बीजापुर

जिंदगी और मौत के बीच शरहद बनी चिंतावागु नदी
01-Aug-2024 2:34 PM
जिंदगी और मौत के बीच शरहद बनी चिंतावागु नदी

 पीडीएस राशन के लिए गंज के सहारे जिंदगी दांव पर लगा रहे ग्रामीण 

मो. इमरान खान

भोपालपटनम, 1 अगस्त (‘छत्तीसगढ़’)। गोरला पंचायत के मीनूर गांव के ग्रामीणों के लिए जिंदगी और मौत के बीच चिंतावागु नदी शरहद बनी हैं। गांव के उसपार बसें ग्रामीण उफानी नदी में जान जोखिम में डालकर बर्तन गंज के सहारे नदी पार करने पर मजबूर हैं।

मीनूर गांव के ग्रामीणों कि कहानी सुनकर आपके भी रोगटे खड़े हो जायेंगे लेकिन प्रशासन को इन ग्रामीणों कि इस बड़ी समस्या से कोई वास्ता नहीं हैं ऐसा इनके हालत देखकर दिखाई पड़ते हैं। आज आजादी के 77 साल बीत चुके हैं भारत चाँद तक पहुंच चूका है, लेकिन बीजापुर जिले के अंदरूनी गांव आज भी मूलभूत समस्याओं के चलते अपनी जान गंवां रहे हैं। 

गोरला पंचायत के मीनूर के ग्रामीणों को हर साल मजबूरन अपनी मौत को करीब से देखते हुए नदी पार करना पड़ता हैं। इस दिल दहलाने वाले वाक्य को देखकर आपको भी यह लगेगा कि इनके हिम्मत कि दात देनी पड़ेगी यह कहे तक ग्रामीणों का यह एक मजबूरी का आलम हैं रोजमरा वा जरुरी सामान को लाने के लिए रोज मौत को गले लगाना पड़ता हैं। बरसात दिनों में नदी नाले उफान पर रहते हैं।

चिंतावगु नदी पूरे शबाब पर बहती हैं इस आलम में चिंतावगु नदी के उसपर बसें मीनूर गांव के सैंकड़ों ग्रामीण जान जोखिम में डाल रहे हैं। मंगलवार को नदी का बहाव कुछ हद तक कम होने के बाद ग्रामीण अपनी जरूरतों का सामान लेने आए हुए थे, तभी हमारी हमारी टीम मौके पर ग्रामीणों से मिलने पहुंची ग्रामीणों का जज्बा और उनकी हालत देखकर दंग रह गए खाना बनाने वाले गंज के सहारे उनमें अंतिम चोर को पकडक़र नदी पार कर रहे हैं।

पीडीएस राशन के लिए गंज के सहारे नदी पार
मीनूर के गांव के लोगो को पीडीएस राशन के लिए बड़ी जद्दोजहद व परेशानी उठानी पढ़ती हैं इस गांव का राशन दुकान नदी के इसपार संचालित हो रहा हैं ग्रामीणों को राशन लेने तेज बहती नदी को पार कर आना पड़ता हैं तारीबन 8 किलोमीटर पैदल चलकर व रिक्स का सफर तय करना पड़ता हैं ग्रामीण चावल लेने के बाद गंज में पहले चावल पार करते हैं उसके बाद ग्रामीण पार होते हैं। यह सिलसिला कई सालो से चलता हुआ आ रहा हैं।

हर बरस डूबने से मौत
सिस्टम की अनदेखी और हालातों के आगे लाचार, बेबस ग्रामीण खतरा मोल लेने पर मजबूर हैं यह डूबने से हर साल किसीना किसीकी ग्रामीण कि जान गई हैं। लेकिन इन्हें मजबूरन यह कदम उठाना पड़ता हैं ग्रामीण अगर नदी पार होकर नहीं आएंगे तो उन्हें खाना नसीब नहीं होगा क्योंकि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं हैं।

क्या कहते हैं ग्रामीण
गोपक्का यालम ने परेशानी हालत बताते हुए कहा कि वो सोसाइटी से राशन लेने गंज को पकडक़र नदी पार कर आई हैं। सुबह से निकली उसे शाम के चार बज गए हैं राशन लेने पूरा दिन चला गया है।

शुक्रबाई कुरसम ने भावुक नम पड़ी आँखों से बताया कि यह हर साल का रोना है। बड़ी मुश्किलों का सामना करते हुए हमें राशन लेने आना पड़ता है। सुबह से निकली थी शाम हो चूका हैं अब भी वे घर नहीं पहुंच पाई हैं वे पटनम जाकर धान खरीदी कर आ रही हैं।

67 वर्षीय मट्टी चन्द्रय्या ने बताया कि उनकी पूरी जिंदगी बीत गई हैं वे अब उम्रदराज हो चुके हैं बचपन से ऐसा ही हालत देख रहा हूं। इस नदी में पार करते हुए कई जाने भी गई हैं। लेकिन मजबूरी में आना पड़ता है। 

65 वर्षीय बुजुर्ग समैया पुरतेट ने बताया कि कई बरसों से पुल निर्माण कि मांग कर रहे हैं, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा हैं। जिंदगी मौत के बीच से गुजरकार रोज हमारे गांव वाले आते जाते हैं कई बार घटनाएं भी होती हैं 2 दिन पहले गांव का एक व्यक्ति खत्म हो गया है। 

कमला मट्टी ने बताया कि घर में राशन खत्म हो चूका था और कई दिनों से बारिश हो रही थी आज राशन लेने आए हैं यह बहुत समय लगता हैं लगता हैं आज रात यही गुजरना पड़ेगा।
52 वर्षीय चिन्नाया वासम ने बताया कि वे भी राशन लेने के लिए आई हैं बरसात के 3 महीने नदी कि वजह से बड़ी मुश्किले होती हैं और गांव में ज्यादा लाइट नहीं रहता हैं अंधेरे में रात गुजारते हैं इस ओर कोई ध्यान नहीं देता हैं यह हर चीज के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता हैं।

यालम नीला ने बताया कि अस्पताल कि सुविधाओं के लिए बड़ी तकलीफे उठानी पड़ती हैं गर्भवती महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। गांव में ही दाई के जरिये प्रसव करना पड़ता है।

यालम पेंटय्या ने बताया कि गांव के कोई व्यक्ति अगर ज्यादा बीमार पड़ता हैं तो उसे गंज में बैठाकर नदी को पार कर गोरला के अस्पताल लाते हैं, स्वस्थ कि कोई सुविधा यह उपलब्ध नहीं है। 
 


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