‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
पिथौरा, 16 जनवरी। नगरीय निकाय चुनाव के लिए आरक्षण की प्रक्रिया पूर्ण होते ही अब चुनावी माहौल बनने लगा है। चुनावी मैदान में कूदने वाले नेता अभी से जनसंपर्क में जुट गए है, वहीं वार्डों में लगातार चुनाव जीत कर पार्षद बनने वाले नेता पुन: पार्षद बनने के लिए किसी अनुकूल वार्ड की तलाश में जुटे दिखने लगे हैं।
पिथौरा नगर पंचायत इस बार सामान्य (मुक्त)घोषित हुई है। लिहाजा यहां मुकाबला भी कड़ा होने की संभावना है। वर्तमान में अध्यक्ष कार्यकाल पूर्ण कर चुके आत्माराम यादव कांग्रेस की ओर से पुन: सशक्त दावेदार माने जा रहे हैं।
श्री यादव खल्लारी विधायक द्वारिकाधीश यादव के अनुज एवं स्थानीय जनपद उपाध्यक्ष मुकेश यादव के अग्रज है। विगत कार्यकाल में उन्होंने नगर मे विकास के अनेक कार्य कराये हंै, जिसमें गौरव पथ एवं नया पेयजल पाइप लाइन, खेल मैदान एवम मंगल भवन प्रमुख हंै। इसके अलावा कांग्रेस से टिकट की दौड़ में पूर्व पार्षद एवं स्थानीय शीतला समाज के अध्यक्ष प्रेमलाल सिन्हा, विकास शर्मा एवं लगातार तीन बार चुनाव जीते पार्षद राजू सिन्हा भी शामिल हैं।
दूसरी और भाजपा मे टिकट के दावेदारों की लम्बी फेहरिस्त है, परन्तु टिकट के सबसे सशक्त दावेदार के रूप में लगातार चार बार नगर पंचायत के अध्यक्ष रह चुके देवसिंह निषाद उभरे हैं। श्री निषाद अपने व्यवहार एवं आम लोगों से आत्मीय संबंधों के लिए जाने जाते हैं। वहीं भाजपा में ही चार बार पार्षद रह चुके मन्नू लाल ठाकुर भी दावेदारों की सूची में हैं। इसके अलावा विधायक प्रतिनिधि रविन्दर आजमानी, विधायक प्रतिनिधि एवं व्यापारी एकता मंच के पूर्व अध्यक्ष अनूप अग्रवाल भी अध्यक्ष पद हेतु टिकट की दौड़ में शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार स्थानीय विधायक की पहली पसंद स्थानीय स्काउट गाइड संघ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष सत्यनारायण अग्रवाल हो सकते हैं।
दूसरी और राजनितिक पार्टियों से हट कर नगर के समाजसेवी आकाश एरन भी चुनावी मैदान में कूद सकते हैं। हालांकि वे चुनावी राजनीति से दूर रहने की बाते कह चुके हैं, परन्तु श्री एरन के पास युवाओं की काफ़ी बड़ी फ़ौज है, जिसका प्रदर्शन वे विभिन्न पर्व के अवसर पर करते रहते हैं, जिससे लगता है कि़ समर्थकों के दबाव में चुनावी मैदान मे कूद सकते हैं।
बहरहाल, नगरीय निकाय चुनाव क़ी तिथि घोषित होने के पहले ही पार्षद एवं अध्यक्ष प्रत्याशी तय होने क़ी संभावना को देखते हुए दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों में स्थानीय स्तर पर चुनावी हलचल जोर पकड़ चुकी है।