संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इलाज से कम अहमियत नहीं है वक्त पर बीमारी की शिनाख्त हो जाने की..
19-Dec-2024 5:55 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : इलाज से कम अहमियत नहीं है वक्त पर बीमारी की शिनाख्त हो जाने की..

हिन्दुस्तान में गरीबों के इलाज के लिए केन्द्र सरकार, और राज्य सरकारों के अलग-अलग कई तरह के कार्यक्रम हैं। इलाज का बीमा इनमें सबसे बड़ा कार्यक्रम है, और हर प्रदेश में हजारों रूपए सालाना इस बीमे के एवज में सरकार अस्पतालों को देती है। चूंकि इलाज के लिए निजी अस्पतालों में जाने की छूट रहती है, इसलिए सरकारी अस्पतालों पर लोगों की निर्भरता कुछ मामलों में घटी है। नतीजा यह भी है कि सरकार खुद अपने अस्पतालों के लिए कुछ या अधिक हद तक लापरवाह हो गई हैं। नई बाजार व्यवस्था के तहत बड़े निजी अस्पताल, और स्वास्थ्य बीमा का चलन बढ़ गया है। लेकिन बीमे की रकम तो सरकारों को ही देनी होती है। और यह सब तो केवल खर्च की बात हुई, असल बात सेहत की है जो कि किसी भी दाम से ऊपर है, और एक बार सेहत अधिक बिगडऩे पर पूरी तरह सुधरती भी नहीं है।

अभी छत्तीसगढ़ के एक छोटे जिले बैकुंठपुर के जिला अस्पताल में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (चिरायु) के तहत बच्चों की सेहत परखी गई। राजधानी रायपुर से गए हृदय रोग विशेषज्ञों ने बच्चों की जांच की, और प्रारंभिक जांच के बाद 49 बच्चों में से 23 में हृदय रोग के लक्षण पाए गए। और इनमें से 18 बच्चों को दिल की गंभीर बीमारी निकली। अब इनको राजधानी लाकर यहां बड़े अस्पताल में इनका इलाज करवाया जाएगा। यह तो एक बात हुई, अब एक दूसरी खबर गैरसंक्रामक रोगों की जांच, और उनके इलाज के लिए भी सरकार कर रही है, और 30 साल की उम्र के लोगों की हाई बीपी, डायबिटीज, स्तन कैंसर, और गर्भाशय के कैंसर की जांच करने का सरकारी अभियान चलाया जा रहा है। सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने अपने अमले को कहा है कि अस्पताल में किसी भी बीमारी के इलाज के लिए आने वाले इस उम्र के लोगों की ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की जांच अनिवार्य रूप से की जाए। लोगों को ध्यान होगा कि अभी कुछ हफ्ते पहले ही हमने एक कैंसर विशेषज्ञ का साक्षात्कार अपने यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल, के लिए किया था, और उन्होंने कहा था कि कैंसर विशेषज्ञ तक 80 फीसदी मरीज बहुत देर से आते हैं, और उनके पूरी तरह ठीक होने की संभावना तब तक बहुत घट चुकी रहती है। दूसरी तरफ जल्दी आने वाले मरीजों के पूरी तरह ठीक हो जाने की पूरी-पूरी संभावना रहती है।

हम सरकार के स्तर पर होने वाली जांच को इलाज के खर्च, या बीमे के खर्च से परे और ऊपर मानते हैं। अब देश भर में अधिकतर गरीबों का काफी कुछ इलाज सरकारी योजनाओं में होता है। और ऐसे में अगर समय रहते बीमारी का पता लग जाए, तो उनके ठीक होने, और देश में एक उत्पादक नागरिक की तरह योगदान देने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए एक जिले में ही अगर इतने बच्चे हृदयरोगी मिल रहे हैं, तो पूरे प्रदेश में ऐसे हजारों बच्चों की शिनाख्त हो सकती है जिन्हें दिल के गंभीर इलाज की जरूरत हो। इसी तरह दूसरी बीमारियों का हाल भी देश में खतरनाक स्तर पर पहुंचा हुआ है। डायबिटीज का हाल यह है कि इस देश को दुनिया की डायबिटीज-राजधानी कहा जाता है। अब शहरों से निकलकर यह बीमारी गांव के गरीबों तक पहुंचने लगी है, और बहुत कम उम्र के बच्चे भी डायबिटीज के शिकार मिलने लगे हैं। अगर इसकी शिनाख्त में देर होती है तो यह बहुत जाहिर बात है कि इससे आंखों और किडनी सहित शरीर के दूसरे कई अंगों पर बुरा असर पड़ते रहता है। इसलिए जितनी जल्दी इसकी पहचान हो जाए, इलाज शुरू हो जाए, बीमारी का नुकसान उतनी जल्दी थम सकता है। कुछ इसी तरह का हाल महिलाओं के स्तन कैंसर, और गर्भाशय के कैंसर का है। भारत की आम महिलाएं परिवार की फिक्र में अपने आपको इस हद तक झोंक देती हैं, कि खुद की बीमारी का कोई अहसास होने पर भी उसकी चर्चा नहीं करतीं कि परिवार का ध्यान उनकी तरफ बंटेगा। नतीजा यह होता है कि कैंसर जैसी बीमारी बढक़र जब जानलेवा हो चुकी रहती है, तब जाकर इलाज शुरू होता है, और उस वक्त डॉक्टरों के हाथ में भी करने का बहुत कम रह जाता है।

केन्द्र और राज्य सरकारों के स्वास्थ्य जांच के कार्यक्रम इलाज के मुकाबले कहीं भी कम अहमियत नहीं रखते। राज्य सरकारों को चाहिए कि वे अलग-अलग शहरों में अलग-अलग संगठनों को जोडक़र उनके बैनरतले जांच के ऐसे कार्यक्रम करवाए ताकि लोगों की जल्द शिनाख्त हो सके। सरकार का अपना ढांचा ऐसे जांच कार्यक्रम के लिए नाकाफी होता है, और महंगा भी पड़ता है। इसमें सामाजिक भागीदारी बड़े पैमाने पर की जा सकती है। अगर जरूरत हो तो एनसीसी और राष्ट्रीय सेवा योजना के छात्रों को भी ऐसे शिविरों से जोड़ा जा सकता है ताकि वे कम उम्र से ही बीमारियों की जांच के प्रति जागरूक भी होते चलें। आज एनएसएस के छात्र-छात्राओं को कहीं पर झाडिय़ां और कचरा साफ करते देखा जा सकता है, इनके मुकाबले स्वास्थ्य जांच शिविर अधिक बड़ा योगदान हो सकते हैं।

सरकार के लोगों को भी लोगों की जागरूकता के लिए अलग-अलग मंचों पर जाकर जांच की जरूरत बखान करनी चाहिए। लोगों को याद होगा कि रोटरी इंटरनेशनल नाम के संगठन ने पूरे हिन्दुस्तान में पोलियो ड्रॉप्स के अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और देश भर में रोटरी के लाखों सदस्यों ने बच्चों को पोलियो ड्रॉप्स पिलाने में संगठित रूप से सरकार का साथ दिया था। देश भर में भी कुछ ऐसे संगठनों को अलग-अलग बीमारियों की जांच के इंतजाम से जोड़ा जा सकता है। लेकिन केन्द्र और राज्य सरकार जब तक ऐसा कुछ न करे, तब तक स्वास्थ्य विभाग या जिला प्रशासन के उत्साही लोग भी सेहत की जांच के कैम्प लगा सकते हैं, और जल्द शिनाख्त ही सबसे बड़ा बचाव हो सकती है। यह बात भी समझने की जरूरत है कि समाज में जागरूकता जैसे-जैसे बढ़ेगी, वैसे-वैसे लोग अपने आसपास के दूसरे लोगों को भी जांच के लिए भेजने की कोशिश करेंगे। इसकी शुरूआत अधिक महत्वपूर्ण है, और एक सीमा के बाद लोग खुद होकर जांच के लिए आने लगेंगे।

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


अन्य पोस्ट