संपादकीय

इधर इजराइल और फिलीस्तीन की खबर अभी आ ही रही है कि उनके बीच युद्धविराम पर सहमति तकरीबन पूरी हो गई है, और अब उसकी घोषणा ही बची हुई है। कुछ हफ्ते पहले इजराइल और हिजबुल्ला नाम के एक दूसरे हथियारबंद संगठन के बीच ऐसी सहमति हुई, और लेबनान में बसे हुए हिजबुल्ला के साथ इजराइल की जंग थम गई। बड़े खूनी संघर्ष के बाद ये दो युद्धविराम मध्य-पूर्व के इस इलाके के लिए बड़ी कामयाबी होंगे, या कि तकरीबन हो चुके हैं। लोग ऐसा भी मान रहे हैं कि 20 जनवरी को अमरीकी राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद डोनल्ड ट्रम्प किसी तरह के दबाव का इस्तेमाल करके रूस और यूक्रेन के बीच की जंग को भी शांत कर सकते हैं। ऐसे में भारत और बांग्लादेश के बीच छिड़ा हुआ तनाव कम न होना फिक्र की बात है।
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को जनआक्रोश और जनआंदोलन की वजह से खुद होकर कुर्सी छोडऩी पड़ी, और प्रधानमंत्री हसीना जान बचाकर भारत में शरण लेकर रह रही हैं। आज बांग्लादेश पर काबिज अंतरिम सरकार शेख हसीना के कट्टर विरोधियों की है, और उसे भारत से इस बात की शिकायत भी है कि भारत ने बांग्लादेश के अंदरुनी मामलों में दखल देने की हद तक हसीना सरकार का समर्थन किया था। इस शिकायत के साथ बांग्लादेश के मौजूदा शासक, और उनके सलाहकार भारत के खिलाफ इस हद तक हैं कि बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ती चल रही हैं। भारतवंशी हिन्दू और ईसाई बांग्लादेश में निशाना बनाए जा रहे हैं, और दोनों देशों के बीच बड़ी तल्खी के बयान भी हवा में तैर रहे हैं। चूंकि बांग्लादेश की मौजूदा सरकार के लोगों को सरकार चलाने का तजुर्बा बहुत कम है, या नहीं है, इसलिए उनकी प्रतिक्रिया कुछ अधिक आक्रामक बनी हुई है। लेकिन बीच-बीच में भारत की तरफ से भी कुछ ऐसे बयान आते हैं जो कि बांग्लादेश को माकूल नहीं बैठते, और दोनों देशों के बीच सोशल मीडिया और खबरों के मार्फत तनातनी बढ़ती जाती है।
हम दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कहीं तनातनी बढऩे, और कहीं कम होने की चर्चा एक साथ इसलिए कर रहे हैं कि जहां दो पक्षों में कोई शक्ति संतुलन नहीं रहता, कोई बराबरी नहीं रहती, वहां पर भी एक हद तक जंग चल जाने के बाद किसी समझौते की बात से ही रास्ता निकलता है। न तो फिलीस्तीन के हमास की ताकत की इजराइल से कोई बराबरी थी, और न ही लेबनान की जमीन पर काम करने वाले हिजबुल्ला की ताकत इजराइल के आसपास भी थी, लेकिन इजराइल ने एक सीमा तक इन दोनों को कमजोर करने के बाद उनसे युद्धविराम करने, शांतिवार्ता करने को ही बेहतर समझा। इसलिए दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी तनातनी को कम करने की इस ताजा मिसाल पर गौर करना चाहिए। अपने से ताकत में बहुत कमजोर संगठनों से समझौता करके इजराइल छोटा साबित नहीं हुआ, उसने अपनी ताकत को फिजूल में बर्बाद करना रोका, और शायद वह अपने देश की हिफाजत की फिक्र भी कर रहा है जो कि अड़ोस-पड़ोस पर बम बरसाते हुए हमेशा के लिए कायम नहीं रह पाएगी।
कोई देश कितना ही ताकतवर क्यों न हो, आज की वैश्विक राजनीति में, उसे किसी पड़ोसी को दुश्मन बनाकर रखने की बददिमागी नहीं करनी चाहिए। रूस इसकी सबसे बड़ी मिसाल है जिसने यूक्रेन पर हमला करते हुए इसे एक हफ्ते की फौजी कार्रवाई करार दिया था। आज हालत यह है कि छोटे से यूक्रेन ने नाटो की मदद से रूस की नाक में दम कर दिया है, और जंग हजार दिन से अधिक लंबी हो चुकी है। रूस की फौजी साज-सामान बनाने की जितनी क्षमता है, उससे कहीं अधिक उसकी रोज यूक्रेन में खपत हो रही है। पश्चिमी देशों को शायद इसी में मजा आ रहा है कि यूक्रेनी जिंदगियों की कीमत पर, उनके कंधों पर बंदूक रखकर पश्चिम रूस को खोखला कर रहा है, और आज परमाणु हथियारों को छोड़ दें, तो परंपरागत हथियारों के मामले में नाटो रूस को शिकस्त दे सकता है। इसलिए पड़ोस के यूक्रेन को गुपचुप की तरह उठाकर मुंह में भर लेने की रूसी चाह उसे बड़ी महंगी पड़ रही है। ठीक उसी तरह इजराइल को भी अड़ोस-पड़ोस पर कब्जा करने की चाह एक किस्म से भारी पड़ी, और उसे अपनी आबादी को सुरक्षित रखने के लिए चाहे-अनचाहे ये युद्धविराम करने पड़ रहे हैं।
भारत की बांग्लादेश से मौजूदा तनातनी दो गैरबराबरी के देशों के बीच की तनातनी तो है, लेकिन यह भी समझने की जरूरत है कि श्रीलंका हो, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार, या बांग्लादेश, जिस किसी की भारत के साथ तनातनी होगी, चीन वहां पर अपनी रणनीतिक संभावनाएं देखने लगेगा। एक किस्म से चीन की नीयत भारत के इर्द-गिर्द मोतियों की माला की तरह बेचैनी की एक माला बनाने की है, और वह किसी भी तरह के टकराव और असंतोष का फायदा उठाने की ताक में रहता है जो कि फौजी टकराव वाले किन्हीं भी दो देशों के बीच एक स्वाभाविक और आम बात रहती ही है। ऐसे में भारत को बांग्लादेश के आकार और उसकी ताकत से अपनी तुलना करके संतुष्ट हो जाने की चूक नहीं करनी चाहिए। पड़ोसी कितना भी छोटा हो, उससे दुश्मनी तकलीफदेह रहती है। और खासकर उस वक्त तो एक अधिक नाजुक हालत है जब भारत के बगल का उससे अधिक सैनिक ताकत वाला चीन भारत के हर पड़ोसी का हमदर्द और मददगार बनने के लिए एक पैर पर खड़ा हुआ है।
बांग्लादेश के साथ जंग और तनाव के फतवों से बचना चाहिए। दोनों ही देशों में कुछ बेदिमाग और बददिमाग लोग इस तरह की बात सोच सकते हैं, लेकिन दोनों तरफ सरकारों में बैठे लोगों को अधिक समझदारी दिखानी चाहिए। खासकर बांग्लादेश के लिए यह बात अधिक जरूरी इसलिए है कि भारत जितने बड़े पड़ोसी, और एक बड़ी आर्थिक ताकत से बिना वजह कड़वाहट और दुश्मनी से बांग्लादेश का सीधा-सीधा नुकसान अधिक होगा, और उस पूरे नुकसान की भरपाई चीन भी नहीं करेगा।