‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बैकुंठपुर, 14 जनवरी। कोरिया जिले की पहचान बने कोढिय़ागढ़ पहाड़ का ऐतिहासिक और प्राकृतिक महत्व अद्वितीय है। जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित यह पहाड़ न केवल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है, बल्कि यह ऐतिहासिक धरोहर के रूप में भी प्रसिद्ध है।
ऐसे पहुंचे कोढिय़ागढ़ पहाड़
बैकुंठपुर से बिलासपुर रोड पर मनसुख और बंजारीडांड होते हुए ठग्गांव की ओर जाने वाली सडक़ पर मुडऩा होता है। वहां से ग्राम दुग्गी चौक पहुंचकर पहाड़ की ओर जाने वाला कच्चा रास्ता शुरू होता है। पहाड़ तक जाने का रास्ता रोमांचक और प्रकृति से भरपूर है।
प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहर
पहाड़ पर चढ़ाई के दौरान 1200 फीट की ऊंचाई पर एक प्राचीन मंदिर और निर्मल पानी का स्रोत (तुर्रा) मिलता है। इसके बाद की चढ़ाई सीधी और चुनौतीपूर्ण है। चोटी पर पहुंचने के बाद यहां से चारों ओर का नजारा अद्भुत दिखता है। नीचे देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे आप आसमान पर खड़े हैं।
यहां दो प्राचीन शिव मंदिर, एक बड़ा तालाब, और दो विशाल कुएं हैं, जो पत्थरों को काटकर बनाए गए हैं। पहाड़ के नीचे और ऊपर नक्काशीदार पत्थरों के अवशेष बिखरे हुए हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।
एकमात्र द्वार और रहस्यमयी सुरंग
कोढिय़ागढ़ पहाड़ पर जाने के लिए सिर्फ एक मुख्य द्वार है। यहां एक रहस्यमयी सुरंग भी है, जिसके बारे में आज तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।
पर्यटन के लिए संभावनाएं
कोढिय़ागढ़ पहाड़ पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां पहुंचने वाले पर्यटक इसकी सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहर देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यदि इसे संरक्षित और विकसित किया जाए, तो यह स्थान कोरिया जिले का प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है।