विचार/लेख
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में रात की शिफ़्ट में द्वितीय वर्ष की एक मेडिकल स्टूडेंट के साथ रेप और फिर हत्या के बाद पूरे देश में डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है।
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अन्य शहरों के अस्पतालों के डॉक्टरों ने कहा है कि जबतक रेप और मर्डर मामले में जांच पूरी नहीं हो जाती वो काम पर नहीं लौटेंगे।
उन्होंने इस मामले की एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच की मांग की है।
साथ ही कार्यस्थल पर स्वास्थ्यकर्मियों, ख़ासकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय क़ानून बनाए जाने की मांग भी रखी है।
मेडिकल जर्नल लैंसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘साल 2007 से 2019 के बीच भारत में स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसक हमलों के 153 मामले दर्ज किए गए।’
रेप के खिलाफ, विरोध प्रदर्शन
इसमें कहा गया है, ‘इनसिक्योरिटी इनसाइट (ढ्ढढ्ढ) के साथ भारत में स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा की हमारी सक्रिय निगरानी में 2020 में 225 और 2021 में 110 मामले पता चले हैं। इनमें ज़मीनी स्तर के स्वास्थ्यकर्मियों से लेकर अस्पतालों में जूनियर डॉक्टर पर हुई हिंसा भी शामिल हैं।’
इस रिपोर्ट में 2020 के उस केंद्रीय कानून, एपिडेमिक डिजीज (अमेंडमेंट) का हवाला भी दिया गया है जिसमें स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा को दंडनीय बनाया गया है।
अस्पतालों में रात की पाली में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के डर और सुरक्षा की चिंताओं को समझने के लिए बीबीसी रिपोर्टरों ने भारत के कुछ शीर्ष और प्रतिष्ठित सरकारी अस्पतालों का दौरा किया।
दिल्ली: ‘अक्सर हमें मरीजों के नशे में
धुत साथियों से निपटना पड़ता है...’
लोकनायक अस्पताल, जीबी पंत अस्पताल और लेडी हार्डिंग कॉलेज दिल्ली के केंद्र में मौजूद तीन शीर्ष अस्पताल हैं। पहले के दो अस्पताल दिल्ली सरकार के अंतर्गत आते हैं जबकि तीसरा अस्पताल केंद्र संचालित है।
लोकनायक अस्पताल में प्रवेश द्वार पर मेटल डिटेक्टर लगे हैं, लेकिन वे चालू हालत में नहीं हैं।
एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने शिकायत की, ‘कोई भी वहां से बेरोकटोक गुजर सकता है।’
इन तीनों अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है, लेकिन डॉक्टर और अधिक कैमरा चाहते हैं।
लोकनायक अस्पताल के एक वरिष्ठ रेजिड़ेंट डॉक्टर का आरोप है कि ‘इन कैमरों की कोई निगरानी नहीं करता।’
लोकनायक अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स ने कहा कि डॉक्टर और नर्सों को मरीज़ों के परिवारों की धमकी का डर रहता है, ‘हमें अक्सर रात में नशे में धुत्त मरीजों के साथ आने वालों से निपटना पड़ता है।’
लोकनायक अस्पताल में पोस्ट ग्रेजुएट कर रहे प्रथम वर्ष के छात्र ने कहा, ‘अस्पताल के कुछ हिस्सों में रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है। अस्पताल के परिसर में मरीजों के साथ आए लोग फ़र्श पर सोते हैं।’
इन तीनों ही अस्पतालों में रात में सिक्योरिटी बहुत नाम मात्र की रहती है। जब मैं अंदर गया तो किसी ने भी मुझे चेक नहीं किया। दो गायनेकोलॉजी इमर्जेंसी वार्डों में महिला गार्डों ने वहां आने का मकसद जरूर पूछा लेकिन और कोई सवाल नहीं किए।
राज घाट के पास स्थित जीबी पंत अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स ने कहा, ‘हमें और बेहतर सिक्योरिटी की ज़रूरत है, शायद बाउंसर की भी, जो मरीजों के साथ आने वाले उपद्रवी लोगों से निपट सकें।’
दो महिला डॉक्टरों ने कहा कि लोक नायक अस्पताल में 24 घंटे कैंटीन की सुविधा है लेकिन वहां जाने में उन्हें असुरक्षित महसूस होता है।
एक वरिष्ठ रेजिड़ेंट डॉक्टर ने कहा, ‘मैं अकसर ऑनलाइन खाना मंगाती हूं।’
लेडी हार्डिंग कॉलेज के एक सीनियर रेजिड़ेंट डॉक्टर ने कहा कि रात में मेडिकल जांच का मतलब है कि परिसर में दूर स्थित प्रयोगशालाओं तक पैदल जाना।
लेडी हार्डिंग कॉलेज में एक इंटर्न ने जोड़ा, ‘कभी कभी एक महिला डॉक्टर को मरीज़ों की जांच के लिए वार्ड में भेजा जाता है, जहां अधिकांश पुरुष होते हैं। इसे बंद करना चाहिए।’
डॉक्टरों ने रात की पाली में काम करने वालों के लिए गंदे और असुरक्षित रेस्ट रूम की भी शिकायत की।
लोक नायक अस्पताल के गायनीकोलॉजी इमर्जेंसी वार्ड की एक डॉक्टर ने कहा, ‘हमें बेहतर कमरे चाहिए।’
लेडी हार्डिंग कॉलेज की एक इंटर्न ने कहा कि कुछ विभागों में, महिला और पुरुष डॉक्टरों के लिए कॉमन रूम होते हैं।
इस मामले में प्रशासन से हमने बात करने की कोशिश की और उनके जवाब का इंतजार है।
लखनऊ: ‘बाहरी लोग बेरोक टोक आ सकते हैं’
मैं जब किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) गया तो वहां मुख्य द्वार पर दो गार्ड तैनात मिले लेकिन वहां आने जाने को लेकर कोई रोक नहीं थी।
मेडिसिन डिपार्टमेंट के मरीज वार्ड में दो पुरुष और महिला गार्ड मौजूद थे।
वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर नीता ने शिकायत की कि मरीज़ों के साथ आने वाले ड्यूटी डॉक्टरों से बुरा बर्ताव करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘इन हालात में, हम सिक्योरिटी को बुलाते हैं, जो शायद ही कुछ करते हैं। आखऱिकार हमें ही हालात से निपटना पड़ता है।’
हॉस्टल के हिस्से में रोशनी की पूरी व्यवस्था नहीं है और कई जगह अंधेरा रहता है।
एमबीबीएस के अंतिम वर्ष की छात्रा डॉ. हर्षिता और डॉ. नीतू ने कहा कि वे अक्सर अजनबी लोगों को घूमते और फब्तियां कसते देखती हैं। प्रशासन को प्रवेश और निकास द्वार पर रोक लगानी चाहिए।
डॉ. हर्षिता ने कहा कि पिछले कुछ महीनों से गश्त बढ़ी है, इसलिए कैंपस थोड़ा सुरक्षित लग रहा है।
डॉक्टरों ने कहा कि गर्ल्स हॉस्टल के ठीक सामने ट्रॉमा सेंटर के बाहर महिलाओं के साथ छेडख़ानी की घटनाएं होती रही हैं।
डॉ. आकांक्षा चाहती हैं कि परिसर में अधिक गार्ड्स, अधिक रोशनी और सीसीटीवी कैमरा होने चाहिए।
अधिकारियों का का क्या कहना है?
केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा, ‘हमारे पास कैंपस, हॉस्टल और वार्डों में पर्याप्त सुरक्षा तंत्र है। हमारे पास प्रोक्टोरियल टीम और हॉस्टल में एक टीम है। वार्डों में सुरक्षा गॉर्ड हैं। कैंपस में हमें अभी तक किसी तरह की घटना की रिपोर्ट नहीं मिली है। विशाखा गाइडलाइन का पूरी तरह पालन किया जाता है। प्रमुख जगहों पर सीसीटीवी लगाए गए हैं और उनकी नियमित निगरानी की जाती है।’
चेन्नई: ‘आराम के लिए कोई कमरा नहीं’
चेन्नई के बिल्कुल केंद्र में वालाजा रोड पर ओमानदुरार गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज स्थित है। यहां मैं रात 9.30 बजे कैंपस में अपनी गाड़ी पार्क करने पहुंची तो एक गार्ड पूछताछ करने आया।
एडमिशन ब्लॉक के बाहर मद्धिम रोशनी में खुली सीढिय़ों पर मरीजों के परिजन बैठे हुए थे। इमरजेंसी के प्रवेश द्वार पर दो पुलिसकर्मी खड़े थे।
रात की पाली में काम करने वाली एक इंटर्न अबर्ना ने कहा कि कोलकाता की घटना ने महिला स्टाफ के अंदर डर पैदा कर दिया है। इसीलिए अस्पताल प्रशासन ने सुरक्षा चिंताओं पर बात करने के लिए एक मीटिंग बुलाई थी।
इंटर्न को स्टाफ रूम इस्तेमाल करने के लिए कहा गया और कमरे को लॉक करने के निर्देश दिए गए।
उन्हें सिटी पुलिस ऐप कवालान को इस्तेमाल करने की सलाह दी गई ताकि वे इमर्जेंसी अलार्म भेज सकें, लेकिन उन्हें लगता है कि ‘कभी भी कुछ भी घटित हो सकता है।’
डॉक्टरों की सुरक्षा की मांग करने के लिए आयोजित प्रदर्शन में हिस्सा ले चुकीं अबर्ना ने कहा, ‘वार्ड में इंटरकॉम की सुविधा और इमर्जेंसी बटन से मदद मिलेगी।’
राज्य का सबसे शीर्ष अस्पताल ओमानदुरार मल्टी स्पेशलियटी अस्पताल में रात के 10 बजे काम कर रही एक स्टाफ नर्स ने आराम करने के लिए कोई कमरा न होने की शिकायत की। रात की पाली में काम करने वालों को एक कुर्सी और एक लंबी डेस्क मिलती है। उन्होंने कहा कि एक पुलिस पोस्ट कुछ ही दूरी पर है और उनके पास पुलिस के फोन नंबर हैं।
प्रशासन का क्या कहना?
ओमानदुरार मेडिकल कॉलेज हॉस्पीटल के डीन डॉ। ए अरविंद ने कहा, ‘लेक्चर हॉल के दो निकास द्वार हैं, जहां अब पहरा लगाया गया है। कैंपस में सीसीटीवी की संख्या बढ़ाई जा रही है। कैंपस में 20 सुरक्षाकर्मी रात की पाली में तैनात हैं। असिस्टेंट रेजिड़ेंट मेडिकल ऑफि़सर किसी भी तात्कालिक परिस्थिति को हैंडल करने के लिए 24 घंटे कैंपस में मौजूद हैं।’
हैदराबाद: ‘मैं सुरक्षित महसूस नहीं करती’
कोलकाता मामले में इंसाफ़ देने की मांग लिए हैदराबाद के उस्मानिया मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
मैं सोमवार को रात में 11.40 से 12.50 बजे के बीच कैंपस में गया था और नाइट ड्यूटी कर रहीं महिला स्टाफ से बात की।
प्रदर्शन के दौरान मौजूद एक इंटर्न डॉ. हरिनी ने कहा, ‘हमें असुरक्षित महसूस होता है। कैंपस में कुछ जगहें ऐसी हैं जो सुरक्षित नहीं हैं।’ उन्होंने कहा, ‘रात में काम करते हुए हमें एक विभाग की इमारत से दूसरी इमारत में जाना पड़ता है। इन इमारतों और उनके रास्ते में न तो कोई गार्ड होता है और ना ही कोई अन्य सुरक्षा के इंतज़ाम हैं।’
अस्पताल से पीजी हॉस्टल के बीच सडक़ पर पर्याप्त रोशनी का इंतज़ाम न होने को लेकर लोगों में नाख़ुशी है। एक महिला डॉक्टर ने पुरुष और महिला डॉक्टरों के लिए अलग अलग आराम कमरे न होने की भी शिकायत की।
उन्होंने कहा, ‘महिला और पुरुष डॉक्टरों के बिस्तर अगल बगल लगे हुए हैं। मैं इससे सहज नहीं हूं और सुरक्षित भी नहीं लगता। इसलिए रात में मैं पास ही अपने हॉस्टल चली जाती हूं।’
‘एक बार मैं तडक़े अपनी बाइक से हॉस्टल जा रही थी तो कुछ लडक़ों ने पीछा किया। यह बहुत डरावना था।’
हमने कैज़ुअल्टी वार्ड के बाहर पुलिस देखा। इसके अलावा हर प्रवेश द्वार पर कई निजी सुरक्षा गॉर्ड तैनात थे।
प्रशासन के जवाब का इंतज़ार है। आने पर अपडेट किया जाएगा।
चंडीगढ़: ‘जब हमला हुआ तो कोई सिक्योरिटी नहीं थी’
रेजिड़ेंट डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने से पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च की सेवाओं पर असर पड़ा है।
मैं कैंपस में रात के करीब 11 बजे गया था। दो सिक्योरिटी गार्ड ट्रॉमा सेंटर के गेट के बाहर मरीज़ों और अन्य लोगों से सवाल कर रहे थे।
प्रवेश द्वार पर चंडीगढ़ पुलिस संचालित एक हेल्प सेंटर है। वहीं, महिला ऑफिसर भी तैनात हैं।
वार्ड के अंदर नर्स, डॉक्टर और प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे। ट्रॉमा सेंटर के पास एक बैनर लगाया गया था, जिस पर लिखा था कि ‘हमें न्याय चाहिए।’
बेंगलुरु की रहने वाली और पीजीआई में काम कर रहीं डॉक्टर पूजा ने कहा, ‘परिसर शहरों की तुलना में यहां अधिक सुरक्षा व्यवस्था है।’
उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता भी काफ़ी चिंतित हैं क्योंकि कई बार मरीज़ों के परिजनों ने डॉक्टरों पर हमला किया।’
वहीं, मोहाली के सरकारी अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर गगनदीप सिंह ने कहा, ‘सुरक्षा पर्याप्त नहीं है।’
उन्होंने एक घटना का जि़क्र करते हुए कहा, ‘छह अगस्त को एक मरीज़ के परिवार ने पटियाला के पास एक बाल रोग विशेषज्ञ पर हमला किया था। इसको लेकर पुलिस में मामला भी दर्ज हुआ है। उस समय अस्पताल में कोई सिक्योरिटी नहीं थी।’
इसके जवाब में पीजीआई के ज्वाइंट मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉक्टर पंकज अरोड़ा ने बीबीसी से कहा कि अस्पताल में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था और सीसीटीवी है।
उन्होंने कहा कि ‘डॉक्टरों की कोई शिकायत है तो उसका समाधान किया जाएगा।’
अहमदाबाद: ‘डॉक्टरों के कमरे में सीसीटीवी नही’
रानी अहमदाबाद में स्थित सिविल अस्पताल में काम करती हैं।
उन्होंने बताया, ‘हम पीजी हॉस्टल से अस्पताल तक रात की शिफ्ट के लिए पैदल जाते हैं। सडक़ पर पर्याप्त स्ट्रीट लाइट नहीं है। साथ ही सडक़ पर भी सुरक्षा नहीं है।’
उन्होंने कहा,‘हमने अस्पताल के प्रशासन से सुरक्षा का इंतजाम करने को कहा है। क्योंकि हम 24 घंटे शिफ्ट करते हैं। नाइट शिफ्ट में महिला डॉक्टर अक्सर वार्ड में बने डॉक्टर रूम में आराम करती हैं।’
एक अन्य महिला डॉक्टर ने बताया कि कई बार मरीज़ों के परिजन रूम में आ जाते हैं और बदतमीजी करते हैं। रूम में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं।
सिविल अस्पताल का सबसे महत्वपूर्ण वार्ड यानी ट्रॉमा सेंटर के बाहर आठ सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे, लेकिन वार्ड में रात में आने वाले लोगों से वो कोई सवाल नहीं करते।
मैं एक वार्ड में प्रवेश किया और फिर दूसरे वार्ड में गई, लेकिन किसी ने कोई सवाल नहीं पूछा।
सिविल अस्पताल के एडिशनल सुपरिटेंडेंट डॉक्टर रजनीश पटेल ने बीबीसी को बताया कि अस्पताल में ‘सुरक्षा व्यवस्था मजबूत’ है।
उन्होंने कहा कि ‘जूनियर डॉक्टरों के एसोसिएशन ने लाइट का मुद्दा उठाया था और हमने इसको लेकर काम शुरू कर दिया है।’
मुंबई: ‘कभी कभी मदद के लिए कोई नहीं होता’
एक महिला डॉक्टर ने कहा कि कभी-कभी हमारे आस-पास हमारी मदद के लिए कोई मौजदू नहीं होता है।
सोमवार को देर शाम जेजे अस्पताल के प्रवेश पर सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे। हम अस्पताल के कैंपस में जा सकते थे, लेकिन बिना अनुमति मेडिकल वार्ड में नहीं जा सकते।
हालांकि, महिला डॉक्टर और नर्स ने कहा कि उन्हें नाइट शिफ्ट में काम करने के दौरान सुरक्षित महसूस नहीं होता है।
रेजिडेंट डॉक्टर अदिति कनाडे ने कहा, ‘प्रशासन को मेडिकल वार्ड और कैंपस के बाहर सिक्योरिटी गार्ड की संख्या बढ़ानी चाहिए। अस्पताल का कैंपस बड़ा है और कई इलाक़े में लाइट नहीं है। ऐसे में मुझे रात में हॉस्टल से मेडिकल वार्ड तक जाने में डर लगता है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘एक बार मृतक मरीज़ के परिजन गुस्सा हो गए थे। मामला इतना बढ़ गया था कि इसे शांत करने के लिए कर्मचारियों को रूम बदलना पड़ा था।’
अदिति कनाडे ने बताया, ‘कई रूम और कॉरिडोर में सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा है। हर जगह सीसीटीवी होना चाहिए। ऑपरेशन थिएटर के पास महिला डॉक्टरों के लिए अलग से कमरा होना चाहिए है, लेकिन ऐसा नहीं है।’
नर्स हेमलता गजबे ने भी पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने की शिकायत की।
उन्होंने कहा, ‘मरीज़ के परिजन कभी-कभी अपशब्द बोलते हैं और कई नशे की हालत में होते हैं तो कई लोग राजनीतिक दबाव डालने की भी कोशिश करते हैं। कभी-कभी किसी घटना की स्थिति में हमारी मदद करने के लिए आसपास कोई नहीं होता है।’
इसको लेकर जेजे अस्पताल की डीन पल्लवी सापले से सवाल किया गया लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा है।
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित) (bbc.com/hindi)
अमेरिका ने कहा है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाने में उसकी कोई भूमिका नहीं थी. व्हाइट हाउस ने सोमवार को अमेरिकी हस्तक्षेप के आरोपों को "सिर्फ झूठा" बताया.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार का लिखा-
अमेरिका ने कहा है कि दक्षिण एशिया के देश बांग्लादेश की राजनीतिक उठापटक में उसकी कोई भूमिका नहीं है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरिन ज्यां-पिएरे ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘हमारा इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है। यह आरोप या अफवाहें कि अमेरिका की सरकार इन घटनाओं में शामिल थी, बिल्कुल गलत हैं।’
रविवार को भारत के इकोनॉमिक टाइम्स अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि हसीना ने अमेरिका पर उन्हें हटाने की कोशिश का आरोप लगाया क्योंकि अमेरिका बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर नियंत्रण चाहता था। अखबार ने कहा कि हसीना ने यह संदेश अपने करीबी सहयोगियों के माध्यम से दिया था।
हालांकि हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने इस बात का खंडन करते हुए रविवार को सोशल मीडिया साइट ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था।
ज्यां-पिएरे ने कहा, ‘हमारा मानना है कि बांग्लादेश की जनता को वहां की सरकार का भविष्य तय करना चाहिए और इस मामले में हमारा यही रुख है।’
बांग्लादेश में करीब एक महीने चले प्रदर्शनों के बाद पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया था और वह भारत चली गई थीं। उसके बाद देश में एक अंतरिम सरकार बनाई गई, जिसका नेतृत्व नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनूस को सौंपा गया।
इसी साल जनवरी में आम चुनाव में चौथी बार जीतने के बाद हसीना ने सत्ता संभाली थी, लेकिन विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार किया था और अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा था कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं था। अपने चौथे कार्यकाल में हसीना सात महीने ही पद पर रह पाईं और इस्तीफे के साथ उनके 15 साल के निरंतर शासन का अंत हो गया।
क्यों आया सेंट मार्टिन का जिक्र
कुछ खबरों में आरोप लगाया गया कि शेख हसीना की सरकार गिरने की वजह सेंट मार्टिन द्वीप में अमेरिका की दिलचस्पी है। भारतीय मीडिया में कहा गया था कि शेख हसीना पांच अगस्त को देश छोडऩे से पहले राष्ट्र को संबोधित करना चाहती थीं, लेकिन छात्रों के हिंसक प्रदर्शनों के बीच उनका भाषण नहीं हो पाया।
एक रिपोर्ट के मुताबिक शेख हसीना ने खुलासा किया था कि ‘अगर मैंने सेंट मार्टिन और बंगाल की खाड़ी अमेरिका को दे दिए होते, तो मैं सत्ता में बनी रह सकती थी।’
रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने एक पत्र में लिखा, ‘अगर मैंने सेंट मार्टिन और बंगाल की खाड़ी को अमेरिका को दे दिया होता तो मैं सत्ता में बनी रह सकती थी। कृपया कट्टरपंथियों द्वारा इस्तेमाल न हों।’ हालांकि, अब उनके बेटे वाजेद ने इन बयानों से इंकार किया है।
वाजिद ने ट्वीट किया, ‘हाल ही में एक अखबार में प्रकाशित मेरी मां के इस्तीफे से जुड़ा बयान पूरी तरह से झूठा और मनगढ़ंत है। मैंने अभी उनसे पुष्टि की है कि उन्होंने ढाका छोडऩे से पहले या बाद में कोई बयान नहीं दिया है।’
क्यों अहम है एक छोटा सा द्वीप
सेंट मार्टिन द्वीप बंगाल की खाड़ी के पूर्वोत्तर में स्थित एक छोटा कोरल द्वीप है। यह द्वीप बांग्लादेश के दक्षिणी प्रायद्वीप कॉक्स बाजार-टेकनाफ के लगभग नौ किलोमीटर दक्षिण में, म्यांमार के पास स्थित है। यह बांग्लादेश का एकमात्र कोरल द्वीप है।
इस द्वीप का क्षेत्रफल केवल तीन वर्ग किलोमीटर है और यहां लगभग 3,700 लोग रहते हैं। ये लोग मुख्य रूप से मछली पकडऩे, धान की खेती, नारियल की खेती और समुद्री शैवाल की कटाई का काम करते हैं। इस शैवाल को सुखाकर म्यांमार को निर्यात किया जाता है।
हाल ही में यह द्वीप तब चर्चा में आया जब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) पर आरोप लगा कि उसने अमेरिका को द्वीप बेचकर वहां एक सैन्य अड्डा बनवाने की योजना बनाई थी ताकि चुनावों में जीत हासिल की जा सके। हालांकि अमेरिकी विदेश विभाग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए बांग्लादेश की संप्रभुता का सम्मान करने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से लोकतंत्र को बढ़ावा देने की बात कही।
इस द्वीप को बांग्ला में ‘नारिकेल जिंजिरा’या नारियल द्वीप के नाम से भी जाना जाता है। इसे ‘दारुचिनी द्वीप’ या दालचीनी द्वीप भी कहा जाता है। पहले यह द्वीप टेकनाफ प्रायद्वीप का हिस्सा था,
लेकिन प्रायद्वीप का एक हिस्सा डूबने के कारण यह मुख्य भूमि से अलग होकर एक द्वीप में बदल गया।
कभी भारत का हिस्सा था द्वीप
इस द्वीप का इतिहास काफी पुराना है। 18वीं सदी में अरबी व्यापारी वहां सबसे पहले बसे थे और तब उन्होंने इसे ‘जजीरा’ नाम दिया था। साल 1900 में एक ब्रिटिश भूमि सर्वेक्षण टीम ने सेंट मार्टिन द्वीप को ब्रिटिश भारत का हिस्सा बनाया और इसका नाम एक ईसाई पादरी सेंट मार्टिन के नाम पर रखा। हालांकि कुछ रिपोर्टों के अनुसार इसका नाम चटगांव के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर, मिस्टर मार्टिन के नाम पर रखा गया था।
1974 में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें सेंट मार्टिन द्वीप को बांग्लादेशी क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई। हालांकि, द्वीप की समुद्री सीमा को लेकर विवाद बना रहा। बांग्लादेशी मछुआरों को म्यांमार की नौसेना द्वारा हिरासत में लिया गया और चेतावनी दी गई।
2012 में अंतरराष्ट्रीय समुद्री न्यायाधिकरण ने एक फैसले में इस द्वीप पर बांग्लादेश के अधिकार को मान्यता दी। यह द्वीप बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के लिए अहम है और विशेष आर्थिक क्षेत्र में होने की वजह से यह समुद्री व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। (डॉयचेवैले)
-ज्योति राघव
मंदिर में एक लडक़ा भोले बाबा पर जल चढ़ाने तांबे के लोटे में लेकर आया। उसमें दूध भी मिला था। वहां मौजूद महिलाओं ने उसे टोकना शुरू किया। ये जहर है, इसे मत चढ़ाओ। ये क्या किया। तांबे के लोटे में थोड़ी चढ़ाते हैं दूध मिलाकर। लडक़ा परेशान। महिलाओं ने सुझाव दिया इसे किसी पौधे में डाल दो। खाली पानी चढ़ा दो शिवलिंग पर और दूध मिलाकर चढ़ाना है तो स्टील का बर्तन होना चाहिए। मैं सुन रही थी, लगा बोलूं कि शिव जी ने तो जहर पिया था। लेकिन पूजा पाठ में चुप रही। उस लडक़े से कहा भूल चूक में माफ होता है अभी चढ़ा दो अगली बार से ध्यान रख लेना। ये सावन के पहले सोमवार की बात है।
आज फिर यही 'गलती' एक महिला ने कर दी। तांबे के लोटे में दूध लाकर भोले बाबा को चढ़ा दिया और लोगों ने उन्हें टोकना शुरू किया। उन्हें यकीन न हुआ कि वो गलत हैं उन्होंने पंडित जी से कंफर्म किया तो पंडित जी बोले अब चढ़ गया तो तो कोई बात नहीं पर चढ़ाते नहीं हैं। स्टील के लोटे में लेकर आया करो। महिला बोलीं ठीक है। मैंने पंडित से पूछा क्यूं नहीं चढ़ाते? तांबा भी तो धातु है, पंडित जी बोले चढ़ाते नहीं है उसमें विष बन जाता है। इस बार मैंने पंडित जी से कह दिया तो भोले बाबा ने तो विष पिया ही था। पंडित जी चुप हो गए, करीब चार पांच सेकंड घूरने के बाद बोले तब पिया था तो हमेशा उन्हें पिलाते ही रहोगे। मैं प्रसाद लेकर आ गई।
आज मंदिर में ही एक अंकल जी ने शिव जी पर बड़े से लोटे में जल चढ़ाया। फिर उन्हें लगा दोबारा और चढ़ाऊं तो उन्होंने मुझे अपना लोटा दिया कि बेटा इसमें पानी भर लाओ। मैंने पकड़ा तो बोले ऐसे नहीं ऐसे पकड़ कर भरो, उंगली पानी से टच न हो। मैंने इस बात का इतना ध्यान रखा कि आधा लोटा पानी भरकर अंकल जी को लाकर दे दिया। उन्होंने मुझे घूरा और कहा पूरा भरते हैं। इसे पूरा भरकर लाओ। मैं दोबारा गई और पूरा भरकर लेकर आई। अंकल जी दूर से उचक उचक कर देख रहे थे ठीक से भर रही हूं या नहीं, शुक्र है मेरे हाथ से गिरा नहीं लोटा, पता नहीं कैसे, नहीं तो मेरे से चीज़ें गिरती जरूर हैं। मैने अंकल जी से तो कुछ न कहा लेकिन मन मन में सोचा इतने नियम में उलझेंगे तो कुछ न कुछ गलती रहेगी ही। भगवान भाव देखते हैं। भाव शुद्ध होना चाहिए।
-अरविंद दास
बीसवीं सदी में भारत में नर्तकों और संस्कृतिकर्मियों का एक ऐसा वर्ग उभरा जिसने भारतीय शास्त्रीय नृत्य को पूरी दुनिया में एक नई पहचान दी। परंपरा के साथ आधुनिक भावबोध इसके मूल में रहा। सदियों पुराने पारंपरिक नृत्य मंदिरों, धार्मिक स्थलों से निकल कर मंच और सभागारों तक पहुँचे। लोक से इनका जुड़ाव बढ़ा। शास्त्रीय नृत्य को आम जन तक ले जाने, लोकप्रिय बनाने में यामिनी कृष्णमूर्ति (1940-2024) का काफी योगदान रहा है। न सिर्फ विदेशों, महानगरों बल्कि छोटे शहरों में भी उन्होंने असंख्य प्रस्तुतियाँ दी थी। दक्षिण के पारंपरिक नृत्य को उत्तर भारत में उन्होंने अपनी कला कौशल से मशहूर किया। यही वजह है कि समकालीन नृत्य परिदृश्य में वे जीते जी एक किंवदंती बन गई थी।
उनके निधन से आधुनिक भारतीय संस्कृति का एक अध्याय समाप्त हो गया। मशहूर नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा कि ‘भारतीय नृत्य कला जगत में वह एक उल्का की तरह चमकती रही।’ कृष्णमूर्ति की प्रसिद्ध भरतनाट्यम की वजह से थी, लेकिन वे कुचिपुड़ी और ओडिसी नृत्य कला में भी पारंगत थी। नृत्य के जरिए रसिकों और दर्शकों को आनंद की अनुभूति उनके जीवन दर्शन में शामिल था। एक प्रसिद्ध नृत्यांगना के साथ ही वे एक कुशल शिक्षिका भी थीं। उन्होंने अनेक शिष्यों को पारंपरिक नृत्य में प्रशिक्षित किया। पिछले दशकों में महानगरों में मध्यम वर्ग के बच्चों की रुचि भरतनाट्यम में बढ़ी है। एक नए तरह का ग्लैमर देखने को मिला है। निस्संदेह इसकी एक बड़ी वजह कृष्णमूर्ति जैसी नृत्यांगना रही।
वर्ष 1980 में उन्होंने दिल्ली के हौज खास में ‘यामिनी स्कूल ऑफ डांस’ की स्थापना की। अंतिम दर्शन के लिए वहाँ पहुँची उनकी एक युवा शिष्या और नृत्यांगना आशना प्रियंवदा ने यादों को साझा करते हुए भर्राए स्वर में मुझसे कहा कि ‘मैं उनके लिए पोती की तरह थी। उन्होंने मुझे बहुत प्रेम किया और सिखाया कि आप अपना स्टाइल विकसित कीजिए और मौलिकता को बनाए रखिए।’
सदियों तक देवदासियों ने तमिलनाडु के मंदिरों और दरबारों में नृत्य प्रस्तुत किया। सादिर अट्टम से भरतनाट्यम तक के सफर में काफी कुछ बदला है, लेकिन तकनीक की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण रही है। इसे यामिनी जैसी सिद्ध नृत्यांगना ने वर्षों के अनुभव से साधा। इस नृत्य में पाँवों को तेजी से चलाने और अभिनय पर जोर रहता है। श्रृंगार रस में पगे भाव-अभिनय की प्रधानता इसमें रहती आई है। आंध्र प्रदेश के मदनपल्ले में जन्मी कृष्णमूर्ति ने बचपन में रुक्मिणी देवी अरुंडेल से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लेना शुरू किया पर आगे चल कर इल्लपा पिल्लै और किट्टपा पिल्लै उनके गुरु बने। सोलह साल की उम्र में पहली बार मंच पर प्रस्तुति दी फिर पीछे मुड़ कर उन्होंने नहीं देखा। पिछली सदी का साठ-सत्तर का दशक उनकी कला यात्रा में खास तौर पर उल्लेखनीय है। नृत्य में अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से उन्हें सम्मानित किया।
भरतनाट्यम के साथ ही कुचिपुड़ी को भी कृष्णमूर्ति अपनी प्रतिभा से ऊंचाई पर ले गई। जैसा कि हम जानते हैं कुचिपुड़ी में नृत्य-नाटक पर जोर रहता है। उनकी कई नृत्य प्रस्तुतियाँ आज इंटरनेट पर मौजूद हैं, जो आने वाली पीढिय़ों को प्रेरित करती रहेगी।
-जुगल पुरोहित
30 मई और एक जून 2024 के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘45 घंटों’ के लिए कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल में ध्यान किया।
ये वही दिन थे जब लोकसभा चुनाव अभियान खत्म ही हुआ था।
बीबीसी ने सूचना अधिकार के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से जानना चाहा था कि कन्याकुमारी में पीएम मोदी ने जो 45 घंटे बिताए उन्हें सरकारी रिकॉर्ड में कैसे दर्ज किया गया है।
आवेदन के जवाब में पीएमओ ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने कोई छुट्टी नहीं ली है। जवाब में यह भी बताया गया कि ‘प्रधानमंत्री हर वक्त ड्यूटी पर रहते हैं’।
उनके कार्यालय ने बीबीसी को बताया है कि मई 2014 में जबसे पीएम मोदी ने कार्यभार संभाला है तबसे उन्होंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है।
नरेंद्र मोदी से पहले के भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों में से कुछ ने अपने कार्यकाल में छुट्टियाँ ली थीं और इस बात की जानकारी उन्होंने सार्वजनिक भी की थी।
इस सूची में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल हैं।
समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पीएमओ के पास पूर्व प्रधानमंत्रियों की छुट्टियों की जानकारी मौजूद नहीं है।
अतीत में कई बार प्रधानमंत्री की ग़ैर-मौजूदगी में एक वरिष्ठ मंत्री को जिम्मेदारी सौंपी जाती रही है ताकि कामकाज में किसी तरह की रुकावट ना आए।
प्रधानमंत्री छुट्टी कैसे लेते हैं?
केएम चंद्रशेखर भारत सरकार के कैबिनेट सचिव रह चुके हैं। कैबिनेट सचिव नौकरशाही का शीर्ष पद है।
पूर्व कैबिनेट सचिव चंद्रशेखर ने बीबीसी से बात करते हुए बताया, ‘भारत में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जिसके तहत पीएम छुट्टियों की अर्जी डालते हों या फिर छुट्टी माँगते हों, पहले के दौर में जब भी प्रधानमंत्रियों को अपने लिए समय निकालना होता था तब वे राष्ट्रपति को इस बात की जानकारी दे दिया करते थे, और कैबिनेट सचिव को भी अवगत कराते थे।’
यह साफ नहीं है कि पीएम मोदी ने किसी मंत्री को कन्याकुमारी जाने से पहले जिम्मेदारी सौंपी थी या फिर राष्ट्रपति को कोई जानकारी दी थी।
औपचारिक तौर पर कन्याकुमारी में ध्यान करने के मालेकिन पीएम मोदी के ध्यान के कई वीडियो उनके अपने यूट्यूब चैनल और न्यूज एजेंसी एएनआई पर मौजूद हैं जिन्हें कई टीवी चैनलों ने भी प्रसारित किया था।
30 मई को डीडी न्यूज ने अपनी कवरेज में बताया कि पीएम मोदी 30 मई शाम से लेकर एक जून की शाम तक कन्याकुमारी में ध्यान कर रहे हैं।
31 मई की कवरेज में एएनआई ने भी इस बात का जि़क्र किया कि पीएम मोदी रात-दिन साधना में व्यस्त रहेंगे और यह साधना ध्यान मण्डपम के भीतर करेंगे।
बीजेपी के कई नेताओं ने उनके इस कार्यक्रम की सराहना की थी, महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ध्यान का एक वीडियो अपलोड किया था जिसमें उन्होंने लिखा कि ‘मोदीजी को ध्यान के माध्यम से प्राप्त हुई दिव्य ऊर्जा।’ वहीं विपक्ष के नेताओं ने इसे राजनैतिक कार्यक्रम बताया और आरोप लगाया कि वोटरों को प्रभावित करने के लिए यह कार्यक्रम हो रहा है।
संजय बारू पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे हैं और उन्होंने मनमोहन सिंह के कार्यकाल पर एक किताब भी लिखी है- ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ डॉ. मनमोहन सिंह’।
पीएम हमेशा ड्यूटी पर रहते हैं?
संजय बारू ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, ‘यह कहना हास्यास्पद है कि पीएम मोदी ने कन्याकुमारी में जो ध्यान किया वह उनकी औपचारिक ड्यूटी का हिस्सा है। क्या लोग जब ध्यान करते हैं तो वह इसे अपने ऑफिशियल काम या ड्यूटी के तौर पर करते हैं?’
‘क्या कोई संगठन अपने कर्मचारी के ध्यान करने को ड्यूटी मानेगा? एक और बात, जब पीएम उपलब्ध नहीं रहते तो उनकी जि़म्मेदारी है कि किसी दूसरे मंत्री को जि़म्मेदारी दें जो सरकार के कामों को चलाता रहे।’
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने हाल ही में अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड ’ में प्रधानमंत्रियों की कार्यशैली को बारीकी से जाँचा है।
नीरजा चौधरी को यह बात अटपटी लगी कि पीएमओ ने प्रधानमंत्री मोदी की साधना को ड्यूटी बताया है।
‘पीएम को अधिकार है कि वह पूजा करें, लेकिन इस तरह से साधना को ऑफिशियल ड्यूटी बताना मेरी समझ के बाहर की बात है। उनकी साधना के समय को आधिकारिक ड्यूटी बताने का कोई तर्क नजर नहीं आता मुझे।’
सुधीन्द्र कुलकर्णी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सलाहकार रहे हैं।
उन्हें इस बात में कुछ ग़लत नजऱ नहीं आता कि पीएम मोदी की साधना को ऑफिशियल ड्यूटी बताया गया है।
उनका मानना है कि पीएम हमेशा ड्यूटी पर रहते हैं।
प्रधानमंत्री रहते ली गई वाजपेयी की छुट्टियों को याद करके कुलकर्णी बताते हैं, ‘जब 2000 में उन्होंने केरल में छुट्टी ली थी तब शायद ही ऐसा कोई समय हो जब वह काम में व्यस्त नहीं थे। कुछ न कुछ उनके सामने आ ही जाता है।’
‘मुझे याद है उस दौरान वहाँ के सीएम उनसे मिलने आ पहुँचे और प्रशासन के कुछ लोग भी आए थे। पीएम छुट्टी पर थे लेकिन छुट्टी मना रहे थे, ऐसा मानना ग़लत होगा।’
‘एक और बात जब आप और मैं छुट्टी लेते हैं तब जहां हम काम करते हैं वे संस्थाएँ हमारा काम किसी और को सौंपती हैं लेकिन यह बात पीएम के स्तर पर लागू नहीं हो सकती।’
मनमोहन सिंह ने जब ली थी ‘छुट्टी’
पूर्व कैबिनेट सचिव चंद्रशेखर ने बताया कि चाहें पीएम छुट्टी पर हों या ना हों, उनके लिए हमेशा कर कि़स्म की सुविधाएँ उपलब्ध रहती हैं।
वे कहते हैं, ‘जब भी जरूरत होती है तो उन्हें खींच लिया जाता है, पीएम का स्टाफ, एसपीजी और न्यूक्लियर ब्लैक बॉक्स हमेशा उनके साथ ही चलता है ताकि जो जरूरी कदम है उसे वह उठा पाएँ। मुझे कोई शक नहीं कि यह सारे इंतज़ाम पीएम मोदी जब कन्याकुमारी गये थे तब भी हुए होंगे।’
जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का ऑपरेशन होना था तब उन्होंने अपने वरिष्ठतम मंत्री प्रणब मुखर्जी को कैबिनेट मीटिंग की अध्यक्षता करने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
टीकेए नायर उस दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रमुख सचिव थे।
उन्होंने बताया, ‘हालाँकि हमने कभी मनमोहन सिंह के लिए छुट्टी का आवेदन दिया हो या अजऱ्ी दी हो ऐसा मुझे याद नहीं आता।’
विदेशों में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति अपनी छुट्टियों के बारे में सार्वजनिक तौर पर चर्चा करते हैं।
अमेरिका में राष्ट्रपतियों ने अलग-अलग जगहों पर अपनी छुट्टियाँ बिताई हैं और यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है।
अपने लेख में इतिहासकार लॉरेंस नट्सन लिखते हैं, ‘आज जब एक अमेरिकी राष्ट्रपति छुट्टियाँ मनाने जाते हैं तो वह एयर फ़ोर्स वन के जहाज़ से जाते हैं। उनका कम्युनिकेशन स्टाफ़, सीक्रेट सर्विस, वहाँ की पुलिस और मीडियाकर्मी भी उनसे ज्यादा दूर नहीं होते और उनके हर कदम की खबर देते रहते हैं।’
‘राष्ट्रपति चाहे गोल्फ़ कार्ट में हों या नाव में हों या पहाड़ पर हों, उनके पास जानकारी और बातचीत के साधन उतनी ही आसानी से पहुँच जाते हैं जितनी आसानी से उनके ओवल ऑफिस में।’
छुट्टियों पर विवाद
नट्सन यह भी बताते हैं कि वर्षों से इन छुट्टियों पर विवाद चलता रहा है, विपक्ष छुट्टियों पर हुए खर्च, बार-बार ली गयी छुट्टियाँ और उनके लंबे अरसे को लेकर सवाल उठाता रहा है लेकिन तब भी ‘राष्ट्रपति छुट्टियाँ लेते रहे हैं।’
बात अगर ब्रिटेन की करें तो वहाँ पर भी प्रधानमंत्री जनता के बीच अपनी छुट्टियों की बात रखते हैं।
हालाँकि पीएम को छुट्टियों के दौरान ज़रूरी बातों की जानकारी रहती है लेकिन जाने से पहले वह भी अपने एक मंत्री को नियुक्त करते हैं जो रोज़मर्रा के काम उनकी गैर-मौजूदगी में संभालते हैं।
हाल ही में जब पूर्व पीएम ऋषि सुनक अपने कार्यकाल में पहली बार छुट्टियाँ मनाने अपने परिवार के साथ गए थे तब इसी किस्म की व्यवस्था बनाई गई थी।
नीरजा चौधरी कहती हैं कि नेता छुट्टियों को लेकर कैसा तर्क रखते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनके समर्थक छुट्टियों के मसले को कैसे देखते हैं। (bbc.com/hindi)
-बादल सरोज
समोसा भले फारस से आया हो मगर कचौरी जिसे ( र को ड़ बोलने के आग्रही कचौड़ी भी बोलते हैं) शुद्ध जम्बूद्वीप की है । माना जाता है कि सदियों पहले यात्रा प्रेमी मारवाडिय़ों और चटोरे उत्तरप्रदेशियों ने इसकी ईजाद की थी । बाद में भारत-हिमालय से विंध्याचल के बीच का सारा देश-घूमते हुए इसने स्थानिकता के साथ राब्ता बनाया, स्वादों में कहीं हींग कहीं कोथमीर तो कहीं कहीं गरम मसाले का आभूषण घटाया जोड़ा, मगर अपना मूल स्वभाव नहीं छोड़ा । हाल के दौर में जंक फूड के कनखजूरों के भारतीय बाजार पर कब्जे की सारी सुनामियों के सामने भी छाती फुलाये डटी रही .... और लिखकर रख लीजिए, डटी रहेगी।
तेज उबलते तेल में इठलाती और खुद ही खुद के समग्र सौंदर्य पर कुप्पा सी हुई, गरम गरम सांस उश्वांस लेती जब कड़ाही से निकलती है तो सुबह सुबह तैलीय नाश्ते से कतराने वालों का दिल भी धक धक करने लगता है और उनकी ना, हाँ में बदल जाती है । (आज सुबह रतलाम में यही हुआ । पोहे का भोग लगाते में एक दोस्त ने कचौरी ऑफर की, हमने पहले थोड़ा भाव खाया, फिर आधी कचौरी खाई और उसके बाद पछताये कि काहे आधी की बात की थी ।)
कचौरी खुद्दार होती है ; किसी लाल, हरी, तीखी, मीठी, चटनी, सॉस के श्रृंगार, दही-वही के साथ, अलाद-सलाद की टॉपिंग की मोहताज नहीं होती । वह होती है तो बस वही होती है ; विद्यापति की कविता की तरह माथे पर गिरी पानी की बूंद की तरह शिख से पांव की कनिष्ठा के नाखून तक का सफर तय करती ; सिर्फ मुँह को ही नहीं मुखारविन्द को भी पानी पानी करती ।
कचौरियां कई प्रदेशों, नगरों, शहरों, कस्बों, गांवों की खाई हैं ; सभी लाजवाब होती हैं मगर रतलाम की कचौरियों की कुछ अलग ही ताब और सो भी बेहिसाब होती है । टांट्या मामा के जमाने के गराड़ू काट रतलामी जब तिलचट कचौरी (कचौरी के साथ एक छोटी कटोरी में गर्म तेल, दूसरी में लाल मिर्च) जीमते हैं तो सच मानिए समय ठहर जाता, सूर्य ठिठक जाता है, हवाएं भिन्न भिन्न करने लगती हैं ।
रतलामियों, जिन्हें हजारों स्वादों वाले सेव के लिए जाना जाता है, और कचौरी का कुछ ज्यादा ही पुराना साथ और गहरा लगाव है । कचौरी उनके लिए आहार नहीं है उनका गौरव है ; वे भरपेट लंच और डिनर के बाद कचौरी उसे पचाने के लिए कचौरी खा सकते हैं । भूख न होने पर दो चार कचौरी भूख जगाने के लिए कहा सकते हैं।
-रविन्द्र पतवाल
कई भक्त खुश हैं कि स्टॉक मार्किट में शुरू में कुछ गिरावट के बावजूद सब कुछ नॉर्मल है, चंगा है।
उन्हें यही समझाया गया है कि हिंडनबर्ग में ज़ोर्ज सोरोस का पैसा लगा है, और वह भारत के स्टॉक मार्किट में झटका देकर, भारी मुनाफा कमाता है। इसलिए अगर वह विफल रहता है तो देश मजबूत करने में भक्त योगदान दे रहे हैं। वैसे अडानी के सभी शेयर्स में -1.5त्न से लेकर अदानी एनर्जी में -3.8त्न, अदानी टोटल गैस में -4.40त्न की गिरावट दिख रही है।
फिर दोपहर के बाद पश्चिम के निवेशक जब मार्किट में निवेश या बिकवाली करेंगे तब पता चलेगा कि इसे रोकने के लिए कितना मेहनत काम आया।
मेरी विनती है कि वे कुछ बातों को ध्यान से समझने की कोशिश करें, और फिर विचार करें कि क्या वाकई में शेयर बाजार की जो तेजी देखने को मिल रही है, उससे भारत का कोई फायदा हो रहा है?
आज ही खबर छपी है कि रुढ्ढष्ट इस वर्ष 1.25 लाख करोड़ रूपये शेयर बाजार में लगाने का इरादा रखती है। इसमें पैसा किसका है?
एक तरफ तो क्रक्चढ्ढ लगातार देश से अनुरोध कर रहा है कि आम लोग अब बैंकों में बचत को शेयर बाजार में डाल रहे हैं, जिससे सरकार के लिए कैपेक्स का जुगाड़ करने के लिए पश्चिमी देशों के निवेशकों के सामने बांड जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ पर्सनल लोन लेकर करोड़ों लोग आईफोन या शेयर बाजार में पैसा लगाकर बर्बाद हो रहे हैं।
आखिर ये पैसा भी तो वहीं जा रहा है। हमारे हाथ में क्या आ रहा है?
फिर शेयर बाजार में जो कंपनियां अपनी औकात से दस गुना, बीस गुना मार्किट वैल्यू दिखा रही हैं, वे एक भी नया पैसा नया प्लांट लगाने, लाखों रोजगार पैदा करने पर तो लगा नहीं रही हैं। वे तो यूरोप और खाड़ी देशों में रियल एस्टेट में निवेश कर रही हैं।
अगर शेयर बाजार गिरता है तो और इन कंपनियों की असली वैल्यूएशन पर कारोबार होता है, तो इन पूंजीपतियों और मध्य वर्ग के बचत का पैसा भी नए कल कारखाने या बैंकों में जमा होने से देश के काम आता और सही तरीके से यह धन देश के विकास में खपता।
पता नहीं 6त्न संगठित क्षेत्र के शेयर के भाव से पूरे देश का भला कैसे हो सकता है? कोई समझदार निवेशक इसे बता सके तो मेहरबानी होगी। अंधभक्त नहीं, क्योंकि वे तो बुच के सेबी को अदानी की जेबी संस्था बना देने को ही राष्टप्तवाद समझते रहेंगे और रिलायंस के 40 हजार नौकरियों को खत्म करने को मास्टर स्ट्रोक और देश की जीडीपी के 10त्न के बराबर होने को ही विश्व गुरु बनने का प्रमाण बता सकते हैं। वे तो चाहते ही हैं कि जिओ ही एकमात्र मोबाइल सेवा प्रदाता बन जाये, और हर महीने हर भारतीय से 5000 रुपये वसूल कर दुनिया का सबसे धनी परिवार बन जाये। इसलिए वे रहने दें।
-सच्चिदानंद जोशी
बाथरूम में नहाने गया तो साबुन रखने के स्थान पर टाइल्स के टुकड़े की तरह का एक टुकड़ा दिखाई दिया। हमारा फ्लैट कुछ पुराना है इसलिए जगह-जगह से यदा-कदा कुछ ऐसी चीजें टपकती ही रहती हैं। मुझे लगा फिर कोई टाइल टूटकर गिरी है। ऐसे अपघातों से बचने के लिए कुछ मित्रों ने हेलमेट पहनकर नहाने की सलाह भी दी है। इससे पहले कि मैं टाइल्स टूटने की घोषणा करता मेरा हाथ इस टुकड़े पर गया और मैंने पाया कि वह टाइल्स की तरह सख्त नहीं बल्कि काफी मुलायम है।
‘अरे ये क्या रखा है साबुन की जगह ?’ मैंने चिल्लाते हुए श्रीमती जी से पूछा। वो लगभग दौड़ती हुई आई और बोली ‘ये क्या मतलब साबुन है, महंगा वाला। ‘साबुन! मैंने आश्चर्य से एक बार फिर उस टुकड़े को देखा । मर्दों की सैंडो-बनियान के आकार का पीले रंग का वो टुकड़ा था। ‘ये साबुन है ?’ कहते हुए मैंने उसे हाथ में उठाया तो वो हाथ से फिसल कर नीचे गिर गया। उसे उठाने लगा तब तक उसने शरीर के दूसरे अंतर्वस्त्र का आकार धारण कर लिया था। तब तक श्रीमती जी भी परिदृश्य में दाखिल हो गई थी। मेरे हाथ में उस परिवर्तित आकार की वस्तु को देखकर बोली ‘कर दिया न सत्यानाश। जानते हो कितना महंगा था, अपने घर के पूरे महीने के साबुन आ जाएं इतनी कीमत इस एक अकेले साबुन की है।’ मेरे मन में हैरानी थी कि पूरी दुनिया इतने सुंदर और सुवासिक प्रसाधनों से अटी होने के बावजूद ये इतना उटपटांग साबुन खरीदा ही क्यों गया। उत्तर तुरंत ही मिल गया। श्रीमती जी फरमा रही थीं, ‘जानते हो कितने बड़े वैद्य जी का बनाया हुआ है, खास उनकी औषधिशाला में। शुद्ध और ऑर्गेनिक। मैं तो शैंपू भी लाई हूं वहां से ।’ श्रीमती जी ने आले में रखी एक बिना लेबल की बोतल की तरफ इशारा किया जिसमे गहरे भूरे रंग का द्रव भरा था। ‘ये शैंपू है , मुझे तो लगा टॉयलेट क्लीनर है। फिनायल की बोतल की तरह दिख रहा है।’ मेरी स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी।
‘तुम्हे तो किसी बात की कदर ही नही है। और ऑर्गेनिक का महत्व तुम क्या जानो।’ श्रीमती जी उलाहना देते हुए चली गई।
हां ये बात सच है कि ऑर्गेनिक शब्द से बहुत दोस्ती कभी रही नहीं हमारी। हमारे लिए तो सब्जी भी सब्जी ही होती थी। बहुत से बहुत वो ताजी या बासी होती थी। सब्जी में ऑर्गेनिक सुना दिल्ली में आने के बाद जब एक मित्र ने चाणक्यपुरी में चलकर ऑर्गेनिक सब्जी खरीदने का ऑफर दिया। वो समय डीमोनेटाइजेशन का था और घर में नकदी कम थी। तो मित्र बोले ‘चिंता की कोई बात नहीं, साथ में चेक बुक रख लीजिए।’ चेक से सब्जी खरीदने का वह जीवन का पहला प्रसंग था। सब्जी ऐसी कि सूरत देखकर रोना आ जाए। बताया गया कि यही सही ऑर्गेनिक है। तब बचपन और भोपाल का न्यू मार्केट याद आया जहां सब्जी मार्केट में पहली दो चार दुकानें सजी हुई सब्जी की होती थी। वहां सब्जियां ऐसे चमकती मानो पॉलिश लगाया हो। ऐसा लगता कि सब्जी की नही मिठाई की दुकान है। जाहिर है कि वहां भाव दूसरे दुकानदारों से ज्यादा होते थे और हमारी पहुंच से बाहर होते थे। हम उन्हे कुंठा से ढ्ढ्रस् सब्जी वाले कहते थे। उस दिन चाणक्यपुरी में चेक पर आंकड़ा भरते समय लगा कि जाकर ये चेक न्यू मार्केट उन सब्जी वालों को भी दिखाना चाहिए कि देखो आखिर हमारी भी औकात हो ही गई। लेकिन दुख इसी बात का था कि चौगुने दाम देकर जो सब्जी हम घर ला रहे थे वो बेचारी एकदम मालूल और आकार में विसंगत थी। लेकिन क्या करें ऑर्गेनिक थी।
हमारे एशियाड विलेज में भी ऑर्गेनिक सब्जी का बाजार कुछ दिन चला। एक बुजुर्ग महिला जो प्याज बेच रही थी ने बहुत अच्छी टिप्पणी की जब हमने उसके पास रखे अलग-अलग आकार और रंग के थोड़ी सी मिट्टी लगे प्याज के बारे में पूछा। वो बोली ‘ऑर्गेनिक में ऐसे ही चलता है। यदि एक ही साइज के प्याज साफ करके रखो तो लोग उसे ऑर्गेनिक मानते ही नहीं।’इस ऑर्गेनिक सब्जी मार्केट के सब्जी बेचने वाले भी साधारण नहीं होते थे। वे सब भी महंगी कारों में सब्जी बेचने आते थे। साथ में वैन में उनका स्टाफ उनके फार्म की सब्जी लेकर आता था।
लेकिन ये बाते भी अब पुरानी हो गई सी लगती है। अब हमारे घर विशेष ऑर्गेनिक सब्जी किसी के खेत विशेष से आती है। इस उपक्रम का मासिक बिल लगभग उतना ही होता है जितना हमारा बिजली का बिल। अब बिजली का बिल भी कैपिटल एक्सपेंस में आता है ये अलग से बताने की जरूरत तो है नही।
इतना होने के बाद ऑर्गेनिक शब्द से इतनी दहशत हो गई है कि उसके नाम पर किसी बहस की हिम्मत ही नहीं होती। हमारे सोशल मीडिया हैंडल्स के फॉलोअर्स बढ़ाने थे। दहाई के आंकड़ों में उनकी व्यूअरशिप देखकर शर्म आती थी। इतने दिनो से देख रहे थे कि सब्जी बनाने के, बाल काटने के, बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजने के, साड़ी पहनना सिखाने के और ऐसे ही न जाने कितने विडियोज के लाखों में फॉलोअर्स कुछ ही दिन में बन जाते हैं। घिसे पिटे लतीफे सुनाकर भी स्टैंडअप कॉमेडियन लाखों फॉलोअर्स जुटा लेते हैं। उनकी तुलना में हमारा कंटेंट कहीं अधिक अच्छा था ,लेकिन दहाई से सैकड़ा तक आने में ही पसीना छूट जा रहा था। मन में खीज और कुंठा दोनों रखते हुए जब ये सवाल अपने सहयोगी से किया तो उत्तर मिला ‘आपको तो खुश होना चाहिए। हमारी ग्रोथ बहुत अच्छी है क्योंकि वो ऑर्गेनिक है। उनकी ग्रोथ बनावटी है।’
एक बार फिर ऑर्गेनिक इस शब्द ने मुंह बंद कर दिया। बहुत पहले विज्ञापन आता था ‘ठंडा मतलब कोकाकोला।’ वैसे ही अब लगता है कहना पड़ेगा ‘महंगा, बेडौल और दुरूह मतलब।’ बाय द वे आपको बता दूं वो साबुन जिससे बात शुरू हुई थी इतने दिन चलने के बाद अच्छा खासा सख्त हो गया है और साबुन के साथ साथ अब वो चकमक पत्थर का भी काम कर रहा है। उसे घर में छुपा कर रखा है इस डर से कि कहीं ्रस्ढ्ढ वाले उसे आकार न ले जाएं, मोहन जो दारो कालीन मान कर।
-मोहम्मद हनीफ
लगभग 70-75 साल पहले हमारे पूर्वज गोरों से आजादी पाने के लिए अपने घर से निकले थे।
अभी आपने देखा ही होगा कि ब्रिटेन में गोरों के गुट बाहर आ गए हैं, वे हमसे आजादी मांग रहे हैं।
ब्रिटेन में होटलों पर, दुकानों पर, मस्जिदों पर हमले हो रहे हैं।
दशकों पहले जो गोरे आधी दुनिया पर राज करते थे, वे अब हम जैसे लोगों से कह रहे हैं कि आपने यहां आकर हमारी नौकरियां छीन लीं हैं।
वे कह रहे हैं, आप छोटी नावों में बैठकर यहां आ जाते हो और फिर पूरी जिंदगी चार सितारा होटलों में हमारी सरकार के खर्च पर रहते हो। आपने हमसे हमारा ब्रिटेन छीन लिया है।
ब्रिटेन की मीडिया और सरकार को भी यह समझ नहीं आ रहा कि इन समूहों को क्या कहा जाए।
वजीर-ए-आजम (प्रधानमंत्री) कहते हैं कि ये बदमाश हैं, वहीं मीडिया कहता है कि ये प्रो-यूके विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
कुछ समझदार लोग आकर बताते हैं कि यह गरीब गोरों का ग़ुस्सा है जो बाहर निकल रहा है।
गोरे देशों से आए आप्रवासियों पर
क्यों नहीं निकलता गुस्सा?
कोई यह नहीं बताता कि यह गुस्सा गोरे देशों से आए आप्रवासियों पर क्यों नहीं निकलता है।
यूक्रेन में युद्ध होता है, वहां से लोग भागकर यहां पहुंचते हैं।
सरकार भी और गोरे नागरिक भी अपने घरों के दरवाजे खोलकर उनका स्वागत करते हैं। ऐसा करना भी चाहिए।
लेकिन वहां अफगानिस्तान में ब्रिटेन लगभग 40 वर्षों से युद्ध में अपनी भूमिका निभा रहा है। अगर वहां से कोई भागकर आ जाए तो गोरे लोगों का कल्चर खतरे में पड़ जाता है।
इसे नस्लवाद कहें, नस्लपरस्ती कहें या वह पुरानी बीमारी कि एक गोरे रंग का व्यक्ति किसी दूसरे रंग के व्यक्ति को इंसान नहीं मानता है ।
सारा भार काले-भूरे लोगों पर, फिर भी
गोरा भले ही कम पढ़ा-लिखा हो, भारत, पाकिस्तान जैसे देश में जाकर वह खुद को प्रधान समझने लगता है और अगर वहां से कोई सर्जन बनकर भी आ जाए तो कई गोरों के लिए वह अप्रवासी और गैरकानूनी ही रहता है।
बुद्धिमान लोग यह भी समझाते हैं कि देखो ब्रिटेन का गऱीब गोरा सुबह घर से निकलता है तो अंडे और डबल ब्रेड पटेल जी की दुकान से खरीदता है।
ट्रेन में बैठता है तो वहां कंडक्टर मीर पुरी होता है और अगर ऊबर में बैठ जाए तो ड्राइवर झेलम या लुधियाना का होगा।
जब किसी ढाके वाले के ढाबे का चिकन टिक्का मसाला खा-खा कर बीमार पड़ जाएगा तो उसका इलाज कोई गुजरात से आया डॉक्टर ही करेगा, नर्स भी जमैका की होगी। और फिर दवा लेने के लिए फ़ार्मेसी जाएगा, वहां भी कोई हमारा ही भाई-बहन खड़ा होगा ।
बादशाहत छिन गई?
ब्रिटेन के राजनेताओं ने अपनी सारी अक्षमताओं का भार विदेश से आए काले और भूरे लोगों पर डाल दिया है।
यूके एक औद्योगिक देश था। यहां फ़ैक्टरियाँ चलती थीं, मिलें चलती थीं। कोई कुछ बनाता था और फिर उसे दुनिया को बेच देता था।
अब वो यूरोप से भी अलग हो गया है। उसके यहां खेतों में काम करने के लिए मज़दूर भी नहीं मिल रहे हैं। डॉक्टर और नर्स पहले ही बाहर से आते थे।
अब गोरी आवाम को बस यही कहते हैं कि हम कभी विश्व के बादशाह हुआ करते थे, अब बाहर से लोगों ने आकर हमारी बादशाहत छीन ली है।
सच बात तो यह है कि बादशाहत को कोई ख़तरा नहीं है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले ब्रिटेन के राजा या रानी का हुक्म आधी दुनिया में चलता था। अब जो हमारा बादशाह है, उसकी बात उसका बेटा हेनरी भी नहीं मानता है।
ब्रिटेन ने भारत पर कई सौ वर्षों तक शासन किया और फ़ॉर्मूला उनके पास एक ही था, जिसे तब ‘डिवाइड एंड रूल’ या ‘फूट डालो और राज करो’ कहा जाता था। हिंदू को मुस्लिम से लड़ाओ और पंजाबी को पंजाबी से लड़ाओ।
अब ऐसा लगता है कि यही फॉर्मूला वे अपने देश में भी लेकर आए हैं।
यहां भी गरीबों से कहा जा रहा है कि बाहर से आए गरीब आपका हक मार रहे हैं।
कई इलाकों में लोगों ने एकजुट होकर कहा है कि हमने धर्म और रंग के नाम पर नहीं लडऩा है और इन्हें भी चाहिए कि जो ज्ञान और कानून वे आधी दुनिया को बताने गए थे, उसे थोड़ा आपने घर पर भी लागू करें। शायद पुरानी बीमारी से कुछ राहत मिल जाए। रब्ब राखा।
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य और विचार बीबीसी के नहीं हैं और बीबीसी इसकी कोई जिम्मेदारी या जवाबदेही नहीं लेती है।)
पेरिस ओलंपिक में बड़ी कामयाबी के बाद विनेश फोगाट के अयोग्य होने से खिलाड़ियों के वजन का महत्व पता चला है. वजन बढ़ाना, घटाना और एक स्तर पर रखना खिलाड़ियों के लिए कितना मुश्किल है. क्या विनेश फोगाट से कोई चूक हुई?
डॉयचे वैले पर रामांशी मिश्रा-आयुष यादव की रिपोर्ट-
पेरिस ओलंपिक में महिला कुश्ती के मुकाबले में पहली बार फाइनल में पहुंची भारतीय रेसलर विनेश फोगाट बढ़े हुए वजन के चलते डिसक्वालीफाई हो गईं. विनेश अच्छा प्रदर्शन करते हुए फाइनल में जगह बना चुकी थीं लेकिन निर्धारित सीमा से वजन 100 ग्राम ज्यादा होने पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया. यह खबर ना सिर्फ विनेश बल्कि पूरे भारत के लिए बड़ा अफसोस लेकर आई. इससे ओलंपिक में भारत का मेडल तो कम हुआ ही एक खिलाड़ी के रूप में विनेश फोगाट को बहुत बड़ी निराशा मिली. इसके अगले दिन ही उन्होंने कुश्ती से संन्यास ले लिया.
वजन के मामले में विनेश ने पहले भी चुनौतियां झेली हैं. रियो ओलंपिक 2016 में उन्हें 48 किलोग्राम भार वर्ग के लिए अपना वजन कम करना पड़ा था. हालांकि चोट के कारण वह मुकाबले से जल्दी बाहर हो गई थीं.
टोक्यो ओलंपिक 2020 में विनेश 53 किलोग्राम भार वर्ग में खेलीं लेकिन क्वार्टर फाइनल में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. पेरिस ओलंपिक 2024 में उन्होंने 50 किलोग्राम भार वर्ग में खेलने का फैसला किया, लेकिन अंत में बढ़े हुए वजन के कारण उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया.
विनेश फोगाट को अपने वजन की चुनौती का अंदाजा पहले भी था. अप्रैल 2024 में उन्होंने कहा था, "मुझे अपने वजन को बेहतर तरीके से मैनेज करना होगा. मैंने लंबे वक्त के बाद अपना वजन कम करके 50 किलो किया है.”
वजन मापने की प्रक्रिया
कुश्ती में एक भार वर्ग के सभी मुकाबले दो दिन में कराए जाते हैं. इस दौरान एक रेसलर का दोनों दिन सुबह वजन मापा जाता है. पहले दिन के वजन के लिए 30 मिनट का समय दिया जाता है. इस 30 मिनट में कई बार वजन चेक किया जा सकता है.
दूसरे दिन वजन के लिए सिर्फ 15 मिनट का समय दिया जाता है और वजन मापने के बाद खिलाड़ियों का मेडिकल चेकअप किया जाता है. वजन के दौरान पहलवान सिर्फ कुश्ती का कॉस्ट्यूम ही पहन सकते हैं.
रेसलिंग के अलावा बॉक्सिंग में भी खिलाड़ी कई बार अपनी वेट कैटेगरी बदलते हैं और उन्हें भी मैच से पहले अपना वजन करवाना पड़ता है. पूर्व ओलंपियन और बॉक्सर विजेंदर सिंह ने डीडब्ल्यू से कहा, "2019 में न्यूयॉर्क में प्रोफेशनल बॉक्सिंग के मुकाबले से पहले मेरा पांच किलो वजन बढ़ गया था इसलिए मैंने पूरी रात कड़ी एक्सरसाइज की और मैच से पहले वजन घटा लिया.”
इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर दिनशॉ परडीवाला का भी कहना है कि वजन कम करना या इसमें कटौती करना एनर्जी में कमी की वजह बनता है. विनेश ने लगातार तीन मुकाबले खेले थे और डिहाइड्रेशन से बचने के लिए उन्हें पानी देना पड़ा, जिससे उनका वजन बढ़ गया.
पानी से बढ़ सकता है वजन
हमारे शरीर का वजन मांसपेशियों, हड्डियों, वसा और पानी से मिलकर बना होता है. इसी के आधार पर शरीर का कुल वजन मापा जा सकता है. विनेश हमेशा 53 किलोग्राम की श्रेणी में ही खेली हैं लेकिन इस बार उन्हें 50 किलोग्राम की श्रेणी में खेलना पड़ा, जिसके लिए उन्हें अपना वजन कम करना था.
नासिक में सत्वा न्यूट्रिकेयर की संस्थापक और डाइटिशियन हिमानी पुरी कहती हैं, "बाउट के बाद उनका दो किलो वजन जो बढ़ा, वह पानी के कारण है क्योंकि अपनी प्रतिस्पर्धा के बाद खिलाड़ी को पानी दिया जाता है जिसे मांसपेशियां सोखती हैं और वजन बढ़ता है. इसी वजह से व्यायाम के जरिए पसीना बहा कर ही पानी को शरीर से कम कर वजन घटाया जा सकता है.”
वजन की नियमितता के बारे में केजीएमयू के स्पोर्ट्स इंजरी विभाग के प्रमुख डॉ. अभिषेक अग्रवाल बताते हैं, "खिलाड़ियों के लिए सबसे जरूरी उनकी कंसिस्टेंसी और हाइड्रेशन का ध्यान रखना है, क्योंकि वजन कम करने के लिए शरीर से वॉटर लॉस ही एकमात्र उपाय है लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि अगर शरीर से पानी अधिक मात्रा में कम हो जाए तो खिलाड़ी की जान पर खतरा हो सकता है.”
वजन घटाने के तरीके
मंगलवार को बाउट जीतने के बाद विनेश का वजन लगभग दो किलोग्राम बढ़ गया था. वजन बढ़ना आसान है, लेकिन जल्दी घटाना मुश्किल होता है. इस बारे में एम्स नई दिल्ली के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर नवल विक्रम कहते हैं, "खेल में न्यूट्रीशन का सबसे बड़ा और अहम किरदार होता है. वजन घटाने में खाने की मात्रा और ऊर्जा की खपत दो मुख्य बातें होती हैं. या तो आप खाना कम खाएं और या फिर अपनी एनर्जी एक्सपेंडिचर को बढ़ा लें या फिर दोनों पर एक साथ काम करें, वजन इसी तरह से कम किया जा सकता है.”
विनेश ने भी वजन घटाने के लिए स्किपिंग, दौड़ समेत कुछ अन्य व्यायाम और एक्सरसाइज की थी ताकि उनका वजन कम हो सके. इससे कुछ हद तक वजन कम हुआ भी लेकिन फिर भी वो मानक के अनुसार अपना वजन 50 किलोग्राम तक नहीं रख पाईं.
डिहाइड्रेशन खतरनाक
वजन कम करने की जद्दोजहद में विनेश को डिहाइड्रेशन के चलते अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था. इससे उबरना आसान है और यह खतरनाक भी है. इस पर नई दिल्ली की क्लीनिकल न्यूट्रीशनिस्ट इशी खोसला कहती हैं, "दिल के सही से धड़कने के लिए शरीर में मैग्नीशियम की आवश्यकता होती है. वजन कम करने में व्यायाम के दौरान अधिक पसीना बहता है. इस दौरान पसीने के साथ मैग्नीशियम और पोटेशियम अधिक निकल जाए तो कार्डियक अरेस्ट और एरिथमिया हो सकता है जिससे खिलाड़ी की जान भी जा सकती है.”
महिलाओं में बोन हेल्थ यानी हड्डियों का स्वास्थ्य अहम होता है. इस पर हिमानी ने बताया, "किसी महिला खिलाड़ी को जब वजन कम करना हो तो ऐसे में डाइटीशियन और न्यूट्रीशनिस्ट इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि खिलाड़ी का बोन हेल्थ और मसल्स हेल्थ प्रभावित ना हो क्योंकि इसके प्रभावित होने से खिलाड़ी को चोट लगने की आशंका बढ़ जाती है.”
हार्मोनल बदलाव भी जिम्मेदार
महिला खिलाड़ियों में हार्मोनल बदलाव भी होते हैं.इशी बताती हैं कि महिलाओं में माहवारी के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन का स्राव होता है. माहवारी से पहले उनका हल्का वजन बढ़ सकता है. खानपान में बदलाव हो जाता है. ऐसे में इस पहलू को भी ध्यान में रखा जा सकता है.
भारतीय वेटलिफ्टर मीराबाई चानू जो 49 किलोग्राम भार वर्ग में मात्र एक किलोग्राम वजन कम उठाने की वजह से पदक चूक गईं, उनका कहना था कि प्रतियोगिता के दिन उनके माहवारी का तीसरा दिन था जिसकी वजह से वो थोड़ा कमजोरी महसूस कर रही थीं और उसका असर उनके खेल पर पड़ा.
मानसिक तनाव का असर
ओलंपिक के कुछ खेलों में वजन का प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन कुछ खेलों में जरा सा वजन बढ़ना भी खिलाड़ियों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है. हार जाने के डर से कभी-कभी खिलाड़ी रिटायरमेंट, तनाव, अवसाद और यहां तक आत्महत्या तक का कदम उठा सकते हैं.
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में मानसिक रोग चिकित्सा विभाग के एडिशनल प्रोफेसर सुजीत कुमार कहते हैं, "एक खिलाड़ी के तौर पर देश की उम्मीद और दुनिया की नजरें उनके प्रदर्शन पर टिकी होती है तो ऐसे में मेंटल स्ट्रेस स्वाभाविक है. स्ट्रेस बढ़ने पर कॉर्टिसोल हार्मोन का स्त्राव बढ़ जाता है जिसकी वजह से वजन बढ़ सकता है.”
प्रो. सुजीत बताते हैं कि विनेश का प्रदर्शन इस बार ओलंपिक में बेहतरीन रहा, इस लिहाज से उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि वजन के कारण वह डिसक्वालीफाई हो सकती हैं, तो इसके लिए उन्होंने कभी मानसिक तौर पर तैयारी भी नहीं की होगी. ऐसे में उनको मॉरल ट्रॉमा होने की आशंका भी है.
क्या कहते हैं नियम
ओलपिंक के नियमों के अनुसार यदि कोई रेसलर निर्धारित वजन से ज्यादा पाया जाएगा तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. इस मसले पर यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग चीफ का कहना है कि खिलाड़ियों का नियमों का सम्मान करना चाहिए. सभी खिलाड़ी नियमों के बारे में जानते हैं. विनेश के साथ जो भी हुआ वो सही नहीं था लेकिन नियमों के तहत उन्हें ना तो मेडल दिया जा सकता था और ना ही खेलने की इजाजत.
विनेश ने अयोग्य घोषित होने के मामले में कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट में अपील की है. इस अपील में उन्होंने संयुक्त तौर पर सिल्वर मेडल की मांग की है. हालांकि इस पर अभी कोई फैसला नहीं आया है. अयोग्य घोषित किए जाने के अगले ही दिन विनेश ने कुश्ती छोड़ने का फैसला कर लिया.
इसकी जानकारी देते हुए उन्होंने एक्स पर लिखा, ''मां, कुश्ती मेरे से जीत गई, मैं हार गई. माफ करना. आपका सपना, मेरी हिम्मत सब टूट चुके. इससे ज्यादा ताकत नहीं रही अब. अलविदा कुश्ती 2001-2024. आप सबकी हमेशा ऋणी रहूंगी.'' (dw.com)
मुंबई के एक कॉलेज ने कैंपस में हिजाब, बुर्का और टोपी पहनने पर रोक लगाई थी. कुछ छात्राओं ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की लेकिन उनकी याचिका खारिज हो गई. अब सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है.
डॉयचे वैले पर आदर्श शर्मा का लिखा-
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई की और कॉलेज के सर्कुलर पर आंशिक रूप से रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच ने सुनवाई के दौरान कॉलेज से पूछा है कि क्या आप बिंदी और तिलक लगाकर आने वाली लड़कियों पर भी रोक लगाएंगे। कोर्ट ने सर्कुलर जारी करने वाले एनजी आचार्य एंड डीके मराठे कॉलेज को नोटिस जारी कर 18 नवंबर तक जवाब मांगा है। इस कॉलेज को चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी संचालित करती है।
भारत के अदालती मामलों पर रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ की खबर के मुताबिक, कॉलेज ने कोर्ट में कहा कि नियम इसलिए लागू किया गया, जिससे स्टूडेंट्स का धर्म उजागर ना हो। सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘ऐसा नियम लागू मत कीजिए। क्या उनके नामों से उनके धर्म के बारे में पता नहीं चलता? उन्हें साथ मिलकर पढऩे दीजिए।’ कोर्ट का यह भी कहना था कि धर्म का पता नाम से भी चलता है, तो फिर क्या उन्हें नाम की बजाय नंबर से पुकारा जाएगा?
वहीं, जस्टिस संजय कुमार ने सवाल उठाया कि क्या यह लडक़ी पर निर्भर नहीं करता कि वह क्या पहनना चाहती है। अदालत ने आजादी के इतने सालों बाद कॉलेज में धर्म की बात होने पर भी सवाल उठाया।
हिजाब पहने आपस में चर्चा करती भारत की दो लड़कियां हिजाब पहने आपस में चर्चा करती भारत की दो लड़कियां
चेहरा ढंकने वाले नकाब पर रोक जारी
कॉलेज ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि चेहरा ढंकने वाले नकाब या बुर्का बातचीत के दौरान बाधा पैदा करते हैं। इस पर कोर्ट ने सहमति जताते हुए कहा कि कक्षा में चेहरा ढंकने वाले नकाब की अनुमति नहीं दी जा सकती। साथ ही कैंपस में धार्मिक गतिविधियां भी नहीं की जा सकती हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी को भी इस अंतरिम आदेश का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा होने की स्थिति में कॉलेज प्रशासन कोर्ट से आदेश में बदलाव करने की मांग कर सकता है। भारत के दूसरे राज्यों में भी हिजाब को लेकर काफी विवाद हो चुका है। राजस्थान और कर्नाटक में तो यह मामला कई दिनों तक राजनीतिक हलकों और मीडिया में चर्चा का मुद्दा बना हुआ था।
पहले भी हुआ है हिजाब विवाद
दो साल पहले कर्नाटक में भी कॉलेज में हिजाब पहनने पर विवाद हुआ था। इसकी वजह से भारत की राजनीति में भी जब तब उबाल आता है। जनवरी 2022 में उडुपी जिले के एक सरकारी कॉलेज में हिजाब पहनकर आने पर रोक लगाई गई थी। कॉलेज प्रशासन ने कहा था कि वे स्टूडेंट्स के बीच एकरूपता बनाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। इसके बाद फरवरी में कर्नाटक सरकार ने आदेश जारी कर कक्षा के अंदर हिजाब पहनने पर रोक लगा दी थी। इस आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब बैन करने के आदेश को बरकरार रखा था। कोर्ट ने कहा था कि यह बैन छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। वहां जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की दो-सदस्यों वाली बेंच ने इस मामले की सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्टूबर, 2022 को इस मामले में विभाजित फैसला सुनाया। यानी इस मुद्दे पर दोनों जजों की राय अलग-अलग थी। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने प्रतिबंध के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि यह सभी धर्मों के स्टूडेंट्स पर समान रूप से लागू होता है। वहीं, जस्टिस धूलिया ने इस प्रतिबंध को असंवैधानिक बताया था। उन्होंने कहा था कि यह प्रतिबंध समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
विभाजित फैसले के बाद यह तय हुआ था कि मामले को सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच के पास भेजा जाएगा। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब तक इस मामले के लिए कोई बड़ी बेंच नहीं बनाई गई है। (डॉयचेवैले)
-प्राण चड्ढा
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(12 अगस्त को हाथी दिवस पर रायपुर में राष्ट्रीय आयोजन)
जंगल का दायरा बढ़ नहीं रहा,और हाथी कम होते जा रहे हैं। हाथी को बचाओ और बढ़ाओ उनका खौफ जंगल को बचाता। और जंगल हाथी को शरण देते हैं।
महाभारत काल हो अथवा पोरस और सिकंदर का हिंदुस्तान की सीमा पर युद्ध सबमें हाथियों का उल्लेख है। महाभारत में अश्वत्थामा नाम हाथी का उल्लेख है।महाबली भीम जिस हाथी को गदा प्रहार से मार कर उद्घोष करता है कि उसने अश्वत्थामा: नाम के हाथी मार दिया। गुरु द्रोण पुष्टि करने सत्यवादी धर्मराज युधिष्ठिर से पूछते हैं 'क्या यह सत्य है कि उनका पुत्र युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।' यहाँ योजना के अनुसार जब युधिष्ठिर कहते हैं अश्वत्थामा मार गया,पर पता नहीं, फिर धीमे से नर या हाथी पता नहीं तभी श्रीकृष्ण शंखवादन करते हैं जिसमें कही गयी बात' नरो या कुंजरो' दब जाती है और यही अर्धसत्य गुरु द्रोण के वध का कारण बनता है।
सिकन्दर से युद्ध के समय पोरस की सेना में 130 प्रशिक्षित हाथी थे। तब यह माना जाता था कि जंगल में शेर और राजा के पास हाथी होना ही उनकी कीर्ति और सुरक्षा के लिए परम आवश्यक है।
हाथियों के झुंड का नेतृत्व सबसे पुरानी और बड़ी सदस्य मादा (झुंड की कुल माता) माता करती है। इस झुंड में नर हाथी की सभी संतानें शामिल हैं।
"गूगल के अनुसार हाथियों में सभी स्तनधारियों की सबसे लंबी गर्भावस्था (गर्भावस्था) अवधि होती है, जो 680 दिन (22 महीने) तक चलती है।
14 से 45 साल के बीच की मादा में लगभग हर चार साल में बच्चे का जन्म हो सकता है, जबकि औसत जन्म 52 साल की उम्र में पांच साल और 60 साल की उम्र में छह साल तक बढ़ जाता है।"
हाथी बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है और अपनी स्मरण शक्ति तथा बुद्धिमानी के लिए प्रसिद्ध है।
हम सबने एक कहानी बचपन में पढ़ी होगी। एक दर्जी अपनी दुकान के सामने से नदी में नहाने जाने वाले हाथी को रोज कुछ खाने को देता। एक दिन हाथी सड़क से गुजर रहा था तो उसने दर्जी की तरफ सूंड बढ़ाया,दर्जी ने कुछ दिया नहीं बल्कि सूई चुभा दी, हाथी चला गया। लेकिन जब वह वापस उसी राह से आया तो सूंड में भर कर लाये पानी की पिचकारी से दर्जी और उसके सिले कपड़े पर सूंड में भरे पानी को पिचकारी मार के सूई चुभने का बदला चुका दिया।
इस कहानी लेखन का उद्देश्य यह है कि महाभारत काल से आदमी और हाथी का साथ है। यह जंगल उनके हैं, हम उसे काटे या उत्खनन से जंगल बर्बाद करेंगे तो तय है हाथी बदला लेंगे। यह द्वंद्व खत्म करना है तो जंगल बचाओ- बढ़ाओ,गणपति के अंशावतार को बचाओ।
अदानी ग्रुप के खिलाफ रिपोर्ट जारी करने वाली हिंडनबर्ग रिसर्च ने अब बाज़ार नियामक सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच पर आरोप लगाया है।
अमेरिकी शॉर्ट सेलर फंड हिंडनबर्ग ने शनिवार को व्हिसलब्लोअर दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि सेबी की चेयरपर्सन और उनके पति धवल बुच की उन ऑफ़शोर कंपनियों में हिस्सेदारी रही है, जो अदानी समूह की वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ी हुई थीं।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ और पीटीआई के मुताबिक़, सेबी चेयरपर्सन और उनके पति धवल बुच ने एक बयान जारी कर इन आरोपों का खंडन किया है।
दोनों ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा है, ‘इन आरोपों में कोई सचाई नहीं है। हमारी जि़ंदगी और वित्तीय लेनदेन खुली किताब हैं।’
क्या है हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि सेबी के चेयरपर्सन की उन ऑफ़शोर कंपनियों में हिस्सेदारी रही है जिनका इस्तेमाल अदानी ग्रुप की कथित वित्तीय अनियमतताओं में हुआ था।
इसमें कहा गया है कि आज तक सेबी ने अदानी की दूसरी संदिग्ध शेयरहोल्डर कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं की है जो इंडिया इन्फोलाइन की ईएम रिसर्जेंट फंड और इंडिया फोकस फंड की ओर से संचालित की जाती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सेबी चेयरपर्सन के हितों के इस संघर्ष की वजह से बाज़ार नियामक की पारदर्शिता संदिग्ध हो गई है। सेबी की लीडरशिप को लेकर रिपोर्ट में चिंता जताई जा रही है।
हिंडनबर्ग ने कहा है कि अदानी समूह की वित्तीय अनियमितताओं में जिन ऑफशोर फंड्स की संलिप्तता रही है वो काफी अस्पष्ट और जटिल स्ट्रक्चर वाले हैं।
रिपोर्ट में माधबी पुरी बुच के निजी हितों और बाजार नियामक प्रमुख के तौर पर उनकी भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा है अदानी ग्रुप को लेकर सेबी ने जो जांच की है उसकी व्यापक जांच होनी चाहिए।
हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा है कि व्हिसलब्लोअर से उसे जो दस्तावेज़ हासिल हुए हैं उनके मुताबिक़ सेबी में नियुक्ति से कुछ सप्ताह पहले माधबी पुरी बुच के पति धवल बुच ने मॉरीशस के फंड प्रशासक ट्रिडेंट ट्रस्ट को ईमेल किया था। इसमें उनके और उनकी पत्नी के ग्लोबल डायनेमिक ऑप्चर्यूनिटीज फंड में निवेश का जि़क्र था।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है माधबी बुच के सेबी अध्यक्ष बनने से पहले उनके पति ने अनुरोध किया था कि संयुक्त खाते को वही ऑपरेट करेंगे। इसका मतलब ये कि वो माधबी बुच के सेबी अध्यक्ष बनने से पहले पत्नी के खाते से सभी एसेट्स हटा देना चाहते थे।
चूंकि सेबी अध्यक्ष का पद राजनीतिक तौर पर काफी संवेदनशील होता है इसलिए उनके पति ने ये कदम उठाया होगा।
हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है, ‘माधबी बुच के निजी ईमेल को एड्रेस किए गए 26 फरवरी 2018 के अकाउंट में उनके फंड का पूरा स्ट्रक्चर बताया गया है। फंड का नाम है ‘जीडीओएफ सेल 90 (आईपीईप्लस फंड 1)’। ये माॉरीशस में रजिस्टर्ड फंड ‘सेल’ है जो विनोद अदानी की ओर से इस्तेमाल किए गए फंड की जटिल संरचना में शामिल था।’
हिंडनबर्ग ने बताया है कि उस समय उस फंड में बुच की कुल हिस्सेदारी 872762.65 डॉलर की थी।
माधबी पुरी बुच ने आरोपों को किया ख़ारिज
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, माधबी बुच और उनके पति ने कहा है,‘हम यह बताना चाहते हैं कि हमारे ऊपर लगाए गए निराधार आरापों का हम खंडन करते हैं।’
उन्होंने कहा है, ‘हमारी जिंदगी और हमारा वित्तीय लेखा-जोखा खुली किताब की तरह है और पिछले कुछ वर्षों में सेबी को सभी आवश्यक जानकारियां दी गई हैं।’
माधबी पुरी बुच और उनके पति ने कहा है, ‘हमें किसी भी और वित्तीय दस्तावेजों का खुलासा करने में कोई झिझक नहीं है, इनमें वो दस्तावेज भी शामिल हैं जो उस समय के हैं जब हम एक आम नागरिक हुआ करते थे।’
उन्होंने कहा है कि मामले की पूरी पारदर्शिता के लिए हम उचित समय पर पूरा बयान जारी करेंगे।
उन्होंने कहा है, ‘हिंडनबर्ग रिसर्च के ख़िलाफ़ सेबी ने प्रवर्तन कार्रवाई की थी और कारण बताओ नोटिस जारी किया था। उसी के जवाब में हिंडनबर्ग रिसर्च ने नाम खऱाब करने की कोशिश की है।’
कौन हैं धवल बुच
माधबी पुरी बुच के पति धवल बुच फिलहाल मशहूर इनवेस्टमेंट कंपनी ब्लैकस्टोन और अल्वारेज़ एंड मार्शल में सलाहकार हैं। वो गिल्डेन के बोर्ड में नॉन एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी हैं।
उनके लिंक्डइन प्रोफाइल के मुताबिक़ उन्होंने आईआईटी दिल्ली से पढ़ाई की है। उन्होंने यहां से 1984 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन की थी।
धवल बुच यूनिलीवर में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी थे और बाद में कंपनी के चीफ प्रॉक्यूरमेंट ऑफिसर बने।
बुच ने खुद को प्रॉक्यूरमेंट और सप्लाई चेन के सभी पहलुओं का विशेषज्ञ भी बताया है।
कांग्रेस ने हिंडनबर्ग रिसर्च की इस नई रिपोर्ट के बाद कहा है कि ‘अदानी मेगा स्कैम की व्यापकता की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बननी चाहिए।’
वहीं तृणमूल कांग्रेस ने सेबी प्रमुख माधबी बुच के इस्तीफे की मांग की है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, ‘ये सेबी चेयरपर्सन बनने के तुरंत बाद बुच के साथ गौतम अदानी की 2022 में दो बैठकों के बारे में सवाल पैदा करता है। याद करें सेबी उस समय अदानी लेनदेन की जांच कर रहा था।’
वहीं टीएमसी प्रवक्ता ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में लंबित जांच को देखते हुए सेबी चेयरमैन को तुरंत निलंबित किया जाना चाहिए और उन्हें और उनके पति को देश छोडऩे से रोकने के लिए सभी हवाई अड्डों और इंटरपोल पर लुकआउट नोटिस जारी किया जाना चाहिए।’
टीएसी नेता महुआ मोइत्रा ने लिखा, ‘ सेबी के चेयरपर्सन का अदानी समूह में निवेशक होना सेबी के लिए टकराव और सेबी पर कब्जा दोनों है। समधी सिरिल श्रॉफ कॉपरेट गर्वनेंस कमिटी में हैं। कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सेबी को भेजी गई सारी शिकायतें अनसुनी हो जाती हैं।’
महुआ मोइत्रा ने अपने एक और ट्वीट में लिखा है कि इस चेयरपर्सन के नेतृत्व में सेबी की ओर से अदानी पर की जा रही किसी भी जांच पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। यह सूचना सार्वजनिक होने के बाद सुप्रीम कोर्ट को अपने निर्णय पर दोबारा विचार करना चाहिए।
महुआ ने कहा है कि यहां तक कि सेबी की चेयरपर्सन भी अदानी के समूह में निवेशक हैं। उन्होंने सीबीआई और ईडी को टैग करते हुए लिखा है कि क्या आप लोग पीओसीए और पीएमएलए के मामलों को दायर करेंगे या नहीं।
हिंडनबर्ग रिसर्च की यह रिपोर्ट लगभग उस रिपोर्ट के 18 महीने बाद आई है, जब इसने पहली बार अदानी समूह पर आरोप लगाए थे।
जनवरी 2023 में आई इस रिपोर्ट से भारत में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था।
रिपोर्ट में अदानी समूह पर ‘शेयर बाजार में हेरफेर’ और ‘अकाउंटिंग धोखाधड़ी’ का आरोप लगाया गया था।
हालांकि बंदरगाहों से लेकर ऊर्जा कारोबार में शामिल अदानी समूह ने इन सभी आरोपों से इंकार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई या कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग खारिज कर दी थी।
उसके बाद अदानी समूह ने कहा था कि सच की जीत हुई है।
अदानी समूह ने क्या कहा
माधबी पुरी बुच को घेरने वाली हिंडनबर्ग की इस रिपोर्ट पर अदानी समूह ने भी प्रतिक्रिया दी है। समूह ने एक बयान जारी कर कहा है कि हिंडनबर्ग की ओर से लगाए गए ताजा आरोप में दुर्भावना और शरारत पूर्ण तरीके से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी का चयन किया गया है। ताकि निजी लाभ के लिए पहले से तय निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके। यह तथ्यों और कानूनों का पूरी तरह उल्लंघन है।
बयान में कहा गया है, ‘ हम अदानी समूह पर लगाए गए आरापों को पूर्ण रूप से खारिज करते हैं। यह आरोप उन बेबुनियाद दावों की री-साइकलिंग है जिनकी पूरी तरह से जांच की जा चुकी है। इन आरोपों को जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से पहले ही खारिज किया जा चुका है।’
इससे पहले कांग्रेस ने एक बयान जारी कर अदानी मामले में उच्च अधिकारियों की कथित मिलीभगत उजागर करने के लिए जेपीसी गठित करने की मांग की थी।
हिंडनबर्ग रिसर्च ने अदानी के बाद सेबी चीफ को घेरा, जानिए क्या हैं आरोप (bbc.com/hindi)
-अशोक पांडे
बारह साल पहले हैदराबाद में हुई विश्व जूनियर टेबल टेनिस प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने आई 17 साल की उस ब्राजीली लडक़ी ने अपने पहले मैच में वेनेजुएला की लूसेना जोसमेरी को सीधे सेटों में बुरी तरह हरा दिया। वह अपने देश की जूनियर रैंकिंग में तीसरे स्थान पर थी और सिंगल्स मैचों में उसने तब तक खेले अपने 66 मैचों में से 56 जीत रखे थे। एक लिहाज से उसकी यह जीत पहले से तय मानी जा रही थी।
लेकिन इस साधारण-सी, तयशुदा जीत को ‘द हिन्दू’ और ‘डेक्कन क्रॉनिकल’ जैसे अखबारों ने अपनी सुर्खियों में जगह दी और उसके इंटरव्यू किये क्योंकि उसके भीतर कुछ खास बात थी। ब्रूना अलेक्जांद्रे नाम की इस लडक़ी की एक बाँह का कोहनी से ऊपर का हिस्सा तब काटना पड़ा था जब वह कुल तीन माह की थी। डॉक्टरों की लापरवाही हुई एक गलती ने उसे जीवन भर के लिए विकलांग बना दिया था।
उससे दो साल बड़ा उसका भाई टेबल टेनिस खेलने जाता था। उसकी देखा देखी सात साल की होने पर ब्रूना ने पहली बार रैकेट हाथ में लिया। टेबल टेनिस में सर्विस करने के लिए गेंद को एक हाथ से उछाला जाना होता है जबकि दूसरे से रैकेट थामा जाता है। ब्रूना ने इसका तोड़ यह निकाला कि कटी हुई कोहनी और बगल के बीच रैकेट फंसा कर सर्विस करना सीख लिया। तरीका कारगर तो हुआ लेकिन ऐसा करने से रैकेट का हैंडल पसीने की वजह से गीला हो जाता था और खेलने में मुश्किल होती थी।
जल्द ही उसे इस मुश्किल का समाधान खोजना था। कुछ बरसों बाद एक कोच के कहने पर उसने एक ही हाथ से गेंद उछालने और सर्विस करने का अभ्यास करना शुरू किया और दो माह में ऐसी महारत हासिल कर दिखाई कि पूरे देश में अपने आयु-वर्ग में उसकी सर्विस सबसे कमाल की हो गई।
एक बांह वाली इस बच्ची को साधारण खिलाडिय़ों के साथ भी खलने का मौका मिलता था, जैसा कि हैदराबाद में हुआ और शारीरिक रूप से अक्षम खिलाडिय़ों के साथ भी। हैदराबाद में उसकी टीम कुछ विशेष नहीं कर सकी अलबत्ता ब्रूना ने दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। बहरहाल यूं हुआ कि शारीरिक कमी के चलते उसे अगले कुछ सालों तक दुनिया भर की ऐसी स्पर्धाओं में हिस्सा लेने तक सीमित कर दिया गया जिसमें केवल विकलांग खिलाड़ी हिस्सेदारी करते हैं।
इस तरह के खेलों का सबसे बड़ा आयोजन पैरालिम्पिक खेल होते हैं। ब्रूना ने 2016 और 2020 के पैरालिम्पिक्स में हिस्सा लिया और पदक भी जीते लेकिन उसकी अदम्य इच्छाशक्ति यहीं तक थमने वाली नहीं थी। बचपन से ही ब्रूना ने खुद से छ: साल बड़ी पोलैंड की जांबाज महिला नतालिया पार्तीका को अपना रोल मॉडल माना था जिसने जन्मजात एक बांह के साथ पैदा होने के बावजूद तीन ओलिम्पिक खेलों में हिस्सा लिया था।
ब्रूना ने अपने खेल पर दूनी मेहनत शुरू कर दी। नतीजतन इस बार के पेरिस ओलंपिक में ब्राजील का प्रतिनिधित्व करने से उसे कोई नहीं थाम सका। उसकी कटी हुई बांह भी नहीं।
कभी उसे खेलते हुए देखिएगा। जिन्दगी से बहुत सारी परेशानियों की शिकायत करना भूल जाएंगे।
-अकबर हुसैन
आग से जले इस भवन को देख कर यह समझना मुश्किल है कि यह ढाका के मीरपुर पुलिस स्टेशन की इमारत है। इसकी दीवारें आग से जल कर काली पड़ चुकी हैं।
थाने के सामने पुलिस की कुछ वर्दियों, कुछ जोड़ी जूतों और कुछ बुलेटप्रूफ जैकेटों के अलावा दूसरे सामानों का ढेर लगा है। यह तमाम चीज़ें आधी से ज़्यादा जल चुकी हैं।
अब इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
गुरुवार को सुबह कऱीब साढ़े 9 बजे ढाका के मीरपुर मॉडल थाने की तस्वीर ऐसी ही थी। इस थाने में अंसार (अर्धसैनिक बल) के आठ कर्मचारी ड्यूटी कर रहे हैं।
मीरपुर थाने की यह जली हुई इमारत इस बात का गवाह है कि आम लोगों में पुलिस के प्रति किस हद तक नाराजग़ी थी।
एक दफ्तर में काम करने वाले कमाल हुसैन थाने के सामने खड़े होकर हालात का मुआयना कर रहे थे।
उन्होंने बीबीसी बांग्ला से कहा, ‘मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि पुलिस की ऐसी हालत हो जाएगी।’
सिर्फ मीरपुर ही नहीं, बांग्लादेश के किसी भी थाने में बीते सोमवार दोपहर से ही कोई पुलिस वाला नहीं है।
इससे पहले तमाम थानों से एक साथ सभी पुलिसवालों के फऱार होने की घटना बांग्लादेश में कभी नहीं हुई थी।
मौजूदा और पूर्व अधिकारियों का कहना है कि दुनिया के दूसरे देशों में भी ऐसी घटना बहुत विरले ही होती है। उनका कहना है कि कई बार युद्धकालीन हालात में ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखऱि पुलिस के सामने ऐसी परिस्थिति क्यों पैदा हुई?
‘मनमाने तरीके से फायरिंग की’
ढाका के भाटारा थाने की स्थिति भी मीरपुर थाने जैसी ही है। आगजऩी के बाद वहां चारों ओर अब थाने का मलबा ही बिखरा पड़ा है।
अंसार के कई सदस्य थाने में ड्यूटी कर रहे हैं। थाने के भीतर छात्र-छात्राओं के एक समूह से भी मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि वो लोग थाने से बाहर बिखरे मलबे की सफाई करने यहां आए हैं।
पुलिस का जिक्र करते ही उनके सुरों में नाराजग़ी उभर आती है। लेकिन पुलिस को लेकर आम लोगों में जो गुस्सा है उसे दूर कर हालात सामान्य कैसे बनाया जा सकता है।
एक निजी विश्वविद्यालय के छात्र अब्दुर रज़्ज़ाक़ बीबीसी बांग्ला से कहते हैं, ‘आम लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए अपने बर्ताव में नरमी लाकर ही हालात को सामान्य किया जा सकता है।’
ढाका के न्यू मॉडल कॉलेज के छात्र शाहजलाल पटवारी कहते हैं, ‘मुझे पुलिस वालों के साथ बात करने में डर लगता था। पुलिस का रवैया बेहद खऱाब था। इसके अलावा पुलिस वालों ने छात्रों और आम लोगों पर बर्बर हमले किए हैं। उन लोगों ने मनमाने तरीके से गोलियां चलाई हैं।’
पुलिस के खिलाफ लोगों के मन में उपजे इस गुस्से से वरिष्ठ अधिकारी भी वाकिफ हैं।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बीबीसी बांग्ला से कहा कि ‘साल 2012 से पुलिस ने जब बड़े पैमाने पर बल प्रयोग शुरू किया उसी समय से लोगों के मन में उसके प्रति भारी अविश्वास पैदा हो गया।’
उनका कहना था कि पुलिस वालों से ड्यूटी पर लौटने को कहा गया है।
पुलिस वाले जितनी जल्दी काम पर लौटकर कानून व्यवस्था को सामान्य बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे, उतनी जल्दी ही उन पर भरोसा लौटेगा।
उस अधिकारी ने माना कि पुलिस के रवैये के कारण आम लोगों में उसके प्रति भारी नाराजग़ी पनपी है। अब एक साथ यह नाराजगी फूट पड़ी है।
इस बात में कोई शक नहीं है कि पुलिस के लिए मौजूदा हालात बेहद जटिल हैं।
तमाम थानों से बड़े पैमाने पर हथियार और गोला-बारूद लूटे लिए गए हैं। कई पुलिस वालों के पास वर्दी नहीं है। कई थानों में बैठने लायक हालत नहीं है।
गुरुवार को ढाका के कई स्थानों का दौरा करने पर देखने में आया कि सिटी कॉर्पोरेशन के कुछ कर्मचारी वहां मलबे को हटाने का काम कर रहे हैं।
ढाका के पल्लवी थाने के सामने कुछ स्थानीय लोग गटर के सामने खड़े थे। उनमें ढाका उत्तर सिटी कॉर्पोरेशन के 2 नंबर वार्ड के काउंसलर सज्जाद हुसैन भी थे।
सज्जाद ने बीबीसी बांग्ला से कहा, ‘पुलिस वाले थाने तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इसलिए स्थानीय लोगों से सहयोग की अपील की जा रही है। अब कानून और व्यवस्था की स्थिति के लिए पुलिस की ज़रूरत तो पड़ेगी। पुलिस वाले हमसे संपर्क कर रहे हैं।’
पुलिस की मौजूदगी दिखनी चाहिए
फिलहाल पुलिस वाले सादी वर्दी में विभिन्न थाने में जाकर नुकसान का आकलन कर रहे हैं।
ऐसे ही एक थाने में काम कर रहे सब-इंस्पेक्टर अब्दुल लतीफ ने बीबीसी बांग्ला से कहा कि वे लोग मीरपुर इलाके के तमाम थानों में जाकर नुक़सान का आकलन कर रहे हैं।
वो कहते हैं, ‘उन थानों में पुलिस का कोई भी वाहन साबुत नहीं बचा है। उन सबको जलाकर राख कर दिया गया है।’
विश्लेषकों का कहना है कि हालात चाहे कितने भी प्रतिकूल क्यों न हों, पुलिस वालों को फील्ड में जाना ही होगा। उनको कहीं से इसकी शुरुआत करनी होगी।
पूर्व पुलिस प्रमुख नुरुल हुदा ने बीबीसी बांग्ला से कहा, ‘पुलिस की मौजूदगी दिखानी होगी। वह लोग विभिन्न संस्थानों में जाकर उनकी सुरक्षा का उपाय कर सकते हैं। इसके अलावा कानून व्यवस्था की स्थिति को सुधारने में अहम भूमिका निभानी होगी। उसके बाद ही पुलिस पर आम लोगों का भरोसा लौटेगा।’
पुलिस को लेकर लोगों के मन में जमे ग़ुस्से को दूर करने के लिए पुलिस सुधार जरूरी है। लेकिन नूरुल हुदा मानते हैं कि ऐसा कोई सुधार तेज़ी से करना संभव नहीं होगा।
हुदा मानते हैं कि पुलिस की मौजूदा हालत के लिए राजनीतिक नेतृत्व ही जि़म्मेदार है। इसकी वजह यह है कि लंबे अरसे से पुलिस का राजनीतिक इस्तेमाल किया गया है।
दूसरी ओर, पुलिस के शीर्ष अधिकारियों ने संकेत दिया है कि पुलिस बल में बड़े पैमाने पर बदलाव तय है।
एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने बीबीसी बांग्ला से कहा, ‘तमाम थानों के ओसी और हर जिले के पुलिस अधीक्षक के बारे में विचार-विमर्श किया जा रहा है।’
उनका कहना था कि सबसे पहले उन इलाकों में बदलाव किया जाएगा जहां छात्रों के आंदोलन के दौरान पुलिस ने सबसे ज़्यादा बल प्रयोग किया था।
उनका कहना है कि जिन पुलिस अफसरों ने पुलिस वालों को अतिरिक्त बल प्रयोग का निर्देश दिया था और जिनके खिलाफअतीत में मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप हैं।
उनके अनुसार, ऐसे अफसरों खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं करने या उनको सजा नहीं देने तक पुलिस के प्रति आम लोगों में भरोसा बहाल करना मुश्किल होगा। लेकिन एक साथ यह सब करना संभव नहीं है।
पुलिस वालों की मांगें
देश में थाने के ओसी और सब-इंस्पेक्टरों को लेकर गठित पुलिस एसोसिएशन का कहना है कि पुलिस के प्रति आम लोगों का भरोसा बहाल करने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे।
बुधवार को ढाका में आयोजित एसोसिएशन की एक बैठक में कुछ मांगें भी पेश की गईं।
पुलिस सब-इंस्पेक्टर जाहिदुल इस्लाम ने उस बैठक में कहा कि ‘पुलिस के राजनीतिक इस्तेमाल और वरिष्ठ अधिकारियों के मनमाने आदेश के कारण ही पुलिस वालों के सामने यह हालत पैदा हुई है।’
‘हम ऐसा नेतृत्व चाहते हैं जो आम लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए काम करे और हमें वैसा ही निर्देश दे। वह किसी राजनीतिक पार्टी की दलाली कर हमें जनता के ख़िलाफ़ न खड़ा करे।’
इस्लाम का कहना था कि छात्र और आम लोग जिस तरह के पुलिस अधिकारी चाहते हैं, विभाग में वैसे अफसर मौजूद हैं। लेकिन वह लोग सामने नहीं आ सकते।
उनके अनुसार, ‘ऐसे अफ़सरों की शिनाख्त कर उनको जिम्मेदारी सौंपनी होगी ताकि वो सही तरीके से विभाग का संचालन कर सकें।’
पुलिस एसोसिएशन की मांग
पुलिस एसोसिएशन की बैठक में जो मांगें रखी गईं वो इस प्रकार हैं-
पुलिस को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहना होगा।
तमाम पुलिस वालों और उनके परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। ज़ाहिदुल इस्लाम का कहना था, ‘जिन सत्तालोलुप और दलाल पुलिस अफसरों के कारण पुलिस वालों, छात्रों और आम लोगों की मौत हुई हो, उनको तत्काल गिरफ्तार कर उनके खिलाफ बांग्लादेश के कानून के तहत मुकदमा चलाना चाहिए।’
ऐसे अधिकारियों की तमाम अवैध संपत्ति ज़ब्त कर उसका इस्तेमाल बांग्लादेश पुलिस के कल्याण के मद में करना चाहिए।
हिंसा में मृत पुलिस वालों के परिजनों और घायलों को मुआवज़ा देना चाहिए।
जिन पुलिस वालों ने जान-माल की रक्षा के लिए हथियारों का इस्तेमाल किया है, उनके खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
बांग्लादेश के श्रम कानून के मुताबिक पुलिस वालों के लिए आठ घंटे की ड्यूटी का प्रावधान सुनिश्चित करना चाहिए। काम के अतिरिक्त घंटे के लिए ओवरटाइम की व्यवस्था करनी चाहिए।
पुलिस की वर्दी के रंग को बदल कर कॉन्स्टेबल से लेकर आईजी तक सबके लिए समान ड्रेस कोड तय करना चाहिए।
जाहिदुल जब बैठक में इन मांगों को पढ़ रहे थे तो वहां मौजूद तमाम पुलिस वाले तालियां बजा कर इसका समर्थन कर रहे थे।
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूजरूम की ओर से प्रकाशित)
- दिलीप कुमार पाठक
नीरज चोपड़ा एक ऐसा नाम जो न जाने कितनी आँखों में ख्वाब देखने की कसक पैदा कर देता है. नीरज एक ऐसा नाम है जो भारत के गांवों से लेकर ग्लोबल स्तर पर जाना जाता है. एक ऐसा एथलीट जिसके जुनून की कहानियां सैकड़ों सालों तक आने वाली पीढ़ियों को सुनाई जाएगीं. 07 अगस्त 2020 को उगते सूरज के मुल्क जापान में जब दिन ढल रहा था तब एक हिन्दुस्तानी लड़का अपने जुनून, अपनी मेहनत के दम पर कभी न भुलाया जाने वाला अध्याय लिख रहा था. उस लड़के ने 87.58 मीटर की दूरी तय की.. इसी दूरी ने भारत एवं गोल्ड मेडल के बीच की खाई पाट दी. 87.58 मीटर की दूरी ने भारत के कई साल पुराने इंतज़ार को खत्म कर दिया था. हरियाणा के पानीपत में एक किसान के घर पैदा होने वाले नीरज बचपन में बहुत मोटे थे. बचपन में 80 किलोग्राम का बच्चा जब कुर्ता - पजामा पहन कर निकलता तो लोग उसके शारीरिक कद को देखकर सरपंच कहकर पुकारते थे. चाचा के कहने पर नीरज पानीपत के स्टेडियम जाने लगे. अपनी शारीरिक स्थिति से निपटने के बाद नीरज कई तरह के खेलों में भाग लेने लगे. स्थानीय कोच के कहने पर नीरज ने भाला फेंकना शुरू किया. पहले ही दिन से नीरज ने भाला फेंकने में अपना भविष्य बनाने की ठान लिया. खुद ही तैयारी करते हुए नीरज के लिए तैयारी करना ख़तरनाक था, अतः अपनी मेहनत से नीरज चोपड़ा ने सूबेदार के रूप में इंडियन आर्मी जॉइन कर लिया, भारतीय सेना ने नीरज को उनके इस ख़ास मुकाम पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. सेना से जुड़ने के बाद नीरज ने उच्च स्तरीय ट्रेनिंग शुरू की, और खुद को अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा के लिए तैयार किया. फिर अचानक दोस्तों के साथ बास्केटबाल खेलते हुए नीरज की कलाई टूट गई, उनके परिजनों को लगा नीरज का एथलेटिक कॅरियर यहीं तक था. हालाँकि सबको गलत साबित करते हुए खुद को तैयार करके नीरज ने ज़बरदस्त वापसी करते हुए 2016- 2018 तक वर्ल्ड जूनियर चैम्पियनशिप, एशियन चैम्पियनशिप, कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर, पूरे विश्व को अपनी प्रतिभा दिखाई.
कई बार मुश्किल वक़्त से पार पाने के लिए खिलाड़ी को अपनी इच्छाशक्ति से सबकुछ जीतना पड़ता है, और वो वक़्त हर किसी की ज़िन्दगी में आता है. टोक्यो ऑलम्पिक में क्वालीफाई करने के बाद नीरज की कोहनी में चोट लग गई, चोट कितनी गम्भीर थी, इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है. चोट लगने के बाद नीरज को वापसी करने के लिए 16 महीने लग गए, कामयाब होने के बाद उस वक्त को याद करते हुए नीरज ने कहा - "बुरा वक़्त हर खिलाड़ी की ज़िन्दगी में आता है लेकिन मैंने उसे दूसरी तरह से लिया , मैंने सोचा जैसे शेर छलांग लगाने के लिए दो कदम पीछे जाता है, मैंने अपनी ज़िन्दगी में लंबी छलांग लगाने के लिए दो कदम पीछे किए". इसी सोच के चलते नीरज अपने इस मुकाम तक पहुंच सके. मार्च 2019 में 88.07 मीटर भाला फेंककर अपना रिकॉर्ड सुधारा और गोल्ड मेडल के लिए खुद को पँख दिए.
यूं तो नीरज को पोडियम तक पहुंचाने में कई कोचों की भूमिका रही, लेकिन एक ऐसे कोच भी रहे हैं जिनकी भूमिका अविस्मरणीय है. 'उवे हॉन' जैवलिन थ्रो की दुनिया के बेताज बादशाह जिनका नाम उनकी दुनिया में आदर सहित लिया जाता है. 'उवे हॉन' के रिकॉर्ड उनकी शख्सियत की कहानी कहते हैं. 1983 ऑलम्पिक जैवलिन थ्रो में 104.6 मीटर की दूरी तक जैवलिन थ्रो किया था. इसी के बाद अंतर्राष्ट्रीय ऑलम्पिक संघ ने जैवलिन थ्रो के डिजायन में परिवर्तन किया, क्योंकि इस तरह के जैवलिन थ्रो से दर्शकों को भाला लगने की आशंका हुई थी. जिसके बाद भाले के आकार में परिवर्तन किया गया. 'उवे हॉन' का रिकॉर्ड कभी न टूटने वाला रिकॉर्ड बनकर रह गया, बाद में इस रिकॉर्ड को हटा लिया गया. हालांकि उनके इस रिकॉर्ड के टूटने की गुंजाइश नहीं थी. 'उवे हॉन' जैसे महानतम भाला फेंकने वाले कोच के अनुभव का फायदा मिलना ही था, और वो टोक्यो ऑलम्पिक में दिख भी गया...
टोक्यो ऑलम्पिक में जब नीरज चोपड़ा भाला फेंकने के लिए दौड़े तो करोड़ों हाथ दुआएं मांगते हुए उठ गए. उस ऑलंपिक में भारत ने कुछ मेडल ज़रूर जीते थे लेकिन किसी ने भी गोल्ड मेडल नहीं जीता था. नीरज ने फ़ाइनल में पहले प्रयास में 87.3 मीटर के थ्रो के बाद दहाड़ लगाकर गोल्ड मेडल पर दावा ठोका. दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर के थ्रो में नीरज ने अपना सबकुछ झोक दिया, और आसमान की ओर देखकर ईश्वर को प्रणाम किया. बचे 11 खिलाडियों ने खूब कोशिश की लेकिन नीरज के करीब भी नहीं पहुंच सके... नीरज का सीधा निशाना गोल्ड पर लगा. सालो बाद भारत ने केवल गोल्ड ही नहीं जीता, बल्कि पूरे भारत ने एक नया सवेरा देखा... जो हर हिन्दुस्तानी की आँखों में नीरज चोपड़ा नाम से चमक रहा था.
नीरज की अन्य गेम्स में गोल्ड यात्रा निरंतर चलती रही. पेरिस ऑलंपिक में फ़ाइनल तक पहुँचने वाले नीरज से पूरे मुल्क को उम्मीद थी कि इकलौता कोई गोल्ड मेडल ला सकता है तो कोई और नहीं बल्कि नीरज चोपड़ा हैं. उम्मीद के मुताबिक नीरज फ़ाइनल तक पहुंचे लेकिन दूसरे नंबर पर पहुंच कर सिल्वर मेडल लाने में कामयाब हुए... पाकिस्तानी गोल्ड मेडल विजेता अरशद नीरज को अपना हीरो मानते हैं, उन्होंने कई बार कहा है कि मैं नीरज से मार्गदर्शन लेता हूं. इसे ही कहते हैं जीते जी संतृप्त अवस्था प्राप्त कर लेना.. एक बार बुडापेस्ट में आयोजित विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करने वाले नीरज पोडियम में खड़े थे राष्ट्रगान बज रहा था. पॉज देते नीरज ने देखा पाकिस्तान का पदक विजेता एथलीट संकोच में बिना अपने बिना झंडे के खड़ा है. तब ही नीरज ने पाकिस्तान के एथलीट अरशद को अपने पास बुलाया, और तिरंगे के नीचे खड़ा कर लिया. दोनों ने तिरंगे के साथ तस्वीरे खिचाई. यूं लगा जैसे अरशद इंतज़ार में ही खड़े थे... उस दिन नीरज ने अरशद सहित पूरी दुनिया का दिल जीत लिया था.
गोल्ड मेडल जीतने के बाद अरशद के पिता ने कहा है - "जब भी खेल प्रतियोगिताओं में अरशद भाग लेने के बाद वापस गांव आते हैं, तो वे पूरे गाँव के लोगों को नीरज की बातेँ ही बताते रहते हैं, लोग नीरज की बातेँ बड़ी चाव से सुनते हैं.. लोग भारतीय एथलीट नीरज की बहुत इज़्ज़त भी करते हैं.
अरशद ने फ़ाइनल से पहले भी कहा था - "अगर मैं जीत भी जाऊँगा तो मैं पोडियम में नीरज के बगल में खड़ा होना चाहूँगा, नीरज जैसे महान एथलीट के बगल में खड़ा होना अपने आप में गर्व की बात है". इससे ही समझा जा सकता है कि नीरज कितने बड़े एथलीट हैं.
जबकि नीरज की माँ ने सिल्वर मेडल जीतने के बाद अरशद को शुभकामनाएं देते हुए कहा - " सिल्वर मेडल भी गोल्ड के बराबर ही है, इतने बड़े मंच पर खड़ा होना भी अपने आप में बड़ी बात है. गोल्ड जीतने वाले अरशद को शुभकामनाएं वो भी हमारा ही बच्चा है. कोई भी माँ ऐसी ही होती है. नीरज की माँ के उच्च विचार नीरज की शख्सियत में भी देखने को मिलते हैं.
आज हमारे मुल्क में नीरज चोपड़ा जैसे एथलीट दुर्लभ हैं. नीरज चोपड़ा हमारे हीरो हैं, व्यक्तिगत दो ऑलंपिक मेडल, उसमे एक गोल्ड... ऐसा करने वाले पहले एथलीट हैं.. ओवर ऑल गोल्ड मेडल देखे जाएं तो नीरज ने आठ गोल्ड मेडल समेत दर्जनों पदक जीते हैं. अव्वल रात 10 बजे सो जाता हूँ, लेकिन हीरो को देखने के लिए जगता रहा. नीरज का आत्मविश्वास देखने लायक था, सारे के सारे एथलीट पर नीरज का दबाव दिख रहा था. नीरज ने बड़ी दिलेरी के साथ फ़ाइनल में थ्रो किया. इसलिए ही छह में से चार प्रयास फाउल रहे.. यह बताता है कि नीरज ने कितना रिस्क लिया. ख़ैर नीरज का सिल्वर भी गोल्ड से कम नहीं है. हमारे हीरो नीरज को सलाम...
भारत सरकार उन्हें बड़े सम्मान से सम्मानित करे.. ऐसे नायक भारत में बहुत कम पैदा होते हैं. नीरज का सर्वोच्च सम्मान होने से देश के कोने-कोने के बच्चे ऑलंपिक में जाना चाहेंगे. नीरज को देखने के बाद हिन्दुस्तान में गोल्ड जीतने वाली पीढ़ियां तैयार होंगी.. वैसे भी नीरज की यात्रा किसी भी बच्चे को जानना चाहिए उनका व्यक्तिगत संघर्ष अपने आप में एक मिशाल है.
-डॉ. अनिल कुमार मिश्र
पेरिस ओलंपिक में चल रही विभिन्न प्रतियोगिताओं में हर रोज नई खबरें आ रही है। कुछ जो निराश करती हैं और कुछ ऐसी भी जो सुकूनदेह के साथ साथ अथक मेहनत, लगन और दोस्ती की मिसाल बन जाती हैं। कुश्ती के अखाड़े से विनेश फोगाट की दुखदायी विदाई ने जहाँ मायूस किया तो नीरज चोपड़ा के रजत पदक ने देश भर में खुशी की लहर पैदा की है।
हालांकि, भाला फेंक/जेवलिन थ्रो प्रतियोगिता में पाकिस्तान के एथलीट अरशद नदीम ने इस बार विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिया। 92.97 मीटर भला फेंकने के बाद उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया। वहीं नीरज चोपड़ा भाला फेंक में 89.45 मीटर की दूरी तय करने के बाद सिल्वर के दावेदार बने। नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक लाये थे। इस बार वे स्वर्ण से भले ही चूक गये लेकिन उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी अरशद नदीम की मेहनत और जज़्बे के लिए दिल खोलकर सराहना की।
नीरज चोपड़ा के प्रदर्शन के बाद उनकी माँ का एक बयान दुनिया भर की मीडिया में सुर्खियाँ बटोर रहा है। नीरज की माँ ने कहा कि जिसने स्वर्ण पदक जीता है वह भी अपना ही लडक़ा है। उन्होंने यह बयान पाकिस्तान के अरशद नदीम के स्वर्ण पदक जीतने पर दिया। नीरज चोपड़ा की माँ का यह बयान भारत के अधिकतर युद्धोन्मादी मीडिया घरानों को रास नहीं आएगा। न ही उन राजनेताओं को जो भारत और पाकिस्तान के बीच हमेशा दुश्मनी की संगीन तलवारें भांजते रहते हैं।
अधिकतर मीडिया घरानों के व्यवसायिक मोडल्स के लिए को यह बयान इसलिए भी असुविधाजनक है क्योंकि यह नकली राष्ट्रवाद के आख्यान और उसकी सीमाओं का एक प्रति-संसार रचता है। यह कोई छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि मौजूदा मुख्यधारा मीडिया के अधिकतर एंकर्स बंटवारे और नफरत की जिस राजनीति को बढ़-चढक़र प्रोत्साहित करते हैं, उनके लिए ऐसे किसी बयान को स्वीकार करना खासा चुनौतीपूर्ण है। खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के 24*7 चलने वाले खबरिया चैनल जो रात के 8-10 के बीच प्राइम समय में लगातार ऐसे विचारों को प्रश्रय देते हैं जिससे विविध धर्मों और समाजों के बीच आपसी विभाजन और गलतफहमी और ज़्यादा बढ़ती है। मतों का ध्रुवीकरण होता है। आपसी बैर-भाव मज़बूत होता है। नीरज चोपड़ा की माँ का बयान अधिकतर मीडिया मालिकों के मुनाफे के गणित के हिसाब से एक घाटे का सौदा है, क्यूंकि इससे सनसनी पैदा नहीं होती, उत्तेजना पैदा नहीं होती है।
बावजूद इसके, नीरज चोपड़ा की माँ का बयान उन लोगों को जरूर राहत दे रहा है जो भारत और पाकिस्तान के साझा इतिहास, साझी संस्कृति और साझी विरासत को रेखांकित करते हुए दोनों देशों के बीच अमन-चैन और दोस्ती के प्रगाढ़ रिश्तों की हिमायत करते हैं। ऐसे लोग सरहद के दोनों तरफ हैं। भले ही वो अपने-अपने मुल्क में अल्पसंख्यक हैं। ऐसे लोग सामान्यत: कोई मजबूत या निर्णायक स्वर नहीं हैं। वे हाशिये के लोग कहे जा सकते हैं। ये लोग दुश्मनी की भावना के बजाय सह-अस्तित्व और आपसी समझदारी के साथ साथ साझेदारी की जरूरत पर भी बल देते हैं। ये चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच बेहतर संवाद हो। आपसी सलाहियत हो। समझदारी हो। साथ ही, संवाद के माध्यम से सभी द्विपक्षीय समस्याओं का समाधान निकाला जाए।
दक्षिण एशिया के एक साझे भविष्य के लिहाज़ से अरशद नदीम और नीरज चोपड़ा के बीच मैदान में एक दूसरे के प्रति जो परस्पर सद्भावना दिखी वो भी साझे इतिहास और विरासत के पहलू की तरफ़ एक अहम इशारा करती है। वरना, क्रिकेट जैसे खेल में आज से 20-25 साल पहले से लेकर अब तक जिस तरह की भाषा और विचार सरणी का प्रयोग होता था वह दोनों देशों के बीच आपसी कलह और दुश्मनाना रवैये को बढ़ाती और मजबूत ही करती थी।
पाकिस्तान के एथलीट अरशद नदीम और भारत के एथलीट नीरज चोपड़ा की पेरिस ओलंपिक में सफलताओं और उसके बाद नीरज की माँ के सद्भावनापूर्ण बयान के आलोक में चीजों को देखने पर यह बात साफ हो जाती है कि इसमें सरहद के दोनों पार बसे पंजाब के बीच जो ऐतिहासिक साझापन है, वह समूचे दक्षिण एशिया की एकता के लिये एक नई शुरुआत का बिंदु हो सकती है। बशर्ते कि बतौर राष्ट्र हम अपने इतिहास से सबक लेने की समझदारी और संवेदना रखते हों।
पंजाब की धरती हमेशा से मोहब्बत और भाईचारे के पैगाम के साथ रही। सरहद के दोनों तरफ के पंजाब की मिट्टी एक जैसी है। वहां का भूगोल, खानपान और संस्कृति में साझेपन की कई रवायतें हैं, जो आपसी मेलजोल की भावना को पुष्ट करती हैं। 1965 की जंग के पहले तक अमृतसर और लाहौर के बीच आवाजाही बहुत आसान थी। अमृतसर के प्राध्यापक लाहौर के विश्वविद्यालय या कॉलेज में परीक्षा लेने या कॉपी जांचने सुबह जाते थे और शाम को वापस आ जाते थे। पंजाब के अधिकतर लोगों के लिए बंटवारा कभी मनोवैज्ञानिक दूरी की वजह नहीं बन सका।
एक अन्य तथ्य यह है कि समाजशास्त्र और राजनीति शास्त्र के लगभग सभी चिंतक इस बात से एकमत होते हैं कि आधुनिक राष्ट्र-राज्य आमतौर पर एक काल्पनिक सामुदायिक विभाजन और उनके कठोर वर्गीकरण की उपज हैं। अगर कोई चीज शाश्वत तौर पर लोगों को आकर्षित करती है तो वह है आपसी सहयोग और परस्पर भाईचारे/बहनापे की भावना। इसी में समूची मनुष्य सभ्यता का भविष्य संरक्षित है। युद्ध, नफरत और कलह ये सब मु_ी भर लोगों के विशेषाधिकार और सतत मुनाफे की व्यवस्था को टिकाये रखने के औजार होते हैं।
यह मनुष्य सभ्यता की साझी विडंबना है कि आधुनिक खेलों के मैदान इन्हीं प्रतिस्पर्धी राष्ट्रवाद के अदृश्य सूत्रों के लिये जोर-आजमाइश की जगह बन गये हैं। अरशद नदीम और नीरज चोपड़ा जैसे एथलीट्स कई बार सामान्य मानवीय गरिमा के व्यवहार से काल्पनिक डर की बुनियाद पर टिकी नफरत और युद्धोन्माद की समूची परियोजना की हकीकत उघाड़ कर रख देते हैं।
नीरज चोपड़ा की माँ के विचार कि जिसने स्वर्ण हासिल किया है वो भी अपना ही लडक़ा है, भारत और पाकिस्तान के नागरिकों के बीच परस्पर आवाजाही, दोस्ती और सद्भावना की अनिवार्यता पर जोर देते हैं। नीरज चोपड़ा की माँ जैसे लोगों की पवित्र और निश्छल आवाज क्या भारत और पाकिस्तान के सियासतदानों और राष्ट्र के कर्णधारों की चेतना जगाने के लिए पर्याप्त होगी? या दोनों देशों के राजनेता ऐसी स्वस्थचित्त आवाजों को अनसुना करने के लिए अभिशप्त हैं?
(लेखक हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय, जयपुर में सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने वर्धा के महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से भारत-पाकिस्तान रिश्तों में मीडिया की भूमिका के बारे में पीएचडी की है। ये लेखक के ये अपने विचार हैं।)
पेरिस ओलंपिक के जैवलिन थ्रो मुक़ाबले में पाकिस्तान के अरशद नदीम ने गोल्ड और भारत के नीरज चोपड़ा ने सिल्वर मेडल जीता है।
इसी के साथ अरशद नदीम ने नया ओलंपिक रिकॉर्ड भी बना लिया है। अरशद ने 92.97 मीटर का थ्रो फेंका। जबकि नीरज चोपड़ा का बेस्ट थ्रो 89.45 मीटर रहा। यह ओलंपिक खेलों में नीरज चोपड़ा का दूसरा मेडल है। इससे पहले उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था।
मेडल जीतने के बाद नीरज चोपड़ा ने कहा, ‘किसी दिन किसी खिलाड़ी का दिन होता है। आज अरशद का दिन था। खिलाड़ी का शरीर उस दिन अलग ही होता है। हर चीज परफेक्ट होती है जैसे आज अरशद की थी। टोक्यो, बुडापेस्ट और एशियन गेम्स में अपना दिन था।’
नीरज चोपड़ा की मां सरोज देवी ने अरशद नदीम को लेकर कहा, ‘हम बहुत खुश हैं। हमारे लिए तो सिल्वर भी गोल्ड के ही बराबर है। गोल्ड जीतने वाला भी हमारा ही लडक़ा है। मेहनत करता है।’ सरोज देवी के इस बयान की चर्चा पाकिस्तान में हो रही है। सोशल मीडिया पर कई लोग इस अपनत्व की तारीफ कर रहे हैं।
पूर्व क्रिकेटर शोएब अख़्तर ने सोशल मीडिया पर लिखा-‘गोल्ड जिसका है, वो भी हमारा ही लडक़ा है। ये बात सिर्फ एक मां ही कह सकती है। कमाल है।’
पाकिस्तानी पत्रकार एहतिशाम उल हक ने नीरज चोपड़ा की मां का वीडियो शेयर कर कैप्शन में लिखा कि कैसे उन्होंने अरशद की जीत के लिए खुशी जाहिर की।
एहतिशाम ने लिखा- ‘इस ख़ूबसूरत मैसेज के लिए धन्यवाद मां।’
अब्दुल्लाह जफर एक्स पर लिखते हैं, ‘कोई शक नहीं, वो एक चैंपियन की मां हैं।’
वसीम ने एक्स पर लिखा, ‘नीरज की मां, एक बहादुर महिला।’
पाकिस्तान का मीडिया क्या बोला
पाकिस्तान के जियो टीवी की वेबसाइट पर टॉप तीन खबरें अरशद नदीम पर हैं।
पहली खबर की हेडिंग है- ‘पाकिस्तान के जेवलिन थ्रो खिलाड़ी अरशद नदीम ने पेरिस ओलंपिक 2024 में गोल्ड मेडल जीता, 40 साल का इंतज़ार खत्म हुआ।’
इस ख़बर में नीरज चोपड़ा को लेकर लिखा है कि लगातार दूसरा ओलंपिक गोल्ड मेडल हासिल करने की उम्मीद लिए भारत के नीरज चोपड़ा ने 89.45 का थ्रो किया और सिल्वर मेडल जीता। दूसरी ख़बर की हेडिंग है-‘देश का गौरव: पाकिस्तान ने अरशद नदीम की जमकर तारीफ की।’
जियो टीवी की इस ख़बर में अरशद की मां के हवाले से लिखा है- ‘मैंने अपने बेटे की सफलता के लिए बहुत दुआएं की थीं। पूरे देश ने भी मेरे बेटे की सफलता के लिए दुआएं कीं।’
पाकिस्तानी वेबसाइट डॉन के होम पेज को ऐसे डिजाइन किया गया है कि उसे आप जैसे ही खोलते हैं तो रंग बिरंगे रिबन दिखते हैं। ये वैसे ही रिबन हैं जिन्हें किसी खुशी के मौके पर प्रदर्शित किया जाता है।
पाकिस्तान का इंतज़ार ख़त्म किया
डॉन की ख़बर की हेडिंग है- ‘जैवलिन स्टार अरशद नदीम ने ओलंपिक मेडल के लिए पाकिस्तान का 40 साल का इंतजार खत्म किया।’
इस ख़बर में नीरज और अरशद को लेकर लिखा है, ‘आज रात फाइनल में पाकिस्तान-भारत की प्रतिद्वंद्विता दिखी, जिसे नदीम और चोपड़ा ने वर्षों से जीवित रखा है। बीते साल ये जोड़ी 1-2 पर थी, जब वल्र्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में चोपड़ा ने गोल्ड और नदीम ने सिल्वर जीता था।’
पन्ने पर दिख रहीं लगभग सभी टॉप खबरें अरशद नदीम को लेकर हैं। डॉन ने एक वीडियो भी शेयर किया जिसमें पाकिस्तानी लोग ढोल पर नाचते दिख रहे हैं।
पाकिस्तानी वेबसाइट द एक्सप्रेस ट्रिब्यून पर भी इस जीत के चर्चे हैं।
ख़बर का शीर्षक है- ‘अरशद नदीम को गोल्ड मिला, पाकिस्तान का 32 साल का सूखा समाप्त हुआ।’ यह पाकिस्तान को 40 साल में मिला पहला व्यक्तिगत गोल्ड मेडल और 32 साल बाद ओलंपिक में मिला पहला मेडल है।
पाकिस्तान 40 साल से कोई गोल्ड मेडल नहीं जीता। वहीं 1992 में बार्सिलोना ओलंपिक में पाकिस्तान की हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था।
पाकिस्तान के नेता क्या बोले?
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने लिखा, ‘शाबाश अरशद। इतिहास रच दिया। पाकिस्तान के पहले पुरुष जैवलिन चैंपियन अरशद नदीम पेरिस ओलंपिक 2024 से गोल्ड मेडल घर ला रहे हैं! आपने पूरे देश को गर्व महसूस कराया है।’
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने लिखा, ‘पाकिस्तान के लिए गोल्ड जीतने पर अरशद नदीम को बधाई। ऐसा पहली बार है जब किसी पाकिस्तानी ने व्यक्तिगत रूप से एथलेटिक्स के लिए ओलंपिक में गोल्ड जीता हो।’
बिलावल भुट्टो जऱदारी ने एक्स पर लिखा, ‘92.97 मीटर से जेवलिन थ्रो में ओलंपिक रिकॉर्ड तोडऩे पर अरशद नदीम को बधाई। पाकिस्तान के लिए गोल्ड मेडल। हम सभी को आपने गर्व महसूस कराया है।’
पीएलएल-एन पार्टी के एक्स अकाउंट पर एक पोस्ट को रीट्वीट कर लिखा गया है- ‘दोनों ही बार पीएमएल-एन की सरकार थी।’
रीट्वीट पोस्ट में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और अरशद नदीम की तस्वीर हैं।
इमरान खान की कप्तानी में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम ने वल्र्डकप जीता था।
आम लोग क्या बोले
फखर जमान नाम के अकाउंट से पोस्ट किया गया, ‘ओलंपिक में गोल्ड जीतने के लिए अरशद नदीम को बधाई। पाकिस्तान आपकी उपलब्धि पर गर्व महसूस कर रहा है।’
पाकिस्तान क्रिकेट के आधिकारिक हैंडल से लिखा गया, ‘पेरिस में इतिहास रचा गया। अरशद नदीम ने 92.97 मीटर थ्रो के साथ 1984 के बाद पाकिस्तान को उसका पहला गोल्ड मेडल दिलाया।’
मलाला यूसुफज़ई एक्स पर लिखती हैं, ‘बधाई हो अरशद नदीम। आपने इतिहास रच दिया। आप पाकिस्तान के युवाओं को अपने सपनों पर भरोसा करने के लिए प्रेरित करने वाले चैंपियन रहेंगे। ’
फ्रांस में पाकिस्तानी दूतावास के एक्स अकाउंट पर पोस्ट किया गया, ‘कितना गौरवपूर्ण क्षण था। अरशद आपने हम सभी को गर्व महसूस कराया है। बधाई हो।’
कराची के पत्रकार फैजान लखानी एक्स पर पोस्ट करते हैं, ‘मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि अपने जीवन में ऐसा दिन देखूंगा। ये सपने जैसा है कि पाकिस्तान ने ओलंपिक में गोल्ड जीता है। वो भी रिकॉर्ड के साथ। अरशद नदीम को धन्यवाद। आपने युवा पीढ़ी को बता दिया है कि क्या संभव है। इतिहास रचने के लिए शुक्रिया अरशद नदीम।’
अरशद नदीम के बारे में अहम बातें
अरशद नदीम 2016 से अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, लेकिन साल 2019 तक वह सुर्खय़िों में नहीं आए थे।
साल 2016 में, भारत के गुवाहाटी में आयोजित हुए दक्षिण एशियाई खेलों में उन्होंने ब्रोंज मेडल जीता था। अगले साल बाकू में आयोजित हुए इस्लामिक खेलों में भी वह तीसरे स्थान पर रहे थे।
साल 2018 के एशियाई खेलों में उन्होंने ब्रोंज मेडल जीता था, लेकिन उसी साल गोल्ड कोस्ट में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में वो आठवें स्थान पर रहे थे।
अरशद नदीम के कैरियर का टर्निंग पॉइंट साल 2019 में नेपाल में आयोजित दक्षिण एशियाई खेलों में आया, जहां उन्होंने 86.29 मीटर की दूरी पर भाला फेंककर न केवल उन खेलों में एक नया रिकॉर्ड बनाया, ऐसा करके वो टोक्यो ओलंपिक के लिए भी क्वालिफाई करने में सफल हो गए थे।
पाकिस्तान के एथलेटिक्स इतिहास में यह पहली बार था कि किसी एथलीट ने ओलंपिक के लिए सीधे क्वालीफाई किया। इससे पहले हाल के सालों में पाकिस्तान के एथलीटस वाइल्ड कार्ड एंट्री के माध्यम से ही ओलंपिक में शामिल होते रहे हैं।
ओलंपिक से पहले, अरशद नदीम ने ईरान में एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 86.38 मीटर के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड बेहतर किया था।
टोक्यो ओलंपिक में, वह 84.62 मीटर से आगे नहीं जा सके और उन्हें पांचवें स्थान पर ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन वह यह संकेत दे चुके थे कि आने वाले मुकाबलों में वो अपने प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती देने की स्थिति में होंगे।
पेरिस ओलंपिक में अरशद नदीम ने अपने संकेत को गोल्ड जीतकर हकीकत में बदल दिया है। (bbc.com/hindi)
-संजय श्रमण
भक्त: ऋषिवर ये रक्षा बंधन का क्या महाम्त्य है? इसमें किसकी रक्षा की जा रही है और किसे बंधन में बांधा जा रहा है?
ऋषिवर: वत्स, रक्षा बंधन वस्तुत: नारीशक्ति के कोप से प्राचीन संस्कृति और धर्म की रक्षा का पर्व है, इसमें प्राचीन धर्म और संस्कृति की रक्षा हो रही है और नारी को बंधन में बांधा जा रहा है।
भक्त: यह स्पष्ट न हुआ ऋषिश्रेष्ठ, कुछ अधिक विस्तार से बताइए...
ऋषिवर: यह विषय भी बड़ा रहस्यपूर्ण है वत्स, समझने का प्रयास करो. संस्कृति और धर्म को सबसे बड़ा खतरा स्त्री और स्त्री की स्वतन्त्रता से होता है. जिन देशों और समाजों में स्त्री बंधन मुक्त हो गई वहां का धर्म और संस्कृति नष्ट हो जाती है.
फिर वहां धर्म का प्राचीन रथ उठाने वाले भक्तों की भीड़ पैदा ही नहीं होती. स्त्री के मन में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होने का विचार नहीं आना चाहिए अन्यथा वह अपने व्यक्तित्व और स्वतंत्रता की घोषणा करने लगती है. इसलिए उसे हर संभव आयाम में पुरुषों के अधीन रखा जाना आवश्यक है.
जिन पुरुषों से उसे भय है, उन्हीं पुरुषों से उसकी रक्षा का आश्वासन भी मिलते रहना जरूरी है वत्स !
भक्त: यह अंतिम बिंदु थोड़ा और स्पष्ट करें ऋषिवर।
ऋषिवर: ध्यान से सुनो वत्स, कोई बहन जिन पुरुषों से रक्षा मांगती है वे पुरुष अन्य स्त्रियों के लिए आतंक पैदा करते हैं. अपनी बहनों के अलावा अन्य स्त्रियों के प्रति उनके व्यवहार को उनकी स्वयं की बहन भी देखती अवश्य है लेकिन उस पर प्रश्न नहीं उठा पाती।
वह स्त्री ऐसे प्रश्न न उठा सके यही इन आयोजनों का लक्ष्य है। यही वास्तविक बंधन है इसी से धर्म की रक्षा होती है।
एक स्त्री दूसरी स्त्री पर हुए अत्याचार के प्रति मौन रहे, अपने स्वयं के भाइयों, पतियों पुत्रों द्वारा हो रहे स्वयं के और अन्य स्त्रियों के शोषण के प्रति मौन रहे, अपने सजातीय, सधर्मी पुरुषों द्वारा विजातीय और विधर्मी स्त्रियों के अपमान पर मौन रहे – इसके लिए आवश्यक है कि वह उन्ही पुरुषों से सुरक्षा का आश्वासन पाती रहे।
ऐसा आश्वासन बना रहना आवश्यक है ताकि उसे इस नाम मात्र के आश्वासन के भी निरस्त हो जाने का भय बना रहे।
यही भय प्राचीन धर्म के लिए रक्षा है और स्त्री के लिए बंधन है.
भक्त: अहो ऋषिवर, अद्भुत महात्म्य है इस पर्व का... यह महात्म्य सुनकर मैं धन्य हुआ।
-सीटू तिवारी
चार अगस्त को पटना के गांधी मैदान के पास बने बापू सभागार में हजारों युवा जनसुराज के युवा संवाद आयोजन में जुटे।
ये युवा थोड़ी-थोड़ी देर पर तालियां बजाते। मंच से आती चुटीली बातों पर हँसते और उत्साह दिखाते। मंच पर सालों तक देश की अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनावी कैंपेन करने वाले प्रशांत किशोर थे।
प्रशांत किशोर नीले कुर्ते में पेपर लीक पर राहुल गांधी के स्टैंड से लेकर ‘दसवीं फेल युवा नेतृत्व’ जैसी बातें कहकर तेजस्वी यादव पर इशारों में तंज कस रहे थे।
बिहार की राजधानी पटना में पीके यानी प्रशांत किशोर की इस तरह की बैठकें लगातार चल रही हैं। इन बैठकों की सोशल मीडिया पर चर्चा है।
यह एक तरह से उनकी जनसुराज पार्टी की ग्रैंड लॉन्चिंग की तैयारी है जो आगामी दो अक्टूबर को लॉन्च होगी।
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, ‘प्रशांत किशोर के इन कदमों ने एक तरह की राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। बिहार में 35 साल से जो कथित सामाजिक न्याय की सरकारें रही हैं वो विफल साबित हुई हैं। बिहार की राजनीति में तीन चार नाम ही प्रमुखता से लिए जाते हैं। प्रशांत किशोर खुद को नए विकल्प के तौर पर प्रोजेक्ट करने में आरंभिक तौर पर सफल दिख रहे हैं।’
चुनावी रणनीतिकार से पार्टी तक का सफर
चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर तकरीबन दो साल से अपनी पार्टी जनसुराज को बनाने में लगे हैं।
साल 2022 में दो अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन से उन्होंने जनसुराज नाम से पदयात्रा शुरू की थी। बिहार के अंदरूनी इलाकों में प्रशांत किशोर ने ये यात्राएं की हैं।
जनसुराज की वेबसाइट के मुताबिक़- प्रशांत की यात्रा के 665 दिन हो चुके हैं जिसमें उन्होंने 1319 पंचायत के 2697 गांव में संपर्क किया है।
प्रशांत किशोर की ये यात्राएं बहुत ही मामूली तैयारी के साथ होती थीं।
उनकी एक ऐसी ही यात्रा में मौजूद मुजफ्फरपुर के पत्रकार अभिषेक बताते हैं, ‘यहां जिले के गांव में छोटे छोटे पंडाल लगते थे। प्लास्टिक की कुर्सी-मेज का मामूली इंतजाम रहता था। प्रशांत किशोर अपनी मीटिंग में लोगों से कहते थे कि जाति और धर्म के नाम पर वोट दे दिया लेकिन अब पढ़ाई, रोजगार और स्वास्थ्य के नाम पर वोट दीजिए।’
वरिष्ठ पत्रकार अरुण श्रीवास्तव बीबीसी से कहते हैं, ‘प्रशांत किशोर की राजनीति को देखें तो वो धीरे-धीरे बिहार की पारंपरिक राजनीति के ढर्रे पर आते दिख रहे हैं। पहले वो जाति और धर्म के नाम पर वोट देने पर सवाल करते थे। लोकतंत्र की मजबूती और बिहार के विकास का नया ब्लूप्रिंट तैयार करना उनकी यात्रा का मकसद था लेकिन अब वो खुद ‘डीईएम’ पर जोर दे रहे हैं।’
दलित, अति पिछड़ा, मुस्लिम से लेकर महिला पर जोर
डीईएम यानी दलित, अति पिछड़ा, और मुस्लिम। बीती 28 जुलाई को पटना में जनसुराज की राज्य स्तरीय बैठक में ये तय हुआ है कि पार्टी का पहला अध्यक्ष दलित, दूसरा अति पिछड़ा और तीसरा मुस्लिम समुदाय से होगा। पिछड़ा और सवर्ण समुदाय से आने वाले पार्टी अध्यक्ष इन तीनों के बाद बनेंगे।
यानी प्रशांत किशोर का लक्ष्य डीईएम है। इस लक्ष्य की वजह बिहार की जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों में मिलती है।
जातिगत गणना में देखें तो बिहार में दलितों की आबादी 19.65 फीसदी, अतिपिछड़े 36।01 फीसदी और मुस्लिम 17.70 फीसदी है। इससे पहले प्रशांत किशोर घोषणा कर चुके हैं कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में कम से कम 40 महिलाओं को टिकट देगी।
वहीं आरजेडी के पार्टी प्रवक्ता चितरंजन गगन कहते हैं, ‘पीके का तो दोहरा चरित्र सामने आ रहा है। वो पहले जात पात के खिलाफ बोल रहे थे लेकिन अब तो वो दलित अतिपिछड़ा कर रहे हैं। पीके किसके लिए काम कर रहे हैं ये बिहार की जनता समझ चुकी है। वो बीजेपी की बी टीम हैं।’
चितरंजन गगन के इस बयान से इतर बिहार के राजनीतिक दलों में पीके की चुनावी इंट्री से बेचैनी बड़ी है। खासतौर पर जेडीयू और आरजेडी में।
दरअसल, प्रशांत किशोर डीईएम के जरिए जिस वोट बैंक को टारगेट कर रहे है वो मुख्य तौर पर जेडीयू और आरजेडी का आधार वोट रहा है।
जेडीयू प्रवक्ता अंजुम आरा बीबीसी से कहती हैं, ‘ प्रशांत किशोर भीड़ को इकठ्ठा करके माहौल बना रहे हैं। बिहार की 85 फीसदी आबादी गांव की है जिसकी समस्याओं को नीतीश कुमार ने एड्रेस किया है। ये ठीक है कि वो लंबे समय तक जेडीयू के साथ चुनावी रणनीतिकार व अन्य पदों पर जुड़े रहे लेकिन जेडीयू का बिहार की जनता से सीधा संबंध विकास को लेकर है जो किसी चुनावी रणनीति का मोहताज नहीं है।’
एक करोड़ सदस्यों के साथ पार्टी लॉन्च करने का दावा
कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विश्वस्त सहयोगी रहे प्रशांत किशोर का दावा है कि आगामी दो अक्टूबर को एक करोड़ सदस्यों के साथ जनसुराज पार्टी लॉन्च होगी।
चार अगस्त को युवा संवाद में पत्रकारों से प्रशांत किशोर ने कहा, ‘मुसलमान बीजेपी के डर से आरजेडी को वोट दे रहे हैं। बीजेपी को उनके समर्थकों से ज्यादा लालू यादव के डर से वोट मिलता है। 30 बरस से एनडीए और इंडिया ने बिहार की जनता को बंधुआ मज़दूर बना दिया है। लोगों को अब नया विकल्प मिल है।’
बीते दिनों में जनसुराज में शामिल होने वालों की फेहरिस्त देखें तो जेडीयू -आरजेडी से जुड़े रहे मोनाजिर हसन, जननायक कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर, आरजेडी के विधान पार्षद रहे रामबलि सिंह चंद्रवंशी, बक्सर से लोकसभा निर्दलीय प्रत्याशी रहे आनंद मिश्रा से लेकर जमीनी स्तर के जेडीयू-आरजेडी के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए हैं।
जमीनी तौर पर शामिल इन कार्यकर्ताओं में एक बड़ी तादाद मुस्लिम समुदाय की है।
बिहार और मुसलमान
वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद बीबीसी से कहते हैं, ‘ बिहार में मुसलमान क्रॉसरोड पर हैं। जेडीयू को लेकर एक तरह का संशय उनके मन में है और बीते कुछ चुनावों को देखें तो ये लगता है कि मुसलमान एंटी आरजेडी वोट कर रहा है। सारण लोकसभा का ही उदाहरण देखें तो वहां रोहिणी आचार्य सिर्फ 13,000 वोट से हारीं और यहीं पर एक मुस्लिम निर्दलीय उम्मीदवार ने 20,000 वोट लेकर रोहिणी का गेम बिगाड़ दिया। प्रशांत किशोर मुसलमानों की दुविधा को समझ रहे हैं और इसी के हिसाब से अपनी रणनीति बना रहे हैं।’
फैजान अहमद बिहारी मुसलमानों के क्रॉसरोड और पीके की जिस चुनावी रणनीति की बात कर रहे हैं, उसका असर भी दिख रहा है।
हाल ही में जनसुराज मुस्लिम समुदाय के साथ पटना में बैठक कर चुका है और चार अगस्त को शहर के मुस्लिम बुद्धिजीवियों की भी एक बैठक पटना में हुई है।
जनसुराज में शामिल हुए मोनाजिर हसन बीबीसी से कहते हैं, ‘लालू जी, तेजस्वी और नीतीश जी को मुसलमानों ने देख लिया है। नीतीश जी ने मुसलमानों के लिए कुछ किया भी तो वो बीजेपी के साथ हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर मुसलमानों के लिए अंधेरे में जलता दीया जैसे हैं। जनसुराज मुसलमानों की ही नहीं बल्कि सभी जातियों की पार्टी बनेगी।’
जनसुराज की इस सक्रियता के चलते ही आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को हाल ही में एक चिठ्ठी जारी करनी पड़ी।
इस चिठ्ठी में लिखा है, ‘जनसुराज बीजेपी की बी टीम है। इसलिए सभी साथियों से अनुरोध है कि ऐसे लोगों के बहकावे में ना आएं, उनकी मंशा आरजेडी को कमजोर करने और बीजेपी की शक्ति को बढ़ावा देने की है।’
‘बिहार के लिए काम कीजिए’
इधर बीजेपी जनसुराज के साथ किसी तरह के ताल्लुक से इंकार करती है।
पार्टी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री निखिल आनंद कहते हैं, ‘हम बड़ी और सक्षम पार्टी हैं। हमें किसी को बी टीम बनाने की क्या ज़रूरत है।आरजेडी में भगदड़ है तो ये उनके लिए चिंता का विषय है। वैसे भी अभी पीके की राजनीतिक निष्ठा साबित नहीं हुई है तो उसको गंभीरता से हम लोग क्यों लेंगे?
चार अगस्त को युवा संवाद के आयोजन में प्रशांत किशोर ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘बिहार के लिए कुछ करना है तो पैसे की चिंता मत कीजिए। (बाकी पेज 8 पर)
चुनाव हारने जीतने की चिंता मत कीजिए।’
प्रशांत किशोर के इस वक्तव्य से एक अहम सवाल उठता है कि आखिर जनसुराज की फंडिंग कहां से हो रही है। प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीतिकार के तौर पर आई पैक कंपनी बनाई थी।
लेकिन आई पैक में उनकी भूमिका क्या है, इसका लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
जनसुराज की फंडिंग के सवाल पर अपनी पदयात्रा के दौरान प्रशांत किशोर ने पत्रकारों से कहा था, ‘जिन राज्यों में हमने काम किया है, वहां सैकड़ों ऐसे लोग हैं जिन्हें हमारी समझ पर भरोसा है। उन्हीं की मदद से ये अभियान चलाया जा रहा है।’
लेकिन प्रशांत किशोर की राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को उनका ये जवाब शायद संतुष्ट नहीं करता।
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, ‘प्रशांत किशोर को लेकर अभी भी ये सवाल अहम है कि वो आर्थिक मदद कहां से ले रहे हैं। अगर वो भी किसी भ्रष्टाचारी से पैसे लेकर राजनीति करेंगे तो उनके साथ भी विश्वनीयता का संकट पैदा हो जाएगा।’
वहीं पत्रकार अरूण श्रीवास्तव कहते हैं, ‘अगर आप बिहारी कल्चर में देखें तो यहां पार्टियां टिकट बेचती हैं और उम्मीदवार अपने आर्थिक बल पर चुनाव लड़ते हैं। लेकिन प्रशांत किशोर अपने उम्मीदवारों को एक तरीक़े से पैसे की चिंता से मुक्त कर रहे हैं।’ (bbc.com/hindi)
विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त पर विशेष
- छगनलाल लोन्हारे/जी.एस. केशरवानी (उप संचालक)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने छत्तीसगढ़ में 32 प्रतिशत जनजातीय समुदाय की आबादी को देखते हुए राज्य की बागडोर श्री विष्णु देव साय के हाथों में सौंपी है। राज्य गठन के 23 वर्षों बाद वे ऐसे पहले आदिवासी नेता है जिन्हें राज्य के मुखिया के तौर पर कमान सौंपी गई है। राज्य में नई सरकार की गठन के साथ ही उन्होंने किसानों, महिलाओं और वंचित समूहों को आगे बढ़ाने के लिए योजनाओं की शुरूआत की। वे सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के ध्येय वाक्य को लेकर सभी वर्गों की उन्नति और बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की समृद्ध आदिवासी संस्कृति की देश-विदेश में अलग पहचान रही है। राज्य के आदिवासी अंचल एक ओर वनों से आच्छादित है। वहीं इन क्षेत्रों में बहुमूल्य खनिज सम्पदा भी है। मनोरम पहाड़ियां, झरनें, इठलाती नदियां बरबस लोगों को आकर्षित करती हैं। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में गठित नई सरकार बनने के बाद राज्य के आदिवासी अंचलों में जन जीवन में तेजी से बदलाव लाने और उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के लिए अनेक नवाचारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है।
आदिवासी समुदाय को सभी प्रकार की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए संचालित की जा रही महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री जनमन योजना में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सड़क, बिजली, आवास, पेयजल जैसी महत्वपूर्ण मूलभूत सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं। साथ ही केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन किया जा रहा है।
आदिवासी क्षेत्रों के तेजी से विकास सुनिश्चित करने के लिए केन्द्र सरकार की पहल पर जगदलपुर के नगरनार में लगभग 23 हजार 800 करोड़ रूपए की लागत से वृहद स्टील प्लांट लगाया गया हैं, इससे आने वाले वर्षों में बस्तर अंचल की पूरी तस्वीर बदलेगी। लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार मिलेगा साथ ही रोजगार के नए अवसरों का निर्माण होगा।
इस साल के केन्द्रीय बजट में जनजाति उन्नत ग्राम अभियान योजना शामिल की गई है। इस योजना से राज्य के लगभग 85 विकासखंडों में शामिल गांवों को विभिन्न मूलभूत सुविधाएं मिलेगी। इसके अलावा जैविक खेती को बढ़ावा देने जैसी प्राथमिकताएं भी जनजाति क्षेत्रों की दशा और दिशा बदलेंगी।
जनजाति क्षेत्रों के तेजी से विकास सुनिश्चित करने के लिए भारत माला प्रोजेक्ट के अंतर्गत रायपुर-विशाखापत्तनम एक्सप्रेसवे बनाया जा रहा है 464 किलोमीटर लंबा और छह लेन चौड़ा एक्सप्रेसवे होगा। यह छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश से होकर गुजरेगा। यह एक्सप्रेसवे मार्ग छत्तीसगढ़ में 124 किलोमीटर, ओडिशा में 240 किलोमीटर और आंध्र प्रदेश में 100 किलोमीटर बनेगी। उड़ीसा से आंध्रप्रदेश के विशाखापटनम तक बनाए जा रहे इस नए कॉरिडोर से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी। वहीं नए उद्योगों की स्थापना से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
बस्तर के माओवादी आतंक से सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक तरफ सुरक्षा कैंपों की सख्या बढ़ायी जा रही है। वहीं सुरक्षा कैंपों के आसपास 5 किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों में केन्द्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए नियद् नेल्लानार जैसी नवाचारी योजनाओं की शुरूआत की गई है। इस योजना के बेहतर और सार्थक परिणाम मिल रहे हैं। लोगों का विश्वास फिर से शासन-प्रशासन के प्रति लौटने लगा है।
आदिवासियों की आय में वृद्धि और उन्हें बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार तेजी से काम कर रही है। प्रदेश सरकार ने लगातार ऐसे कदम उठाए हैं, जिनसे वनों के साथ आदिवासियों का रिश्ता फिर से मजबूत हुआ है। वनांचल क्षेत्रों में लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी के साथ-साथ तेन्दूपत्ता का खरीदी कार्य भी पहले से अधिक व्यवस्थित रूप से किया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा 36 कॉलेजों के भवन-छात्रावास निर्माण के लिए 131 करोड़ 52 लाख रूपए मंजूर किए गए है। इससे प्रदेश के 36 कॉलेजों के इंफ्रास्ट्रक्चर सुदृढ़ होंगे तथा शैक्षणिक माहौल को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। वहीं युवाओं को उच्च स्तर की शैक्षणिक सुविधाएं प्राप्त होगी और वे बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकेंगे।
राज्य सरकार ने तेन्दूपत्ता पारिश्रमिक दर प्रतिमानक बोरा 4000 से बढ़ाकर 5500 रूपए कर दिया है। इससे लगभग 13 लाख जनजाति परिवार लाभान्वित हो रहे हैं। इन क्षेत्रों में लघु वनोपज संग्रहण भी महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से हो रहा है। लघु वनोपज के प्रसंस्करण के लिए वनधन केन्द्रों की स्थापना की गई है।
प्रदेश में जनजातिय समुदाय के बच्चों के लिए बेेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 75 एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। इसके अलावा माओवादी प्रभावित क्षेत्र के बच्चों के लिए 15 प्रयास आवासीय विद्यालय संचालित है। इन विद्यालयों में मेधावी विद्यार्थियों को अखिल भारतीय मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराई जा रही हैं। नई दिल्ली में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी के लिए संचालित यूथ हॉस्टल में सीटों की संख्या 50 से बढ़ाकर 185 कर दी गई है।
राज्य में बस्तर, सरगुजा, मध्य क्षेत्र आदिवासी विकास, अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण तथा छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण अन्य पिछड़ा वर्ग विकास प्राधिकरणों के कामकाज को व्यवस्थित और प्रभावित बनाने के लिए इनका पुनर्गठन किए जाने का निर्णय लिया गया है। इन प्राधिकरणों की कमान अब मुख्यमंत्री के हाथों में होगी। क्षेत्रीय विधायक इन प्राधिकरणों के सदस्य होंगे तथा मुख्यमंत्री के सचिव अथवा सचिव इन प्राधिकरणों के सदस्य सचिव होंगे।
आदिवासी संस्कृति के संरक्षण के लिए बस्तर अंचल के देवगुड़ियां और घोटुलों तथा अन्य ऐतिहासिक धरोहरों के आसपास एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत वृक्षारोपण किया जा रहा है। इससे लोगों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, साथ ही ऐसे स्थानों में प्राकृतिक सुन्दरता भी बढ़ेगी।
-दिलीप कुमार पाठक
बिग बॉस कि इतनी लोकप्रियता थी, कि मैंने एक-दो एपिसोड कई साल पहले दो -चार मिनट के लिए देखा था। मुझे भी शुरू में लगा था कि बनावटी दुनिया के लोगों की एक सच्ची जिंदगी की झलकियां होगी लेकिन तब ही भ्रम दूर हो गया। बहुत ही बकवास है और इसे देखने वाले एकदम फालतू जिनके पास सोचने विचारने के लिए कोई काम ही नहीं बचा। मुझे इतना वाहियात लगा था, कि मुझसे झेला नहीं गया। हद्द दर्जे का फूहड़पना किसी भी नॉर्मल इंसान के लिए तो नहीं हो सकता। मेरे लिए वो किसी ट्रॉमा से कम नहीं था। फिर भी कभी-कभार मुझे एक बात आज भी परेशान करती है। ये शो आज भी सबसे ज्यादा लोकप्रिय शो है! जाहिर है बहुत लोग देखते हैं हैं लेकिन मैं पूछना चाहता हूं आप देखने वाले यह शो क्यों देखते हैं?
इसमे सब कुछ स्क्रिप्टिड होता है, कब कौन क्या बोलेगा। कब किससे कौन भिड़ेगा। बुलिंग, गाली, फूहड़ता, अश्लीलता। प्रतिभागी, एक - दूसरे पर फब्तियाँ कसते हैं, कई तो एक दूसरे को चोट भी पहुंचाते हैं। क्या लडक़ी-क्या लडक़ा सारे के सारे एक दूसरे को पीछे छोडऩे के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए आतुर रहते हैं। यह सब इस शो को स्तरहीन बनाता है।
यूं तो शो को घर जैसे बनाया जाता है, वहीँ प्रतिभागी सारे के सारे सस्ती लोकप्रियता के भूखे होते हैं। सब के सब प्रतिभागी ऐसे लगते हैं, जैसे अभी-अभी इन्हें मानसिक हस्पताल से यहीं शिफ्ट किया गया है। बिगबॉस में बने रहने के लिए ऊलूल-जलूल हरकतें जिसे देखकर सामान्य बुद्धि का इंसान अचंभित हो जाए कि यह प्रतिभागी इतना क्यों चिल्ला रहा है? ऐसे लगता है जैसे इसकी पूंछ किसी के पैर के नीचे आ गई है।
एक दिन मेरे मोबाइल पर अचानक एक क्लिप चली जिसमें एक प्रतिभागी दूसरे से पूछता है- ‘क्या चल रहा है सर आपकी लाइफ में? दूसरा प्रतिभागी जवाब देता है-‘जिन्दगी में सब कुछ ठीक चल रहा होता तो मैं यहाँ बिग बॉस में थोड़ा ही होता।’ मतलब साफ है कि प्रतिभागी सस्ती लोकप्रियता के लिए बिग बॉस में आना पसन्द करते हैं। मुझे हैरत होती है इसे नॉर्मल इंसान देख भी कैसे सकता है? बिग बॉस जैसे बकवास शो को देखने वालों को सस्ता नशा दिया जा रहा है।। जो भी इसके दर्शक हैं, उन्हें सचमुच इलाज की ज़रूरत है।
शायद स्क्रिप्टिड होता है सबकुछ तब ही इसके प्रतिभागी अपनी निजी जिन्दगी के चटकारे भी परोसते हैं।। ये सब बातेँ आसान नहीं होतीं हालांकि बहुतेरे प्रतिभागी सस्ती लोकप्रियता के लिए शो की टीआरपी के लिए बोल तो देते हैं, लेकिन बाद में उनकी निजी जि़न्दगी प्रभावित होती है। समाज, परिवार की आलोचना झेलनी पड़ती है। इससे कई पूर्व प्रतिभागी मानिसक समस्याओं से जूझ चुके हैं। क्या बिग बॉस यह सोचता होगा? सीधा जवाब है बिल्कुल नहीं! बिग बॉस यह भी कहता है कि हम वही दिखाते हैं जो समाज को अच्छा लगता है। फिर सोचता हूं अब असल जिन्दगी में भी तो बहुतेरे लोग ऐसे ही होते हैं, हुड़दंग, फूहड़ता अतिवाद अपनी तरफ खींच ले जाता है। जबकि सभ्य बातेँ बकवास लगती हैं कुछ न कुछ सनसनीखेज होते रहना चाहिए। हमारा समाज इतना ज्यादा उत्सवधर्मी हैं, कि चटकारे बिना हमारी जिन्दगी ही बेरंग महसूस होती है। यही कारण है कि बिग बॉस की लोकप्रियता अपने उरूज़ पर है जो हमारे समाज की हकीकत को बखूबी बयां करता है।
बिग बॉस का कहना है, कि इसमें प्रतिभागी वही हो सकता है! जिसने समाज को प्रभावित किया हो! सुनकर बहुत हास्यापद लगा। बिगबॉस में आज तक मुझे ऐसा कोई प्रतिभागी नहीं दिखा जिस का समाज पर कोई सकारात्मक प्रभाव रहा हो। मतलब बिगबॉस के प्रतिभागी बनने के लिए फेमस होना जरूरी है। प्रसिद्धि का कारण जो भी हो। बिग बॉस में मैंने आजतक किसी भी ऐसे प्रतिभागी को नहीं देखा जिसने वैश्विक परिदृश्य में भारत का नाम रोशन किया हो। कुछ अपवाद हो तो कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे ही भजन गायक अनूप जलोटा एक बार अपनी एक शिष्या के साथ बिग बॉस पहुंचे वहाँ रंग दिया गया कि यह लडक़ी अनूप जलोटा की प्रेमिका है। समाज में अनूप जलोटा की एक भजन गायक होने के साथ ही एक उम्दा इंसान की थी, बाद में इस शो में जाने के बाद सारी की सारी प्रतिष्ठा खऱाब हो गई। किसी भी भी रचनात्मक व्यक्ति को मीडिया, मैग्जीन उसके सर्वोत्तम दौर में फुल रुचि रखते हुए मेन स्ट्रीम पर जगह देते हैं। बाद में जैसे ही जगह नहीं मिलती, तो व्यक्ति अनाप-शनाप हरकतें करने लगता है। यही तो बिग बॉस चाहता है कि आप चर्चा में बने रहें। तब से ही अनूप जलोटा की इज्जत ही कम हुई है। देखा जाए तो आज के समय में टीवी से बड़ा समाज का दुश्मन कोई और नहीं दिखता। सीरीयल्स, फिल्में, न्यूज, म्यूजिक आदि फूहड़ असंवेदनशील, हिंसात्मक, भडक़ाऊ है। मुझे लगता है यह सब जानबूझकर परोसा जा रहा है, ताकि भारतीयों की राजनीतिक चेतना विकसित न हो। उसे अपने मूलभूत मुद्दों पर कोई विचारोत्तेजक सामाग्री साजिशन नहीं प्रोवाइड की जा रही है। इस ज़रूरी विषय पर समाज के अग्रणी लोगों को विचार करना चाहिए।
हम सब को गौर करना चाहिए कि हम क्या देख रहे हैं? क्यों देख रहे हैं? हमारी जि़न्दगी में इसका क्या प्रभाव पड़ता है। वैसे भी देखने का अपना असर ज्यादा होता है अत: ढंग के कन्टेन्ट में समय खर्च किया जाना चाहिए। बिग बॉस एक एक नॉवल पर आधारित ही एक शो हॉलीवुड में आता है, हमारे यहां वाला उसी का कॉपी पेस्ट है। मतलब इसमे भी चोरी। अगर चोरी ही करना था, तो हॉलीवुड में एक से बढक़र एक कन्टेन्ट भरे पड़े हैं। उनकी कॉपी कीजिए समाज को कुछ सकारात्मक दिखाइए। अफसोस पैसा कैसे बनेगा?
वैसे भी हमारे मुल्क में इतनी ज्यादा बेरोजगारी है, कि लोग फ्री बैठे हुए कुछ भी करते हुए समय पास कर रहे हैं। और बिग बॉस को तो पैरेंट्स भी अपने बच्चों के साथ बैठकर देखते हैं। कुल मिलाकर बाजार की अपनी नीतियां-सोच होती है। ्रढ्ढष्ठ्र मॉडल यूँही नहीं काम करता। उसे पता होता है कि क्या कैसे बेचना हैं। सभी की अपनी स्वायत्ता है, कोई कुछ भी देखे। बहरहाल मेरा अपना दृष्टिकोण था तो आप सभी से साझा किया। फिर भी देखने वालों को खुद से एक बार पूछना चाहिए हम बिग बॉस क्यों देखते हैं?
-नवीन सिंह खडक़ा
हाल के हफ़्तों में भारी बारिश और बाढ़ के कारण भारत के कई हिस्से प्रभावित हुए हैं। इस कारण कई लोगों की जान गई है और हज़ारों विस्थापित हुए हैं।
साल के इन महीनों में जब सबसे अधिक बारिश होती है, भारत या दक्षिण एशिया में बाढ़ आना कोई असामान्य बात नहीं है।
लेकिन जलवायु परिवर्तन ने मॉनसून की बारिश को अधिक अनियमित बना दिया है, मसलन लंबे समय समय तक सूखा रहने के बाद किसी जगह पर अचानक बहुत कम समय में मूसलाधार बारिश हो जाना।
अब वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण नमी में बहुत अधिक वृद्धि के साथ एक किस्म का तूफ़ान हालात को और बिगाड़ रहा है। इस तूफ़ान को ‘एटमॉस्फ़ेरिक रिवर’ या ‘वायुमंडलीय नदी’ के नाम से जाना जाता है।
आसमान में बनने वाले इन तूफ़ानों को ‘फ्लाइंग रिवर्स’ या ‘वायुमंडलीय नदियां’ भी कहते हैं। ये पानी के भाप वाले रिबन बैंड जैसे होते हैं जो गऱम समंदर से होने वाले वाष्पीकरण से बनते हैं और अदृश्य होते हैं।
ये भाप वायुमंडल के निचले हिस्से में एक पट्टी की तरह बनाते हैं जो उष्णकटिबंधीय इलाक़ों से ठंडे प्रदेशों की ओर बढ़ता है और बारिश या बर्फ के रूप में गिरता है।
यह किसी इलाके में बाढ़ या भयावह बर्फीला तूफान लाने के लिए पर्याप्त विनाशकारी होता है।
ये ‘फ्लाइंग रिवर्स’ कुल जल वाष्प का 90 फीसदी हिस्सा लेकर चलती हैं और पृथ्वी के मध्य-अक्षांश के ऊपर से होकर गुजरती हैं। औसतन इनमें अमेजन नदी में आम तौर पर बहने वाले पानी का दोगुना पानी होता है।
पानी की मात्रा के लिहाज़ से अमेजऩ नदी दुनिया की सबसे बड़ी नदी है।
जितनी तेज़ी से पृथ्वी गर्म हो रही है, वैज्ञानिकों का कहना है कि ये ‘एटमास्फेरिक रीवर्स’ और बड़ी, चौड़ी और अधिक तीव्र होती जा रही हैं। इसकी वजह से पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों पर बाढ़ का जोखिम बढ़ गया है।
भारत में मौसम विज्ञानियों का कहना है कि हिंद महासागर के गर्म होने से ‘फ्लाइंग रिवर्स’ बन रही हैं जो जून और सितंबर के बीच इस क्षेत्र में होने वाली मॉनसून की बारिश पर असर डाल रही हैं।
भयावह होती जा रही ‘फ्लाइंग रिवर्स’
वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ में 2023 में प्रकाशित एक अध्ययन दिखाता है कि 1951 से 2020 के बीच भारत में मॉनसून सीजन के दौरान कुल 574 ‘वायुमंडलीय नदियां’ बनीं। समय के साथ इनके बनने में तेजी आई है।
अध्ययन में कहा गया है, ‘पिछले दो दशकों में, कऱीब 80 फ़ीसदी सबसे ख़तरनाक ‘वायुमंडलीय नदियां’ भारत में बाढ़ का कारण बनीं।’
इस अध्ययन में शामिल आईआईटी और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की टीम ने यह भी पाया कि 1985 और 2020 के बीच मॉनसून के सीजऩ में भारत के 10 में से 7 सबसे भयावह बाढ़ों का कारण ये ‘वायुमंडलीय नदियां’ रही हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि हाल के दशकों में हिंद महासागर में वाष्पीकरण की प्रक्रिया में ख़ासा इजाफ़ा हुआ है और इस तरह की ‘वायुमंडलीय नदियां’ बनने की प्रक्रिया तेज हुई है। और फिर ग्लोबल वार्मिंग के कारण हाल के दिनों में इसके कारण बाढ़ की घटनाएं भी बढ़ गई हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रापिकल मेटीरियोलॉजी में एटमॉस्फ़ेरिक वैज्ञानिक डॉ.रॉक्सी मैथ्यू कोल ने बीबीसी को बताया, ‘मानसून सीजऩ के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बहने वाली नमी में उतार-चढ़ाव की घटनाएं बढ़ गई हैं।’
‘परिणामस्वरूप, गरम समंदर की कुल नमी को ‘फ्लाइंग रिवर्स’ कुछ घंटों या कुछ दिनों के अंदर ही छोड़ देती हैं। इसकी वजह से पूरे देश में भूस्खलन और अचानक आने वाली बाढ़ की संख्या बढ़ गई है।’
कैसी होती हैं ‘फ्लाइंग रिवर्स’?
एक ‘फ्लाइंग रिवर’ या ‘वायुमंडलीय नदी’ की औसत लंबाई लगभग 2000 किलोमीटर और चौड़ाई 500 किलोमीटर तक होती है। इसकी गहराई तीन किलोमीटर तक हो सकती है। हालांकि अब ये और लंबी और चौड़ी होती जा रही हैं और कुछ की लंबाई 5,000 किलोमीटर से अधिक हो सकती है।
बावजूद इसके, ये इंसानी आंखों के लिए अदृश्य होती हैं।
नासा के जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी के साथ काम करने वाले एटमॉस्फेरिक रीसर्चर ब्रायन कान कहते हैं, ‘इन्हें इनफ्रारेड और माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी के द्वारा देखा जा सकता है।’
उनके मुताबिक, ‘यही कारण है कि पूरी दुनिया में भाप के बादलों और वायुमंडलीय नदियों की निगरानी के लिए सैटेलाइट ऑब्जर्वेशन कारगर हो सकता है।’
इसके अलावा मौसम की कुछ और घटनाएं भी हैं जैसे पश्चिमी विक्षोभ, मानसून और चक्रवात, जो बाढ़ पैदा कर सकते हैं।
लेकिन वैश्विक अध्ययनों ने दिखाया है कि 1960 के दशक से ही वायुमंडल में भाप के बादलों में 20 फीसदी तक की वृद्धि हुई है।
वैज्ञानिकों ने दक्षिण एशिया में 56त्न तक अत्यधिक बारिश और बर्फबारी को वायुमंडलीय नदियों से जोड़ा है, हालांकि इस क्षेत्र में अभी सीमित अध्ययन हैं।
मानसून से जुड़ी भारी बारिश और वायुमंडलीय नदियों के बीच के संबंध को लेकर पड़ोसी दक्षिण पूर्व एशिया में अधिक विस्तृत अध्ययन हुए हैं।
अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन द्वारा प्रकाशित साल 2021 में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि पूर्वी चीन, कोरिया और पश्चिमी जापन में मानसून सीजऩ (मार्च और अप्रैल) के दौरान 80 फीसदी भारी बारिश की घटनाओं का संबंध वायुमंडलीय नदियों से जुड़ा है।
पोस्टडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रीसर्च से जुड़ी सारा एम वालेजो-बर्नाल का कहना है, ‘1940 से ही पूर्वी एशिया में वायुमंडलीय नदियां बनने की घटनाओं में ख़ासी वृद्धि हुई है।’
उनके अनुसार, ‘हमने पाया है कि उसके बाद से ही मेडागास्कर, ऑस्ट्रेलिया और जापान में ये बहुत तीव्र होती गई हैं।’
अन्य हिस्सों के मौसम वैज्ञानिकों ने हाल में हुई कुछ बड़ी बाढ़ की घटनाओं को वायुमंडलीय नदियों से जोड़ा है।
इराक, ईरान, कुवैत और जॉर्डन में भारी बारिश के पीछे वायुमंडलीय नदियां?
2023 के अप्रैल में इराक, ईरान, कुवैत और जॉर्डन को ओलावृष्टि, और भारी वर्षा के बाद प्रलयकारी भयानक बाढ़ का सामना करना पड़ा था।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, यहाँ के इन इलाकों में आसमान में नमी की रिकॉर्ड मात्रा थी जो 2005 के इसी तरह की घटना से भी ज्यादा थी।
ठीक दो महीने बाद चिली में महज तीन दिनों में 500 मिलीमीटर की बारिश दर्ज की गई। इन तीन दिनों में इतनी बारिश हुई कि इसने एंडीज पर्वत के कुछ हिस्सों पर पड़े बर्फ को भी पिघला दिया। इसके कारण आई भारी बाढ़ ने कई सडक़ों, पुलों और पानी की आपूर्ति व्यवस्था को बर्बाद कर दिया।
एक साल पहले ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसी ही बारिश हुई जिसे वहाँ के राजनेताओं ने ‘रेन बॉम्ब’ यानी बारिश बम का नाम दिया था। इसमें 20 लोगों की जान गई थी और हजारों को बचाना पड़ा था।
वैज्ञानिकों ने इन सारी घटनाओं को वायुमंडलीय नदियों का ही परिणाम बताया जो अधिक तीव्र, लंबी, चौड़ी और अक्सर विनाशकारी होती जा रही हैं।
नासा का भी कहना है कि वायुमंडलीय नदियां दुनिया भर में लाखों लोगों को बाढ़ के खतरे में डाल रही हैं।
जर्मनी में पॉट्सडैम विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान संस्थान के अभी हाल के अध्ययन में पता चला है कि वायुमंडलीय नदियों जैसी स्थिति उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में लंबे समय तक चल रही है।
इसका मतलब है कि इससे होने वाली बारिश जमीन पर विनाशकारी हो सकती है।
संयुक्त अरब अमीरात में ख़लीफ़ा विश्वविद्यालय के एक अन्य अध्ययन के मुताबिक़, 2023 के अप्रैल में मध्य पूर्व में भी ठीक ऐसा ही हुआ था।
अध्ययन में निकले निष्कर्ष के मुताबिक़, प्रयोग में लाए गए हाई रेसोल्यूशन सिमुलेशन ने वायुमंडलीय नदियों की उपस्थिति की पुष्टि की जो जो उत्तर-पूर्वी अफ्रीका से पश्चिमी ईरान में तेज गति से आगे बढऩे के कारण भारी बारिश करती थीं।
इनसे होने वाले विनाशकारी बाढ़ों और भूस्खलन के खतरों को देखते हुए, एटमॉस्फेरिक रीवर्स को समुद्री तूफानों की तरह ही उनकी विशालता और तीव्रता के आधार पर पांच प्रकार में श्रेणीबद्ध किया गया है।
हालांकि ये सभी विनाशकारी नहीं होती हैं, खासकर वे, जिनकी तीव्रता कम होती है।
कुछ तो उन इलाकों के लिए बहुत लाभकारी होती हैं जहां लंबे समय तक सूखा रहा हो।
लेकिन यह फ़ेनामिना तेजी से गर्म होते वायुमंडल के लिए चेतावनी है, जो अतीत के मुकाबले अधिक भाप को अपने अंदर समाहित कर रहा है।
वायुमंडलीय नदियों से संबंधित डेटा की कमी बड़ी चुनौती
इस समय दक्षिण एशिया में इस तूफ़ान को लेकर, मौसम की अन्य घटनाओं, जैसे पश्चिमी विक्षोभ या भारतीय चक्रवात की तुलना में अध्ययन हो रहे हैं जो बाढ़ और भूस्खनल की बड़ी घटनाओं का कारण बनते हैं।
आईआईटी इंदौर से जुड़ी एक रीसर्च स्कॉलर रोज़ा वी लिंग्वा के अनुसार, ‘मौसम वैज्ञानिकों, जल वैज्ञानिकों और जलवायु वैज्ञानिकों के बीच प्रभावी सहयोग की कोशिशें मौजूदा समय में चुनौतीपूर्ण हैं क्योंकि इस क्षेत्र में अवधारणा नई है और इसे लागू करना मुश्किल है।’
वो जोड़ती हैं, ‘लेकिन भारत के कई हिस्सों में भारी बारिश जारी है, ऐसे में इस तूफ़ान और इसके विनाशकारी प्रभावों का अध्ययन करना और अहम हो गया है।
वायुमंडलीय नदियों की पहुँच भी नए स्थानों तक हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका एक कारण बदलते जलवायु में हवा का बदलता बहाव और जेट धाराएँ हैं।
चिली के वालपराइसो विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डेनिज बोजकर्ट के मुताबिक़, ‘हवाओं और जेट धाराओं में बढ़ी हुई लहरों का मतलब साफ़ होता है उनके अपने बहाव के विशिष्ट रास्तों से मोड़ और विचलन। इससे वायुमंडलीय नदियों को अधिक कठिन मार्गों का पालन करने के कारण संभावित रूप से विभिन्न क्षेत्रों पर उनकी अवधि और प्रभाव बढ़ सकता है।
वालपराइसो विश्वविद्यालय के बोजक़र्ट का आगे और कहना है ‘क्षेत्रीय मौसम संबंधी पूर्वानुमानों में वायुमंडलीय नदियों की अवधारणाओं के बारे में जागरूकता सीमित है।
इसका मुख्य कारण और चुनौती विशेष रूप से जटिल इलाकों में वायुमंडलीय नदियों से संबंधित डेटा की कमी है।(bbc.com/hindi)
मोदी सरकार द्वारा वक्फ कानून बदलने के लिए कथित रूप से एक नया बिल लाए जाने से पहले ही इस कदम का विरोध शुरू हो गया है. आखिर क्या होता है वक्फ और क्यों उठा है इस पर विवाद?
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि केंद्र सरकार जल्द ही वक्फ अधिनियम, 2013 में संशोधन लाने के लिए एक बिल संसद में ला सकती है. सरकार ने इन रिपोर्टों की पुष्टि नहीं की है, लेकिन मुसलमान समुदाय से जुड़े राजनेता और अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है.
एआईएमपीएलबी ने एक बयान जारी कर कहा कि वक्फ अधिनियम, 2013 में अगर ऐसा कोई बदलाव किया जाता है जो वक्फ संपत्तियों के रूप को बदल देगा या सरकार या किसी व्यक्ति के लिए उन संपत्तियों को हड़प लेना आसान बना देगा, तो यह बदलाव अस्वीकार्य है.
क्या होता है वक्फ
'वक्फ' अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है किसी संपत्ति को धार्मिक या परोपकारी कार्यों के लिए एक ट्रस्ट के नाम कर देना. एक बार किसी ने अपनी संपत्ति को वक्फ कर दिया तो उसके बाद ना उसकी खरीद-बिक्री हो सकती है और ना दान या तोहफे में किसी को दिया जा सकता है.
मुस्लिम समुदाय में लोग अक्सर अपनी संपत्तियों को स्कूल, क्लिनिक, मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान आदि समेत किसी ना किसी धार्मिक या परोपकारी उद्देश्य के लिए 'वक्फ' कर देते हैं. वक्फ की हुई संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड करता है.
भारत में एक केंद्रीय वक्फ काउंसिल है और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के भी अपने अपने कुल मिला कर 32 वक्फ बोर्ड हैं. कुछ राज्यों में शिया और सुन्नी समुदायों के अलग अलग वक्फ बोर्ड हैं.
यह सभी बोर्ड वक्फ अधिनियम, 2013 के तहत काम करते हैं. केंद्रीय वक्फ काउंसिल की स्थापना 1964 में वक्फ अधिनियम, 1954 के तहत की गई थी. इस कानून में कई बार संशोधन किए है. आखिरी संशोधन 2013 में किया गया था.
कितनी संपत्ति है वक्फ बोर्डों के पास
वक्फ एसेट्स मैनेजमेंट ऑफ इंडिया की वेबसाइट के मुताबिक देश में इस समय कुल 3,56,047 वक्फ एस्टेट, 8,72,321 अचल वक्फ संपत्तियां और 16,713 चल संपत्तियां है. अचल संपत्तियों में से कुल 4,36,166 संपत्तियों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
सबसे ज्यादा अचल संपत्तियां कब्रिस्तान (1,50,000), खेती-बाड़ी (1,40,000), मस्जिद (1,20,000) और दुकानों (1,12,000) के लिए वक्फ की गई हैं. कई वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण हो चुका है.
केंद्रीय वक्फ काउंसिल के अध्यक्ष अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री होते हैं. इस समय किरन रिजिजू काउंसिल के अध्यक्ष हैं. इस लिहाज से केंद्र सरकार के पास पहले से ही वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन की जिम्मेदारी है, लेकिन नए संशोधन की खबर से मुस्लिम समुदाय में कई लोग नाराज हैं.
एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने एक बयान जारी कर कहा है, "पुख्ता खबरों के मुताबिक भारत सरकार वक्फ अधिनियम में 40 संशोधन लाकर वक्फ संपत्तियों के रूप को बदलना चाहती है ताकि उन पर कब्जा ले लेना आसान हो जाए."
उन्होंने आगे कहा कि वक्फ अधिनियम और वक्फ संपत्तियों को भारत के संविधान और शरीयत एप्लीकेशन अधिनियम, 1937 के तहत संरक्षण प्राप्त है और मुसलमान कभी भी वक्फ अधिनियम में ऐसे किसी संशोधन को स्वीकार नहीं करेंगे जिससे अधिनियम का दर्जा ही बदल जाए.
विवादों में रहते हैं वक्फ बोर्ड
एआईएमआईएम पार्टी के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी अधिनियम में संशोधन की कोशिशों का विरोध किया. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता छीन लेना चाहती है और यह धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है.
हालांकि कई राज्यों में वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियां कई तरह के विवादों में फंसी हुई हैं. जैसे दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायक और दिल्ली वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अमानतुल्ला खान के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) भ्रष्टाचार के कई आरोपों की जांच कर रही हैं.
इनमें यह आरोप भी शामिल है कि अध्यक्ष पद पर खान के कार्यकाल के दौरान लोगों को अवैध रूप से वक्फ संपत्तियों पर कब्जा जमाने की इजाजत दी गई. इसी तरह 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पूरे भारत में वक्फ संपत्तियों की ठीक से गिनती नहीं की जा रही है.
कर्नाटक में राज्य के अल्पसंख्यक आयोग ने 2012 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि राज्य में वक्फ संपत्तियों के गलत इस्तेमाल और अतिक्रमण से सरकारी खजाने को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इस रिपोर्ट पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. (dw.com)
-ध्रुव गुप्त
बहुधा प्रेम को स्त्री-पुरुष के बीच के दैहिक आकर्षण का पर्याय मान लिया जाता है। प्रेम में दैहिक आकर्षण की भूमिका होती है, लेकिन हर दैहिक आकर्षण प्रेम नहीं होता। आकर्षण की उम्र छोटी होती है। यौन आवेग उतर जाने के बाद यह लुप्त होने लगता है। इस आकर्षण से अहंकार का उपनिवेश निर्मित होता है। आपको जो आकर्षित करता है,आप चाहते हैं कि वह सदा आपकी संपत्ति बनकर आपके साथ रहे। आपकी आकांक्षा के अनुरूप चले। आपके अहंकार को सहलाता रहे और आपको विशिष्ट होने का गौरव दे। इच्छाएं पूरी न होने पर यह आकर्षण हिंसा का रूप भी धर ले सकता है। इसके विपरीत प्रेम दो व्यक्तित्वों के मिलने से उपजी एक आंतरिक खुशबू है जो उनके बिछड़ जाने के बाद भी उनके व्यक्तित्व में सदा के लिए बची रह जाती है। प्रेम बेडिय़ां नहीं, मुक्ति देता है। वह एकाधिकार तो नहीं मांगता। किसी ने आपको दो घड़ी, दो दिन भी प्रेम के अनुभव दिए तो आप सदा के लिए उसके कृतज्ञ हो जाते हैं। प्रेम की सफलता पा लेने में नहीं, फासलों और अतृप्तियों में है। दांपत्य में नहीं, उन नाजुक और बेशकीमती संवेदनाओं में है जिन्हें आपके व्यक्तितव में भरकर आपके महबूब ने आपको अनमोल कर दिया।
प्रेम हमारा स्वभाव है। प्रेम। को कुरेदकर जगाने में सबसे बड़ी भूमिका हमारे जीवन में विपरीत सेक्स की होती है। एक पुरुष का स्त्री से या स्त्री का पुरुष से प्रेम स्वाभाविक है। लेकिन यह प्रेम के उत्कर्ष तक पहुंचने का रास्ता भर है, मंजिल नहीं। एक बार प्रेम में पड़ जाने के बाद प्रेम व्यक्ति-केंद्रित नहीं रह जाता। वह हमारी मन:स्थिति बन जाता है। एक बार आप प्रेम में हैं तो आप हमेशा के लिए प्रेम में हैं। आप एक के प्रेम में पड़े तो आप सबके प्रेम में पड़ जाते हैं। समूची मानवता के प्रेम में। सृष्टि के तमाम जीव-जंतुओं के प्रेम में। प्रकृति के प्रेम में।
सोचकर देखिए कि आप सचमुच प्रेम में हैं कि प्रेम के नाम पर अपने अहंकार के उपनिवेश निर्मित करना चाहते हैं ?


