संपादकीय

गुजरात के सूरत की तकलीफदेह खबर है कि आठवीं क्लास की एक बच्ची को स्कूल में फीस न दे पाने की वजह से इम्तिहान में नहीं बैठने दिया गया। इसके बाद उसे क्लासरूम के बाहर दो दिन तक शौचालय के करीब खड़ा रखा गया क्योंकि उसके मां-बाप फीस का इंतजाम नहीं कर पाए थे। जब वह घौर लौटी तो बुरी तरह से रो रही थी। पिता ने कहा कि अगले महीने तक फीस का इंतजाम कर लेंगे, लेकिन वह इतनी विचलित थी कि उसने स्कूल जाने से मना कर दिया। और जब मां-बाप काम पर गए हुए थे तो उसने खुदकुशी कर ली। स्कूल ने जाहिर तौर पर आरोपों को गलत बताया है। सरकार ने मामले की जांच का कहा है। अब यह घटना देश के एक सबसे संपन्न और कारोबारी प्रदेश गुजरात की है, जो कि देश के दो सबसे ताकतवर लोगों का गृहराज्य भी है, और जहां पिछले कई कार्यकाल से भाजपा की ही सरकार चली आ रही है। यह नौबत देश में जगह-जगह सामने आती है, लेकिन गुजरात में ऐसा होना अधिक फिक्र की बात है क्योंकि यह देश की सत्ता का अपना गृहराज्य है, और मोदी-शाह की पार्टी भी इस राज्य की सत्ता पर काबिज है।
स्कूली छात्र-छात्राओं को अगर इतने तनाव से गुजरना पड़ता है, तो फिर इस देश को दुनिया के कुछ सभ्य और विकसित देशों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। कल ही छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में एक सरकारी स्कूल की प्राचार्या के खिलाफ अधिक फीस वसूली करने, और शौचालय साफ करवाने के आरोप लगाते हुए छात्र-छात्राओं की बड़ी भीड़ पुलिस को धक्का देते हुए कलेक्ट्रेट में घुस गई, और भारी आक्रोश के नारे लगाने लगी। उसके वीडियो देखें तो लगता है कि तनाव इतना बढऩे के पहले क्या कोई शाला विकास समिति, स्थानीय पार्षद, स्थानीय विधायक या सांसद कोई भी इस तरफ नहीं देखते हैं? कुछ ऐसी ही नौबत प्रदेश में बहुत सी और जगहों पर स्कूलों को लेकर चली आ रही है जहां मास्टर और हेडमास्टर दारू पिए हुए पहुंच रहे हैं, छात्राओं से अश्लील बर्ताव हो रहा है, और कई जगहों पर उनके साथ बलात्कार हो रहा है। कहीं-कहीं आश्रम छात्रावास की बच्चियां गर्भवती हो रही हैं। सरकारी स्कूलों से लेकर महंगी निजी स्कूलों तक सब जगह बच्चों का ऐसा ही बुरा हाल चल रहा है। एक तरफ दिल्ली में केजरीवाल सरकार अपनी स्कूलों के मॉडल तैयार करने के लिए दुनिया में सबसे अच्छी स्कूली पढ़ाई वाले नार्वे से सीख रही है, दूसरी तरफ केरल जैसे राज्य में दक्षिण के बाकी राज्यों से भी आगे बढक़र हर दर्जे की शिक्षा को भरपूर अहमियत दी जा रही है, लेकिन हिन्दीभाषी राज्यों, और उत्तर भारत के राज्यों में पढ़ाई का हाल बहुत ही खराब चल रहा है। खुद भारत सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग की 2023-24 की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि आबादी बढऩे के बाद भी स्कूलों की दर्ज संख्या में 37 लाख से अधिक की गिरावट आई है, और यह गिरावट एसटी-एससी, ओबीसी, और लड़कियों के वर्ग में सबसे अधिक है। आज आई एक दूसरी रिपोर्ट बतलाती है कि पढ़ाई का स्तर किस कदर कमजोर चल रहा है। ऐसे में उन राज्यों को अधिक फिक्र करने की जरूरत है जहां शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं, या पश्चिम बंगाल की तरह शिक्षक भर्ती में इतना बड़ा घोटाला हुआ है कि मंत्री की प्रेमिका का फ्लैट फर्श से छत तक नोटों से भरा मिला था। जब शिक्षक भर्ती का यह हाल रहेगा, तो जाहिर है कि शिक्षा तो बदहाल रहेगी ही। दुनिया के जितने जिम्मेदार देश हैं, उनमें प्राथमिक शिक्षा को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है, और बहुत से देश एक-दूसरे के तजुर्बे से सीखते हैं। हिन्दुस्तान में हालत यह है कि पढ़ाई में देश में सबसे आगे जो केरल है, उसी से कुछ सीखने की जरूरत किसी दूसरे प्रदेश को नहीं लगती है। राजनीतिक दलों को लगता है कि दूसरी पार्टी के राज वाले प्रदेश से कुछ कैसे सीखा जाए, और अगर दो राज्यों में सरकार एक पार्टी की ही है, तो भी उन्हें लगता है कि दूसरे प्रदेश को महत्व कैसे दिया जाए। हो सकता है कि दिल्ली को स्कूलें सुधारने के लिए नार्वे जाने की जरूरत न रही हो, और केरल से भी बहुत कुछ सीखा जाना मुमकिन रहा हो, लेकिन राजनीतिक दलों के अपने पूर्वाग्रह, और एक-दूसरे से आगे बढक़र दिखने की चाह सब कुछ रोक देती है।
हम इस नीरस चर्चा को हर कुछ महीने में जरूर छेड़ते हैं क्योंकि किसी भी देश का भविष्य उसके बच्चों पर ही टिका रहता है। ये बच्चे आज अगर बेहतर न बने, तो इस बात की गारंटी रहती है कि यह देश भी आगे जाकर बेहतर नहीं बन सकेगा। लोकतंत्र में किसी भी देश और प्रदेश को अपने बच्चों को सबसे अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए। अभी जापान की स्कूलों की शिक्षा प्रणाली से दुनिया के बिल्कुल दूर कोनों के देश भी बहुत कुछ सीख रहे हैं। और वहां प्राथमिक शाला में औपचारिक किताबी पढ़ाई के बजाय काम का सम्मान करना, दूसरों के लिए आदर का भाव रखना जैसी बुनियादी बातों को, और कामों को सिखाया जाता है। अब जिस देश-प्रदेश में टीचर क्लास में दारू पिए हुए पड़े रहेंगे, वहां किस तरह की बुनियादी तालीम की बात हो सकती है? भारत के तमाम प्रदेशों को स्कूलों की हालत सुधारने, पढ़ाई का स्तर बेहतर करने, और बच्चों में लोकतंत्र के प्रति सम्मान विकसित करने का काम करना चाहिए, आज की हालत तो बहुत ही निराशाजनक है। इस देश के भीतर भी दक्षिण के राज्य जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं, वह देखने लायक है, और वह इसलिए है कि वहां स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। उच्च शिक्षा के लिए उत्तर भारत के बच्चे भी दक्षिण की तरफ जाने को मजबूर रहते हैं। नार्वे तो दूर है, दक्षिण से ही कुछ सीख लिया जाए।