बेमेतरा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 16 अगस्त। ब्रिटिश काल में जिला अंग्रेजों के खिलाफ मुखर रहा। गोंड़ राजा के समय में दाढ़ी व नवागढ़ से जमींदारों ने पहले मराठों फिर अग्रेजों का विरोध किया था। जिले से 47 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम दर्ज रहा। कई नाम दुर्ग की सूची में हैं। सभी ने अंग्रेजों का भरसक विरोध किया था। जिले में आज भी कई पुराने भवन हैं, जहां पर प्रमुख नेतृत्वकर्ता रायपुर, दुर्ग व बड़े शहरों से आकर बेमेतरा में बैठकर अपनी रणनीति तैयार करते थे। जिला मुख्यालय का तामस्कर भवन वीरों के लिए पाठशाला की तरह रहा है। आजादी की लडाई व राजनीतिक प्रतिनिधित्व के केन्द्र बिन्दु रहे तामस्कर बंधु का पुराना घर आज भी अंचल के योगदान की कहानी कहता है।
जानकार बताते हैं, जब-जब अंग्रेजों का विरोध हुआ तब-तब अंचल के लोगों ने आंदोलनों में बढक़र हिस्सा लिया और वकालत का त्याग, स्वदेशी अपनाना, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, जनसभा व रैली निकालकर विरोध प्रर्दशन किया। 1920-21 के आंदोलन में अंधियारखोर के पं. भगवती प्रसाद मिश्र, वाईवी तामस्कर, मुंजन सोनी, माधवराव सप्रे, लक्ष्मण प्रसाद व मुकुट राय जैसे विभूतियों ने गांधीजी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई अहिंसात्मक तरीके से शुरु की। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी भी दी थी।
तामस्कर भवन में रणनीति बनती थी
2 सितंबर 1930 को बेमेतरा में तामस्कर के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह सफल रहा और लोगों का भरपूर सहयोग भी मिला था। तब सविनय अवज्ञा आनंदोलन के द्वितीय चरण में बेमेतरा में भी विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया व विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। कई की गिरफ्तारी हुई थी। आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने के लिए तामस्कर बंधु के निवास में बैठक होती थी।
हस्तलिखित अखबार में अंधियारखोर के मालगुजार की फोटो लगी थी
जानकार डॉ. बसुबंधु दीवान बताते हैं कि जब आजादी की लड़ाई में हस्तलिखित अखबार एक माध्यम हुआ करता था। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पत्रिका समाचार पत्र के पांचवें अंक के प्रथम पृष्ठ पर अंधियारखोर के मालगुजार पं.भगवती प्रसाद मिश्र को गिरफ्तार कर जेल में डालते हुए फोटो को हाथ से पं. सुंदरलाल शर्मा ने चित्रित किया था। उस वक्त पं. सुंदरलाल शर्मा रायपुर जेल में बंद रहते हुए भी बड़ी सूझबूझ से हस्तलिखित समाचार पत्र का लेखन करते थे और यह पत्र बेमेतरा अंचल तक पहुंचता था।
बेमेतरा से निकाले, दुर्ग-रायपुर में रूके और किया आंदोलन
1942 के दौरान भारत छोड़ो आंदोलन को प्रदेश के युवा नेतृत्व ने संभाला था, जिसमें क्षेत्र से कई युवा व सेनानी रायपुर व दुर्ग की जनसभाओं में सम्मिलित हुए थे। इनमें प्रमुख रुप से भागवत उपाध्याय, लक्ष्मण प्रसाद वैद्य, दयाशंकर तिवारी व गंगाधर तामस्कर शामिल थे। दाढ़ी से ही लक्ष्मण प्रसाद दुबे व दयाशंकर तिवारी शामिल थे।
रामायण पाठ पर लगाई रोक
इतिहासकार डॉ. दीवान ने बताया कि 17 सितंबर 1934 को गणेश उत्सव में प्रमुखता से माधव राव सप्रे, क्रांति कुमार भारतीय व विश्वनाथ तामस्कर समेत अंचल के सभी सेनानी समेत 500 लोग जुटे थे। ब्रिटिश शासन द्वारा क्रांति कुमार भारतीय को रामायण पाठ नहीं करने आदेश दिया गया था। इसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें सुनने दूर-दूर से लोग आए हुए थे। उन लोगों की भी पुलिस तफ्तीश भी की गई थी। पूरा घटना क्रम छत्तीसगढ़ के लिए बड़ी घटना थी। बेमेतरा के गणेश उत्सव की घटना के नाम से याद किया जाता है।
ज्ञान का दीपक जलाने के लिए घर दे दिया
मारो में आवासीय संस्कृत विद्यालय 1896 में मुरलीधर दीवान ने अपने बाड़ा में प्रारंभ किया था। पढऩे वालों को पढ़ाई व भोजन मुफ्त में दिया जाता था। जिले में कई ऐसे कार्य रहे हैं, जो अंग्रेंजों की जड़ काटनें में कारगर रहे हैं।


