संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गरीबों और अमीरों को छूट एक बराबर क्यों?
15-Dec-2024 3:41 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : गरीबों और अमीरों को छूट एक बराबर क्यों?

छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल ने अभी यह फैसला लिया है कि 15 जनवरी से 15 फरवरी तक रायपुर में एक ऑटो एक्सपो लगेगा, और उसमें बिकने वाले तमाम वाहनों को 15 बरस के लिए लगने वाले रजिस्ट्रेशन शुल्क में 50 फीसदी की छूट दी जाएगी। यह आरटीओ टैक्स छोटा नहीं होता है, और प्रदेश में जितनी गाडिय़ां बिकती हैं, उनके मुताबिक इसकी रकम बहुत बड़ी होती है। हमारे सामने आरटीओ के आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 23-24 में नई दुपहिया गाडिय़ों की संख्या साढ़े 4 लाख से अधिक रही, और इनसे सरकार को 365 करोड़ से अधिक आरटीओ टैक्स मिला। इसी दौर में चारपहिया गाडिय़ों की संख्या 60 हजार के करीब रही, और इनसे 629 करोड़ रूपए से अधिक आरटीओ टैक्स मिला। मतलब यह कि दुपहिया संख्या में 8 गुना से अधिक थे, लेकिन उनसे टैक्स चौपहियों के मुकाबले आधे के करीब मिला।

आज हमारा मकसद सरकार की कमाई के आंकड़े गिनाना नहीं है, बल्कि जनता को मिलने वाली रियायत को तर्कसंगत बनाने पर चर्चा है। प्रदेश में अधिकतर दुपहिए एक-दो लाख दाम के भीतर ही रहते हैं, और कारें पांच लाख से लेकर एक-दो करोड़ तक की रहती हैं। अब अगर इन सबको रोड टैक्स में आधी छूट मिल रही है, तो इसका मतलब एक करोड़ की गाड़ी पर भी तीन फीसदी की छूट, और एक लाख की स्कूटर या मोपेड पर भी तीन फीसदी की छूट। जबकि दुपहिया सडक़ों पर कम जगह घेरते हैं, प्रदूषण कम फैलाते हैं, पार्किंग की जगह कम मांगते हैं, और आमतौर पर मध्यम वर्ग और उसके ऊपर-नीचे के लोग ही इसका इस्तेमाल करते हैं। दूसरी तरफ कारों का इस्तेमाल मध्यम वर्ग के ऊपर शुरू होता है, जो कि अतिसंपन्न तबके तक चले जाता है। एक-दो करोड़ की कारों पर मोपेड की अनुपात में ही रियायत न तर्कसंगत है, न न्यायसंगत है। कायदे से तो इन दो किस्मों की गाडिय़ों के लिए ईंधन का दाम भी अलग-अलग होना चाहिए, लेकिन उसे लागू करना आसान नहीं होगा। दूसरी तरफ रोड टैक्स को लागू करना तो बड़ा ही आसान है। हमारा ख्याल है कि रोड टैक्स को दुपहियों पर अधिक घटाना चाहिए, और महंगी होती जाती कारों पर यह कटौती कम होनी चाहिए। लाख रूपए से लेकर करोड़ रूपए तक के वाहनों पर उनके दाम पर अनुपात में ही छूट मिलनी चाहिए, कम दाम को अधिक छूट, और अधिक दाम को कम। सरकार अपनी सालाना कमाई में जितना भी घाटा झेलने को तैयार है, उसे उस रकम को इसी फॉर्मूले के तहत बांटना चाहिए। अब कोई यह कहे कि कूलर पर जितना टैक्स लगता है, उतना ही टैक्स एसी पर भी लगना चाहिए, तो यह तर्क सही नहीं होगा। राज्य सरकार को गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के दुपहियों को अधिक छूट देनी चाहिए, और एक सीमा के ऊपर की कारों को कोई भी छूट नहीं देनी चाहिए। एक सीमा के बाद कारें सुविधा की नहीं, ऐशोआराम की चीज बन जाती हैं, और किसी रियायत का हक खो बैठती हैं।

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