बलौदा बाजार

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 15 मई। ऐतिहासिक धरोहर के धनी और पुरातात्विक दृष्टि से प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण स्थल माने जाने वाले बलौदाबाजार जिले का अपना विशेष महत्व हैं, लेकिन जिले की पुरातात्विक धरोहरों को संभाल कर रखने के लिए जिला बनने के 13 साल बाद भी जिले में एक भी संग्रहालय नहीं है, जबकि पांचवी सदी में बनाए गए इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में पुरातात्विक अवशेष बिखरे पड़े हैं।
आज भी जिले के विभिन्न स्थलों में इनका अवशेष देखने को मिलते हैं लेकिन उचित रखरखाव के अभाव में या तो वे अवशेष भंग कर दिए गए हैं या पर्यटकों द्वारा उन्हें क्षतिग्रस्त करने के साथ ही चुरा लिया गया हैं। ऐसे में जिला मुख्यालय में इन अवशेषों को संग्रहित कर एक उत्कृष्ट संग्रहालय बनने की आवश्यकता हैं। ऐसे में यदि नगर के कलेक्ट्रेट परिसर या अन्य स्थान पर संग्रहालय की स्थापना की जाती है तो यह नगर के गौरव में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाएगी।
विदित हो कि तत्कालीन कलेक्टर कार्तिकेय गोयल ने पुरातत्व समिति की बैठक में यह प्रस्ताव रखा था कि जिले में पुरातात्विक महत्व के जितने भी ज्ञात स्थल है और जहां ऑर्गेलाजिकल सर्वे आफ इंडिया द्वारा या तो खुदाई कर तत्कालीन आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व के अवशेष प्राप्त किए गए हैं या जिन अवशेषों को कैलानिक सर्वे आप इंडिया द्वारा संग्रहित कर सुरक्षित कर लिया गया है, उन्हें एक स्थान पर सुरक्षित कर लिया जाये। इससे जिले के इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण जानकारियां पर्यटकों प्रवासियों अथवा शोधकार्य करने वालों को आसानी से मिल सकें। जिले में 7 विश्व स्तरीय सीमेंट संयंत्र हैं जो यहां के बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों का लगातार दोहन कर रहे हैं। प्रशासन यदि चाहे तो सीएसआर मद अथवा डीएमएफ मद से विशाल संग्रहालय बनाया जा सकता हैं।
जिले में है महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल
जिले में है तुरतुरिया समिति अनेक ऐतिहासिक स्थल बलौदाबाजार तहसील का ग्राम डमरू ग्राम देवरी रामपुर पलारी नगर में बालसमुंद तालाब किनारे स्थित सिद्धेश्वर शिव मंदिर के पास रखे पुरातात्विक अवशेष कसडोल तहसील में स्थित नारायणपुर में प्राप्त अवशेष इसी तहसील के तुरतुरिया में उपलब्ध पाषाण मूर्ति अवशेष आदि ऐसे अनेक स्थान है जहां पुरातात्विक महत्व के अवशेष आज भी उपलब्ध हैं। यदि पुरातत्व पर रुचि रखने वाले लोगों के लिए संग्रहालय की स्थापना किया जाए तो उन्हें अवलोकन अध्ययन और उनके ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को समझना आसान हो जाएगा।
भगवान बुद्ध के सबसे छोटे पद चिन्ह मिले थे
ग्राम डमरू में 2015 में 2 साल तक पुरातत्व विभाग के डॉ. शिवाकांत वाजपेई और राहुल सिंह की देखरेख में खुदाई हुई थी। डमरू में मिले भगवान बुद्ध के पदचिन्ह अब तक मिले पदचिन्हों में सबसे छोटे थे। इनके छोटे आकार को देखकर अनुमान लगाया गया था कि इन पदचिन्हों का उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा धार्मिक यात्रा के दौरान उपासना के लिए किया जाता रहा होगा। पुरातत्वविदों के अनुसार डमरू में मिले भगवान के पदचिन्ह रिसर्चर्स और विषय एक्सपट्र्स के लिए महत्वपूर्ण हैं।