बालोद

डॉ. शिरोमणि का काव्य संग्रह ‘लाये स्वर्ग धरा पर’ गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज
18-Sep-2024 3:40 PM
डॉ. शिरोमणि का काव्य संग्रह ‘लाये स्वर्ग धरा पर’ गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दल्ली राजहरा, 18 सितंबर ।
गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में छत्तीसगढ़ के जिला बालोद के दल्ली राजहरा की कवियत्री चिंतक विचारक एवं समाजसेविका डॉ. शिरोमणि माथुर के काव्य संग्रह ‘लाये स्वर्ग धरा पर’ को स्थान दिया गया है। ‘ लाये स्वर्ग धारा पर’ 2111 दोहों की अनूठी साहित्यिक कृति है। शायद साहित्य जगत में 2111 दोहों की यह पहली कृति है। 

गोल्डन बुक का रिकॉर्ड में कहा गया है कि एक कवयित्री के सर्वाधिक दोहे एक पुस्तक में प्रकाशित है।  एक पुस्तक में सबसे अधिक दोहेभारत के छत्तीसगढ़ के दल्ली राजहरा की डॉ. शिरोमणि माथुर द्वारा प्रकाशित किया गया है।  27 जुलाई 2024 को डॉ. माथुर ने दो हजार एक सौ ग्यारह (2111) दोहों वाली पुस्तक ‘लाये स्वर्ग धरा पर’ का प्रदर्शन किया है।

लाये स्वर्ग धारा पर’के संदर्भ में डॉ. शिरोमणि माथुर कहती हैं कि  बिखरते घर, टूटते वैवाहिक संबंध, समाज व देश में होती हत्याएं व आत्महत्याएं,  देशों में आपसी युद्ध, गृहयुद्ध , प्राकृतिक असंतुलन, बढ़ती बीमारियां ,अंतर्कलह. मन गहरे तक विचलित कर देती हैं। ढेरों भौतिक सुविधाएं मानव मन को शांति व सुख नहीं दे पा रही है। हर व्यक्ति इन समस्याओं से मुक्ति चाहता है, उसका मुख्य कारण है हमारी विचारधारा स्व में उलझ गई है। प्रकृति व परमात्मा से हमारा संबंध कम होता जा रहा है। 

हमारा प्रभु प्रेम व नैतिकता कर्मकांडों में फंस गई है। जिस तरह पावर हाउस से ढीले कनेक्शन के कारण घर भी लाइट व यंत्र ठीक से काम नहीं कर पाते। वैसे ही परमात्मा से उचित संबंध न होने के कारण हम भी जीवन के मार्ग में थकने और हांफने लगे हंै। विश्व हित में यह उचित नहीं है। आज हमें अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता है, जिससे बिखरता समाज व विश्व संगठित हो, हम अध्यात्म के सही महत्व को समझें और परमात्मा से सीधा संबंध बनाकर स्वयं में शक्तियां अर्जित करें और खुश रहकर एक विश्वसनीय स्वर्णिम विश्व की रचना हो, यही मेरी रचना का उद्देश्य है।

दोहों के माध्यम से कही बातें देश, समाज व विश्व मानवता की कुछ सेवा कर पायी तो मेरी मेहनत सार्थक होती। इन दोहों में बहुत बड़ा मनोविज्ञान छिपा है। मन की शांति परम आवश्यक है, जो हमें भौतिक साधनों में नहीं मिलती, वह परमात्मा सानिध्य से ही मिलती है। 
 


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