विचार / लेख

जिनसे भय है, उन्हीं से रक्षा का आश्वासन
08-Aug-2024 5:06 PM
जिनसे भय है, उन्हीं  से रक्षा का आश्वासन

-संजय श्रमण

भक्त: ऋषिवर ये रक्षा बंधन का क्या महाम्त्य है? इसमें किसकी रक्षा की जा रही है और किसे बंधन में बांधा जा रहा है?

ऋषिवर: वत्स, रक्षा बंधन वस्तुत: नारीशक्ति के कोप से प्राचीन संस्कृति और धर्म की रक्षा का पर्व है, इसमें प्राचीन धर्म और संस्कृति की रक्षा हो रही है और नारी को बंधन में बांधा जा रहा है।

भक्त: यह स्पष्ट न हुआ ऋषिश्रेष्ठ, कुछ अधिक विस्तार से बताइए...

ऋषिवर: यह विषय भी बड़ा रहस्यपूर्ण है वत्स, समझने का प्रयास करो. संस्कृति और धर्म को सबसे बड़ा खतरा स्त्री और स्त्री की स्वतन्त्रता से होता है. जिन देशों और समाजों में स्त्री बंधन मुक्त हो गई वहां का धर्म और संस्कृति नष्ट हो जाती है.

फिर वहां धर्म का प्राचीन रथ उठाने वाले भक्तों की भीड़ पैदा ही नहीं होती. स्त्री के मन में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होने का विचार नहीं आना चाहिए अन्यथा वह अपने व्यक्तित्व और स्वतंत्रता की घोषणा करने लगती है. इसलिए उसे हर संभव आयाम में पुरुषों के अधीन रखा जाना आवश्यक है.

जिन पुरुषों से उसे भय है, उन्हीं पुरुषों से उसकी रक्षा का आश्वासन भी मिलते रहना जरूरी है वत्स !

भक्त: यह अंतिम बिंदु थोड़ा और स्पष्ट करें ऋषिवर।

ऋषिवर: ध्यान से सुनो वत्स, कोई बहन जिन पुरुषों से रक्षा मांगती है वे पुरुष अन्य स्त्रियों के लिए आतंक पैदा करते हैं. अपनी बहनों के अलावा अन्य स्त्रियों के प्रति उनके व्यवहार को उनकी स्वयं की बहन भी देखती अवश्य है लेकिन उस पर प्रश्न नहीं उठा पाती।

वह स्त्री ऐसे प्रश्न न उठा सके यही इन आयोजनों का लक्ष्य है। यही वास्तविक बंधन है इसी से धर्म की रक्षा होती है।

एक स्त्री दूसरी स्त्री पर हुए अत्याचार के प्रति मौन रहे, अपने स्वयं के भाइयों, पतियों पुत्रों द्वारा हो रहे स्वयं के और अन्य स्त्रियों के शोषण के प्रति मौन रहे, अपने सजातीय, सधर्मी पुरुषों द्वारा विजातीय और विधर्मी स्त्रियों के अपमान पर मौन रहे – इसके लिए आवश्यक है कि वह उन्ही पुरुषों से सुरक्षा का आश्वासन पाती रहे।

ऐसा आश्वासन बना रहना आवश्यक है ताकि उसे इस नाम मात्र के आश्वासन के भी निरस्त हो जाने का भय बना रहे।

यही भय प्राचीन धर्म के लिए रक्षा है और स्त्री के लिए बंधन है.

भक्त: अहो ऋषिवर, अद्भुत महात्म्य है इस पर्व का... यह महात्म्य सुनकर मैं धन्य हुआ।


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