संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : आधुनिक विकास को पीछे धकेलने तिरुपति ले आया किसी शास्त्र की भावना!
03-Mar-2025 6:28 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : आधुनिक विकास को पीछे धकेलने तिरुपति ले आया किसी शास्त्र की भावना!

देश के एक सबसे बड़े हिन्दू तीर्थ, तिरुपति ट्रस्ट की तरफ से केन्द्र सरकार से अनुरोध किया गया है कि इस मंदिर की पहाड़ी, तिरुमाला के ऊपर से किसी भी तरह के विमानों का उडऩा बंद करवाया जाए, और इसे ‘नो फ्लाई जोन’ घोषित किया जाए। इस पर केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री राममोहन नायडू ने मीडिया से कहा है कि वे अधिकारियों से बात कर रहे हैं, ताकि विमानों के लिए कोई वैकल्पिक रास्ता तय किया जाए। उन्होंने कहा कि बहुत से तीर्थस्थानों की तरफ से ऐसे अनुरोध मिले हैं, और हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि इनमें क्या-क्या किया जा सकता है। मंदिर ट्रस्ट ने केन्द्र सरकार को लिखकर कहा है कि मंदिर की पवित्रता, सुरक्षा-चिंताएं, और भक्तों की भावनाएं देखते हुए इसके ऊपर से किसी भी तरह के विमान उडऩे पर रोक लगाई जाए। ट्रस्ट का कहना है कि इस मंदिर की पवित्रता, उसके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए तुरंत ही ऐसी कार्रवाई करनी चाहिए। मंदिर ट्रस्ट ने अपने अनुरोध के समर्थन में अगम शास्त्र का हवाला दिया है कि अगम नियमों के मुताबिक मंदिर की पवित्रता सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, और उसके आसपास किसी भी तरह का विघ्न पैदा होने से उसके आध्यात्मिक वातावरण पर फर्क पड़ता है। रिकॉर्ड बताता है कि 2016 में आन्ध्रप्रदेश सरकार ने भी केन्द्र सरकार से ऐसी ही अपील की थी जिसे केन्द्र ने यह कहते हुए खारिज किया था कि इससे तिरुपति एयरपोर्ट तक विमानों की आवाजाही सीमित हो जाएगी। उस वक्त विमानन मंत्री जयंत सिन्हा ने लिखा था कि तिरुपति एयरपोर्ट के आसपास की भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए वैसे ही वहां पर केवल एक ही रनवे काम करता है, और किसी भी तरह के और प्रतिबंध लगाने से इस महत्वपूर्ण एयरपोर्ट तक आवाजाही प्रभावित होगी। अब केन्द्रीय विमानन मंत्री आन्ध्र की तेलुगु देशम पार्टी के हैं, उनकी पार्टी आन्ध्र पर सत्तारूढ़ है, और केन्द्र की मोदी सरकार इसी पार्टी के सहयोग से चल रही है।

अब जिस तरह की धार्मिक भावनाओं का जिक्र करते हुए यह मांग की जा रही है, उसके बारे में यह भी सोचने की जरूरत है कि क्या इसका कोई अंत होगा? आगे चलकर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को लेकर, बोधगया के बोधिवृक्ष को लेकर, कोलकाता के काली मंदिर को लेकर, अजमेर की दरगाह को लेकर, गुजरात के सोमनाथ मंदिर, ओडिशा के पुरी मंदिर को लेकर इसी तरह की मांग उठ सकती है। हर जगह धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं, और अगर ऐसे हर तीर्थस्थान के ऊपर से विमानों की आवाजाही का रास्ता बदला जाएगा, तो वह हवाई यातायात के लिए एक अलग किस्म का खतरा बन जाएगा। आज तमाम विमान सबसे छोटे रास्ते पर सफर करते हैं, और जिन देशों के रिश्ते अच्छे नहीं रहते हैं, उन्हें छोडक़र दूसरे रास्ते से आने-जाने पर बहुत सारा अतिरिक्त खर्च होता है, अतिरिक्त समय लगता है। भारत तो कदम-कदम पर तीर्थों से भरा हुआ देश है, और यहां पर इस तरह की कोई भी रोक आगे चलकर हो सकता है कि कई तरह की हवाई दुर्घटनाओं की एक वजह बन जाए। आज शायद दिल्ली में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति निवास या कुछेक फौजी ठिकानों, परमाणु केन्द्रों को ही ऐसी उड़ानों से मुक्त रखा गया है। इसके बारे में बहुत जानकारी अभी हमारे पास नहीं है, लेकिन दुनिया भर में धार्मिक स्थलों के ऊपर से उड़ानों पर रोक का कोई ध्यान नहीं पड़ता है। फिर भारत के नक्शे को अगर देखें तो हर कुछ सौ किलोमीटर पर किसी न किसी धर्म के प्रमुख उपासना स्थल हैं, और फिर खजुराहो सरीखे पुरातत्व के महत्व के बहुत से केन्द्र भी देश भर में बिखरे हुए हैं।

जिस तरह तिरुपति ट्रस्ट ने किसी शास्त्र का हवाला देकर यह सब कहा है, वह अपने आपमें एक भयानक नौबत है। आज कोई भी ट्रस्ट आधुनिक सुविधाओं, और टेक्नॉलॉजी को मना नहीं करता है। बिजली, इंटरनेट, कम्प्यूटर, सीसीटीवी कैमरे, गैस-चूल्हे, से किसी को परहेज नहीं है। किसी ट्रस्ट को ऑनलाईन बुकिंग या दान से परहेज नहीं है, और हर प्रमुख तीर्थस्थान पर हर दिन लाख-लाख लोगों के लिए प्रसाद या भोजन तैयार करने में भी हर तरह की टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल होता है। धर्म हर तरह की टेक्नॉलॉजी का भरपूर इस्तेमाल भी करता है, और आस्था को जब चाहे तब विज्ञान और टेक्नॉलॉजी के मुकाबले खड़ा भी कर देता है। अभी-अभी निपटे महाकुंभ में सरकार ने ही बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल भीड़ के इंतजाम में किया गया था। जाहिर है कि यह मानवीय क्षमताओं से परे टेक्नॉलॉजी पर आधारित बात थी, और धर्म का उससे कोई टकराव भी नहीं था। पहाडिय़ों के बीच बसे हुए एयरपोर्ट पर एक हिस्से से प्लेन और हेलीकॉप्टर का उडऩा रोक देने से खतरे भी बढ़ेंगे, और शायद एयरपोर्ट की क्षमता भी घट जाएगी। आज जब पौन सदी से यह व्यवस्था चली आ रही है, तो अब आज उसमें यह नया बखेड़ा खड़ा करना धार्मिक आस्था की बात नहीं है, सत्तारूढ़ पार्टी और गठबंधन-भागीदार के बाहुबल का प्रदर्शन अधिक है कि वे ऐसा कुछ भी करवा सकते हैं। एक तरफ तो आन्ध्र के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू दुनिया भर की आधुनिक टेक्नॉलॉजी का केन्द्र आन्ध्र को बनाने में 25 बरस पहले अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए भी लगे हुए थे। लेकिन आज लोकलुभावनी लोकप्रियता पाने के लिए इस तरह की मांग दुनिया के विकास और प्रगति के खिलाफ सोच है। हो सकता है कि मोदी सरकार को अपने दो मददगारों में से एक की ऐसी बेतुकी मांग को पूरा करने के लिए कुछ सोचना पड़े, लेकिन यह एक बहुत खराब परंपरा होगी, और धीरे-धीरे जब जिस राज्य के विधानसभा चुनाव होंगे, तब उस राज्य के सबसे बड़े तीर्थस्थान को नो फ्लाई जोन बनाने को चुनावी मुद्दा बना लिया जाएगा।

यह सब आधुनिक विकास को नकारने और खारिज करने की हरकत है, और इसे शुरूआत में ही खत्म करना चाहिए। धर्म ने हिन्दुस्तान की आम जिंदगी को एक बड़े बादल की तरह ढांक लिया है, और जिंदगी की बहुत सी बुनियादी जरूरतों, और जरूरी मुद्दों को पीछे धकेल दिया है। तिरुपति की यह मांग असल जिंदगी को धक्का देकर हाशिए पर फेंक देने जैसी होगी, इससे न तो ईश्वर का कोई भला हो सकता, न भक्तों का। बल्कि भक्तों के लिए खतरा खड़ा होगा, उनकी दिक्कतें बढ़ेंगी, और उस इलाके के हवाई सफर की संभावनाएं सीमित होंगी।

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