैकड़ों मौतों वाला वह कब तक जारी रखना चाहता है? जब किसी एक संगठन की जिंदगी वहां के नागरिकों की हर दिन सैकड़ों मौतों से जुड़ जाए, तो इस पर सोचना तो जरूरी है कि उस संगठन को कब तक जारी रखा जाए। और दुनिया की इस ताजा हकीकत को अनदेखा करना भी ठीक नहीं होगा कि ईरान पिछले साल भर में बहुत कमजोर हो गया है, मुस्लिम देशों के संगठन गाजा के पुनर्निर्माण पर तब तक खर्च करना नहीं चाहेंगे जब तक आगे जंग का खतरा टल न जाए, और हमास के रहते हुए इजराइल के साथ यह खतरा खत्म नहीं हो सकता।
हमास का फिलीस्तीनियों के हक के लिए चाहे कितना ही बड़ा योगदान क्यों न हों, आज हमास के लड़ाई के तौर-तरीकों ने 40 हजार से ज्यादा फिलीस्तीनियों की मौत को न्यौता दिया है। यह लड़ाई हिन्दी फिल्म के एक गाने की तरह, दिये और तूफान की है, इसमें कोई बराबरी नहीं है, हमास ने अक्टूबर 2023 में इजराइल पर एक हथियारबंद हमला करने भर में कामयाबी पाई, और उसका नतीजा यह हुआ कि जवाबी हमले और जंग में गाजा शहर खत्म हो गया। आज की इस हकीकत को देखना जरूरी है कि फिलीस्तीन दुनिया में एक अनाथ बच्चे की तरह रह गया है, और वह किसी से जंग के लायक नहीं रह गया है। दुनिया इतनी बेइंसाफ हो गई है कि यहां किसी देश, किसी नस्ल के जायज हकों की कोई कीमत नहीं रह गई है। ऐसी बेइंसाफ दुनिया में हमास जैसी अंतहीन हथियारबंद लड़ाई किसी किनारे नहीं पहुंचा सकती। इसलिए आज फिलीस्तीन के हिमायती लोगों को भी उसकी मदद करने के साथ-साथ इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि गाजा और बाकी फिलीस्तीन के भविष्य को किस तरह हमास, या उस किस्म के हथियारबंद आंदोलन से मुक्त रखा जा सकता है। एक पूरी नस्ल, और एक पूरे देश को एक हथियारबंद समूह की मर्जी पर कुर्बान करना ठीक नहीं है, फिर चाहे वह समूह उस नस्ल और देश के हक की लड़ाई ही क्यों न लड़ रहा हो। असल जिंदगी में कई बड़ी जंग जीतने के लिए लड़ाई के छोटे-छोटे मोर्चों पर पीछे भी हटना पड़ता है, और आज की दुनिया इंसानियत और लोकतंत्र की रह भी नहीं गई है कि जायज और नाजायज के सवाल को उठाया जाए। अमरीकी गुंडागर्दी से आज तो उसके सहयोगी देश अपने ही एक हिस्से ग्रीनलैंड को नहीं बचा पा रहे हैं, पड़ोसी और पुराने साथी कनाडा के अस्तित्व को ही खत्म करने पर ट्रम्प आमादा है, ऐसे मवाली के सामने बेघर, भूखे-प्यासे, जख्मी और बीमार, बेरोजगार फिलीस्तीनियों को कम से कम कुछ अरसे के लिए एक समझौता करना होगा, जो कि पूरी तरह बेबसी और मजबूरी का रहेगा, लेकिन जिंदा रहने के लिए इसके अलावा कोई रास्ता दिख नहीं रहा है। हमास अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बाकी तमाम निहत्थे और शांत फिलीस्तीनियों के अस्तित्व को खत्म हो जाने दे, यह भी जायज नहीं होगा। फिलीस्तीन के हमदर्दों के एक पुनर्विचार करने की जरूरत है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)