बस्तर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 29 सितंबर। बस्तर की बेल पूजा बस्तर दशहरे का एक महत्वपूर्ण और अनूठा अनुष्ठान है, जिसमें सरगीपाल के एक विशेष बेल वृक्ष के फल जोड़े की प्रतीकात्मक शादी की जाती है, और इसे भगवान शिव और पार्वती का प्रतीक माना जाता है। बेल पूजा में सरगीपाल गांव में उत्साह का माहौल रहा। पूजा में बस्तर राजपरिवार के कमलचंद भंजदेव शामिल हुए।
राजा बस्तर के शिकार पर जाने के बाद, राजा को अदृश्य शक्ति दिखी। देवियों ने राजा को हंसी-मजाक में बारात लेकर आने को कहा था, जिससे राजा को शर्मिंदगी हुई थी और तब से यह परंपरा चली आ रही है, जिसके तहत बेल जोड़ी को देवी के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है और उन्हें दशहरा में शामिल होने का न्योता दिया जाता है।
परंपरा की कहानी
बस्तर के राजा एक बार शिकार पर सरगीपाल गांव गए थे, जहां उन्हें बेल वृक्ष के नीचे दो सुंदर कन्याएँ मिलीं। विवाह का प्रस्ताव: राजा ने उनसे विवाह करने की इच्छा जताई, जिस पर कन्याओं ने बारात लेकर आने को कहा।
देवी का परिचय: अगले दिन बारात लेकर राजा जब पहुंचे तो कन्याओं ने बताया कि वे उनकी ईस्ट देवी दंतेश्वरी और मावली देवी हैं, और उन्होंने राजा को हंसी-मजाक में बारात लाने को कहा था।
क्षमा और न्योता: इस अज्ञानतावश व्यवहार के लिए राजा ने शर्मिंदा होकर क्षमा मांगी और देवियों को दशहरा पर्व में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. तब से यह परंपरा चली आ रही है।
आज इस पुरानी चली आ रहीं परंपरा को ग्रामीणों ने बड़े धूमधाम से मनाया , महिलाओं ने कच्ची हल्दी का लेप एक दूसरे पर लगाए ,आज पूरे दिन सरगीपाल में विवाह जैसा माहौल था।



