‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
धमतरी, 3 नवंबर। अमावस्या के कारण दिवाली के दूसरे दिन 2 नवंबर को गोवर्धन पूजा और गौरा-गौरी विवाह का उत्सव मनाया। प्राय: सभी गांव में गौरा उत्सव की धूम सुबह से देर रात तक रही। इस बीच चुलमाटी, प्रतिमा शृंगार के बाद शिव-पार्वती की बारात निकली। फिर गौरा-गुड़ी की परिक्रमा कर विवाह की रस्में निभाईं। लगातार तीसरा साल है जब लक्ष्मी पूजा के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा हुई।
धमतरी शहर में दिवाली 31 अक्टूबर को मनाई, जबकि ग्रामीण इलाके में 1 नवंबर को लक्ष्मी पूजन हुआ। देर रात को गौरा गौरी की बारात बाजे गाजे के साथ निकाली। कई घरों से मिट्टी के जलते हुए दीपक, कलश गौरा चौरा में लाकर स्थापित किया। देर रात तक पूजन का दौर चला। इस दौरान रास्तेभर खूब आतिशबाजी हुई। घर-घर महिलाओं ने विसर्जन यात्रा के दौरान माता पार्वती, भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा का पूजन किया।
ऐसे निभाई गौरी-गौरा विवाह की रस्में
जिलेभर में करीब 400 जगहों पर गौरी-गौरा की विवाह हुई। यह परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। धनतेरस के दिन से इसकी शुरुआत हुई। कुंवारी मिट्टी लाकर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति बनाई। फिर भगवान भोलेनाथ की बारात निकाली। माता गौरी की शादी कराई। बारात में रातभर भक्त नाचते-झूमते रहे। दिवाली के तीसरे दिन 2 नवंबर को गौरी गौरा की मूर्ति को तालाब में विसर्जन किया।