बीजापुर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भोपालपटनम, 15 अक्टूबर। डिजिटल युग में नेटवर्क जाल जगह-जगह फ़ैल चुका है और इसके साथ ही मनोरंजन के कई साधन अब लोगों के पास आ गए हैं, लेकिन बस्तर के आदिवासियों की परंपरा आज भी बरकरार है, लेकिन यह अब दूसरा रूप ले चुका है।
मुर्गा बाजारों में आदिवासी मनोरंजन का साधन कम सट्टेबाजों का बाजार सजने लगा है। साप्ताहिक बाजारों व विशेष त्योहारों में मुर्गा बाजार में लाखों का दांव लगाने तेलंगाना महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में सट्टेबाज आकर लाखों का दांव खेल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर सहित पूरे बस्तर में त्योहारों के सीजन में ग्रामीण आंचलों में मुर्गों के ऊपर खूनी खेल का चलन बरसों से चलता हुआ आ रहा है। कई वर्षों से आदिवासियों द्वारा मनोरंजन के लिए ग्रामीण इलाकों में मुर्गा बाजार सजाया जाता है, लेकिन अब रूप बादल चुका हैं। इस बाजार में मुर्गों पर लाखों रुपये के दांव लगाए जाते है।
इस समय दशहरा पर मुर्गा बाजार कम सट्टा बाजार सजने लगा है। यहां सैकड़ों की तादात में लोग इकठ्ठा हो रहे हैं। भोपालपटनम के आसपास के इलाकों में मुर्गा लड़ाई बहुत ज्यादा प्रचलित है। साप्ताहिक बाजार एवं त्योहार में लड़ाई के लिए शौकीनों की प्रतिष्ठा मुर्गे से जुड़ी होती है। उसे बड़े जतन से पाला जाता है. मालिक अपने परिवार से कहीं ज्यादा मुर्गे का ख्याल रखते हैं।
मुर्गे को काजू, बादाम जैसे ताकत दिलाने वाली चीजें खिलाई जाती है, जिससे उसकी स्फूर्ति और वार करने की क्षमता बढ़ जाती है। चिन्हांकित जगह में गोल घेरा बनाकर मुर्गों की लड़ाई कराई जाती है।
जैसे खेल शुरु होता है, लोग तेलगु में एर्रा पुंजू नल्ला पुंजू, और पाड़ी कहते हुए सट्टा लगाते हंै। वैसे ही एक मुर्गे पर लाखों रुपयों का दांव लगता है। लड़ाई शुरू होने से पहले मुर्गे के पैर में धागे की मदद से छुरी बांध देते हैं। इस छुरी से मुर्गे एक दूसरे पर वार करते हैं। जब तक एक हार न माने जब मुर्गा घायल हो जाता है तो खेल वह खत्म माना जाता है। इसमें जीतने वाला मुर्गे का मालिक हारने वाला मुर्गे को अपने साथ ले जाता है।
तेलंगाना-महाराष्ट्र से आ रहे हैं सट्टा खिलाड़ी, लगा रहे लाखों का दांव
आदिवासियों के पारंपरिक मनोरंजन के साधन मुर्गा लड़ाई के खेल को आज मुर्गों पर दांव लगा कर जुआ खेलने वालों की वजह से ग्रहण लगता जा रहा है. मुर्गा बाजार के शौकीन तेलंगाना और महाराष्ट्र से सैकड़ों लोग अपने मनोरंजन और मुर्गों पर दांव लगाने आते हैं। यहां एक मुर्गे पर लाखों का दांव लगाया जाता है। जब लड़ाई शुरू होती है, तब अखाड़े में बड़ा शोर होता है। चिल्लाते हुए लोग कलर बताते हुए कीमत लगाते हैं और इन इलाके के मुर्गे लड़ाकू भी होते हैं।
इस बार बड़ी संख्या मे बड़ी गाडिय़ों मे बैठाकर सट्टेबाज मुर्गा लेकर आए हुए हैं और बाजार में लाखों का दांव खेल रहे हैं।
घायल मुर्गे की मलहम पट्टी के लिए काउंटर लगाया
मुर्गा बाजार में घायल मुर्गे की मलहम पट्टी करने अलग से काउंटर लगाकर इलाज किया जाता है। घायल मुर्गे को टांके लगाकर मलहम पट्टी की जाती हैं। मैदान में मुर्गा लड़ाने से पहले ताकत बढ़ाने वाली प्रोटीन चींजे खिलाई जाती है, इसके लिए मालिक मोटी रकम में पैसा खर्च करता है।
खाने पीने के सामान के साथ शराब की बिक्री भी खुलेआम
चिन्हांकित जगह पर हो रहे मुर्गा बाजार में खाने पीने के सामान सहित शराब की बिक्री खुले आम होती हैं। जहां बाजार सजाया जाता है, वहां दुकाने भी लगाई जाती है। दूर से आए लोग शराब का शेवन कर मुर्गा बाजार में हिस्सा लेते हैं।
जहा मुर्गा लड़ाने घेरा बनाया गया है, उसके अंदर घुसने की इंट्री फीस ली जाती है। बकायदा अंदर घुसने वाले के ऊँगली पर मारकर से निशान लगाया जाता है। दुबारा अंदर-बाहर हो तो उसके पैसे नहीं लगते हैं।