बलरामपुर

भाजपा वर्मी कंपोस्ट को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा कर रही है-सुनील सिंह
04-Jul-2021 7:15 PM
भाजपा वर्मी कंपोस्ट को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा कर रही है-सुनील सिंह

राजपुर,  4 जुलाई। रासायनिक खाद की कमी को लेकर सहकारी समिति में ताला लगाए जाने की घटना को लेकर कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष व जिला प्रवक्ता सुनील सिंह ने विज्ञप्ति जारी कर कहा कि किसानों के दर्द के पीछे भाजपा की गहरे षडयंत्र को समझने की भी जरूरत है। केंद्र में बैठी भाजपा की सरकार किस तरह से छत्तीसगढ़ राज्य की मांग के अनुरूप खाद की आपूर्ति नहीं कर रही है और मांग के अनुरूप आपूर्ति न होने से दूरस्थ जिले बलरामपुर में खाद की किल्लत पैदा हो गई है, प्रशासन इस तात्कालीक संकट को दूर करने प्रयासरत भी है।

उन्होंने जैविक खेती पर जोर देते हुए कहा कि जैविक खेती ज्यादा बेहतर है और वर्मी कंपोस्ट का उपयोग किसानों के लिए ज्यादा लाभकारी साबित होगा। दुनिया भर में जहां रासायनिक खाद को लेकर उससे बचने के तौर तरीके सुझाए जा रहे हैं और वर्मी कंपोस्ट जैविक खाद पर ज्यादा जोर दे किसानों को उसके उपयोग के लिए जागरूक किया जा रहा है , वहीं भाजपा वर्मी कंपोस्ट को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा कर रही है।

 किसानों, पशुपालकों और मजदूरों से 2 रू. किलो में गोबर खरीदने की छत्तीसगढ़ सरकार की अद्भुत सफल एवं जनहितकारी योजना को लेकर भ्रम फैलाने और गुमराह करने का कड़ा प्रतिवाद करते हुए जिला प्रवक्ता सुनील सिंह ने कहा है कि दरअसल रमन सिंह को खेती किसानी, गांव, गरीबों की समझ ही नहीं है। वे गोबर और वर्मी कंपोस्ट में अंतर ही नहीं समझ पा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में देश में सबसे अच्छा वर्मी कम्पोस्ट किसानों को दिया जा रहा है। वर्मी कम्पोस्ट के बारे में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का बयान गौपालक गोठान समूह में कार्यरत किसान मजदूर और महिला स्व-सहायता समूहों की मेहनत का अपमान है। रमन सिंह जी को और भाजपा न कभी गांव, गरीबों, मजदूरों, किसानों, गौपालकों की चिंता रही है, और न ही वे छत्तीसगढ़ की संस्कृति, छत्तीसगढ़ की परंपरा, रीति-रिवाज और खेती किसानी को समझते है। रमन सिंह को तो यह भी नहीं पता कि गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनता कैसे हैं? वर्मी कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया क्या है? गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनने में क्या-क्या बदलाव होते हैं और यह वर्मी कंपोस्ट खेतों में जाकर क्या काम करता है?

 जिला प्रवक्ता सुनील सिंह ने आगे कहा है बाध्यता तो रमन सिंह के 15 साल के समय में थी जब कमीशनखोरी के चलते कभी नीम सोना की तो कभी नीम रत्न में जैसे उत्पादों के लिये बिना यूरिया और डीएपी किसानों को नहीं दिया जाता था। आज भूपेश बघेल सरकार में किसानों पर कोई दबाव नहीं।

उन्होंने कहा कि केंद्र को इस संबंध में छत्तीसगढ़ सरकार ने पूर्व में भी प्रस्ताव भेजकर अनुमति चाही थी परंतु छत्तीसगढ़ सरकार के प्रस्ताव पर सहानुभूति पूर्वक विचार नहीं किया जा रहा है और केंद्र सरकार इस जीत पर अड़ी है कि चावल से इथेनाल बनाएं ताकि एफसीआई के जरिए प्लांट स्थापित हो और क्रेडिट भारत सरकार ले सके जबकि छत्तीसगढ़ सरकार चाहती है कि किसानों और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था मजबूत हो किसान सीधे इथेनॉल प्लांट में धान बेच सकें, गांव में धान खरीदी केंद्र बने जिससे गांव के किसान गांव में ही सीधे अपनी धान बेच सकें और राज्य का धान इथेनॉल प्लांट को चला जाए तो भारत सरकार पर पडऩे वाला भार भी कम होगा और 22 में चावल बेचने की मजबूरी भी समाप्त हो जाएगी।


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