विचार / लेख
-सीटू तिवारी
चार अगस्त को पटना के गांधी मैदान के पास बने बापू सभागार में हजारों युवा जनसुराज के युवा संवाद आयोजन में जुटे।
ये युवा थोड़ी-थोड़ी देर पर तालियां बजाते। मंच से आती चुटीली बातों पर हँसते और उत्साह दिखाते। मंच पर सालों तक देश की अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनावी कैंपेन करने वाले प्रशांत किशोर थे।
प्रशांत किशोर नीले कुर्ते में पेपर लीक पर राहुल गांधी के स्टैंड से लेकर ‘दसवीं फेल युवा नेतृत्व’ जैसी बातें कहकर तेजस्वी यादव पर इशारों में तंज कस रहे थे।
बिहार की राजधानी पटना में पीके यानी प्रशांत किशोर की इस तरह की बैठकें लगातार चल रही हैं। इन बैठकों की सोशल मीडिया पर चर्चा है।
यह एक तरह से उनकी जनसुराज पार्टी की ग्रैंड लॉन्चिंग की तैयारी है जो आगामी दो अक्टूबर को लॉन्च होगी।
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, ‘प्रशांत किशोर के इन कदमों ने एक तरह की राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। बिहार में 35 साल से जो कथित सामाजिक न्याय की सरकारें रही हैं वो विफल साबित हुई हैं। बिहार की राजनीति में तीन चार नाम ही प्रमुखता से लिए जाते हैं। प्रशांत किशोर खुद को नए विकल्प के तौर पर प्रोजेक्ट करने में आरंभिक तौर पर सफल दिख रहे हैं।’
चुनावी रणनीतिकार से पार्टी तक का सफर
चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर तकरीबन दो साल से अपनी पार्टी जनसुराज को बनाने में लगे हैं।
साल 2022 में दो अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन से उन्होंने जनसुराज नाम से पदयात्रा शुरू की थी। बिहार के अंदरूनी इलाकों में प्रशांत किशोर ने ये यात्राएं की हैं।
जनसुराज की वेबसाइट के मुताबिक़- प्रशांत की यात्रा के 665 दिन हो चुके हैं जिसमें उन्होंने 1319 पंचायत के 2697 गांव में संपर्क किया है।
प्रशांत किशोर की ये यात्राएं बहुत ही मामूली तैयारी के साथ होती थीं।
उनकी एक ऐसी ही यात्रा में मौजूद मुजफ्फरपुर के पत्रकार अभिषेक बताते हैं, ‘यहां जिले के गांव में छोटे छोटे पंडाल लगते थे। प्लास्टिक की कुर्सी-मेज का मामूली इंतजाम रहता था। प्रशांत किशोर अपनी मीटिंग में लोगों से कहते थे कि जाति और धर्म के नाम पर वोट दे दिया लेकिन अब पढ़ाई, रोजगार और स्वास्थ्य के नाम पर वोट दीजिए।’
वरिष्ठ पत्रकार अरुण श्रीवास्तव बीबीसी से कहते हैं, ‘प्रशांत किशोर की राजनीति को देखें तो वो धीरे-धीरे बिहार की पारंपरिक राजनीति के ढर्रे पर आते दिख रहे हैं। पहले वो जाति और धर्म के नाम पर वोट देने पर सवाल करते थे। लोकतंत्र की मजबूती और बिहार के विकास का नया ब्लूप्रिंट तैयार करना उनकी यात्रा का मकसद था लेकिन अब वो खुद ‘डीईएम’ पर जोर दे रहे हैं।’
दलित, अति पिछड़ा, मुस्लिम से लेकर महिला पर जोर
डीईएम यानी दलित, अति पिछड़ा, और मुस्लिम। बीती 28 जुलाई को पटना में जनसुराज की राज्य स्तरीय बैठक में ये तय हुआ है कि पार्टी का पहला अध्यक्ष दलित, दूसरा अति पिछड़ा और तीसरा मुस्लिम समुदाय से होगा। पिछड़ा और सवर्ण समुदाय से आने वाले पार्टी अध्यक्ष इन तीनों के बाद बनेंगे।
यानी प्रशांत किशोर का लक्ष्य डीईएम है। इस लक्ष्य की वजह बिहार की जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों में मिलती है।
जातिगत गणना में देखें तो बिहार में दलितों की आबादी 19.65 फीसदी, अतिपिछड़े 36।01 फीसदी और मुस्लिम 17.70 फीसदी है। इससे पहले प्रशांत किशोर घोषणा कर चुके हैं कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में कम से कम 40 महिलाओं को टिकट देगी।
वहीं आरजेडी के पार्टी प्रवक्ता चितरंजन गगन कहते हैं, ‘पीके का तो दोहरा चरित्र सामने आ रहा है। वो पहले जात पात के खिलाफ बोल रहे थे लेकिन अब तो वो दलित अतिपिछड़ा कर रहे हैं। पीके किसके लिए काम कर रहे हैं ये बिहार की जनता समझ चुकी है। वो बीजेपी की बी टीम हैं।’
चितरंजन गगन के इस बयान से इतर बिहार के राजनीतिक दलों में पीके की चुनावी इंट्री से बेचैनी बड़ी है। खासतौर पर जेडीयू और आरजेडी में।
दरअसल, प्रशांत किशोर डीईएम के जरिए जिस वोट बैंक को टारगेट कर रहे है वो मुख्य तौर पर जेडीयू और आरजेडी का आधार वोट रहा है।
जेडीयू प्रवक्ता अंजुम आरा बीबीसी से कहती हैं, ‘ प्रशांत किशोर भीड़ को इकठ्ठा करके माहौल बना रहे हैं। बिहार की 85 फीसदी आबादी गांव की है जिसकी समस्याओं को नीतीश कुमार ने एड्रेस किया है। ये ठीक है कि वो लंबे समय तक जेडीयू के साथ चुनावी रणनीतिकार व अन्य पदों पर जुड़े रहे लेकिन जेडीयू का बिहार की जनता से सीधा संबंध विकास को लेकर है जो किसी चुनावी रणनीति का मोहताज नहीं है।’
एक करोड़ सदस्यों के साथ पार्टी लॉन्च करने का दावा
कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विश्वस्त सहयोगी रहे प्रशांत किशोर का दावा है कि आगामी दो अक्टूबर को एक करोड़ सदस्यों के साथ जनसुराज पार्टी लॉन्च होगी।
चार अगस्त को युवा संवाद में पत्रकारों से प्रशांत किशोर ने कहा, ‘मुसलमान बीजेपी के डर से आरजेडी को वोट दे रहे हैं। बीजेपी को उनके समर्थकों से ज्यादा लालू यादव के डर से वोट मिलता है। 30 बरस से एनडीए और इंडिया ने बिहार की जनता को बंधुआ मज़दूर बना दिया है। लोगों को अब नया विकल्प मिल है।’
बीते दिनों में जनसुराज में शामिल होने वालों की फेहरिस्त देखें तो जेडीयू -आरजेडी से जुड़े रहे मोनाजिर हसन, जननायक कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर, आरजेडी के विधान पार्षद रहे रामबलि सिंह चंद्रवंशी, बक्सर से लोकसभा निर्दलीय प्रत्याशी रहे आनंद मिश्रा से लेकर जमीनी स्तर के जेडीयू-आरजेडी के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए हैं।
जमीनी तौर पर शामिल इन कार्यकर्ताओं में एक बड़ी तादाद मुस्लिम समुदाय की है।
बिहार और मुसलमान
वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद बीबीसी से कहते हैं, ‘ बिहार में मुसलमान क्रॉसरोड पर हैं। जेडीयू को लेकर एक तरह का संशय उनके मन में है और बीते कुछ चुनावों को देखें तो ये लगता है कि मुसलमान एंटी आरजेडी वोट कर रहा है। सारण लोकसभा का ही उदाहरण देखें तो वहां रोहिणी आचार्य सिर्फ 13,000 वोट से हारीं और यहीं पर एक मुस्लिम निर्दलीय उम्मीदवार ने 20,000 वोट लेकर रोहिणी का गेम बिगाड़ दिया। प्रशांत किशोर मुसलमानों की दुविधा को समझ रहे हैं और इसी के हिसाब से अपनी रणनीति बना रहे हैं।’
फैजान अहमद बिहारी मुसलमानों के क्रॉसरोड और पीके की जिस चुनावी रणनीति की बात कर रहे हैं, उसका असर भी दिख रहा है।
हाल ही में जनसुराज मुस्लिम समुदाय के साथ पटना में बैठक कर चुका है और चार अगस्त को शहर के मुस्लिम बुद्धिजीवियों की भी एक बैठक पटना में हुई है।
जनसुराज में शामिल हुए मोनाजिर हसन बीबीसी से कहते हैं, ‘लालू जी, तेजस्वी और नीतीश जी को मुसलमानों ने देख लिया है। नीतीश जी ने मुसलमानों के लिए कुछ किया भी तो वो बीजेपी के साथ हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर मुसलमानों के लिए अंधेरे में जलता दीया जैसे हैं। जनसुराज मुसलमानों की ही नहीं बल्कि सभी जातियों की पार्टी बनेगी।’
जनसुराज की इस सक्रियता के चलते ही आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को हाल ही में एक चिठ्ठी जारी करनी पड़ी।
इस चिठ्ठी में लिखा है, ‘जनसुराज बीजेपी की बी टीम है। इसलिए सभी साथियों से अनुरोध है कि ऐसे लोगों के बहकावे में ना आएं, उनकी मंशा आरजेडी को कमजोर करने और बीजेपी की शक्ति को बढ़ावा देने की है।’
‘बिहार के लिए काम कीजिए’
इधर बीजेपी जनसुराज के साथ किसी तरह के ताल्लुक से इंकार करती है।
पार्टी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री निखिल आनंद कहते हैं, ‘हम बड़ी और सक्षम पार्टी हैं। हमें किसी को बी टीम बनाने की क्या ज़रूरत है।आरजेडी में भगदड़ है तो ये उनके लिए चिंता का विषय है। वैसे भी अभी पीके की राजनीतिक निष्ठा साबित नहीं हुई है तो उसको गंभीरता से हम लोग क्यों लेंगे?
चार अगस्त को युवा संवाद के आयोजन में प्रशांत किशोर ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘बिहार के लिए कुछ करना है तो पैसे की चिंता मत कीजिए। (बाकी पेज 8 पर)
चुनाव हारने जीतने की चिंता मत कीजिए।’
प्रशांत किशोर के इस वक्तव्य से एक अहम सवाल उठता है कि आखिर जनसुराज की फंडिंग कहां से हो रही है। प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीतिकार के तौर पर आई पैक कंपनी बनाई थी।
लेकिन आई पैक में उनकी भूमिका क्या है, इसका लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
जनसुराज की फंडिंग के सवाल पर अपनी पदयात्रा के दौरान प्रशांत किशोर ने पत्रकारों से कहा था, ‘जिन राज्यों में हमने काम किया है, वहां सैकड़ों ऐसे लोग हैं जिन्हें हमारी समझ पर भरोसा है। उन्हीं की मदद से ये अभियान चलाया जा रहा है।’
लेकिन प्रशांत किशोर की राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को उनका ये जवाब शायद संतुष्ट नहीं करता।
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, ‘प्रशांत किशोर को लेकर अभी भी ये सवाल अहम है कि वो आर्थिक मदद कहां से ले रहे हैं। अगर वो भी किसी भ्रष्टाचारी से पैसे लेकर राजनीति करेंगे तो उनके साथ भी विश्वनीयता का संकट पैदा हो जाएगा।’
वहीं पत्रकार अरूण श्रीवास्तव कहते हैं, ‘अगर आप बिहारी कल्चर में देखें तो यहां पार्टियां टिकट बेचती हैं और उम्मीदवार अपने आर्थिक बल पर चुनाव लड़ते हैं। लेकिन प्रशांत किशोर अपने उम्मीदवारों को एक तरीक़े से पैसे की चिंता से मुक्त कर रहे हैं।’ (bbc.com/hindi)


