संपादकीय

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के सुबह-शाम के अस्थिर दिमाग से निकले हुए दिखने वाले फैसलों से दुनिया भर के शेयर बाजार डूबे चले जा रहे हैं। किसी देश को यह समझ नहीं पड़ रहा है कि वे ट्रम्प से क्या बात करें, क्योंकि किसे डांट पड़ जाए, इसका कोई ठिकाना तो है नहीं। जिस तरह अभी व्हाईट हाऊस में यूक्रेन के राष्ट्रपति को ट्रम्प और उनके उपराष्ट्रपति ने फटकारा है, और बिना खाना खिलाए जाने के लिए कह दिया, उससे भी बाकी देश सहमे हुए हैं कि कौन ट्रम्प के मुंह लगे। हम भी इस जगह पर ट्रम्प की तानाशाही, गुंडागर्दी, और बददिमागी को लेकर कई बार लिख चुके हैं। लेकिन आज हम ट्रम्प के डेढ़ महीने के कार्यकाल को लेकर एक अलग नजरिए से देखना चाहते हैं, जो कि हमारे ही अभी तक लिखे हुए से अलग हटकर नजरिया रहेगा।
ट्रम्प के बारे में चारों तरफ यह कहा और लिखा जा रहा है कि वे अंतरराष्ट्रीय संबंधों, देश की विदेश नीति, और कूटनीतिक तौर-तरीकों से बिल्कुल अलग, मनमानी का बर्ताव करने वाले नेता हैं। उन्होंने जिस अंदाज में अपने मन से यह तय कर लिया कि इजराइल गाजा को अमरीका को सौंप देगा, और अमरीका वहां के 20 लाख से अधिक लोगों को फिलीस्तीनी के पड़ोस के देशों में बसा देगा, और गाजा की जगह वह मध्य-पूर्व की सबसे बड़ी सैरगाह बनाएगा, वह अंदाज सबके लिए भयानक था, उसका लोकतंत्र से कुछ भी लेना-देना नहीं था, मध्य-पूर्व के देशों से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक सभी ट्रम्प के इस बयान के खिलाफ थे। लेकिन इस बयान के बाद ही मध्य-पूर्व के देशों के सबसे बड़े संगठन अरब लीग की बैठक हुई, और आनन-फानन ऐसे प्रस्तावों पर चर्चा हुई कि अरब देश फिलीस्तीन के गाजा में क्या कर सकते हैं, उसे दुबारा बसाने के लिए कितनी मदद की जरूरत पड़ेगी। और ये प्रस्ताव अमरीका के सामने औपचारिक या अनौपचारिक रूप से रखे भी जाने वाले हैं, क्योंकि ट्रम्प के अपनी मनमानी के बयान के बाद अमरीकी सरकार की तरफ से यह भी कहा था कि मध्य-पूर्व से अगर गाजा के बारे में कोई प्रस्ताव नहीं आएगा, तो ट्रम्प के इस प्रस्ताव की बारी आएगी। और ट्रम्प की चेतावनी के बाद मध्य-पूर्व के कुछ अमरीकापरस्त, और कुछ अमरीकी दबदबे के बाहर से देशों ने मिलकर गाजा पर यह विचार-विमर्श किया है। ट्रम्प की चेतावनी के पहले इन रईस मुस्लिम, और इस्लामिक देशों के हाथ-पांव नहीं हिल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि दुनिया का लोकतांत्रिक तौर-तरीका इन देशों से कोई हमदर्दी नहीं उपजा पा रहा था। तो क्या ट्रम्प के गुंडागर्दी के तेवर गाजा के किसी जल्द-समाधान का रास्ता तैयार कर रहे हैं? हम बिल्कुल भी ट्रम्प की किसी राय से इत्तेफाक नहीं रखते, लेकिन उनकी धमकी के असर की चर्चा कर रहे हैं।
ठीक इसी तरह रूस के हमले के बाद, और यूक्रेन के मोर्चे पर टिके रहने से जो जंग तीन बरस से चली आ रही है, और जिसमें अमरीका ने अपने फौजी इतिहास की एक सबसे बड़ी मदद यूक्रेन को की है, उसके खिलाफ डोनल्ड ट्रम्प ने सख्त तेवर दिखाए थे, और यूक्रेन की बांह मरोडक़र उसे रूस के साथ समझौता करने पर मजबूर किया था, उसका असर अब दिख रहा है। ट्रम्प के ये तेवर पूरी तरह अलोकतांत्रिक हैं, लेकिन इनका असर दिख रहा है। अमरीकी संसद में ट्रम्प ने यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलिंस्की की भेजी गई एक चिट्ठी का जिक्र किया कि वह रूस से शांतिवार्ता को भी तैयार है, और अपनी दुर्लभ खनिजों की खदानें अमरीका को देने पर भी तैयार है। अमरीका ने यूक्रेन को जारी फौजी सप्लाई, और जंग की खुफिया जानकारी देना बंद किया, और अगले ही दिन यूक्रेनी राष्ट्रपति ने समर्पण कर दिया। हम अभी सही और गलत के झगड़े में नहीं पड़ रहे, लेकिन ऐसा लग रहा है कि दुनिया का यह सबसे बड़ा मवाली अपने तौर-तरीकों से कुछ बातों को करवाने में कामयाब हो रहा है जिससे कि इजराइल-फिलीस्तीनी, और रूस-यूक्रेनी जंग थम जाए। अब आज की दुनिया में किसी जंग के जायज या नाजायज होने की बात मायने इसलिए नहीं रखती है कि संयुक्त राष्ट्र बेअसर संगठन हो चुका है, और पूरी दुनिया ‘जिधर बम, उधर हम’के सिद्धांत पर काम करती दिख रही है। जब अमरीका ने इराक पर फर्जी सुबूतों का हवाला देते हुए हमला किया था, तो संयुक्त राष्ट्र प्रसंगहीन साबित हुआ था, और बड़ी-बड़ी पश्चिमी ताकतें अमरीका के हमलावर गिरोह में शामिल थीं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाहुबल के प्रदर्शन में जायज और नाजायज की चर्चा अब फिजूल सी हो चुकी है।
ट्रम्प ने दुनिया भर के देशों में अमरीकी मदद से चलने वाले सहायता-कार्यक्रमों को पल भर में खत्म कर दिया, योरप के देशों के साथ अपने पुराने सैनिक साझेदारी के संगठन नाटो पर से अपनी ताकत को पल भर में हटा दिया, और अपने सबसे कट्टर दुश्मन देश, रूस के साथ नई यारी की नुमाइश की, और पूरी दुनिया का शक्ति संतुलन तबाह कर दिया। ट्रम्प ने दुनिया के अलग-अलग देशों के साथ अमरीका के व्यापार संबंधों की परंपरा, और लंबे इतिहास को खारिज करते हुए, एक आम दुकानदार की तरह लेन-देन पर एक जैसे टैरिफ की घोषणा की, और अपने पड़ोसियों के तबाह हो जाने की कोई फिक्र नहीं की। ऐसी नौबत में यह लगता है कि क्या अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कभी-कभी मोटी जम चुकी बर्फ की तह तोडऩे के लिए, और यथास्थिति को बदलने के लिए ट्रम्प सरीखे किसी तानाशाह की जरूरत पड़ती है? क्या ट्रम्प के तेवर और उनके फैसले, एक आत्मकेन्द्रित देश के रूप में अमरीका को ट्रम्प की जुबान में क्या सचमुच ही एक बार और महान बना सकते हैं, क्या वे दूसरे देशों की मदद की कीमत पर अमरीका को पहुंचने वाले आर्थिक नुकसान को रोक सकते हैं, क्या वे दुनिया में जंग के चल रहे कुछ मोर्चों को ठंडा कर सकते हैं? ऐसे कई सवाल ट्रम्प के फैसलों, और उसके असर से आज उठ रहे हैं। ट्रम्प की नीतियां जितने सवालों के जवाब दे सकती हैं, उससे अधिक सवाल खड़े कर रही हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि धरती के गोले पर अपने सबसे बड़े मवाली, ट्रम्प की बातों को बहुत से देशों को गंभीरता से लेना पड़ रहा है, और वह किसी अंडरवर्ल्ड डॉन की तरह, माफिया सरगना की तरह अपने फैसले लोगों पर लाद रहा है, लोगों को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि दुनिया में कुछ भी स्थाई मित्रता, और स्थाई शत्रुता नहीं होती। ट्रम्प एक अकेला इंसान है जो दुनिया की जमी-जमाई व्यवस्था को इस हद तक पलट रहा है, और हम इसके हिमायती न होते हुए भी, इसे इस नजरिए से देखना दिलचस्प पा रहे हैं कि ट्रम्प के इस कार्यकाल में दुनिया में दोस्ती और दुश्मनी के नए समीकरण किस तरह बनने जा रहे हैं।