संपादकीय

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प को काम संभाले दो महीने हुए हैं, लेकिन इस बीच ज्वालामुखी से निकलते पिघले और जलते लावे की तरह उनके बयान उनके मुंह से निकलते हैं, जो कि धरती के अधिकतर हिस्से को भूकम्प की तरह हिला रहे हैं। न सिर्फ अमरीका, बल्कि दुनिया के इतिहास में किसी और निर्वाचित नेता या तानाशाह ने दो महीनों में ऐसी उथल-पुथल नहीं मचाई थी। दुनिया के शेयर बाजार उन घंटों का इंतजार करते हैं जिन घंटों में आमतौर पर ट्रम्प मीनार पर चढक़र फतवे जारी करते हैं। ट्रम्प के उठने के वक्त के साथ ही दुनिया की बेचैनी शुरू हो जाती है, जो कि ट्रम्प के सोने के बाद कुछ घंटों के लिए थमती है। अभी ऐसा कोई सर्वे तो सामने नहीं आया है, लेकिन हमारा ऐसा मानना है कि ट्रम्प को चुनने वाली अमरीकी जनता कुछ उसी तरह हक्का-बक्का होगी जिस तरह ब्रेक्जिट के पक्ष में वोट देने के बाद अगले ही दिन से ब्रिटिश जनता हो गई थी कि उसने यह क्या कर दिया। अमरीका, और बाकी दुनिया के लिए इस मवाली के राष्ट्रपति बनने के बाद राहत की एक ही बात है कि अब उसका कार्यकाल दो महीने कम बचा है, लेकिन तीन साल दस महीने तो बचा ही है।
डोनल्ड ट्रम्प वैसे तो पहले भी अमरीका का राष्ट्रपति रह चुका है, लेकिन उस कार्यकाल में उसने तानाशाही का यह मिजाज नहीं दिखाया था, जो वह इस दूसरे, और आखिरी कार्यकाल में दिखा रहा है। उसमें एक लोकतांत्रिक होने का दंभ भरने वाले देश का राष्ट्रपति होने का कोई शऊर तो है नहीं, उसमें गुंडागर्दी इस तरह कूट-कूटकर भरी है कि दुनिया इस मिसाल को आसानी से नहीं भूलेगी। बाकी दुनिया से अलग-थलग रहने वाले किसी देश में तानाशाह का ऐसा मिजाज रहा होगा, लेकिन पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाली ऐसी तानाशाही हिटलर के बाद पहली बार सामने आई है जिसने पूरी दुनिया को अपनी-अपनी हिफाजत के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया है। इस अमरीका के सबसे करीबी फौजी और कारोबारी साथी, नाटो के दूसरे सदस्य, और तमाम यूरोपीय देश इस बात को लेकर हक्का-बक्का हैं कि उनकी पीठ में इतने गहरे छुरा भोंकने वाले ट्रम्प की खड़ी की हुई नौबत से वे कैसे उबरेंगे? योरप के सबसे बड़े दुश्मन रूस से अमरीका की परंपरागत दुश्मनी को ट्रम्प ने जिस तरह पल भर में यारी में बदल दिया है, और पीढिय़ों के यार योरप को जिस तरह खड्ड में धक्का दे दिया है, उससे एक असाधारण और अभूतपूर्व स्थिति पैदा हुई है। इससे उबरना आसान नहीं है, और शायद अगले कई बरस तक मुमकिन भी नहीं है। योरप जिसे अपनी हिफाजत मानकर चल रहा था, वह अब योरप के ही एक देश ग्रीनलैंड पर फौजी कब्जे की खुली धमकी दे रहा है। नाटो के नियमों के मुताबिक उसके किसी भी सदस्य देश पर कोई हमला होने पर सारे नाटो देश एक साथ मिलकर उसका मुकाबला करेंगे, ग्रीनलैंड पर फौजी कब्जा करने की ट्रम्प की घोषणा के बाद यह समझना मुश्किल है कि जब अमरीकी फौजें ग्रीनलैंड पर कब्जा करेंगी, तो नाटो की सामूहिक जिम्मेदारी के चलते क्या अमरीकी फौजें वहां ग्रीनलैंड को बचाने का काम भी करेंगी? क्या ग्रीनलैंड को लेकर अमरीका मोर्चे के दोनों तरफ अपनी फौजें भेजेगा?
लेकिन हम एक ताजा बात को लेकर आज ट्रम्प जैसे घटिया इंसान पर एक बार फिर लिख रहे हैं। उसने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि वह रूस और यूक्रेन की जंग 24 घंटों में रूकवा देगा। अब कई तरह के तेवर दिखाने के बाद, और यूक्रेन को लगातार धमकाने के बाद, उससे उसके दुर्लभ खनिजों की खदानें बंदूक की नोंक पर मांगने के बाद अब ट्रम्प ने यूक्रेन से कहा है कि अगर उसे अपने बिजलीघरों को रूसी हमलों से बचाना है, तो उसे ये बिजलीघर अमरीका को दे देना चाहिए! एक तरफ अमरीका बिना यूक्रेन के सीधे रूस से युद्धविराम की बात कर रहा है कि इस जंग को कैसे रोका जाए, और इस तानाशाही के बीच वह यूक्रेन को तरह-तरह से धमका रहा है। अब तक अमरीका से उसे मिली फौजी और दूसरी मदद के एवज में वह यूक्रेन के खनिजों के भंडार अमरीका को देने के लिए उसकी बांह मरोड़ रहा है। अब यह कहना कि उसे रूसी हमलों से अपने बिजलीघरों को बचाने के लिए उन्हें अमरीका को दे देना चाहिए, और इससे उसे बेहतर सुरक्षा मिल सकेगी, यह बात एक गुंडे की जुबान ही है जो कि पहले किसी जमीन पर अवैध कब्जा करता है, और फिर उसके मालिक को कहता है कि जमीन उसे बेच दे।
ट्रम्प ने ठीक यही मिजाज फिलीस्तीन को लेकर दिखाया है। गाजा में इजराइली हमलों में 40 हजार के करीब फिलीस्तीनियों के मारे जाने के बाद ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनने के कुछ दिनों के भीतर ही यह मुनादी की कि इजराइल गाजा को अमरीका को दे देगा, और अमरीका वहां पर अरब दुनिया की एक बड़ी सैरगाह बनाएगा। किसी देश को लेकर गुंडे का सरदार-यार यह जुबान कहे कि उस देश के लोगों को दूसरे देशों में बसाया जाएगा, और वहां पर सैरगाह बनाई जाएगी, तो इससे समझ पड़ता है कि जिस तरह गाजा शहर दुनिया के सबसे बड़े मलबे में तब्दील हो चुका है, उसी तरह अमरीका के लोकतांत्रिक मूल्य उससे बड़ा मलबा बन चुके हैं। देश के भीतर, और बाकी दुनिया में ट्रम्प की जो हमलावर सोच चल रही है, उसमें अब कोई भी महफूज नहीं है। दुनिया के किसी भी देश, कारोबार, या इलाके पर अमरीका का हमला अब महज वक्त और जरूरत की बात है, ऐसे हमले की उसे जरूरत कितनी है, और उसके पास पहले किस पर हमला करने के लिए वक्त निकलता है। ट्रम्प एक मवाली भूमाफिया के अंदाज में बार-बार यह फतवा दे रहा है कि कनाडा अमरीका का राज्य बन जाए। कल तक जो कनाडा अमरीका का एक सहयोगी दोस्त देश था, उसे आज ट्रम्प ने एक ऐसा दुश्मन बना दिया है, कि वहां का नया प्रधानमंत्री परंपरा को छोडक़र पहले दूसरे किसी देश जा रहा है, जबकि इसके पहले वहां का हर पीएम अमरीका प्रवास से ही विदेश यात्रा शुरू करता था।
ट्रम्प अपनी रीढ़ की हड्डी के भीतर के बोन-मैरो की गहराई तक एक मवाली है, भूमाफिया है, बदचलन पूंजीवादी है, इंसानियत उसे छू भी नहीं गई है, लोकतंत्र को लेकर उसकी गहरी हिकारत है, वह दुनिया में जलवायु परिवर्तन को सबसे बड़ी हरी-धोखाधड़ी कहता है। इस ट्रम्प के तीन बरस दस महीने के बकाया कार्यकाल में इंसानियत से लेकर लोकतंत्र तक, आधुनिक सभ्यता के तमाम बेहतर मूल्यों को अपनी चमड़ी बचाकर छुपकर रहना चाहिए। उसके बाद अमरीका में लोकतंत्र लौट पाता है या नहीं, यह अगले चुनाव से तय होगा। इस मवाली की नजरों से वे ही लोग बचे रह सकते हैं जिनके पास लूटने के लायक कोई बड़ी दौलत या जागीर नहीं है। लोग कहते हैं कि बुरा करने का नतीजा बुरा ही निकलता है। अमरीका ने इजराइलियों को बम दे-देकर बेकसूर फिलीस्तीनियों को जिस हद तक मौत दी है, उसका कुछ तो बुरा नतीजा निकलना ही था, लेकिन ट्रम्प की शक्ल में अमरीकी लोकतंत्र को, और उसके साथी देशों को हो रहे नुकसान ने तो एक नया ही अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम किया है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)