संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : दिल्ली के प्रदूषण से अधिक है देश में अंधविश्वासी अंधेरा
17-Dec-2024 5:08 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : दिल्ली के प्रदूषण से अधिक है देश में अंधविश्वासी अंधेरा

देश में चारों तरफ से अंधविश्वास की खबरें आती हैं कि किस तरह किसी तांत्रिक के कहे लोग किसी बच्चे की बलि दे देते हैं, या टोनही कहते हुए किसी महिला को मार डालते हैं। कुछ जगहों पर जादू-टोने के शक में किसी बुुजुर्ग का भी कत्ल हुआ है। और अब ताजा मामला छत्तीसगढ़ के सरगुजा इलाके का है जहां पर 35 बरस के एक गैरआदिवासी आदमी को शादी के 15 बरस बाद बेटा हुआ, और किसी तांत्रिक के चक्कर में मनौती मानने के लिए पांच महीने के बेटे के मुंडन के दिन ही एक जिंदा चूजा निगल लिया, और गले की नली में इसके फंस जाने से वह मर गया। मुंडन के जश्न के लिए घर पर इकट्ठा रिश्तेदारों के बीच उसके अंतिम संस्कार की तैयारियां होती रहीं। जिस बेटे के लिए 15 बरस कोशिश और मनौतियां चलीं, उसके साथ कुल 5 महीने जीना हो पाया। खबरें बताती हैं कि यह आदमी नियमित रूप से किसी तांत्रिक के संपर्क और चक्कर में रहता था। और मनौती भी मानी तो ऐसी भयानक कि जिंदा चूजे को निगल लेने की!

अंधविश्वास को सिर्फ अशिक्षा और आर्थिक पिछड़ेपन से जोडक़र देखना भी गलत होगा। बड़े-बड़े लोग तरह-तरह के धार्मिक और आध्यात्मिक पाखंडों में पड़े रहते हैं, बड़े-बड़े नेता, बड़े-बड़े अफसर जाने कितने किस्म के तांत्रिक अनुष्ठान करवाते हैं। छत्तीसगढ़ में अभी ऐसी ही तंत्र साधना से जुड़े एक तांत्रिक की फरारी चल रही है जिसने राज्य की पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान सत्ता के राजतंत्र को भी तंत्र साधना की तरह चलाया था, और जिसकी पेशाब से उन दिनों सत्ता के गलियारों में चिराग जला करते थे। इसलिए अंधविश्वास के शिकार होने की बात महज अनपढ़ या गरीब लोगों पर लागू नहीं होती, सत्ता और संपन्नता के आसमान पर पहुंचे हुए लोग भी परले दर्जे के अंधविश्वासी रहते हैं। हिन्दुस्तान में अंधविश्वासों का कोई अंत ही नहीं होता, जिन लोगों को दस अंधविश्वासों पर भरोसा होने लगता है, उनके सामने लोग और बीस अंधविश्वास पेश कर देते हैं क्योंकि उन्हें एक बेवकूफ ग्राहक मिल जाता है।

धर्म के नाम पर हिन्दुस्तान में किस-किस किस्म का पाखंड नहीं चलता! अगर कोई व्यक्ति चंगाई सभा के नाम पर किसी बड़ी सभा के मंच पर यह दावा करे कि उसकी प्रार्थना से अंधे देखने लगेंगे, और लंगड़े चलने लगेंगे, लोगों का लकवा ठीक हो जाएगा, तो इस पर भी भरोसा करने वाले दसियों हजार लोग रहते हैं। कोई व्यक्ति यह तरकीब सिखाए कि बेलपत्री पर शहद या चंदन लगाकर उसे शिवलिंग पर चढ़ा दिया जाए, तो बिल्कुल भी पढ़ाई न करने वाला बच्चा भी शर्तिया पास हो जाएगा, और इस पर न सिर्फ अंधभक्तों की भीड़ भरोसा करती है, बल्कि सत्ता के तमाम लोग भी ऐसे प्रवचनकर्ताओं की महिमा बढ़ाने का काम करते हैं, उन्हें स्थापित करते हैं। हिन्दुस्तान में हर सौ-पचास किलोमीटर पर कोई न कोई पाखंडी अंधविश्वास की दुकान चलाते मिल जाते हैं।

कहने के लिए देश में अंधविश्वास फैलाने और चमत्कार दिखाने, गंभीर बीमारियां ठीक करने के दावों के खिलाफ बड़ा कड़ा कानून बना हुआ है। लेकिन फर्जी बाबाओं की शोहरत से वोट दुह लेने की नीयत के चलते सत्ता पर बैठे नेता ऐसे जुर्म पर कोई कार्रवाई नहीं होने देते। नतीजा यह होता है कि आसाराम नाम के पाखंडी संत से लेकर गांव-कस्बे के अघोरी-तांत्रिक होने का दावा करने वाले लोग भी अंधविश्वासी भक्तजनों से बलात्कार करते रहते हैं, और उनके कैद काटने के दौरान भी उनके भक्त उनकी पूजा करते रहते हैं। देश में जनता की वैज्ञानिक चेतना को मिट्टी में मिला दिया गया है। भयानक गर्मी की लू को देखते हुए जब शासन-प्रशासन लोगों को घर से न निकलने की सलाह देते हैं, तब लाखों की भीड़ का दावा करने वाले प्रवचनकर्ताओं को प्रवचन की इजाजत दी जाती है, फिर चाहे उसमें पहुंचे लोगों की मौत ही क्यों न हो जाए। लोग विज्ञान की जुटाई गई सहूलियतों का इस्तेमाल करते हुए धर्म और आध्यात्म के नाम पर किए जा रहे तमाम पाखंड को बढ़ावा देते हैं। प्लेन से लेकर कार तक, और लाउडस्पीकर से लेकर टीवी चैनलों तक, सब कुछ मुहैया तो विज्ञान की वजह से हुआ है, लेकिन वैज्ञानिक समझ को नाली में बहाकर लोग बाबाओं के कहे कहीं किसी का सिर काट रहे हैं, तो कहीं पर जिंदा चूजा निगलकर जान दे रहे हैं।

भारत का संविधान सरकारों और नागरिकों से भी यह उम्मीद करता है कि वे वैज्ञानिक सोच, मानवता, और सवाल व सुधार की भावना का विकास करेंगे। संविधान की धारा 51-ए (एच) इस बात को हर नागरिक का दायित्व मानती है। लेकिन बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुए लोग इसके खिलाफ कामकाज करते हैं। देश में एक बहुत बड़ा तबका धर्म की मान्यताओं को विज्ञान से मिली समझ, और संविधान से दिए गए अधिकारों से ऊपर मानता है। इस बारे में विज्ञान के एक प्रोफेसर तेजल कानिटकर ने कुछ बरस पहले एक लेख में लिखा था कि देश के प्रतिष्ठित लोग अपने बयानों और कामों के जरिए संविधान की बातों का उल्लंघन कर रहे हैं, और यह देश के लिए बहुत नुकसानदेह है। अब हालत यह है कि धर्म और अंधविश्वास के बीच की सीमा रेखा खत्म हो चुकी है। धर्म और धर्मान्धता में कोई बड़ा फर्क नहीं रह गया, धर्मन्धता और साम्प्रदायिकता भाई-भाई हो गए हैं, और नफरत को एक धार्मिक काम मान लिया गया है। जब देश के लोगों की न्याय की समझ को इतना कमजोर कर दिया जाता है, विज्ञान के ऊपर अंधविश्वास को स्थापित कर दिया जाता है, तो फिर लोग 15 बरस की मनौती, या मेहनत से पैदा बच्चे के साथ खेलना छोडक़र, उसे प्यार करना छोडक़र, जिंदा चूजा खाकर मनौती पूरी कर रहे हैं, और मर जा रहे हैं। वैज्ञानिक चेतना लोगों में टुकड़े-टुकड़े में नहीं आ पाती, वह या तो आती है, या नहीं आती है। आज हिन्दुस्तान में जिस अंदाज में अंधविश्वास और कट्टरता को बढ़ाया जा रहा है, लोगों के दिमाग में अपने बच्चों को गोद में खिलाने के मुकाबले चूजा निगलकर जान देने में कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


अन्य पोस्ट