बिलासपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, 8 सितंबर। छत्तीसगढ़ के सीमांत जिलों गौरेला-पेंड्रा-मरवाही और मनेंद्रगढ़-सोनहत-चिरमिरी के निवासियों के लिए बिलासपुर और राजधानी रायपुर से जुडऩे का प्रमुख मार्ग लोक निर्माण विभाग की आरएमकेके रोड है। इन सडक़ों का उपयोग न केवल आम यात्री करते हैं, बल्कि गंभीर बीमारियों और दुर्घटनाओं से पीडि़त मरीजों को भी जिला अस्पताल से बिलासपुर और रायपुर रेफर किया जाता है। एंबुलेंस जैसे आपातकालीन वाहनों को भी गड्ढों से भरी सडक़ पर यात्रा करना पड़ता है, जिससे मरीजों की परेशानी और बढ़ जाती है।
क्षेत्र में मौजूद कोयला खदानों का कोयला भी इसी मार्ग से राज्य के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है। बसंतपुर से रतनपुर तक लगभग 75 किमी की दूरी वाली यह सडक़ बुरी तरह से जर्जर हो चुकी है। इस मार्ग पर सैकड़ों गांव स्थित हैं, जिनके निवासियों को आवागमन में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। गड्ढों से भरी सडक़ पर चलने वाले वाहनों से उठने वाली धूल से पूरा क्षेत्र धुंधला हो जाता है, जिससे न केवल सफर कठिन होता है, बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित होता है।
लोक निर्माण विभाग के अधिकारी यह कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि सडक़ों की मरम्मत का काम 15 अक्टूबर से शुरू होगा, जब बरसात का मौसम समाप्त हो जाएगा। हालांकि, इसके पहले डीबीएम विधि से सडक़ की मरम्मत संभव है, लेकिन अधिकारी किसी प्रकार की कार्रवाई करते नजर नहीं आ रहे हैं।
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही और मनेद्रगढ़-सोनहत-बैकुंठपुर को संभागीय कार्यालय बिलासपुर से जोडऩे वाली यह एकमात्र सडक़ छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश को जोडऩे वाली जीवनरेखा मानी जाती है। परंतु, वर्तमान स्थिति में इस सडक़ पर डेढ़ फीट से डेढ़ मीटर तक के गड्ढे हैं, जिससे 100 किमी की यात्रा में 3 से 4 घंटे लग जाते हैं। यह मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग के अंतर्गत स्थानांतरित कर दिया गया है, लेकिन अब तक उस पर काम शुरू नहीं हो सका है।


