‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोण्डागांव, 2 मई। शासकीय गुण्डाधुर स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कोण्डागांव के एम.एससी. रसायनशास्त्र द्वितीय तथा चतुर्थ सेमेस्टर के छात्र-छात्राओं ने पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर स्थित रसायनशास्त्र अध्ययनशाला का एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण किया। यह भ्रमण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सी. आर. पटेल के निर्देशन एवं रसायन विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. अल्का शुक्ला, प्राध्यापक नसीर अहमद तथा नीता नेताम के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ।
यह भ्रमण विद्यार्थियों को रसायनशास्त्र के सिद्धांतों को आधुनिक अनुसंधान उपकरणों एवं तकनीकों से जोडऩे का सशक्त माध्यम बना। अध्ययनशाला के सीवी रमन सभागार में आयोजित स्वागत सत्र में विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापकों - प्रो. कल्लोल घोष, डॉ. शम्स परवेज़, डॉ. मानस कांति देब, डॉ. मनीष राय, प्रो. श्रीवास, डॉ. मनमोहन सतनामी, डॉ. इंदरपाल खरबल एवं डॉ. वंदना सूर्यवंशी ने अध्ययनशाला की शैक्षणिक यात्रा, शोध परियोजनाएं, फंडिंग स्कीम्स एवं नवीन अनुसंधान प्रवृत्तियों पर विचार साझा किया।
डॉ. मनमोहन सतनामी द्वारा नैनोमटेरियल्स की प्रयोगात्मक प्रस्तुति विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र रही। उन्होंने बताया कि कैसे नैनोकणों की संरचना, रंग, सतही क्षेत्र और रासायनिक क्रियाशीलता उन्हें विशेष बनाती है। फ्लोरेसेंस तकनीक से चंटम डॉट्स की पहचान, साइज डिपेंडेंट प्रॉपर्टीज और उनके संभावित बायोमेडिकल उपयोगों पर विस्तार से चर्चा हुई।
शोध छात्र-छात्राओं से संवाद
अध्ययनशाला के शोधार्थियों शुभ्रा, ऋचा, वैभव और अन्य ने विद्यार्थियों को प्रयोगशालाओं में स्थापित उपकरणों की कार्यप्रणाली, कैलीब्रेशन तकनीक, सैंपल प्रिपरेशन, सॉफ्टवेयर इंटरफेस आदि के बारे में व्यवहारिक जानकारी दी। विद्यार्थियों ने स्वयं कुछ उपकरणों पर काम कर अनुभव भी प्राप्त किया।
विद्यार्थियों की प्रतिक्रियाएं
शैक्षणिक भ्रमण के उपरांत गुण्डाधुर महाविद्यालय के विद्यार्थियों में जबरदस्त उत्साह और नवाचार के प्रति सजगता देखी गई।
मानसी ठाकुर ने कहा, मैंने पहली बार इतने परिष्कृत रिसर्च इंस्ट्रूमेंट्स को न केवल देखा, बल्कि उन्हें हैंडल करने की तकनीक भी सीखी। इस भ्रमण ने मुझे शोध में करियर बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित किया है।
श्वेता सिंह ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, अक्सर हम किताबों में जो पढ़ते हैं, उसे हकीकत में देखना और समझना बहुत रोमांचक था। एचपीएलसी और स्नञ्जढ्ढक्र जैसे उपकरणों की कार्यप्रणाली ने मेरी समझ को एक नया दृष्टिकोण दिया।
नेहा सिंह ने कहा, इस भ्रमण ने मुझे यह सिखाया कि अनुसंधान केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह सोच, योजना और विश्लेषण का एक समन्वय होता है। मैं बेहद प्रेरित हूं और भविष्य में इस दिशा में आगे बढऩा चाहती हूं।
त्रिलोचन पटेल ने कहा कि विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं में जाकर ऐसा लगा मानो सिद्धांत और वास्तविकता के बीच की दूरी मिट गई हो। मैंने पहली बार स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप जैसे उन्नत उपकरणों को न केवल देखा, बल्कि उनके पीछे की वैज्ञानिक प्रक्रिया को भी समझा। शोधार्थियों के साथ संवाद कर यह जाना कि एक वैज्ञानिक किस तरह निरंतर प्रयोग, संशोधन और धैर्य के साथ काम करता है। इस भ्रमण ने मेरी सोच को केवल परीक्षा केंद्रित न रखकर शोध और खोज पर केंद्रित कर दिया है। मुझे अब यह स्पष्ट लगने लगा है कि विज्ञान केवल जानकारी नहीं, एक निरंतर यात्रा है।
अन्य विद्यार्थियों ने बताया कि इस भ्रमण से उन में शोध के प्रति उत्सुकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ। वे अब उच्चशिक्षा और अनुसंधान में करियर बनाने को लेकर और अधिक प्रेरित हैं। रसायनशास्त्र में उन्नत तकनीकों के प्रत्यक्ष अवलोकन ने उनके शैक्षणिक जीवन में एक नया आयाम जोड़ा।
प्रोफेसर मानस कांति देब ने आगामी कुछ प्रोजेक्ट्स के तहत अन्य महाविद्यालयों के शोधोंमुखी छात्रों हेतु एक संपर्क अभियान करने के बारे में बताया।
नसीर अहमद ने कहा कि यह शैक्षणिक भ्रमण विद्यार्थियों के लिए ज्ञान, कौशल और आत्मविश्वास के समेकित विकास का मंच बना। आधुनिक प्रयोगशालाओं, उपकरणों और शोध प्रक्रियाओं की निकटता ने उनमें शोध के प्रति नवीन सोच और उत्साह का संचार किया। उन्होंने बताया कि महाविद्यालय के रसायनशास्त्र विभाग और विश्वविद्यालय के रसायन अध्ययनशाला के बीच छात्रों हेतु शिक्षण, शोध एवं नवाचार के लिए शीघ्र ही एक एमओयू करने के बारे में चर्चा भी की गई है।
डॉ. अलका शुक्ला ने महाविद्यालय परिवार की ओर से विश्वविद्यालय प्रशासन, अध्ययनशाला के सभी प्राध्यापकों, शोधार्थियों एवं तकनीकी कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया जिन्होंने समय निकालकर विद्यार्थियों को अत्याधुनिक अनुसंधान की झलक दिखाने में योगदान दिया।
यह शैक्षणिक यात्रा विद्यार्थियों के लिए न केवल जानकारीवर्धक, बल्कि उनके आत्मविश्वास, जिज्ञासा एवं भविष्य की दिशा निर्धारण में भी मील का पत्थर सिद्ध हुई।