संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सरकारों में गजब का संगठित भ्रष्टाचार, और एक नई पहल की जरूरत
05-Mar-2025 4:15 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सरकारों में गजब का संगठित भ्रष्टाचार, और एक नई पहल की जरूरत

छत्तीसगढ़ विधानसभा में सरकार तो भाजपा की है, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक ही अनगिनत मामले उठा रहे हैं जिनमें सरकार के स्तर पर बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है। इनमें से कुछ मामले पिछले सवा साल के भाजपा सरकार के कार्यकाल के हैं, लेकिन अधिकतर मामले पिछली कांग्रेस सरकार के समय के हैं, जिन्हें लेकर कांग्रेस विधायकों की बोलती बंद रहती है क्योंकि उन्हीं की सरकार के चलते यह सब भ्रष्टाचार हुआ था। लेकिन ऐसा एक सबसे बड़ा संगठित अपराध सरकार को सबसे बड़ा चूना लगाने वाला कल विधानसभा में खूब उठाया गया, और उसके बाद सरकार को अपने एक डिप्टी कलेक्टर को सस्पेंड करना पड़ा। रायपुर जिले के ही अभनपुर इलाके में केन्द्र सरकार के भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत रायपुर-विशाखापट्टनम के बीच बन रहे इकॉनॉमिक कॉरीडोर के लिए किसानों की जमीन ली गई थी। 2019 में कांग्रेस सरकार के दौरान किसानों की जमीनों के सरकारी रिकॉर्ड में कई-कई टुकड़े कर दिए गए, और इन्हें अलग-अलग नामों से चढ़ा दिया गया। छोटे टुकड़ों का मुआवजा अधिक रेट पर मिलता है, और जिन जमीनों का कुल 35 करोड़ रूपए मुआवजा बनना था, उसे बढ़ाकर सवा तीन सौ करोड़ से ऊपर पहुंचा दिया गया। सरकारी अफसर ने बाकी अमले के साथ मिलकर संगठित रूप से यह भ्रष्टाचार किया था, और चर्चा यह भी थी कि इसमें दूसरे बहुत से नेता और अफसर शामिल थे। 32 टुकड़ों को 247 छोटे टुकड़ों में बांटकर केन्द्र सरकार को ढाई सौ करोड़ से अधिक का चूना लगाया गया था, और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत ने इस मामले को उठाया था। विधानसभा में यह जानकारी आई कि केन्द्र सरकार के राष्ट्रीय सडक़ प्राधिकरण ने रायपुर कलेक्टर से इसकी रिपोर्ट मांगी थी जिसमें यह साजिश उजागर हुई। इसके आधार पर राज्य सरकार ने उस वक्त के प्रभारी डिप्टी कलेक्टर को सस्पेंड किया है। इसी के साथ-साथ कुछ और दूसरे भ्रष्टाचार भी सामने आए हैं, और इनमें से एक बस्तर के घोर नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले का मामला है जहां पर बैंक सुविधा कम रहने से आदिवासियों को तेन्दूपत्ता का भुगतान नगद करने की खास छूट है, और वहां वन विभाग ने जिले के सबसे बड़े अफसर, डीएफओ की अगुवाई में करोड़ों की संगठित लूट की है। इस मामले में अखिल भारतीय वन सेवा के अफसर, डीएफओ को सस्पेंड किया गया है, जो कि इस स्तर के अधिकारी के साथ कभी-कभार ही होने वाली बात है। एक तीसरा मामला अभी विधानसभा में उठा ही है कि प्रदेश में जिस जशपुर जिले को नागलोक कहा जाता है, वहां से भी अधिक सांप काटने से मौत के मामले बिलासपुर में दर्ज किए गए हैं, और विधायकों का कहना है कि इनमें बड़ी संख्या में फर्जी मामले हैं।

भ्रष्टाचार छत्तीसगढ़ सरकार की रग-रग में समाया हुआ है। खासकर पिछले पांच बरस की कांग्रेस सरकार के दौरान जितना संगठित भ्रष्टाचार हुआ है, और जिनमें से बहुत से मामले जांच एजेंसियों के मार्फत अभी अदालतों में चल रहे हैं, उन्हें देखना भयानक है। बहुत पहले देश के एक सबसे चर्चित व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने लिखा था कि एक बार कोई व्यक्ति अदालत पहुंच जाए, तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने आपको अपने वकील से बचाने की रहती है। इसी तरह आज के हालात देखें तो सरकार को सबसे बड़ी चुनौती अपने आपको अपने ही भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों से बचाने की रहती है। जिनको सरकार से एक सुरक्षित नौकरी मिलती है, काम की सहूलियतें मिलती हैं, समाज में दबदबा मिलता है, वे ही लोग सरकार की हर योजना में पलीता लगाने में लगे रहते हैं। सरकारी अमले का भ्रष्टाचार इस हद तक संगठित रहता है कि सत्तारूढ़ पार्टी चाहे बदल जाए, सत्ता के दलाल वही के वही बने रहते हैं, और अफसर नए सत्तारूढ़ नेताओं को रातोंरात कमाई की संभावना बताकर उनके शुभचिंतक बन जाते हैं। यह सिलसिला खत्म होते नहीं दिखता है, किसी सरकार में यह कम रहता है, किसी में ज्यादा रहता है, लेकिन सरकारी अमले की खुली भागीदारी से चलने वाली संगठित साजिशें खत्म तो कभी नहीं होतीं। ऐसे में कल ही हमने छत्तीसगढ़ के बजट पर इसी जगह लिखा था कि सरकार को अपने ढांचे में निरंतर चलने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए एक निगरानी एजेंसी बनानी चाहिए जो कि संगठित भ्रष्टाचार और फिजूलखर्ची, बर्बादी और घटिया काम पर नजर रख सके, और बर्बादी होने के पहले ही सरकार को कार्रवाई सुझा सके।

अब केन्द्र सरकार की सडक़ योजना के लिए जमीन लेने की लागत को जिस अफसर और कर्मचारियों ने दस गुना पहुंचा दिया, उन्हें जरा सा भी डर नहीं लगा। करीब ढाई सौ करोड़ के घोटाले का यह मामला भूपेश सरकार के पहले ही साल का दिखाई पड़ रहा है। और ऐसा हो नहीं सकता कि सत्तारूढ़ नेताओं की भागीदारी के बिना इतना बड़ा भ्रष्टाचार कोई एक डिप्टी कलेक्टर अकेले कर ले। इसके पहले भी कई दूसरे जिलों में ऐसे मामले सामने आए हैं जब लोगों की निजी जमीन का अनिवार्य अधिग्रहण होना था, और उसके ठीक पहले उन जमीनों की कागजी खरीद-बिक्री दिखाकर, या पारिवारिक बंटवारा दिखाकर उनके छोटे-छोटे टुकड़े किए गए ताकि उनका कई गुना अधिक रेट से मुआवजा मिल सके। विधानसभा में तो अभी एक डिप्टी कलेक्टर को सस्पेंड किया है, लेकिन केन्द्र सरकार की जनसुविधा की इस महत्वाकांक्षी योजना को एक आपराधिक साजिश रचकर जिन लोगों ने भी फायदा उठाया है, वैसे दस-बीस और लोगों को भी जेल भेजना चाहिए, और उनकी जमीन-जायदाद की बिक्री करके एक ऐसी मिसाल कायम करना चाहिए कि आगे किसी और का ऐसा हौसला न हो। वैसे तो पिछले पांच बरस के भ्रष्टाचार के जितने मामले जांच एजेंसियों के रास्ते अदालतों में पहुंचे हुए हैं, उन्हें देखकर आज के सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों, नेताओं और सत्ता के दलालों का हौसला पस्त होना चाहिए क्योंकि दो-दो बरस से बड़े-बड़े आला अफसर और सत्ता की गोद में बैठे नेता-कारोबारी बिना जमानत जेल में पड़े हुए हैं, और उनकी सैकड़ों करोड़ की जमीन-जायदाद ईडी और आईटी में अटैच भी हो चुकी है। लेकिन जिनको इससे सबक न मिले, उन पर नजर रखने के लिए सरकार को आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार की एक नई निगरानी एजेंसी बनाना चाहिए क्योंकि आज की एसीबी-ईओडब्ल्यू यह काम करने में कामयाब नहीं हो पाई है। जो शिकायतें इन दो एजेंसियों के पास पहुंचती हैं उन्हीं पर कार्रवाई होती है, इसके साथ-साथ एक निगरानी एजेंसी भी चाहिए क्योंकि सरकार का पैसा लुट जाने के पहले ही उसका पता लगा सके। यह बात तो तय है कि सरकार में भ्रष्टाचार पानी पर तैरती जलकुंभी की तरह सबको दिखता है, सबको पता रहता है, और अगर इसे कोई अनदेखा करते हैं, तो वह सत्ता पर ऊपर बैठे लोग ही करते हैं। यह सिलसिला तोडऩा चाहिए, और जांच एजेंसी का काम शुरू होने के पहले ही निगरानी एजेंसी बनाकर उसे मजबूत करना चाहिए। आज लोगों का अंदाज यह है कि सरकारी खर्च का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार और घटिया सामान-निर्माण में बर्बाद होता है, एक मजबूत निगरानी एजेंसी बड़ा सस्ता सौदा होगी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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