बीजापुर

प्रशासन की अनदेखी के बाद ग्रामीणों ने दिखाई मिसाल, टोरा, महुआ और इमली बेचकर जुटाए पैसे
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बीजापुर, 21 मई। जब सिस्टम मौन हो जाए और जिम्मेदार लोग आंखें मूंद लें, तब आम आदमी ही बदलाव की मिसाल पेश करता है। बीजापुर जिले के भैरमगढ़ विकासखंड के ग्राम पंचायत केशकुतुल के ग्रामीणों ने ऐसा ही एक साहसिक कदम उठाया है। शासन-प्रशासन की अनदेखी से तंग आकर ग्रामीणों ने अपने स्वयं के संसाधनों से खुद ही सडक़ बनाने की पहल शुरू कर दी है।
टोटा पारा से सुराखाडा पारा तक कुल 8 किलोमीटर लंबी इस सडक़ को बनाने का सपना यहां के लगभग 70 परिवारों ने देखा और उसे सच करने की जिम्मेदारी भी खुद ही उठाई। ग्रामीणों ने अपने घरों में संग्रहित जीवनयापन की बचत राशि और टोरा, महुआ और इमली बेचकर जो आमदनी हुई, उससे सडक़ निर्माण का काम शुरू कर दिया है।
हर घर से जुटाया गया चंदा, मिला जन सहयोग
हर परिवार ने अपनी क्षमता अनुसार आर्थिक योगदान दिया। एक तरह से यह सडक़ केवल मिट्टी, पत्थर और श्रम से नहीं, बल्कि आत्मबल, उम्मीद और सामाजिक एकजुटता से बन रही है। यह एक ग्रामीण च्च्जन आंदोलनज्ज् की तरह है, जिसमें हर उम्र, हर वर्ग के ग्रामीण अपनी भागीदारी निभा रहे हैं।
प्रशासन को कई बार दी जा चुकी है सूचना
गौरतलब है कि ग्रामीणों ने पहले ग्राम पंचायत की ग्राम सभा में प्रस्ताव पास कर जनपद पंचायत में सडक़ निर्माण की मांग की थी। इसके अलावा हाल ही में आयोजित सुशासन त्योहार में भी लिखित आवेदन दिया गया। बावजूद इसके किसी भी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
सुविधाओं से कोसों दूर
जिस गांव के लोग यह सडक़ बना रहे हैं, वह भैरमगढ़ ब्लॉक मुख्यालय से सिर्फ 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके बावजूद वहां पक्की सडक़ नहीं बन सकी।
एक नई उम्मीद की मिसाल
केशकुतुल के ग्रामीणों का यह कदम न सिर्फ पूरे राज्य के लिए एक प्रेरणा है, बल्कि यह सिस्टम को आइना दिखाने वाला भी है। यह ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी की याद दिलाता है, जिन्होंने अकेले पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया था। यहां, सामूहिक प्रयासों से गांव-गांव को जोडऩे का संकल्प लिया जा रहा है।
अब वक्त है कि शासन इस प्रयास का संज्ञान ले और ग्रामीणों की इस आत्मनिर्भरता को सम्मान देकर उचित सहायता प्रदान करें। सडक़ बनना केवल एक निर्माण कार्य नहीं, बल्कि यह जीवन, शिक्षा, स्वास्थ्य और भविष्य से सीधा जुड़ा है।