संपादकीय
छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ बरसों में लगातार सायबर मुजरिमों ने जिस बड़े पैमाने पर संगठित जालसाजी और धोखाधड़ी की है, उसके शिकार आम लोग तो हैं ही दूसरी तरफ़ दर्जन भर से अधिक बैंक और हर मोबाइल कंपनी का भी ऐसे जुर्म का शिकार होना यह सवाल करता है कि यह संस्थाएं जुर्म की शिकार है या जुर्म में भागीदार है। चिटफंड कंपनियों से लेकर महादेव सट्टे तक और अब तरह-तरह की शेयर ट्रेडिंग के फ्रॉड और क्रिप्टोकरेंसी के नाम पर धोखाधड़ी के पैसों के लिए जिस तरह इस राज्य में राष्ट्रीयकृत और निजी बैंकों में दसियों हज़ार खाते खोले गए हैं और उनसे हजारों करोड़ रुपए बाहर भेजे गए हैं उससे हिंदुस्तान की बैंकिंग की साख बुरी तरह ख़त्म होती है। दूसरी तरफ़ मोबाइल कंपनियों से जिस तरह दसियों हज़ार सिम कार्ड जाली कागजातों या दूसरे बेक़सूर लोगों के कागजातों से हासिल किए गए उससे यह सवाल उठता है कि सिम कार्ड के लिए जिस तरह के पहचान पत्र जरूरी होने का दावा मोबाइल कंपनियों और सरकार की तरफ़ से किया जाता है क्या वह सिर्फ़ एक ढकोसला है?
देश में पिछले दस बरस में मोदी सरकार ने जिस बहुत बड़े पैमाने पर तमाम चीजों को डिजिटल और ऑनलाइन किया है उसके बाद इस तरह के सायबर फ्रॉड और जुर्म से लोगों को बचाने की जिम्मेदारी तो सरकार की ही होनी चाहिए थी। लेकिन झारखंड के एक छोटे से जामताड़ा में पूरी तरह से अनपढ़ नौजवान भी जिस बड़े पैमाने पर देश भर में ठगी और धोखाधड़ी करते हैं, जिसे लेकर नेटफ़्लिक्स को एक सीरिज बनाने का मौक़ा मिलता है, उससे यहाँ सवाल उठता है कि क्या कोई हिफ़ाज़त असरदार भी है?
देश में अलग-अलग किस्म के जुर्म का जो पैसा बैंकों के खच्चर-खातों में जमा किया जा रहा है, और जिसे क्रिप्टो करेंसी या हवाला नेटवर्क की शक्ल में देश के बाहर भेज दिया जा रहा है उसे बरसों तक जारी देखना सरकार की क्षमता पर सवाल उठाता है। आज जब पूरी की पूरी बैंकिंग सरकार एयर आरबीआई के पूरे नियंत्रण में है, जब दूरसंचार कंपनियों का दिया हुआ हर कनेक्शन पूरी तरह सरकार के नियमों के तहत होता है, तो फिर यह कैसे हो जाता है कि फर्जी नाम से सिम कार्ड लेकर गरीबों के बैंक खाते किराए पर लेकर उनके पहली नजर में ही संदिग्ध दिखने वाले करोड़ों रुपए की आवाजाही होने लगती है और न तो बैंकिंग की कोई सुरक्षा जांच इस पर अलर्ट खड़ा करतीं, और न ही कोई भी सरकारी एजेंसी समय रहते ऐसे खच्चर-खातों पर कोई कार्रवाई करती। यह आम जनता की ज़िंदगी में सबकुछ डिजिटल और सबकुछ ऑनलाइन कर देने के बाद उसे बिना हिफ़ाज़त खुले आसमान तले बेसहारा छोड़ देने सरीखा काम है। अब तो यह भी साफ़ होते चल रहा है कि सायबर जुर्म से परे भी दूसरे कई किस्म के बैंकिंग फ्रॉड में बैंकों के अफसर खुलकर शामिल मिले हैं, और इससे समझ पड़ता है कि बैंकों का अपना काम किस हद तक खोखला है? देश में अनपढ़ मजदूरों और ग़रीब लोगों के दसियों करोड़ बैंक खाते हैं और ऐसे खातों को भाड़े पर लेकर संगठित सायबर-मुजरिम जिस तरह जुर्म का पैसा इनमें इकट्ठा करते हैं वह बैंकों की मामूली सावधानी से भी पकड़ में आ जाना चाहिए था, लेकिन धीरे-धीरे अब यह समझ पड़ रहा है कि बैंक महज लापरवाह नहीं थे बल्कि जुर्म में भागीदार थे। भारत सरकार को अनाथ और बेसहारा से पड़े हुए दसियों करोड़ बैंक खातों की हिफ़ाज़त के बारे में सोचना चाहिए कि ये खच्चर-खातों की तरह भाड़े पर मुजरिमों का औजार बनने का ख़तरा उठा रहे हैं। इसके पहले कि एक-एक करके ऐसे दसियों लाख और बैंक खाते खच्चर-खातों में तब्दील हो जायें सरकार को जुर्म का यह सिलसिला रोकना चाहिए। कुछ दिन पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह कहा था कि देश में 19 लाख खच्चर-खातों की शिनाख्त की जा चुकी है। अब छत्तीसगढ़ जैसे छोटे से राज्य में जिस बड़े पैमाने पर ऐसे म्यूल-अकाउंट पकड़ा रहे हैं, उससे यही समझ पड़ता है कि देश में आर्थिक अपराधों की हालत देखते हुए आर्थिक अपराधों पर निगरानी रखने के लिए एक अलग से एजेंसी बनाई जाए ताकि करोड़ों लोगों के हजारों रुपए लुट जाने के पहले ही इन्हें रोका जा सके। देश में डिजिटलीकरण और ऑनलाइन काम को जिस बड़े पैमाने पर बढ़ाया गया है उसी के अनुपात में हिफाजत बढ़ाने की भी जरूरत है वरना ग़रीब इसी तरह लुटते रहेंगे, मुजरिम दूसरे देशों में करोड़ों-अरबों रुपए भेजते रहेंगे। छत्तीसगढ़ का ही सौरभ चंद्राकर नाम का एक मामूली नौजवान जिस तरह महादेव सट्टा कारोबार खड़ा करके दसियों हज़ार करोड़ रुपए कमा चुका है, वह केंद्र सरकार को एक बहुत बड़ी चुनौती है। अभी तक कुछ मामूली लोगों को ही इसमें पकड़ा गया है और लूट का एक जरा सा हिस्सा ही बरामद हो पाया है। केंद्र सरकार को एक क्रांतिकारी कार्रवाई करने की जरूरत है।