बेमेतरा
तांदुला डैम से पानी छोडऩे प्रभारी मंत्री साव से करेंगी निवेदन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 11 अगस्त। इस वर्ष क्षेत्र में मानसून ने उम्मीद के मुताबिक साथ नहीं दिया। अल्प वर्षा के कारण खेतों में पानी की कमी गहराती जा रही है। धान की फसल इस समय पकने के महत्वपूर्ण चरण में है, और यदि समय पर पानी नहीं मिला, तो किसानों की महीनों की मेहनत पर पानी फिरने का खतरा है।
किसान बताते हैं कि पिछले कुछ हफ्तों से सिंचाई के लिए पानी का इंतज़ाम करना मुश्किल होता जा रहा है। खेतों में दरारें पडऩे लगी हैं, धान के पौधों की पत्तियां पीली पड़ रही हैं, और पैदावार पर सीधा असर दिखने लगा है।
एक किसान ने बताया अगर 7-10 दिनों में पानी नहीं मिला, तो आधी फसल खत्म हो जाएगी। किसान कर्ज लेकर खेती की है, अब डर है कि सब बर्बाद न हो जाए।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए जिपं अध्यक्ष कल्पना योगेश ने कहा कि किसानों की फसलें बर्बाद होने से बचाने के लिए तत्काल कदम उठाना बेहद ज़रूरी है। मैं प्रभारी मंत्री व उपमुख्यमंत्री अरुण साव और जिला कलेक्टर से मुलाकात करूँगी और सिंचाई विभाग को निर्देश दिलाने का आग्रह करूँगी, ताकि तांदुला डैम से तुरंत पानी छोड़ा जा सके। यह किसानों के जीवन और आजीविका से जुड़ा मुद्दा है। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों की परेशानियों को प्राथमिकता से दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे और आवश्यकता पडऩे पर राज्य स्तर पर भी इस मुद्दे को उठाया जाएगा।
तांदुला डैम से पानी छोड़े जाने की मांग तेज
स्थानीय किसान संगठनों और ग्रामीण प्रतिनिधियों ने भी तांदुला जलाशय से नहरों में पानी छोड़े जाने की मांग तेज कर दी है। उनका कहना है कि यदि जल्द पानी नहीं छोड़ा गया, तो न केवल इस साल की पैदावार पर असर पड़ेगा, बल्कि आने वाले सीजन में बीज और पूंजी की कमी से किसान और बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे।
प्रशासन पर टिकी निगाहें
अब सभी की निगाहें प्रशासन और सिंचाई विभाग पर टिकी हैं। किसानों को उम्मीद है कि जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की पहल से जल्द तादुंला जलाशय से पानी छोड़ा जाएगा और खेतों को जीवनदायिनी सिंचाई मिलेगी।समय पर निर्णय लिया गया, तो हजारों किसानों की फसल बचाई जा सकेगी।
बेमेतरा एक कृषि प्रधान क्षेत्र
बेमेतरा जिले की पहचान ही धान के कटोरे के रूप में है। यहां की अधिकांश आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है। हालांकि पूरे क्षेत्र में नहर से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है, लेकिन कुछ हिस्सों में तादुंला जलाशय से नहरों के माध्यम से पानी पहुंचाया जाता है।इसके अलावा, केवल नदी किनारे बसे कुछ गांव ही नदी के पानी का उपयोग कर पाते हैं। बाकी किसानों को या तो बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है या निजी पंप और ट्यूबवेल से महंगी सिंचाई करनी पड़ती है।


