‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 3 नवम्बर। देव उठनी एकादशी 4 नवंबर, को मनाई जाएगी। यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इसी दिन से शुभ कार्यों की शुरूवात हो जाती है। शादी के मुहूर्त भी इस दिन से शुरू हो जाते है। मान्यता है कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार माह के लिए सो जाते हैं और फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगते हैं। चार माह की इस अवधि को चतुर्मास कहते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन ही चतुर्मास का अंत हो जाता है और शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। तुलसी पूजा के लिए राजधानी में सुबह से ही गन्ना,आवला,सिंघाड़ा,बेर बाजार में आ गए हैं। जंहा लोग पूजा व्रत की तैयारी में जमकर खरीदारी करते हैं।
देवउठनी एकादशी का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवता और दानवों के युद्ध में शंखचूड़ को देवता नहीं हरा पाए। भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध करने के लिए जैसे ही अपना त्रिशूल उठाया, तभी आकाशवाणी हुई कि- जब तक शंखचूड़ के हाथ में श्रीहरि का कवच है, और इसकी पत्नी का सतीत्व है, तब तक इसका वध नहीं किया जा सकता है। आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ के पास गए और उससे श्रीहरि कवच दान में मांग लिया। इसके बाद भगवान विष्णु शंखचूड़ का रूप बनाकर तुलसी के पास गए। शंखचूड़ रूपी भगवान विष्णु ने तुलसी के महल जाकर अपनी विजय होने की सूचना दी। यह सुनकर तुलसी बहुत प्रसन्न हुई और पतिरूप में आए भगवान की पूजन किया व रमण किया। ऐसा करते ही तुलसी का सतीत्व खंडित हो गया और भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया। तुलसी ने भगवान को श्राप दे दिया। आप पाषण होकर धरती पर रहोगे। भगवान विष्णु ने तुलसी के तप से प्रसन्न हो कर श्राप स्विकार कर वरदान दिया कि धरती पर नदी का रूप धारण कर गण्डकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगी। तुम पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी। तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण (शालिग्राम) बनकर सदा साथ रहुंगा।
इसी दिन से देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम व तुलसी का विवाह संपन्न कर मांगलिक कार्यों किया जाता है। हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार इस दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह करने से अपार पुण्य प्राप्त होता है। द्वादशी के दिन भगवान विष्णु व तुलसी की पूजा अर्चना कर व्रत का पारण पालन करते हैं। गन्ना, आंवला व बेर खाकर व्रत को खोलते हैं। कहते हैं इन फलों के सेवन से सभी पाप नष्ट होते हैं। अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो गन्ने के सेवन से व्यक्ति के शरीर से विष हरण होता है।
देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ- शाम 7 बजकर 30 मिनट से (3 नवंबर, एकादशी तिथि समाप्त- शाम 6 बजकर 8 मिनट तक।
शादियों के लिए शुभ मुहूर्त
नवंबर 24, 25 ,27, दिसंबर- 2, 3, 7, 8, 13, 14 व 15, जनवरी 14, 16, 19, 25, 26, 27, फरवरी 30 31 16, 8, 9, 10, 11, 12,13, 14, 17, 22, 23, मार्च 9, 11, 13 14,26, 8, 10, 15, 16, मई 20, 21 व 26 से 30, जून 1, 3, 5, 6, 7, 10, 12, 16, 22, 23, 25, 26 28।