बलौदा बाजार

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाज़ार, 29 मई। एक बेटा लकवाग्रस्त पिता को हाथ ठेले पर लिटाकर 1600 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकला है।
खुद बनाया ठेला
आंध्रप्रदेश के नारायण राव पिल्ले ने खुद अपने ही हाथों से लकड़ी और लोहे के जरिए एक ठेला बनाया, जिसमें लिटाकर अपने पिता को रामलला के दर्शन के लिए लेकर जा रहे हैं। अपने 95 वर्षीय पिता रामा नायडू पिल्ले को वह अयोध्या ले जा रहे हैं। बिना गाड़ी, पैसा, प्रचार या समर्थन के 1600 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकले हैं।
बेटा बना श्रवण कुमार
नारायण राव पिल्ले बताते हैं कि 1993 में पिताजी मुझे अयोध्या ले जाना चाहते थे, लेकिन उस वक्त देश में माहौल खराब था, वो इच्छा अधूरी रह गई। आज जब वो जीवन की अंतिम सांसें गिन रहे हैं तो मैं उन्हें अधूरे मन से विदा नहीं कर सकता। ये मेरा धर्म है।
1600 किमी का सफर
अब तक 800 किलोमीटर की यात्रा तय हो चुकी है। जब वह 27 मई को बलौदाबाजार जिले की सीमा में दाखिल हुए, तो सडक़ पर चलने वाले हर व्यक्ति ठिठक गया। एक साधारण सा ठेला, उस पर लेटा एक बुजुर्ग पिता और धूप, धूल, थकान के बीच उस ठेले को ढकेल रहा बेटा। यह सुनने में कोई फिल्मी कहानी भले ही लगती है लेकिन यह एक बेटे की तपस्या है।
पिता अब बोल भी नहीं सकते, चल भी नहीं सकते, लेकिन उनकी आंखों में राम की छवि है। जब नारायण उनके माथे पर हाथ रखते हैं तो उनकी आंखें भर आती हैं। वो मुस्कराने की कोशिश करते हैं, जैसे कह रहे हों-रामलला अब दूर नहीं हैं बेटा।
आज के समय में जब वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजने की होड़ मची है, जब बेटा अपने माता-पिता को बोझ मानता है, उस समय नारायण राव पिल्ले जैसे बेटे देश को रिश्ता निभाने का असली अर्थ समझा रहे हैं।