संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बजट में हर तबके के लिए कुछ न कुछ, लेकिन बजट के खर्च की निगरानी बहुत जरूरी...
04-Mar-2025 4:36 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : बजट में हर तबके के लिए कुछ न कुछ, लेकिन बजट के खर्च की निगरानी बहुत जरूरी...

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार का दूसरा बजट कल विधानसभा में पेश हुआ। एक सबसे नौजवान मंत्री, वित्त मंत्री ओपी चौधरी, शासन और प्रशासन दोनों की अच्छी जानकारी रखने वाले हैं, और मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने उन्हें बजट बनाने के लिए खुला हाथ भी दिया था। बजट में प्रदेश के तमाम वंचित, और जरूरतमंद तबकों के लिए बारीकी से कुछ न कुछ किया गया है, तो वह बजट पर एक आदिवासी मुख्यमंत्री की छाप भी दिखती है, जो ख़ुद वंचित बचपन से उठकर इस कुर्सी तक पहुँचा है। वित्त मंत्री ओपी चौधरी का पहला, और पिछला बजट तो कुल दो महीने की तैयारी का बजट था, लेकिन इस बार उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तर्ज पर शब्दों के प्रथमाक्षरों को लेकर एक ‘गति’ वाला बजट सामने रखा है, उनकी गति का मतलब सुशासन, तेज ढांचा विकास, टेक्नोलॉजी, और औद्योगिक विकास के अंग्रेजी शब्द हैं। इस बजट को एक नजर देखने से ऐसा लगता है कि राज्य के हर शहर-कस्बे, हर इलाके, हर तबके के लिए इसमें कुछ न कुछ दिया गया है।

हम अभी बजट की बारीकियों पर जाना नहीं चाहते क्योंकि वह लंबी लिस्ट कल से छपती चली जा रही है, लेकिन उसके एक खास पहलू पर खुलासे से चर्चा करना चाहते हैं। वित्त मंत्री ने रायपुर, नया रायपुर, दुर्ग-भिलाई, और राजनांदगांव के 800 से अधिक गांवों, और बीस शहर-कस्बों को मिलाकर स्टेट कैपिटल रीजन बनाने की बात कही है। हालांकि इस बार के बजट में इसके महज सर्वे और योजना के लिए कुल 5 करोड़ रुपए रखे हैं। यह देश की राजधानी के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की तर्ज पर छत्तीसगढ़ की राजधानी और उसके इर्द-गिर्द के एकमुश्त विकास की योजना है, जो बहुत महत्वाकांक्षी हो सकती है, और नया रायपुर योजना की तरह अनुपातहीन खर्चीली भी हो सकती है। प्रदेश की करीब एक तिहाई आबादी इस क्षेत्र में बसी हुई है, और इसके बाहर के भी दसियों लाख लोग हर दिन इस क्षेत्र में आते-जाते हैं। ऐसे में विधानसभा क्षेत्रों, संसदीय सीटों और म्युनिसिपल-पंचायतों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के तंग नजरिए से ऊपर उठकर अगर विशुद्ध योजनाशास्त्री के नजरिए से इस योजना को नहीं बनाया जाएगा, तो यह सत्तारूढ़ नेताओं की तुष्टिकरण का एक निरर्थक और भारी फिजूलखर्ची का सामान बन जाएगा। ऐसे किसी भी विशाल इलाके के जटिल विकास की दीर्घकालीन योजनाएं आसान नहीं होती हैं, और इन्हें किसी चुनिंदा योजनाशास्त्री को उपकृत करने के लिए उसे देने के बजाय देश के सबसे अच्छे योजनाशास्त्रियों को देना चाहिए। इसके लिए देश में शहरी विकास के जानकारों का एक सम्मेलन भी किया जाना चाहिए। हमने नया रायपुर का बेहद खर्चीला विकास देखा हुआ है जो कि हजारों करोड़ की लागत के बाद भी आज भी पांच-दस फीसदी भी इस्तेमाल नहीं हो रहा है।

सरकार को किसी भी ऐसे खर्च के पहले यह याद रखना चाहिए कि इस प्रदेश की जनता सरकारी धान खरीदी की वजह से आज खुशहाल दिख रही है, वरना यहां प्रति व्यक्ति आय बहुत कम दिखती। गऱीबों के हक़ के पैसों से विकराल आकार की योजना बनाने के पहले उसकी उपयोगिता और उत्पादकता तौल लेनी चाहिए। राज्य राजधानी क्षेत्र का मतलब राजनांदगांव से लेकर नया रायपुर तक एक मेट्रो की योजना भी होगी, और हो सकता है कि इसके लिए राज्य सरकार को रायपुर शहर के बीच स्काईवॉक नाम की अपनी अधूरी पड़ी हुई योजना को पूरा करने की जिद छोडऩा भी पड़े, क्योंकि शहर के बीचों-बीच बहुत ही सीमित उपयोग वाले ऐसे स्कॉईवॉक के बाद शहर के बीच से किसी तरह की मेट्रो शायद निकल नहीं पाएगी।

दूसरी बात हम पहले भी कई बार बजट के तुरंत बाद लिख चुके हैं कि बजट का एक छोटा सा हिस्सा राज्य सरकार को सरकारी अमले के भ्रष्टाचार, और प्रदेश में आर्थिक अपराधों की रोकथाम के लिए रखना चाहिए। इस बजट में इसका जिक्र तो दिख रहा है, लेकिन एक ऐसी एजेंसी की जरूरत है जो भ्रष्टाचार हो जाने के पहले ही खुफिया तंत्र और निगरानी से सरकार और जनता दोनों को सचेत कर सके। इसके बिना 1 लाख 65 हजार करोड़ रुपए के इस बजट का कितना हिस्सा भ्रष्टाचार, फिजूलखर्ची, और घटिया निर्माण में बर्बाद होगा, यह अंदाज लगाना बहुत मुश्किल भी नहीं है। हम अभी बजट के एक-एक काम की तुलना पिछली सरकारों के अलग-अलग बजट से नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार, और वित्त मंत्री ओपी चौधरी को ऐसी तरकीबें जरुर सोचना चाहिए कि जिस मद के लिए जितनी रकम रखी गई है, उस रकम का उस मद में अधिकतम इस्तेमाल हो सके, हम पिछले बरसों के सरकारी भ्रष्टाचार की कहानियां अखबारों में पढ़-पढक़र थक गए हैं। फिर यह बात भी सोचने लायक है कि जिस सरकारी अमले ने पिछले बरसों में परले दर्जे का यह भ्रष्टाचार किया था, वही अमला तो आज भी सरकार चला रहा है। भ्रष्टाचार की पुख्ता बिछी हुई पटरी पर ट्रेन दौड़ाना बहुत से लोगों के फायदे का काम हो सकता है, ऐसे लालच को रोककर इसी सरकारी अमले को, और राज्य की राजनीतिक संस्कृति को ईमानदार बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है, और इस लंबे-चौड़े बजट की कामयाबी इस चुनौती से पार पाए बिना नहीं हो सकेगी।

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