‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बैकुंठपुर (कोरिया), 22 जुलाई। सोसाइटियों में खाद की कमी ने किसानों को परेशान कर दिया है। धान के लिए सबसे जरूरी डीएपी का संकट सबसे अधिक बना हुआ है। किसानों को सोसाइटियों से खाद नहीं मिलने का फायदा निजी दुकान संचालक उठा रहे हैं और वो निर्धारित दर से अधिक कीमत में डीएपी खाद बेची जा रही है। दूसरी ओर बीते वर्ष जो लक्ष्य 11 हजार मी टन था, उसे घटाकर 9 हजार मी टन कर दिया गया है, उस पर आपूर्ति नहीं है। जिसके कारण किसानों को रोपा के समय डीएपी नहीं मिल रहा है।
जानकारी मुताबिक कोरिया जिले की सोसाइटियों में खाद की कुल मांग 11 हजार मीट्रिक टन है। इसकी तुलना में अब तक 9706 मीट्रिक टन खाद पहुंची है, परन्तु इसमे 7125 टन यूरिया है। वहीं डीएपी 1908 जबकि एनपीके 100 मी टन प्राप्त हुआ है। किसानों को प्रति एकड़ एक बोरी डीएपी का वितरण किया जाता है। लेकिन जिन सोसाइटियों में डीएपी पहुंच रही है, वहां किसानों को अपने रकबे के मुताबिक भी खाद नहीं मिल रहा है। 10 एकड़ रकबे वाले किसान को भी एक से दो बोरी डीएपी ही दी जा रही है। इससे किसानों की चिंता बढ़ गई है।
प्रशासन जल्द ही जरूरत मुताबिक डीएपी की खेप पहुंचने का आश्वासन दे रही है, लेकिन अब तक स्थिति जस की तस है। बैकुंठपुर के छिंदडांड संग्रहण केन्द्र में डीएपी शून्य है, बैकुंठपुर स्थित बडगांव के संग्रहण केन्द्र में 3.9 मी टन, जनकपुर संग्रहण केन्द्र में 31 मी टन डीएपी बचा है। सबसे ज्यादा परेशान सोसायटी के प्रबंधक है, किसान उनके खाद की मांग करने उनके केन्द्रों के बाहर बैठे है, ऐसे में वो खाद कहां से लाकर दे, ये उनके समझ में नहीं आ रहा है।
लक्ष्य ही कम तय किया गया
दरअसल, बीते वर्ष जिले में खाद का लक्ष्य 11 हजार मी टन था, और इस वर्ष 10 प्रतिशत बढोतरी के साथ कम से कम 12 हजार मी टन होना था, परन्तु ऐसा ना होकर लक्ष्य की 9 हजार मी टन भेजा गया। जिले में 5 हजार टन यूरिया की खपत होती है, जिस पर 44 हजार मी टन का लक्ष्य रखा गया, जबकि लक्ष्य से ज्यादा 7125 मी टन प्राप्त हुआ, ऐसे में 1589 मी टन आज स्टॉक है। वहीं सुपर फासफेट, डीएपी और एनपीके तीनों को मिलाकर यूरिया के बराबर होना चाहिए। परन्तु 1 फरवरी से अब तक सुपर फासफेट 700 के लक्ष्य के बाद 472, डीएपी 17 सौ के लक्ष्य के बाद 1908 और एनपीके 22 सौ के लक्ष्य के बाद मात्र 100 मी टन की प्राप्त हुआ हैं। जिसका वितरण किसानों को किया जा रहा है। अफसरों का कहना है कि डीएपी खाद की सर्वाधिक मांग को देखते हुए राज्य कार्यालय से समन्वय कर खाद भण्डारण का प्रयास किया जा रहा है।
गौठानों के गोबर की खाद पर नहीं है भरोसा
कई सोसायटी में पहुंचें किसानों से चर्चा पर किसानों ने बताया कि डीएपी की तरह उन्हें गौठानों से गोबर की खाद तो मिल सकता है, पूर्व में उन्होने लिया भी है, परन्तु वो खाद हमारे किसी काम का नहीं है, क्योंकि हाईब्रीड धान की खेती में डीएपी कारगर खाद है। इस समय रोपा का काम चल रहा है, डीएपी की जरूरत अभी ही है, यदि वो नहीं मिला तो एक तो बारिश ना के बराबर है, धान की फसल चौपट हो जाएगी। हम लोगों को दोहरी मार पड़ रही है।
इधर, प्रशासन ने जैविक खाद खरीदने की अनिवार्यता जारी है। परन्तु किसानों के धान की फसल के लिए किसान उसे कारगर नहीं मान रहे है। इससे भी किसानों की परेशानी बढ़ गई है। इस बीच अगर बारिश होती है तो किसानों की चिंता और बढ़ जाएगी।
सोसाइटियों में खाद की कमी होने से कालाबाजारी
डीएपी खाद का सरकारी मूल्य 1350 रुपए निर्धारित है। लेकिन सोसाइटियों में खाद की कमी का फायदा उठाकर कालाबाजारी हो रही है। निजी दुकानों में डीएपी 1700 से 1800 रुपए प्रति बैग तक बिक रहा है। बोनी और रोपा के दौरान इसकी जरूरत ने किसानों को अधिक दाम में डीएपी खाद खरीदने को मजबूर कर दिया है। वहीं कई निजी कंपनी के सेल्समेन डीएपी खाद बेचने की बात कहकर गांव-गांव तक पहुंच रहे हैं, जो किसानों को अधिक दाम पर बगैर प्रमाणिक कंपनी की खाद बेचकर लौट रहे हैं। मजबूरी में किसानों को इनसे भी खाद खरीदना पड़ रहा है।