अंतरराष्ट्रीय
ब्रिटेन में पिछले महीने भारतीय उच्चायोग के बाहर प्रदर्शन और तोड़फोड़ की घटना पर ब्रिटेन की सरकार ने कहा है कि वे उच्चयोग की सुरक्षा के मुद्दे को 'बेहद गंभीरता' से लेते हैं.
भारतीय मूल के लेबर सांसद नवेंदु मिश्रा के एक लिखित सवाल पर सरकार ने संसद में यह जानकारी दी.
ब्रिटेन के सुरक्षा मंत्री टॉम टिगेंदत ने सोमवार को जवाब देते हुए कहा कि पिछले महीने भारतीय उच्चायोग में तोड़फोड़ और कर्मचारियों पर हुआ हमला स्वीकार्य नहीं है.
उन्होंने कहा, ''सरकार भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा को बेहत गंभीरता से लेती है. सरकार ब्रिटेन के भीतर दूतावासों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें इस तरह की घटनाओं को रोकना और इससे निपटना भी शामिल है.''
उन्होंने कहा कि जैसा कि कहा गया है कि लंबे समय से यह नीति रही है कि राजनयिक सुरक्षा व्यवस्था से जुड़ी विस्तृत जानकारियां नहीं दी जाती हैं.
मिश्रा ने पिछले महीने उच्चायोग की सुरक्षा को लेकर सवाल किए थे और ब्रिटेन की सरकार ने हमले के बाद जो सुरक्षा आकलन का आश्वासन दिया था, उसके बारे में उन्होंने जानकारियां मांगी थी.
वहीं, अब भारत में एनआईए, उच्चायोग में तोड़फोड़ की कोशिश और प्रदर्शन की जांच करेगा. इस मामले में दिल्ली पुलिस ने एक प्राथमिकी दर्ज की थी. (bbc.com/hindi)
वर्ल्ड बैंक कहता है कि उसका मकसद दुनियाभर से गरीबी हटाना है लेकिन उसके अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों की हालत ऐसी है कि रोजमर्रा का खर्च भी पूरा नहीं हो पा रहा है.
आंद्रे ब्लाँ पिछले करीब दस साल से वर्ल्ड बैंक में विश्व के बड़े-बड़े नेताओं को खाना परोस रहे हैं. उन्होंने सबसे धनी लोगों से लेकर सबसे ताकतवर लोगों तक को खाना खिलाया है. लेकिन उनकी अपनी हालत ऐसी है कि सैलरी आते ही खत्म हो जाती है और महीना मुश्किल से कटता है. उनकी सैलरी आज भी न्यूनतम आय के आसपास ही है.
इस हफ्ते दुनियाभर के कई बड़े नेता वॉशिंगटन डीसी में हैं, जहां गरीबी से लड़ने वाले संस्थान वर्ल्ड बैंक की बैठक होगी. ब्लाँ और उनके साथी कोशिश कर रहे हैं कि इस दौरान उनकी हालत पर भी किसी की नजर जाए.
ब्लाँ और वर्ल्ड बैंक की रसोई में काम करने वाले उनके बहुत सारे साथी आर्थिक रूप से लगभग गरीबी में जी रहे हैं. वर्ल्ड बैंक फूड वर्कर्स की यूनियन के नेताओं का कहना है कि इन कर्मचारियों को कंपास ग्रुप नॉर्थ अमेरिका नामक एक कंपनी के जरिए ठेके पर रखा जाता है. यूनियन के मुताबिक ज्यादातर कर्मचारी सरकार से गरीबों को मिलने वाली सुविधाओं के भरोसे चल रहे हैं.
33 साल के ब्लाँ कहते हैं, "मन कसैला हो जाता है. वे दुनियाभर में घूमते हैं और योजनाएं बनाते हैं कि लोगों की मदद कैसे की जाए. लेकिन यहां (वॉशिंगटन) डीसी में उनके अपने सैकड़ों कर्मचारी हैं जिनकी हालत खराब है.”
गरीबी कैसे हटेगी?
हाल ही में लाल कमीज पहने इन कर्मचारियों ने वर्ल्ड बैंक के बाहर प्रदर्शन किया. जब यह प्रदर्शन चल रहा था, तब अंदर इमारत में स्थित एक दुकान पर टीशर्ट और बैग बिक रहे थे, जिन पर अंग्रेजी में ‘गरीबी हटाओ' जैसे नारे लिखे थे.
इमारत के भीतर स्थित रेस्तरां के सामने ही एक छोटी सी खूबसूरत तलैया है. उसके आस पास खाने के स्टॉल हैं जहां दुनिया के सबसे लजीज व्यंजन उपलब्ध हैं. एक सूप स्टेशन है जिसका नाम है लैडल एंड क्रस्ट. एक जगह पर मेडिटेरेनियन खाना मिलता है और बगल में ही जैपनीज फूड का स्टॉल है, जहां शेफ ऑर्डर मिलने पर एकदम ताजा रोल्स और साशिमी बनाकर देता है.
जब बाहर प्रदर्शन हो रहा था, तब वर्ल्ड बैंक भारत, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका से आए अपने विशेष मेहमानों को डाइनिंग रूम में ये लजीज व्यंजन परोस रहा था. दिलचस्प बात है कि खाना परोसने का काम करने वाले कर्मचारियों में बहुत से इन्हीं देशों से हैं.
दस साल काम का फल
ब्लाँ बताते हैं कि वह दस साल से वहां काम कर रहे हैं और उन्हें 18 डॉलर यानी करीब 1,500 रुपये घंटा मिलते हैं. अमेरिका में न्यूनतम आय 16.10 डॉलर प्रति घंटा है. वह कहते हैं कि दुनिया के सबसे अहम लोगों को खाना परोसने वालों को न्यूनतम आय से ज्यादा सैलरी भी नहीं मिलती. उनकी तन्ख्वाह एक बार में 50 सेंट से ज्यादा कभी नहीं बढ़ाई गई.
ब्लाँ ‘युनाइट हेयर' नामक एक संगठन के सदस्य हैं. वह वर्ल्ड बैंक में काम करने वाले उन 150 कर्मचारियों में से एक हैं, जिन्हें कंपास के जरिए ठेके पर रखा गया है. फिलहाल वे अपने नियोक्ताओं के साथ बेहतर वेतन और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर मोलभाव कर रहे हैं.
वर्ल्ड बैंक के प्रवक्ता डेविड थीअस कहते हैं कि हालांकि बैंक यूनियन और कंपास के बीच की बातचीत का हिस्सा नहीं है, फिर भी संस्थान कर्मचारियों की सेवाओं के लिए उनका ‘भरपूर सम्मान' करता है. उन्होंने कहा कि बैंक ने यह सुनिश्चित किया था कि कोविड महामारी के दौरान कर्मचारियों को लगातार वेतन मिलता रहे.
कितने होते हैं 18 डॉलर?
भले ही दुनिया के कुछ हिस्सों में 18 डॉलर यानी करीब 1,500 रुपये प्रति घंटा का वेतन अच्छा खासा नजर आता हो, वॉशिंगटन डीसी शहर में एक सामान्य जीवन जीने के लिए यह नाकाफी है. मसैचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के ‘लिविंग वेज' इंडेक्स के मुताबिक वॉशिंगटन डीसी में आम जिंदगी जीने के लिए प्रतिघंटा 22.15 डॉलर न्यूनतम का वेतन होना चाहिए.
1 जुलाई से वॉशिंगटन डीसी में न्यूनतम वेतन 17 डॉलर हो जाएगा, जो अमेरिका में सर्वाधिक होगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक शहर में औसत किराया 2,571 डॉलर है.
युनाइटेड हेयर के अध्यक्ष डी. टेलर वर्ल्ड बैंक के गरीबी हटाने की मुहिम पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "वर्ल्ड बैंक कहता है कि हर देश के सबसे गरीब 40 फीसदी लोगों के वेतन में वृद्धि करके साझा उन्नति उसका लक्ष्य है. हम कहते हैं कि इसकी शुरुआत यहां अमेरिका में खाना परोसने वाले कर्मचारियों से होनी चाहिए. वे हर रोज काम करते हैं और फिर भी अपने रोजमर्रा के खर्चे तक पूरे नहीं कर पा रहे हैं.”
कंपास ग्रुप की प्रवक्ता लीजा क्लेबोन ने कहा कि उनकी कंपनी एक न्यायसंगत समझौता करने के लिए बातचीत कर रही है. उन्होंने कहा कि कंपनी का इतिहास रहा है कि ‘कर्मचारियों और ग्राहकों के लिए सवर्श्रेष्ठ हासिल किया जाए.'
वीके/एए (रॉयटर्स)
रूस, 18 अप्रैल । रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खेरसोन पहुंचने की ख़बर है.
रूस के मुताबिक़, पुतिन यूक्रेन में ख़ेरसोन के उन इलाकों में गए थे, जिन पर उसकी सेना का क़ब्ज़ा बना हुआ है.
कहा जा रहा है कि उन्होंने वहां पहुंच कर सेना की कमान की एक बैठक की. इस बैठक में उन्होंने सैन्य कमांडरों से रिपोर्ट ली.
समझा जाता है कि पुतिन ने लुहांस्क का भी दौरा किया है. रूस ने पिछले साल ख़ेरसोन और लुहांस्क पर कब्ज़ा कर लिया था. पुतिन इस तरह का दौरा बहुत कम करते हैं.
हालांकि मार्च में उन्होंने अचानक मारियोपोल शहर का दौरा किया था.. इस बात का पता नहीं चल पाया है कि पुतिन ने ख़ेरसोन का दौरा कब किया था लेकिन रूसी मीडिया ने ख़बर दी है कि उन्होंने ज़ोपोरिज़िया के हालात के बारे में जानकारी ली है.
रूस का दावा है कि ज़ोपोरिज़िया उसका क्षेत्र है.
बताया जा रहा है खेरसोन में रूसी कमांडरों से बात करते हुए उन्होंने कहा, ''वो नहीं चाहते कि आपका अपनी ड्यूटी से ध्यान हटे लेकिन मेरे लिए आपकी राय जानना भी अहम है. मैं जानना चाहता हूं कि हालात किधर जा रहे हैं. हम आपसे यहां के हालात के बारे में जानना चाहते हैं. हम सूचनाएं साझा करना चाहते हैं.''
पिछले साल रूसी सेना ख़ेरसोन से वापस लौट गई थी. फरवरी 2022 में रूस के हमले के बाद यही एक राजधानी थी, जिस पर इसने कब्ज़ा करने में सफलता हासिल की थी. हालांकि इसके कुछ इलाकों में अभी भी रूसी सैनिकों का कब्ज़ा बरकरार है. (bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 18 अप्रैल अमेरिका में सैकरामेंटो में स्थित गुरुद्वारे समेत 11 स्थानों पर गोलीबारी की घटनाओं की कई एजेंसियों द्वारा की गई जांच के बाद 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिसमें ज्यादातर स्थानीय सिख समुदाय के सदस्य हैं। उनके पास से एके-47 राइफल और मशीनगन बरामद की गई हैं।
ये गिरफ्तारियां 20 से अधिक स्थानों पर छापेमारी के दौरान की गई हैं।
उत्तरी कैलिफोर्निया के कानून प्रवर्तक अधिकारियों ने सोमवार को बताया कि इन समूहों के सदस्य स्टॉकटन में एक गुरुद्वारे में 27 अगस्त 2022 को हुई गोलीबारी में तथा 23 मार्च 2023 को सैकरामेंटो में एक अन्य गुरुद्वारे में की गई गोलीबारी में कथित रूप से शामिल थे। उन्होंने बताया कि स्टॉकटन की घटना में पांच और सैकरामेंट की घटना में दो लोगों को गोली लगी थी।
कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रोब बोंटा, युबा सिटी पुलिस प्रमुख ब्रायन बेकर और सट्टर काउंटी के डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी जेनिफर डुप्रे ने सोमवार को बताया कि रविवार को उत्तरी कैलिफोर्निया में 20 स्थानों पर तलाशी वारंट की तामील कराने के लिए बड़े पैमाने पर चलाए गए अभियान के दौरान 17 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है जिनमें से ज्यादातर स्थानीय सिख समुदाय के सदस्य हैं।
डुप्रे ने कहा कि पुलिस ने एके-47 राइफलें, पिस्तौल और एक मशीनगन समेत 42 बंदूकें जब्त की हैं। उन्होंने ने प्रेस वार्ता में बताया कि गिरफ्तार किए गए दो लोग माफिया के सदस्य हैं और भारत में ‘‘हत्या के कई मामलों में वांछित हैं।’’
कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल ने बताया कि गिरफ्तार लोग प्रतिद्वंद्वी आपराधिक गिरोह का हिस्सा हैं और वे कई हिंसक घटनाओं के लिए कथित रूप से जिम्मेदार हैं। अटॉर्नी जनरल के अनुसार, ये लोग हत्या की कोशिश के पांच मामलों समेत सट्टर, सैकरामेंटो, सैन जोकिन, सोलानो, योलो और मर्सेड काउंटी में गोलीबारी की घटनाओं में कथित रूप से शामिल रहे हैं।
इस जांच को ‘ऑपरेशन ब्रोकन सॉर्ड’ का नाम दिया गया है।
एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, जांच के दौरान कानून प्रवर्तन अधिकारी दो अन्य स्थानों पर गोलीबारी की घटनाएं होने से रोकने में सफल रहे।
करीब 70,000 लोगों की आबादी वाले युबा सिटी शहर में सिख समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं और इस शहर को इसीलिए ‘‘मिनी पंजाब’’ भी कहा जाता है। हर साल नवंबर में नगर कीर्तन के लिए बड़ी संख्या में लोग शहर आते हैं।
कैलिफोर्निया के सेंट्रल वैली में भी सिखों की खासी संख्या है। (भाषा)
सूडान की राजधानी खारतूम में सेना और अर्धसैनिक बलों के बीच संघर्ष सोमवार को तीसरे दिन भी जारी है. अब तक 94 लोगों की मौत हुई है. एक भारतीय ने भी इस संघर्ष में अपनी जान गंवाई है.
2021 के तख्तापलट के बाद सूडान की सत्ता पर काबिज होने वाले दो जनरलों के वर्चस्व की लड़ाई में सूडान लहुलुहान हो रहा है. ये दो जनरल हैं सूडान के सेना प्रमुख अब्देल फतह अल बुरहान और उनके डिप्टी मोहम्मद हमदान दागलो. दागलो सूडान की ताकतवर अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्सेज यानी आरएसएफ के प्रमुख हैं.
खारतूम और सूडान के दूसरे शहरों के घनी आबादी वाले इलाके में चल रहे संघर्ष में आसमान से हवाई हमलों के साथ ही सड़कों पर टैंकों से हमला हो रहा है और भारी हथियारों से गोलीबारी हो रही है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तुरंत संघर्षविराम की मांग की है.
सोमवार सुबह सूडान में डॉक्टरों के यूनियन ने कहा, "शनिवार को शुरू हुए संघर्ष में आम लोगों की मौत 97 तक पहुंच गई है." इसके साथ ही यह भी कहा गया कि इसमें मारे गये सारे लोगों की संख्या शामिल नहीं है क्योंकि बहुत से लोग सड़कों पर चल रही लड़ाई की वजह से अस्पताल नहीं पहुंच सके हैं. सेंट्रल कमेटी ऑफ सूडान डॉक्टर्स एक अलग लोकतंत्र समर्थक संगठन है. उसने खबर दी है कि सुरक्षा बल के दर्जनों लोगों की मौत हुई है. सैनिक और आम नागरिकों को मिलाकर कुल 942 लोग घायल हुए हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि खारतूम के जिन 9 अस्पतालों में घायलों का इलाज चल रहा है वहां "खून, ट्रांसफ्यूजन उपकरण, इंट्रावेनस फ्लुइड और दूसरी जरूरी चीजों की कमी है."
हिंसा की वजह से डरे हुए सूडानी लोग अपने घरों में दुबके हुए हैं और यह आशंका तेज हो गयी है कि लंबे समय से चला आ रहा संघर्ष देश को गहरे संकट में उतार देगा साथ ही लोकतंत्र की बहाली की आशा भी धूमिल हो गयी है.
सूडान में संघर्ष का कारण
आरएसएफ को पूर्व तानाशाह राष्ट्रपति ओमर अल बशीर के शासन के दौरान 2013 में गठित किया गया था. इसमें ज्यादातर जंजावीड मिलिशिया के लोग थे. इन्हें बशीर की सरकार ने गैरअरब जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ दशक भर पहले इस्तेमाल किया था.मिलिशिया पर युद्ध अपराध के आरोप भी लगे थे.
इसी आरएसएफ को नियमित सेना में शामिल करने को लेकर हुए मतभेद की वजह से दोनों जनरल आपस में भिड़ गये हैं. 2021 में दोनों जनरलों ने साथ मिलकर तख्तपलट किया था और तब जो करार हुआ था उसमें आरएसएफ को सेना में शामिल करने की बात थी. दोनों जनरल एक दूसरे पर लड़ाई शुरू करने और प्रमुख ठिकानों पर अपने नियंत्रण के दावों के साथ खुद को ज्यादा मजबूत बताने में जुटे हैं. इन ठिकानों में एयरपोर्ट और राष्ट्रपति भवन भी शामिल है लेकिन स्वतंत्र रूप से इन दावों की पुष्टि नहीं हो सकी है.
बेकसूर लोग बन रहे निशाना
वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के लिए काम कर रहे संयुक्त राष्ट्र के तीन लोगों ने सूडान के ताजा संघर्ष में जान गंवाई है. ये लोग दारफुर इलाके में काम कर रहे थे. इनकी मौत के बाद वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने देश में अपनी सारी गतिविधियां बंद कर दी हैं. सूडान के एक तिहाई लोग अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मानवीय सहायता पर निर्भर हैं.
संघर्ष के दौरान गोलीबारी में एक भारतीय की भी मौत हुई है. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक छिटक कर आई गोली लगने से उसकी मौत हुई. मरने वाले की पहचान 48 साल के अल्बर्ट ऑगस्टीन के रूप में हुई है. वह केरल के कन्नूर जिले के एक गांव का रहने वाला था.
खारतूम के एक बड़े हिस्से में बिजली की सप्लाई कट गई है और राशन की बहुत कम दुकानें ही खुल पा रही हैं. इन दुकानों तक सामान पहुंचाने वाली सप्लाई लाइन भी बाधित है और लोगों को रोजमर्रा के सामान की भारी समस्या हो सकती है.
संघर्ष खत्म करने की अपील
संघर्ष खत्म करने के लिए इलाके और दुनिया के दूसरे हिस्सों से लगातार अपील की जा रही है. अफ्रीकन यूनियन, अरब लीग और पूर्वी अफ्रीकी देशों के गुट आईजीएडी ने संघर्ष विराम की अपील की है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने चेतावनी दी है कि संघर्ष बढ़ने से "पहले से ही बदहाल मानवीय स्थिति और ज्यादा बुरे हाल में पहुंच जायेगी." अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने दोनों पक्षों से आग्रह किया है कि वो "तुरंत हिंसा बंद करने पर रजामंद हों" और बातचीत शुरू करें.
इन अपीलों के बावजूद दोनों जनरल फिलहाल संघर्षविराम या बातचीत के मूड में नहीं दिख रहे हैं. दोनों ने एक दूसरे को "अपराधी" कहा है. रविवार की शाम दोनों घायलों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए रास्ता देने के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर सहमत हुए लेकिन गोलीबारी उस दौरान भी नहीं थमी. स्वास्थ्यकर्मी एंबुलेंसों के लिए सुरक्षित रास्ता और घायलों के इलाज के लिए संघर्ष विराम की मांग कर रहे हैं. गोलीबारी के बीच घायलों को सड़क मार्ग से अस्पताल ले जाना बहुत खतरनाक है.
सूडान का संघर्ष
आजादी के बाद से ही सूडान लगातार गृहयुद्धों, तख्तपलट और विद्रोह में घिरा रहा है. हालांकि सूडानी विश्लेषक खोलूद खैर का कहना है कि इस समय जिस तरह की लड़ाई राजधानी में चल रही है वह "अभूतपूर्व" है. खैर का कहना है, "सूडान के इतिहास में पहली बार निश्चित रूप से आजादी के बाद खारतूम के केंद्र में इस स्तर पर हिंसा हो रही है." खैर ने बताया कि आरएसएफ ने "रणनीतिक" रूप से पहले ही "घनी आबादी वाले इलाकों" में अपने अड्डे बना लिए था ताकि संघर्ष की स्थिति में "आम नागरिकों की बड़ी संख्या में मौत" को बचाव के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके. खैर ने कहा, "निश्चित रूप से अब हम जानते है कि वे लोग संपूर्ण वर्चस्व के लिए इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश में हैं और ऐसे में आम लोगों की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं है."
संघर्ष ने सूडान के दूसरे इलाकों को भी अपनी चपेट में ले लिया है, इनमें पश्चिमी दारफुर का इलाका और पूर्वी सीमा पर कसाला राज्य में संघर्ष तेज है. 2021 में जनरलों ने तख्तापलट कर नागरिक शासन की तरफ बढ़ते कदमों पर विराम लगा दिया था. यह प्रक्रिया 2019 में बशीर के सत्ता से हटने के बाद शुरू हुई थी. इसके नतीजे में अंतरराष्ट्रीय सहायता में कटौती बंद हो गई थी और साप्ताहिक विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया था जिसे क्रूर तरीके से दबाने की भी कोशिशें हुई थीं.
अब जेल में बंद बशीर के शासन में धीरे धीरे सफलता की सीढ़ियां चढ़े बुरहान ने तख्तापलट को शासन व्यवस्था में ज्यादा धड़ों को शामिल करने के लिए जरूरी बताया था. दागलो ने बाद में तख्तपलाट को "भूल" बताया जो बदलाव लाने में नाकाम रहा और बशीर की सत्ता के बचे खुचे लोगों को दोबारा शासन व्यवस्था में मजबूत कर गया. बशीर की सत्ता को 2019 में भारी प्रदर्शनों के बाद सेना ने हटाया था.
एनआर/एडी (एएफपी)
अमेरिकी अभियोजकों ने चीन की सरकार से असहमति जताने वालों की निगरानी और उन्हें परेशान करने की कथित गतिविधियों के लिए 34 चीनी सुरक्षा अधिकारियों पर आरोप लगाए हैं.
अमेरिकी अभियोजकों ने सोमवार को कहा कि कथित रूप से एक चीनी "गुप्त पुलिस स्टेशन" चलाने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है. यह केंद्र मैनहैटन के चाइनाटाउन इलाके में था.
इन दो लोगों पर अमेरिकी अधिकारियों को सूचित किए बिना चीन की सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करने की साजिश रचने और साथ ही न्याय में बाधा डालने का आरोप है. गिरफ्तारी के बाद इन दोनों को न्यूयॉर्क की एक अदालत में पेश किए जाने की उम्मीद है.
ब्रुकलिन के शीर्ष संघीय अभियोजक ब्रियोन पीस ने कहा, "न्यूयॉर्क शहर के मध्य में एक गुप्त पुलिस स्टेशन स्थापित करने का यह मामला चीनी सरकार द्वारा हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता का घोर उल्लंघन है."
उन्होंने कहा, "हमें अपने महान शहर में एक गुप्त पुलिस थाने की न तो जरूरत है और न ही हम चाहते हैं."
चीनी प्रवासियों के खिलाफ दमन योजनाएं
अमेरिकी अभियोजकों का कहना है कि गिरफ्तार किए गए दो लोगों में से एक ने चीन के एक संदिग्ध भगोड़े को स्वदेश लौटने के लिए मनाने की कोशिश की. उस व्यक्ति ने प्रताड़ित किए जाने और धमकी दिए जाने की बात भी कही है.
अभियोजकों ने यह भी कहा कि चीनी सरकार ने कथित एजेंट को 2022 में कैलिफोर्निया निवासी का पता लगाने में मदद करने के लिए कहा, जिसे लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता माना जाता है.
अभियोजकों के मुताबिक दोनों गिरफ्तार लोगों ने एफबीआई के सामने स्वीकार किया कि जब उन्हें पता चला कि वे जांच के दायरे में हैं, तो उन्होंने चीनी सरकार के साथ सभी संवाद डिलीट कर दिए.
सोमवार को ही अभियोजकों ने 34 चीनी सुरक्षा अधिकारियों को अमेरिका में रहने वाले असंतुष्टों की निगरानी और उत्पीड़न का अभियान चलाने के तरीके से संबंधित विभिन्न मामलों का आरोप लगाया.
ब्रुकलिन के शीर्ष संघीय अभियोजक ने कहा कि "उनपर न्यूयॉर्क शहर और अमेरिका में कहीं और रहने वाले चीनी प्रवासियों को निशाना बनाने वाली अंतरराष्ट्रीय योजनाओं से संबंधित होने के आरोप लगे हैं."
गुप्त निगरानी केंद्रों को लेकर एफबीआई चिंतित
इससे पहले संघीय अभियोजकों ने चीन और अन्य देशों के एक दर्जन से अधिक नागरिकों पर अमेरिका में रहने वाले असहमत लोगों के खिलाफ निगरानी और उत्पीड़न का अभियान चलाने का आरोप लगाया था.
नवंबर 2022 में एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर रे ने एक अमेरिकी सीनेट समिति को बताया कि वह अमेरिकी शहरों में गुप्त निगरानी केंद्रों की उपस्थिति के बारे में "बहुत चिंतित" थे. उन्होंने कहा कि बीजिंग ने गुप्त पुलिस की मौजूदगी स्थापित कर अमेरिका की संप्रभुता का उल्लंघन किया है.
अमेरिका एकमात्र ऐसा देश नहीं है जिसने अपने यहां पर अवैध चीनी पुलिस स्टेशनों की मौजूदगी की रिपोर्ट की है. पिछले साल के अंत में नीदरलैंड्स ने कहा कि उसने एम्स्टर्डम और रॉटरडैम में दो कथित चीनी कानून प्रवर्तन केंद्रों की जांच शुरू की थी.
पिछले साल ‘सेफगार्ड डिफेंडर्स' नाम के एक मानवाधिकार संगठन ने कुछ चीनी ‘सेवा केंद्रों' के बारे में खुलासा किया था. स्पेन स्थित इस संगठन ने सितंबर से अब तक दो रिपोर्ट प्रकाशित की हैं जिनमें कहा गया है कि चीन ने 53 देशों में 102 पुलिस थाने स्थापित कर लिए हैं. इनमें सबसे ज्यादा 11 इटली में हैं.
एए/सीके (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
सूडान, 18 अप्रैल । सूडान में सेना और अर्द्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्स के बीच चल रहे हथियारबंद संघर्ष के दौरान एक अमेरिकी राजनयिक क़ाफ़िले पर हमला हुआ है. हालांकि इसमें किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इस घटना की जानकारी देते हुए कहा, ''ये लापरवाही भरी कार्रवाई है. निश्चित तौर पर ये गैर जिम्मेदाराना है और असुरक्षित है.''
इससे पहले ख़बर थी कि सूडान में ईयू के राजदूत एडेन ओ'हारा पर खार्तूम स्थित उनके घर पर हमला किया गया था. हालांकि आयरलैंड के विदेश मंत्री माइकल मार्टिन ने बताया कि ओ'हारा को ज्यादा चोट नहीं आई है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ सूडान में सेना और अर्द्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्स के बीच तीन दिन से चले आ रहे संघर्ष में 185 लोग मारे गए हैं और 1800 से अधिक लोग घायल हुए हैं.
खार्तूम में हवाई हमले, बमबारी और छोटे हथियारों से हमले हो रहे हैं. सेना और रैपिड सपोर्ट फोर्स दोनों ने खार्तूम की अहम जगहों पर कब्जे़ का दावा किया है.
विस्फोटों से बचने के लिए नागरिकों ने इनमें से कुछ ठिकानों पर शरण लिया हुआ है. (bbc.com/hindi)
अमेरिका के मैनहटन में कथित फर्ज़ी चाइनीज पुलिस स्टेशन चलाने के आरोप में दो लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.
ये गिरफ़्तारी मैनहटन के चाइनाटाउन इलाके में हुई है. गिरफ़्तार शख्स चीनी मूल के नागरिक हैं और न्यूयॉर्क सिटी में रहते हैं.
दोनों पर चीनी एजेंट के तौर पर साजिश रचने और न्याय में बाधा डालने का आरोप लगाया गया है.
उन्हें सोमवार को ब्रुकलिन के फेडरल कोर्ट में पेश किया गया.
चीन ने कई बार कहा है कि ऐसे थानों के संचालन में उसका हाथ नहीं है.
उसने उन्हें विदेश में रह रहे चीनी नागरिकों को सेवा देने वाला सर्विस सेंटर कहा है.
सोमवार को यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने बताया कि 61 वर्षीय लु जियानवांग और 59 वर्षीय चेन जिनपिंग ने चीनी के पब्लिक सिक्योरिटी मंत्रालय की ओर से मैनहटन में पहला विदेशी पुलिस थाना खोलने की कोशिश की थी. (bbc.com/hindi)
सऊदी, 17 अप्रैल । दुनिया की सबसे बड़ी तेल-गैस कंपनियों में से एक सऊदी अरामको ने अपनी चार फीसदी हिस्सेदारी देश के सोवरेन वेल्थ फंड सनाबिल इनवेस्टमेंट्स को दे दी है.
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने रविवार को इसका ऐलान किया.
सऊदी प्रेस एजेंसी ने कहा है कि पब्लिक इनवेस्टमेंट फंड के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने सऊदी अरामको के चार फीसदी शेयर सरकार के मालिकाना हक वाले सनाबिल इनवेस्टमेंट्स को ट्रांसफर करने का ऐलान किया है.
यह पब्लिक इनवेस्टमेंट फंड की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है. अरामको में सऊदी सरकार की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है.
अभी भी इसके पास कंपनी की 90.18 फीसदी हिस्सेदारी है. सनाबिल इनवेस्टमेंट्स हर साल लगभग तीन अरब डॉलर का प्राइवेट ट्रांजेक्शन करता है.
सऊदी के क्राउन प्रिंस का कहना है कि उनका देश अपनी अर्थव्यवस्था की निर्भरता तेल पर खत्म करना चाहता है. ये फैसला उसी रणनीति का हिस्सा है. (bbc.com/hindi)
न्यूयॉर्क, 17 अप्रैल | भारतीय मूल की शिक्षाविद नीली बेंदापुडी को अमेरिका और भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच अनुसंधान और अकादमिक साझेदारी के विस्तार पर केंद्रित एसोसिएशन ऑफ अमेरिकन यूनिवर्सिटीज (एएयू) कार्य-बल के पांच सह-अध्यक्षों में शामिल किया गया है। पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि बेंदापुडी जो पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी की अध्यक्ष हैं, कार्य-बल के लिए स्वभावत: उपयुक्त हैं। उच्च शिक्षा और व्यवसाय में एक नेता के रूप में उनका 30 साल का करियर है।
बेंदापुडी ने कहा, मैं ह्वाइट हाउस द्वारा गठित इस प्रतिभाशाली आर प्रतिबद्ध टीम की सह-अध्यक्ष चुने जाने पर सम्मानित महसूूस कर रही हूं जिसका लक्ष्य भारतीय और अमेरिकी विश्वविद्यालयों के बीच अंतर-विषयी साझेदारी को मजबूत करने के लिए सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, मानव रहित वाहनों, अंतरिक्ष अन्वेषण, एआई और डिजिटल बुनियादी ढांचा जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देना है।
उन्होंने एक बयान में कहा, हमारी भागीदारी अमेरिकी उच्च शिक्षा में पेन स्टेट की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है। मैं भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ पेन स्टेट की मौजूदा साझेदारी को आगे बढ़ाने और इस प्रभावशाली सहयोग का समर्थन करने के लिए हमारे अनुसंधान और अकादमिक विशेषज्ञता को सबसे आगे लाने के लिए तत्पर हूं।
एएयू ने महत्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकी पर बाइडेन प्रशासन की यूएस-भारत पहल के समन्वय में राष्ट्रीय कार्य-बल बनाया है, जो दोनों देशों के बीच तकनीकी और औद्योगिक सहयोग को बढ़ाना चाहता है।
भविष्य की साझेदारी के लिए ब्लूप्रिंट प्रदान करने में सक्षम मौजूदा कार्यक्रमों की पहचान करने और आगे बढ़ने के लिए सर्वोत्तम तरीके से रणनीति तैयार करने के लिए कार्य-बल द्विपक्षीय अनुसंधान और शिक्षा सहयोग के लिए फोकस क्षेत्रों को निर्धारित करने के लिए मासिक रूप से बैठक करेगा।
विश्वविद्यालय के एक बयान में कहा गया है कि भारत में कॉलेज-आयु के छात्रों की बढ़ती आबादी को देखते हुए, पेन स्टेट सावधानी से इस बात पर विचार करेगा कि आने वाले महीनों में आर्टिक्यूलेशन समझौतों को कैसे प्रबंधित किया जाए और भारतीय संस्थानों से क्रेडिट कैसे स्थानांतरित किया जाए।
बेंदापुडी लुइसविल विश्वविद्यालय की अध्यक्ष थीं, जहां उन्होंने शिक्षा, वित्त, स्वास्थ्य उद्यम, परोपकार, एथलेटिक्स, विविधता, इक्विटी और समावेशन तथा अन्य क्षेत्रों में कई सुधारात्मक प्रयासों को अपनी देखरेख में क्रियान्वित किया।
भारत में जन्मी और पली-बढ़ी, बेंदापुडी ने आंध्रा यूनिवर्सिटी से स्नातक और एमबीए की डिग्री हासिल की। इसके बाद वह उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैंसस से मार्केटिंग में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनके पिता ने भी अमेरिकी विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की थी।
उन्होंने कैंसस यूनिवर्सिटी में प्रोवोस्ट और कार्यकारी वाइस चांसलर और यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ बिजनेस में डीन के पद पर काम किया है। वह ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में इनिशिएटिव फॉर मैनेजिंग सर्विसेज की संस्थापक निदेशक भी रही हैं।
दुनिया की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों और संगठनों के लिए कंसल्टिंग का काम करने के अलावा, वह हंटिंगटन नेशनल बैंक की कार्यकारी उपाध्यक्ष और चीफ कस्टमर ऑफिसर थीं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 अप्रैल । इंडोनेशिया के पापुआ में न्यूज़ीलैंड के एक अपहृत पायलट की तलाश के दौरान विद्रोहियों ने हमला कर दिया. इसमें एक इंडोनेशियाई सैनिक की मौत हो गई.
हालांकि विद्रोहियों ने दावा किया है कि उन्होंने 11 इंडोनेशियाई सैनिकों को मारा है.
एसोसिएटेड प्रेस ने सेना के सूत्रों के हवाले से कहा है कि कम से कम छह लोगों की मौत हुई है.
ये सैनिक न्यूज़ीलैंड के अपहृत एक पायलट फिलीप मर्टन्स को तलाशने के अभियान पर थे. उनका इस साल फरवरी में अपहरण किया गया था.
दरअसल पापुआ कि विद्रोही दशकों से इंडोनेशिया से अपनी आज़ादी की मांग कर रहे हैं. इंडोनेशियाई सैनिकों पर उस समय हमला किया गया जब वे मर्टन्स को तलाश रहे थे.
इस तलाशी अभियान पर उस समय हमला किया गया था जब टीम एनड्यू पहाड़ियों में खोजबीन कर रही थी. वेस्ट पापुआ नेशनल लिबरेशन आर्मी ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है.
उसने कहा है कि ये हमला उसके ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अभियान की वजह से किया गया. (bbc.com/hindi)
सूडान में सैन्य गुटों में आपसी संघर्ष और टकराव अब पूरे देश में फैल गया है. कई जगहों से हिंसा की ख़बरें आ रही हैं.
संघर्ष के केंद्र ख़ार्तूम शहर की सड़कें वीरान दिख रही हैं. रविवार को दोनों गुटों ने यहां की मुख्य सड़कें बंद कर दी थीं.
अब तक इस संघर्ष में 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई और 1000 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं.
रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स (आरएसएफ) और सेना के बीच का संघर्ष अब लगभग देशव्यापी हो गया है. चश्मदीदों का कहना है इस संघर्ष में आगे चल कर सेना को बढ़त मिल सकती है.
हालांकि रविवार को आरएसएफ़ ने राजधानी ख़ार्तूम और इससे सटे शहर ओमदुरमैन के अलावा पश्चिम में दारफ़ुर और मिरोये एयरपोर्ट पर क़ब्ज़े का दावा किया.
रविवार को कुछ देर के लिए दोनों गुटों ने थोड़ी देर के लिए युद्धविराम घोषित किया था ताकि घायलों को संघर्ष स्थल से हटाया जा सके.
हालांकि इसका कड़ाई से पालन नहीं हो रहा था.
सूडान में ये संघर्ष प्रतिद्वंद्वी गुटों के राजनीतिक वर्चस्व कायम करने का नतीजा हैं.
देश के सैन्य नेतृत्व के अंदर वर्चस्व की लड़ाई की वजह से यह संघर्ष काफ़ी पेचीदा हो गया है. (bbc.com/hindi)
खार्तूम/नयी दिल्ली, 16 अप्रैल। सूडान की राजधानी खार्तूम एवं अन्य इलाकों में लगातार दूसरे दिन रविवार को सेना और अर्द्धसैनिक बल के बीच झड़प जारी रही, जिसमें एक भारतीय समेत कम से कम 56 लोगों की मौत हो गई।
यह घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि संघर्षविराम के लिए राजनयिक दबाव के बावजूद दोनों पक्ष अपनी शत्रुता पर विराम लगाने को अनिच्छुक हैं।
राजधानी खार्तूम , नजदीक के ओमदुरमन एवं अन्य स्थानों पर रविवार को भीषण लड़ाई जारी रही, जिसमें बख्तरबंद वाहनों, लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया गया।
इस हिंसा में संयुक्त राष्ट्र खाद्य एजेंसी के तीन कर्मियों समेत कम से कम 56 नागरिकों की जान गयी है।
चिकित्सकों के संगठन सूडान डॉक्टर्स सिंडिकेट ने बताया कि उसे लगता है कि दोनों पक्षों के बीच दर्जनों मौते हुई हैं और नागरिकों एवं लड़ाकों समेत 600 लोग घायल हुए हैं। इस घटनाक्रम से, लोकतंत्र बहाल करने की उम्मीदों को एक बार फिर झटका लगा है।
यह हिंसा सशस्त्र बलों के कमांडर अब्देल फतेह अल बुरहान और रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ) के प्रमुख जनरल मोहम्मद हमदान दागलो के बीच सत्ता के लिए संघर्ष का हिस्सा है।
दोनों ही जनरल पूर्व सहयोगी हैं जिन्होंने अक्टूबर 2021 में सैन्य तख्तापलट किया था और सूडान का अल्पकालीन लोकतंत्र पटरी से उतर गया था।
हाल के महीनों में अंतरराष्ट्रीय समर्थन से बातचीत होने से लोकतंत्र की ओर व्यवस्थित बदलाव की आस जगी थी, लेकिन बुरहान और दागलो के बीच बढ़ते तनाव से राजनीतिक दलों के बीच समझौता होने की उम्मीद अधर में लटक गई है।
सेना और उसके पूर्व साझेदार तथा अब प्रतिद्वंद्वी रैपिड सपोर्ट फोर्स समूह के बीच महीनों के तनाव के बाद झड़प हुई है।
बुरहान के नेतृत्व वाली सेना ने एक बयान में आरएसएफ के साथ बातचीत से इनकार करते हुए इसे भंग करने की बात कही है और इसे ‘बागी मिलिशिया’ करार दिया है।
वहीं अर्द्धसैनिक समूह ‘आरएसएफ’ ने सशस्त्र बलों के प्रमुख को ‘अपराधी’ बताया है। वर्ष 2021 में देश में तख्तापलट हुआ था और अब इस तरह के संकेत मिल रहे हैं कि दोनों पक्षों के बीच संघर्ष जारी रह सकता है।
दागलो की अगुवाई वाले आरएसएफ का सशस्त्र बलों में एकीकरण को लेकर सहमति न बन पाने की वजह से यह तनाव उत्पन्न हुआ है।
हिंसा शनिवार सुबह शुरू हुई। राजधानी खार्तूम में अराजक स्थिति है, जहां लड़ाके ट्रक पर रखी मशीन गन से अंधाधुंध गोलीबारी कर रहे हैं। सेना ने शनिवार शाम एक बयान में बताया था कि उसके सैनिकों ने उम्म दुरमान शहर स्थित आरएसएफ के सभी अड्डों पर कब्जा कर लिया है, जबकि लोगों ने बताया कि राजधानी के आसपास अर्द्धसैनिक बल की चौकियों पर हवाई हमले किए गए हैं।
सैन्य मुख्यालय के समीप रहने वाले एक प्रमुख मानवाधिकार वादी वकील तहानी अबास ने कहा , ‘‘लड़ाई अभी रूकी नहीं है।’’
सेना और आरएसएफ ने खार्तूम और अन्य स्थानों पर रणनीतिक जगहों पर अपने नियंत्रण में होने का दावा किया है लेकिन उनके दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्ट नहीं हो पायी है।
इस बीच खार्तूम में भारतीय दूतावास ने बताया कि मृतकों में एक भारतीय भी शामिल है, जिसकी पहचान अल्बर्ट ऑगस्टाइन के तौर पर हुई है। वह सूडान में डल ग्रुप कंपनी में काम करता था।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारतीय नागरिक की मौत पर संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि खार्तूम की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है और भारत उस देश के घटनाक्रमों पर नजर बनाये रखेगा।
भारतीय मिशन ने ट्वीट किया, “बताया गया है कि सूडान में डल ग्रुप कंपनी में काम करने वाले भारतीय नागरिक अल्बर्ट ऑगस्टाइन को कल एक गोली लगी थी, जिस वजह से उनकी मौत हो गई।”
मिशन ने कहा, “दूतावास आगे की प्रक्रिया के लिए परिवार और चिकित्सा अधिकारियों के संपर्क में है।”
जयशंकर ने कहा कि वह भारतीय नागरिक की मौत से ‘बहुत दुखी’ हैं।
उन्होंने ट्वीट किया, “दूतावास परिवार को पूरी सहायता देने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है।”
इस बीच, सूडान पर कूटनीतिक दबाव बढ़ता दिखाई दिया। अमेरिकी विदेश मंत्री, संयुक्त राष्ट्र महासचिव, यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख, अरब लीग के प्रमुख और अफ्रीकी संघ आयोग के प्रमुख सहित शीर्ष राजनयिकों ने दोनों पक्षों से लड़ाई रोकने का आग्रह किया है। (एपी/भाषा)
पुलवामा हमले पर जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के हालिया बयान पर पाकिस्तान ने भारतीय नेतृत्व पर कई तरह के आरोप लगाते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है.
पाकिस्तान ने रविवार को आरोप लगाया कि सत्यपाल मलिक के ताज़ा रहस्योद्घाटन से एक बार फिर साबित हुआ कि भारतीय नेतृत्व पाकिस्तान संचालित 'आतंकवाद' का हौवा खड़ा करता रहा है.
उसने घरेलू राजनीतिक लाभ के लिए भारत को 'आतंकवाद' से पीड़ित दिखाने और हिंदुत्व के एजेंडे को लगातार आगे बढ़ाने का आदी बताया है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने रविवार को सत्यपाल मलिक के ताज़ा रहस्योद्घाटन पर जारी अपने आधिकारिक बयान में ये बातें कही हैं.
इसमें कहा गया, ''भारत के अवैध कब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर के तथाकथित पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने फरवरी 2019 में हुए पुलवामा हमले पर पाकिस्तान के रुख़ की एक बार फिर पुष्टि की है. उनके रहस्योद्घाटन से पता चलता है कि भारतीय नेतृत्व कैसे पाकिस्तान संचालित आतंकवाद का हौवा खड़ा करके घरेलू राजनीतिक लाभ के लिए ख़ुद को पीड़ित दिखाने और हिंदुत्व का एजेंडा आगे बढ़ाने का आदी रहा है.''
पाकिस्तान ने अपने इस बयान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भारत के तथाकथित प्रोपैगेंडा अभियान पर ध्यान देने की भी अपील की है.
बयान के अनुसार, ''हम उम्मीद करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ताज़ा रहस्योद्घाटन का संज्ञान लेगा और स्वार्थ भरे राजनीतिक लाभ के लिए पााकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत के झूठ और छल भरे प्रोपैगेंडा अभियान पर ध्यान देगा.''
पाकिस्तान ने ताज़ा रहस्योद्घाटन पर भारत से जवाब की मांग करते हुए कहा है, ''भारत को ताज़ा रहस्योद्घाटन में उठाए गए सवालों का अवश्य जवाब देना चाहिए. अब वक़्त आ गया है कि पुलवामा हमले के बाद इलाक़े की शांति को पहुंचे ख़तरे के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.''
बयान के अंत में कहा गया, ''पाकिस्तान, भारत के झूठे नैरेटिव का विरोध करता रहेगा और उकसावे वाली कार्रवाइयों का मज़बूती और ज़िम्मेदारी से मुक़ाबला करेगा.''
इससे पहले, जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जाने-माने पत्रकार करण थापर को दिए एक इंटरव्यू में 2019 में कश्मीर के पुलवामा हमले के लिए भारत सरकार को ज़िम्मेदार बताते हुए कई दावे किए थे.
शुक्रवार को प्रसारित इस इंटरव्यू में उन्होंने आरोप लगाया था कि पुलवामा में सीआरपीएफ के काफ़िले पर हुआ हमला सिस्टम की 'अक्षमता' और 'लापरवाही' का नतीजा था. उन्होंने उस हमले के लिए सीआरपीएफ और केंद्रीय गृह मंत्रालय को ख़ासतौर पर ज़िम्मेदार बताया था.
मलिक ने कहा था कि सीआरपीएफ ने सरकार से अपने जवानों को ले जाने के लिए विमान उपलब्ध कराने की मांग की थी, लेकिन गृह मंत्रालय ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था.
मालूम हो कि राजनाथ सिंह तब केंद्रीय गृह मंत्री थे. मलिक ने सीआरपीएफ का काफ़िला जाते वक़्त रास्ते की उचित तरीक़े से सुरक्षा जांच न कराने का भी आरोप भारत सरकार पर लगाया था.
मलिक ने इस हमले के लिए ख़ुफ़िया एजेंसियों की विफलता को भी ज़िम्मेदार क़रार दिया था. उन्होंने हैरत जताई थी कि पाकिस्तान से 300 किलोग्राम आरडीएक्स लेकर आया कोई ट्रक 10 से 15 दिनों तक जम्मू और कश्मीर में घूमता रहा, लेकिन इंटेलिजेंस को कैसे इसकी भनक तक न लगी.
चुनावी लाभ लेने के भी लगाए आरोप
सत्यपाल मलिक ने ये भी दावा किया कि पीएम मोदी ने इस हमले के बाद जब जिम कार्बेट पार्क से उन्हें कॉल किया था, तो उन्होंने इन मसलों को उनके सामने उठाया था. लेकिन पीएम मोदी ने उन्हें इस मसले पर चुप रहने और किसी से कुछ न बोलने को कहा था.
मलिक ने बताया कि यही बात एनएसए अजीत डोभाल ने भी उनसे कही थी.
इस इंटरव्यू में मलिक ने आरोप लगाया था कि उन्हें तभी अनुभव हो गया था कि सरकार का इरादा, इस हमले का ठीकरा पाकिस्तान पर फोड़कर चुनावी लाभ लेने का है. (bbc.com/hindi)
मुनज़्ज़ा अनवार
पाकिस्तान की संसद में शुक्रवार को सुरक्षा स्थिति पर ब्रीफ़िंग के दौरान आर्मी चीफ़ जनरल आसिफ़ मुनीर ने कहा कि हमें "नए और पुराने पाकिस्तान की बहस को छोड़कर हमारे पाकिस्तान की बात करनी चाहिए."
ध्यान रहे कि संसद का 'इन कैमरा' सेशन राष्ट्रीय असेंबली के स्पीकर की ओर से बुलाया गया था जिसमें सुरक्षा अधिकारियों ने मंत्रियों समेत असेंबली के सदस्यों को ब्रीफ़िंग दी.
इस मौक़े पर सेना प्रमुख के हवाले से एक बयान सामने आया जिसके अनुसार उन्होंने कहा कि जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि लक्ष्य निर्धारित करें. "पाकिस्तानी सेना देश की तरक़्क़ी और कामयाबी के सफ़र में उनका पूरा साथ देगी."
यहां यह बात स्पष्ट रहे कि सेना प्रमुख का यह बयान आईएसपीआर की ओर से सामने नहीं आया जिसका कारण बैठक का 'इन कैमरा' आयोजन बताया जाता है. आईएसपीआर पाकिस्तानी सेना की जनसंपर्क शाखा है.
लेकिन पाकिस्तान में पाई जाने वाली अस्थिर राजनीतिक परिस्थिति और सरकार व सुप्रीम कोर्ट के बीच पंजाब में चुनाव की तारीख़ और अदालती सुधारों को लेकर जारी कश्मकश के दौरान आर्मी चीफ़ के इस बयान को बहुत महत्व दिया जा रहा है और हर वर्ग व राजनीतिक दल अपने हिसाब से इसका अर्थ ढूंढते नज़र आ रहे हैं.
अधिकतर विश्लेषकों का मानना है कि हालांकि सेना प्रमुख ने स्पष्ट शब्द इस्तेमाल नहीं किए लेकिन इस संदेश से कुछ लोगों को यही लगता है कि सरकार और अदालत के बीच होने वाली मोर्चाबंदी में सेना प्रमुख ने एक पोजीशन ली है.
हमने कुछ राजनीतिक विश्लेषकों से बात करके यह समझने की कोशिश की है कि सेना प्रमुख के इस बयान में क्या कोई संदेश था और वर्तमान स्थितियों के मद्देनज़र इस बयान का क्या महत्व है. लेकिन इससे पहले एक नज़र डालते हैं तहरीक-ए-इंसाफ़ की प्रतिक्रिया पर.
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान ख़ान कई बार यह कह चुके हैं कि सेना के नेतृत्व से उनका कोई संपर्क नहीं. ऐसे में जब 'पीटीआई' के अध्यक्ष इमरान ख़ान के ख़ास समझे जाने वाले हस्सान नियाज़ी ने आर्मी चीफ़ के भाषण के बाद सोशल मीडिया पर लिखा कि 'क्या हमारा पाकिस्तान में वह लोग भी शामिल हैं जो इमरान खान से प्यार करते हैं' तो यह वाक्य तहरीक-ए-इंसाफ़ का सेना के नेतृत्व से सीधा सवाल लगा.
उन्होंने यह सवाल भी किया कि क्या "हमारे पाकिस्तान में हमारे पाकिस्तानियों की इज़्ज़त सुरक्षित है? क्या आलोचना की गुंजाईश होगी?"
लेकिन पीटीआई नेता और पूर्व मंत्री फ़व्वाद चौधरी ने सेना प्रमुख के बयान को सकारात्मक बताते हुए कहा, "आर्मी चीफ़ के संविधान और जनता के प्रतिनिधि के सम्मानित स्थान के बारे में विचार सही और स्वागत योग्य हैं, उन्होंने पहले भाषण में भी बड़े मामलों पर बातचीत और आम सहमति की ज़रूरत पर ज़ोर दिया था. ज़रूरत इस बात की है कि जनता को सर्वोपरि मानकर संविधान के तहत चुनाव का समर्थन किया जाए और जनता के फ़ैसलों का सम्मान किया जाए."
दूसरी और शीरीं मज़ारी कहती हैं कि निस्संदेह यह हमारा पाकिस्तान है, इसलिए हम इसके लिए लड़ रहे हैं.
वह कहती हैं कि हम सबके अलग-अलग वर्ज़न हैं. उनके अनुसार, "पीडीएम यानी पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट पुराना पाकिस्तान चाहती है जहां भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद का राज था. इस्टैब्लिशमेंट पारंपरिक पाकिस्तान चाहती है जहां उन्होंने जनता व जनतंत्र को धोखे में रखते हुए शासन किया जबकि पीटीआई संविधान, क़ानून के राज और हक़ीक़ी (वास्तविक) आज़ादी वाला और सामाजिक कल्याण की व्यवस्था के तहत परवान चढ़ने वाला नया पाकिस्तान चाहती है."
'पीटीआई की जगह सरकार के फ़ैसलों के साथ खड़े नज़र आते हैं'
तहरीक-ए-इंसाफ़ का पक्ष अपनी जगह लेकिन बीबीसी से बात करते हुए पत्रकार व विश्लेषक सोहैल वड़ाइच का कहना था कि आर्मी चीफ़ का संदेश बहुत स्पष्ट है कि "वह सरकार और संसद के साथ खड़े हैं, और स्पष्ट है कि अगर सरकार व अदालत के विवाद और दूसरी परिस्थितियों को मद्देनज़र रखा जाए तो वह सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों या पीटीआई की तुलना में सरकार और संसद के फ़ैसलों के साथ ज़्यादा खड़े नज़र आते हैं."
उनका यह भी कहना था कि सैद्धांतिक तौर पर तो सेना समय की सरकार के साथ ही होती है और सेना का सरकार के साथ न होना असामान्य बात होती है.
वह इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं कि अतीत में "मुस्लिम लीग नवाज़ की पिछली सरकार में सेना उनके साथ नहीं थी और उस समय सेना पीटीआई का समर्थन कर रही थी लेकिन इस समय सरकार और सेना वैसे ही इकट्ठे हैं जैसे पीटीआई की सरकार के समय में थे."
सोहैल वड़ाइच कहते हैं कि फ़ौज कहती तो है कि वह न्यूट्रल है लेकिन ज़ाहिर है इस समय वह पीटीआई की तुलना में सरकार के अधिक क़रीब है और सरकार व संसद के साथ खड़ी है और (सरकार के) ये फ़ैसले इमरान ख़ान और सुप्रीम कोर्ट के ख़िलाफ़ हैं.
याद रहे कि पूर्व सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने बतौर आर्मी चीफ़ अपने आखिरी भाषण में दावा किया था कि पिछले साल फ़रवरी में सैन्य नेतृत्व ने बड़े विचार विमर्श के बाद सामूहिक तौर पर फ़ैसला किया है कि इस्टैब्लिशमेंट भविष्य के राजनीतिक मामलों में कभी हस्तक्षेप नहीं करेगी. उन्होंने यह भी कहा था, "मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि हम (फ़ौज) इस पर सख़्ती से टिके हैं और टिके रहेंगे."
बीबीसी से बातचीत में उनका कहना है, "वर्तमान परिस्थिति में न्यायपालिका पीटीआई के साथ जबकि मिलिट्री इस्टैब्लिशमेंट सरकार के साथ खड़ी नज़र आ रही है. अगर यह परिदृश्य न होता तो यह एक आम बयान था लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इसका महत्व बढ़ गया है."
वह कहते हैं कि आर्मी चीफ़ के बयान के दो हिस्से हैं, पहले (हमें नए और पुराने पाकिस्तान की बहस को छोड़कर हमारे पाकिस्तान की बात करनी चाहिए) में उन्होंने विवाद के हल की बात की है.
वह कहते हैं, "पुराने पाकिस्तान का मतलब है पुरानी राजनीतिक पार्टियां, और पीटीआई अपने आपको नया पाकिस्तान कहती है और यही पाकिस्तान में राजनीतिक विवाद की वजह बन गई है जिसने देश की संस्थाओं को भी एक दूसरे के सामने ला खड़ा किया है."
ज़ैग़म ख़ान कहते हैं कि आर्मी चीफ़ ने इस हिस्से में कॉमन ग्राउंड (साझा आधार) और मिलकर भविष्य के लिए इकट्ठे होने की बात की है और इसमें उन्होंने किसी का समर्थन नहीं किया है.
लेकिन वह यह भी कहते हैं के दूसरे हिस्से (जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि लक्ष्य तय करें, पाकिस्तानी सेना देश के विकास और उसकी सफलता की यात्रा में उनका भरपूर साथ देगी) का मतलब यह लिया जा रहा है कि वह संसद के साथ हैं और न्यायपालिका के साथ नहीं.
ज़ैग़म ख़ान कहते हैं, "आर्मी चीफ़ को यह बयान देने की ज़रूरत ही क्यों पड़ी? इसी से साफ़ होता है कि हमारे देश का स्ट्रक्चर कितना अस्थिर हो गया है."
फ़ौज के न्यूट्रल होने के संबंध में वह कहते हैं, "शायद इस्टैब्लिशमेंट सरकार को अधिक पसंद न करती हो और वह पीडीएम का उतना साथ न दे जितना उसने इमरान ख़ान का दिया मगर इस्टैब्लिशमेंट और पीटीआई के संबंध बहुत ख़राब हो गए हैं और इस बात के स्पष्ट इशारे हैं कि सेना सरकार के साथ खड़ी है और इस समय देश की संस्थाओं की आपस में लड़ाई है जिसमें फ़ौज न्यूट्रल नहीं रह सकती."
'यह किसी के समर्थन या विरोध में नहीं है'
पत्रकार व टीकाकार नुसरत जावेद इस राय से सहमत नहीं है कि सेना प्रमुख ने किसी के समर्थन का संकेत दिया है.
उनका मानना है कि आर्मी चीफ़ ने केवल इतना कहा है कि फ़ौज अब दूसरों की लड़ाइयां नहीं लड़ेगी, उन्होंने एक बार फिर से अपना यह दावा दोहराया है कि राजनीतिक मामलों में सेना निरपेक्ष है और यह बयान किसी के समर्थन या विरोध में नहीं है.
बीबीसी से बात करते हुए उनका कहना था, "हमारे इतिहास के संदर्भ में देखा जाए तो सेना प्रमुख ने बहुत अच्छी और सकारात्मक बात की है जिसका वर्तमान राजनीतिक स्थिति में कौन फ़ायदा उठाएगा या उठा सकता है, वह एक अलग बहस है."
नुसरत जावेद कहते हैं कि बहुत से लोगों का मानना है कि जैसे आर्मी चीफ़ वर्तमान सरकार के समर्थन में डट कर खड़े हो गए हैं, मैं ऐसा नहीं समझता.
उनका कहना है कि आर्मी चीफ़ ने तो जनप्रतिनिधियों की बात की है.
जब उनसे सवाल किया गया कि इस समय संसद में बैठे निर्वाचित प्रतिनिधियों में पीटीआई चेयरमैन इमरान ख़ान तो शामिल नहीं हैं तो नुसरत जावेद का कहना था कि आर्मी चीफ़ को शायद एहतियात के तौर पर यह बात भी कह देनी चाहिए थी… और जब बात इमरान ख़ान जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय नेता की हो."
पाकिस्तान में 93 रुपए की चीनी अफ़ग़ानिस्तान में 193 रुपए किलो कैसे स्मगल हो रही?
'सेना प्रमुख की बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता'
बीबीसी से बात करते हुए पत्रकार हामिद मीर का कहना है कि किसी आर्मी चीफ़ ने संसद में खड़े होकर पहली बार बयान नहीं दिया लेकिन आर्मी चीफ़ की बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
"अगर वह संसद में खड़े होकर यह कह रहे हैं कि जनता द्वारा निर्वाचित सदन जो भी फ़ैसला करेगा हम उस पर अमल करेंगे, इससे यही लगता है कि वह संसद के साथ खड़े हैं और अगर इस समय संसद और सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई है, तो आर्मी चीफ़ ने कह दिया है कि हम जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के सदन के साथ हैं और इसमें छोटी सी अपोजीशन भी शामिल है."
ध्यान रहे कि पाकिस्तान एक संसदीय लोकतंत्र है और देश का संविधान सेना को राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देता लेकिन क़ानूनी सीमा के उलट फ़ौज का इतिहास मार्शल लॉ, प्रत्यक्ष हस्तक्षेप और परोक्ष राजनीतिक जोड़-तोड़ के उदाहरणों से भरा हुआ है.
सेना के निरपेक्ष रहने के बारे में हामिद मीर का कहना है कि यह कहना कि फ़ौज न्यूट्रल है, एक ड्रामा होगा. "फ़ौज तो कभी न्यूट्रल नहीं होती, इमरान ख़ान के दौर में भी न्यूट्रल नहीं थी, अब भी न्यूट्रल नहीं है और आजकल फ़ौज पीडीएम के साथ है." (bbc.com/hindi)
सुसिता फर्नांडो
कोलंबो, 16 अप्रैल | कर्ज से जूझ रहे श्रीलंका के कृषि मंत्री ने पिछले हफ्ते देश के सबसे बड़े द्विपक्षीय ऋणदाता चीन को 1 लाख बंदरों के निर्यात की घोषणा की।
मंत्री महिंदा अमरवीरा के अनुसार इसका उद्देश्य श्रीलंका को स्थानीय टोके मकाक या आम बंदरों से छुटकारा दिलाना है, जो फसलों को नष्ट कर किसानों के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं।
हालांकि, चीन को बंदरों के निर्यात का पर्यावरणविदों और पशु अधिकार कार्यकर्तार्ओं ने विरोध किया है। उनका कहना है कि ऐसा करने से पहले व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है। देश में 40 वर्षों में बंदरों की कोई जनगणना नहीं हुई है।
अग्रणी पर्यावरण अधिकार कार्यकर्ता जगत गुणवर्धन ने उन जानवरों के निर्यात की योजना पर स्पष्टता और पारदर्शिता की मांग की है, जो श्रीलंका में संरक्षित प्रजाति नहीं हैं, लेकिन लुप्तप्राय जानवरों की अंतरराष्ट्रीय लाल सूची में हैं। उन्होंने कहा, हम जानना चाहते हैं कि चीन इतने सारे बंदर क्यों चाहता है। उसे बताना चाहिए कि वह इनका इनका इस्तेमाल मांस, चिकित्सा अनुसंधान या किसी अन्य किस उद्देश्य के लिए करेगा।
पर्यावरणविद् और पशु अधिकार कार्यकर्ता चीन के साथ बंदर व्यापार करने के खिलाफ हैं। वे पाकिस्तान के साथ चीन के गधे के व्यापार पर भी संदेह करते हैं। पिछले अक्टूबर में चीन ने यह घोषणा की थी कि वह श्रीलंका जैसे नकदी की तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान से गधे और कुत्ते आयात करने का इच्छुक है। गधे का इस्तेमाल वहां चीनी पारंपरिक दवा ईजाओ में किया जाता है। इसके अलावा गधे की खाल से जिलेटिन का निर्माण भी किया जाता है। माना जाता है कि गधे में औषधीय गुण होते हैं।
कार्यकर्ताओं का विरोध उचित प्रतीत होता है क्योंकि चीन के साथ व्यापार किसी अन्य देश के विपरीत संदेह के साथ की जाती है। किसी भी पक्ष द्वारा चीन को संभावित बंदर निर्यात का कोई वित्तीय विवरण तत्काल प्रकट नहीं किया गया है।
चीन ने श्रीलंका के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, बंदरगाह, राजमार्ग आदि परियोजनाओं में भी निवेश किया है। लेकिन इनका कोई लाभ नहीं मिल रहा। ये परियोजनाएं सफेद हाथी बनी हैं। अब प्रश्न पूछा जा रहा है कि बीजिंग का सबसे बड़ा ऋणी बनकर श्रीलंका को क्या लाभ हुआ। इसका कोई समुचित उत्तर नहीं आ रहा है।
इस सप्ताह के दो अन्य एशियाई दिग्गजों, जापान और भारत ने फ्रांस के साथ मिलकर श्रीलंका के ऋण पुनर्गठन के समन्वय के लिए द्विपक्षीय लेनदारों के बीच बातचीत के लिए एक साझा मंच की घोषणा की। हालांकि, चीन ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह आईएमएफ बेलआउट कार्यक्रम के अनुरूप 2022 और 2023 के लिए द्वीप राष्ट्र को ऋण राहत प्रदान करेगा।
जापानी वित्त मंत्री शुनिची सुजुकी ने ऋण राहत के लिए गठित होने वाले मंच में चीन को भी आमंत्रित किया है। उन्होंने कहा कि यह बहुत अच्छा होगा यदि चीन इसमें शामिल होगा।
जापानी वित्त मंत्री के अनुरोध के जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने श्रीलंका की ऋण सेवा के विस्तार को दोहराया।
बीजिंग के प्रवक्ता ने कहा, श्रीलंका को उपर्युक्त अवधि के दौरान बैंक (चीन के एक्जिम बैंक) के ऋणों का मूलधन और ब्याज नहीं चुकाना होगा, ताकि श्रीलंका को अल्पकालिक ऋण चुकौती दबाव को दूर करने में मदद मिल सके।
प्रस्तावित मंच और अन्य ऋण पुनर्गठन उपायों की श्रीलंका को 2.9 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज को सुरक्षित करने और 2029 तक सालाना लगभग 6 बिलियन उॉलर का पुनर्भुगतान शुरू करने की आवश्यकता है।
जिन प्रमुख देशों ने मंच की शुरुआत की, उन्हें उम्मीद है कि यह मध्यम आय वाले देशों के कर्ज के बोझ को हल करने के लिए एक मॉडल होगा।
लेकिन यह अनिश्चित है कि चीन इस ऐतिहासिक पहल में शामिल होगा या नहीं। जापान के शीर्ष मुद्रा राजनयिक मासाटो कांडा ने कहा कि समूह ने चीन सहित श्रीलंका के सभी द्विपक्षीय लेनदारों को निमंत्रण भेजा है और जल्द से जल्द पहले दौर की वार्ता आयोजित करने की उम्मीद है।
अपने दक्षिणी पड़ोसी का समर्थन करने के लिए एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक भूमिका निभाते हुए, भारत पूरे संकट के दौरान श्रीलंका के साथ रहा। भारत और जापान की अनदेखी करते हुए श्रीलंका ने कई मौकों पर चीन कार्ड खेला है, इसके बावजूद भारत ने सबसे पहले श्रीलंका को ऋण राहत सहायता के लिए आईएमएफ को सूचित किया था।
इसी भावना के साथ काम करते हुए पिछले हफ्ते भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आईएमएफ-विश्व बैंक स्प्रिंग मीटिंग्स के मौके पर एक उच्च-स्तरीय बैठक में भाग लेते हुए आर्थिक संकट से निपटने में श्रीलंका की मदद करने की भारत की प्रतिबद्धता की घोषणा की। सीतारमण ने जोर देकर कहा कि ऋण पुनर्गठन चर्चाओं में सभी लेनदारों के साथ व्यवहार में पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित करने के लिए लेनदारों के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है। (आईएएनएस)
सऊदी, 16 अप्रैल । 10 मार्च 2022 को सऊदी अरब और ईरान के बीच दोबारा राजनयिक बहाल करने को लेकर समझौता हो गया. इस समझौते का असर केवल इन दोनों देशों पर ही नहीं लेकिन पूरे मध्यपूर्व और विश्व की व्यवस्था पर भी पड़ेगा.
यह समझौता किसी पश्चिमी देश की मध्यस्थता से नहीं बल्कि चीन की मध्यस्थता से हुआ है जिसके बीते कई सालों से अमेरिका के साथ रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं.
ईरान और सऊदी अरब के बीच धार्मिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक मतभेद भी रहे हैं. जहां सऊदी अरब एक राजतंत्र है जिसके पश्चिमी देशों से नज़दीकी संबंध हैं, वहीं ईरान थिओक्रेटिक देश है यानी यहां धर्मतंत्र है और अमेरिकी उसे अपने दुश्मनों की श्रेणी में रखता है.
यूक्रेन युद्ध के दौरान ईरान ने रूस का साथ दिया है इस कारण भी अमेरिका और दूसरे पश्चिमी मुल्क उससे नाराज़ हैं.
साथ ही ईरान और सऊदी अरब के बीच क्षेत्र में वर्चस्व के लिए यमन में कई सालों से लड़ाई भी चलती रही है. मगर अब दोनों देशों के बीच एकदूसरे की सार्वभौमिकता का सम्मान करने को लेकर समझौता हो गया है जिसका श्रेय काफ़ी हद तक सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को जाता है. उन्हें एमबीएस के नाम से भी जाना जाता है.
इस हफ़्ते हम जानने की कोशिश करेंगे कि सऊदी अरब को लेकर युवराज मोहम्मद बिन सलमान या एमबीएस का क्या सपना है?
कौन हैं मोहम्मद बिन सलमान?
जब सऊदी अरब के शाह सलमान ने 2015 सत्ता संभाली तब उनका राजा बनना अनअपेक्षित था क्योंकि अपने सात भाइयों में वो सबसे छोटे थे और उत्तराधिकार पर उनका दावा सबसे नीचे था. मगर जब उन्होंने सत्ता संभाली तब उनकी उम्र अस्सी वर्ष हो चुकी थी.
सऊदी अरब की गद्दी पर बैठते ही उनकी पहली ज़िम्मेदारी थी अपना युवराज यानी उत्तराधिकारी नियुक्त करना. उन्होंने अपनी तीसरी पत्नी से जन्मे सबसे बड़े बेटे मोहम्मद बिन सलमान को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और अब सऊदी अरब में एमबीएस को ही सबसे बड़े निर्णयकर्ता के रूप में देखा जाता है.
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की उम्र तीस साल के क़रीब है. एमबीएस के बारे में हमारे पहले एक्सपर्ट स्टीफ़न कैलिन जो मध्यपूर्व में वॉल स्ट्रीट जर्नल के संवाददाता हैं, कहते हैं कि उनके युवा होने का असर उनकी नेतृत्व शैली में भी दिखाई देता है.
वो कहते हैं, "एमबीएस मिलेनियल पीढ़ी के हैं और आधुनिक तकनीक और ट्रेंड्स से भली भांति परिचित हैं. सऊदी अरब की लगभग सत्तर प्रतिशत आबादी तीस साल से कम की है, एमबीएस ख़ुद को उनके प्रतिनिधि की तरह देखते हैं. वो उन्हें आकर्षित करना चाहते हैं और उसे ध्यान में रखते हुए फ़ैसले करना चाहते हैं."
अपनी छवि को ध्यान में रखते हुए एमबीएस ने सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए एक योजना बनाई है. कच्चा तेल देश का मुख्य निर्यात है और वो इस पर अर्थव्यवस्था की निर्भरता को कम करना चाहते हैं.
स्टीफ़न कैलिन का कहना है, "2016 में उन्होंने एक महत्वाकांक्षी आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन कार्यक्रम की घोषणा की जिसका नाम है 'विजन 2030'. इसके तहत उन्होंने आर्थिक और सामाजिक उदारीकरण के लक्ष्य तय किए हैं."
औद्योगिक क्षेत्र में सऊदी अरब के विकास के लिए ज़रूरी है कि महिलाओं को श्रम और सार्वजानिक क्षेत्र में शामिल किया जाए. इसके लिए एमबीएस ने महिलाओं संबंधी नियमों मे ढील देने का फ़ैसला किया.
स्टीफ़न कैलिन कहते हैं, "महिलाएं कॉलेज और युनिवर्सिटियों में पहले भी पढ़ सकती थीं लेकिन उनके नौकरी करने को लेकर काफ़ी नियंत्रण थे. सऊदी अरब के श्रम क्षेत्र में महिलाओं की तादाद लगभग 37 प्रतिशत है. पहले उनके गाड़ी चलाने पर पाबंदी थी इसलिए काम करने जाने के लिए उन्हें ड्राइवर की ज़रूरत पड़ती थी. अब यह पाबंदी हटा दी गई है और महिलाएं ख़ुद गाड़ी चला कर काम पर जा सकती हैं."
ज़ाहिर है कि इन फ़ैसलों ने देश के कई सामाजिक परंपराओं को दरकिनार कर दिया और एमबीएस धार्मिक नेताओं या दूसरे क्षेत्र से इन फ़ैसलो के विरोध को कुचलने के लिए तैयार थे. वो देश के धनी और प्रभावशाली तबके पर भी अपना वर्चस्व कायम करना चाहते थे.
नवंबर 2017 में उन्होंने देश के दौ सौ से अधिक धनी और प्रभावशाली लोगों को राजधानी रियाद के रिट्ज़ कार्लटन होटल में नज़रबंद कर लिया. इनमें से कई लोगों ने बाद में आरोप लगाया कि उन्हे पीटा गया, यातनाएं दी गईं और ब्लैकमेल किया गया.
इस विवादास्पद कदम की दुनिया के मीडिया में आलोचना हुई मगर देश पर प्रिंस सलमान की पकड़ और मज़बूत हो गई.
स्टीफ़न कैलिन कहते हैं इस घटना से कुछ हफ़्ते पहले एमबीएस ने अपने उस बड़े चचेरे भाई को सत्ता से बाहर कर दिया जो उत्तराधिकार की कतार में उनसे आगे थे और कई धार्मिक नेताओं के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की. उन्होंने उनकी ताक़त को मिलने वाली हर तरह की चुनौती को ख़त्म कर दिया. लेकिन उसके बाद जो हुआ उसने उन्हें पश्चिमी देशों के साथ टकराव के रास्ते पर पहुंचा दिया.
अक्तूबर 2018 मे इस्तांबुल में सऊदी दूतावास मे सऊदी सरकार के आलोचक और पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या कर दी गई. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस हत्या के लिए एमबीएस को ज़िम्मेदार ठहराया.
स्टीफ़न कैलिन कहते हैं, "उस घटना ने उनकी प्रतिष्ठा पर गहरा असर डाला. साथ ही इसकी वजह से सऊदी अरब में मानवाधिकार उल्लंघनों के दूसरे मामलों पर भी दुनिया का ध्यान गया जिन्हें पहले अनदेखा कर दिया जाता था. लेकिन ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद अब वहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने वाले मामलों की तरफ भी लोगों का ध्यान गया."
बात इस मामले पर भी होने लगी कि सऊदी अरब में अधिक आज़ादी की मांग करने वाली महिलाओं को कड़ी सज़ाएं दी जाती हैं. वहीं पिछले साल मार्च मे एक ही दिन में 81 लोगों को आतंकवादी घोषित करते हुए बिना मुक़दमे के मौत के घाट उतार दिया गया.
पश्चिमी देशों ने इस पर गौर किया और विश्व फ़ुटबाल संघ फ़ीफ़ा ने 2023 में महिला विश्व कप के लिए सऊदी अरब पर्यटन प्रशासन के प्रायोजन को रद्द कर दिया.
लेकिन क्या यह घटनाएं एमबीएस के आर्थिक उदारीकरण के एजेंडा को प्रभावित कर सकती हैं?
'तरल सोने' का भंडार
सऊदी अरब के इतिहास का सबसे बड़ा नाटकीय मोड़ 1938 में उस वक्त आया जब वहां तेल बड़े भंड़ारों की खोज हुई. इस खोज ने आने वाले दशकों में देश का भविष्य तय किया.
बिल फ़ैरन प्राइस जो तेल ऊर्जा बाज़ार के विश्लेषक हैं. वो कहते हैं, "कालांतर में यह साबित हो गया कि सऊदी अरब में तेल के विशाल भंडार हैं. दूसरे महायुद्ध के बाद यह भी साफ़ हो गया था कि तेल ही पश्चिमी देशों के औद्योगिकीकरण का ईंधन होगा. इस तरह विश्व की अर्थव्यवस्था में इस ज़रूरत को पूरा करने वाले देश के रूप में सऊदी अरब की ख़ास जगह बन गयी थी."
1970 और 1980 के दशक में तेल निर्यात से होने वाली आमदनी के चलते सऊदी अरब की अर्थव्यवसथा तेज़ी से बढ़ी. आज देश की राष्ट्रीय तेल निर्माण कंपनी सऊदी अरामको दुनिया की सबसे अधिक मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनी बन गयी है.
कंपनी के सफ़र के बारे में बिल फ़ैरन प्राइस कहते हैं, " इस मुक़ाम तक पहुंचने के लिए सऊदी अरब ने एक अत्यंत व्यसायिक तरीक़े से काम करने वाली सऊदी अरामको कंपनी बनाई जिसके पास यहां तेल उत्पादन और विकास का एकाधिकार है. यह देश में रोज़गार देने वाली बड़ी कंपनियों में शामिल है और तेल से होने वाले मुनाफ़े को इस कंपनी ने क्षेत्रों के विकास पर भी लगाया है."
सऊदी अरब तेल उत्पादक देशों के गुट ओपेक का संस्थापक सदस्य होने के नाते अब क्षेत्र की ही नहीं बल्कि विश्व की राजनीति में बड़ा प्रभाव रखता है.
बिल फ़ैरन प्राइस का मानना है कि सऊदी अरब ने हमेशा ही दुनिया में बड़ी भूमिका निभाई है. वर्तमान समय में वह यह काम और भी प्रभावशाली तरीके से कर रहा है.
विश्व के कुल तेल भंडार का दस प्रतिशत हिस्सा केवल सऊदी अरब में पाया जाता है जिसके चलते तेल के सबसे बड़े ग्राहकों यानी पश्चिमी देशों के साथ उसने मज़बूत संबंध बना लिए हैं. लेकिन हाल के समय में उसने पूर्वी देशों की ओर रुख़ किया है जहां वो चीन में बड़े पेट्रो केमिकल प्लांट लगा रहा है.
बिल फ़ैरन प्राइस इस बदलाव के बारे में कहते हैं, "यह सऊदी अरब और उसके पश्चिमी सहयोगियों के बीच संबंध में बदलाव आने का संकेत है. हम कह सकते हैं कि बीस साल पहले सऊदी अरब और अमरीका और यूरोपीय देशों के बीच संबंध जितने गहरे थे उतने अब नहीं रहे हैं."
दशकों से एकदूसरे से लड़ रहे सऊदी अरब और ईरान के बीच हुआ ऐतिहासिक समझौता इसी का सूबूत है.
बिल फ़ैरन प्राइस कहते हैं कि "इससे चीन की महत्वाकांक्षाओं का संकेत तो मिलता ही है बल्कि यह भी पता चलता है कि अब यह तेल उत्पादक देश दूसरे देशों के साथ द्विपक्षीय नहीं बल्कि बहुपक्षीय व्यापारिक संबंध कायम करना चाहते हैं. यही नहीं एमबीएस ने सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों को विकसित करना भी शुरू कर दिया है."
क्राउन प्रिंस सलमान का विज़न 2030
एमबीएस की 'विज़न 2030' योजना के बारे में हमने बात की सनम वकील से जो चैटहैम हाउस की उपाध्यक्ष हैं और मध्यपूर्व मामलों की विशेषज्ञ भी.
वो कहती हैं, "विज़न 2030 की घोषणा 2016-17 में की गई थी. इस योजना का मुख्य उद्देश्य सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था की तेल निर्यात पर निर्भरता को कम कर के उसमें विविधता लाना है. देश में दूसरे उद्योगों को विकसित करना, पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देना और नीजी उद्योगों को बढ़ावा देना है ताकि वो देश में अधिक रोज़गार पैदा कर सकें और सरकार पर से यह बोझ कम हो."
मगर यह जितना काम सीधा और तार्किक लगता है उससे कहीं अधिक पेचिदा है.
सनम वकील कहती हैं, "यह एक चुनौतिपूर्ण काम है. सरकार अचानक अर्थव्यवस्था में विविधता नहीं ला सकती. उसके पहले उसे कई और कदम उठाने होंगे. विदेशी निवेश आकर्षित करना होगा, लोगों में उद्योग के प्रति रुझान विकसित करना पड़ेगा. इन सबके लिए देश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बनाना पड़ेगा, नियामक क़ानूनों में बदलाव लाने होंगे. यह सभी कुछ विज़न 2030 का हिस्सा है."
विज़न 2030 के तहत क्राउन प्रिंस एक अत्याधुनिक शहर नियोन सिटी बनाने की भी योजना है जिसका निर्माण शुरू हो चुका है. सनम वकील कहती हैं कि नियोन सिटी एमबीएस का आइडिया है और इस विशाल शहर में 2045 तक नब्बे लाख लोगों को बसाने का प्रावधान होगा.
सनम वकील को इस बारे में कुछ संदेह हैं, "नियोन सिटी एमबीएस का सपना है. उनके अनुसार यह एक ऐसा शहर होगा जिसमें वो सब होगा जिसके बारे में आप सपने में ही सोच सकते हैं, मिसाल के तौर पर उड़ने वाली कारें, अत्याधुनिक सुविधाएं, फ़्यूचरिस्टिक इमारतें. रेगिस्तान में यह एक अनूठा शहर होगा. मगर यह वाक़ई में इस तरह बन पाएगा या सिर्फ़ ख्यालों में ही रह जाएगा यह अभी स्पष्ट नहीं है. सऊदी अरब और क्षेत्र के दूसरे देशों में इस तरह के नए शहरों की योजनाएं बनी हैं लेकिन उस तरह के शहर नहीं बन पाए हैं."
एक तरह से देखा जाए तो नियोन सिटी पूरे विज़न 2030 का ही नक़्शा है. इसे मानव सभ्यता में एक क्रांति की तरह पेश किया जा रहा है जहां सबसे बड़ी प्राथमिकता लोग होंगे. मगर इसके निर्माण की वजह से विस्थापित हो रहे लोगों को प्राथमिकता तो दूर, उनके विरोध के कारण मौत की सज़ा तक सुनाई जा रही है.
इस तरह की घटनाओं और देश के मानवाधिकार के रिकार्ड की वजह से इस परियोजना के लिए विदेशी निवेश में दिक्कतें आ रही हैं. मगर विश्व में अपनी छाप छोड़ने के लिए सऊदी अरब दूसरे कदम उठा रहा है.
ब्रिटन का न्यू कासल युनायटेड फ़ुटबाल क्लब अब सऊदी अरब के हाथों में है. अफ़वाह यह भी हैं कि अब सऊदी अरब की निगाहें बीस अरब डॉलर की फॉरम्यूला वन कार रेसिंग पर भी है. सनम वकील कहती हैं सऊदी अरब की सत्ता पर एमबीएस की दावेदारी इन परिवर्तनों की सफलता पर भी निर्भर करती है.
विश्व मंच पर सऊदी अरब
यह समझने के लिए कि इस समझौते की सऊदी अरब की भविष्य की योजना में क्या भूमिका हो सकती है एक बार लौटते हैं सऊदी अरब और ईरान के बीच हाल के दिनों में हुए कूटनितिक समझौते की तरफ.
हमारी एक्सपर्ट डीना असफंदियारी इंटरनैशनल क्राइसिस ग्रूप की मध्यपूर्व मामलों की वरिष्ठ सलाहकार हैं. वो कहती हैं, "यह समझौता मध्यपूर्व के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. दशकों तक इस क्षेत्र में ईरान और सऊदी अरब परस्पर प्रतिसपर्धी रहे हैं. पहले भी दोनों के बीच कूटनीतिक संबंधों की बहाली को लेकर प्रयास हुए हैं और दोनों के बीच फिर तनाव पैदा हो गया था. तो हमें कुछ महीनों तक देखना होगा कि क्या होता है."
मगर पश्चिमी देशों के लिए चिंता का पहला कारण यह है कि यह समझौता चीन ने करवाया है. उनकी दूसरी चिंता ये है कि ईरान के पश्चिमी देशों के साथ संबंध ख़राब तो थे ही पर यूक्रेन युद्ध में वो रूस की मदद कर रहा है.
डीना असफ़ंदियारी इस घटनाक्रम को महत्वपूर्ण मानती हैं. वो कहती हैं, "सऊदी अरब का चीन के नज़दीक जाना, वह भी तब जब अमरीका के साथ उसके संबंध पहले ही उतार-चढाव से गुज़र रहे हैं बेहद महत्वपूर्ण है. सऊदी अरब अमेरिका से सुरक्षा का आश्वासन चाहता है मगर साथ ही स्वतंत्र विदेश नीति भी बनाना चाहता है जिसके लिए अमेरिका तैयार नहीं दिखता. ऐसे में दूसरे देशों के साथ वो एपने संबंध मज़बूत कर रहा है. इस लिहाज़ से चीन उसके लिए महत्वपूर्ण है."
अब लौटते हैं अपने मुख्य सवाल पर कि सऊदी अरब के लिए सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की क्या योजना है? वो देश की अर्थव्यवस्था की तेल निर्यात पर निर्भरता को कम कर के उसमें विविधता लाना चाहते हैं. इसके लिए उन्हें समाज का उदारीकरण करना होगा निजी क्षेत्र को विकसित करना होगा. साथ ही उन्हें ईरान के साथ महंगे संघर्षों को टालना होगा.
डीना असफ़ंदियारी का कहना है, "ईरान के साथ सऊदी अरब का समझौता एमबीएस की योजनाओं की राह पर है. वो एक प्रभावशाली और स्वतंत्र नेता के रूप में अपनी छवि बनना चाहते हैं और सऊदी अरब को दुनिया में अधिक प्रभावशाली बनाना चाहते हैं. इसके लिए वो कई देशों के साथ संबंध कायम करना चाहते हैं, और वो यह काम चतुराई से कर रहे हैं.
साथ ही देश के भीतर वो सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए अपने विरोधियों को कुचल रहे हैं जिसकी वजह से पश्चिमी देशों में नाराज़गी है. यही वजह है कि वो अब पूर्वी देशों, ख़ास तौर पर चीन की ओर रुख़ कर रहे हैं.
मगर उनकी योजना इस पर भी निर्भर रहेगी कि इसराराइ इसे कैसे देखेगा और वो इस पर कैसे प्रतिक्रिया देगा. इसराइल के अमेरिका से साथ क़रीबी संबंध हैं. (bbc.com/hindi)
दुबई, 16 अप्रैल। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में दुबई की एक अपार्टमेंट इमारत में आग लग जाने से कम से कम 16 लोगों की मौत हो गई और नौ अन्य लोग घायल हो गए। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।
सरकार से संबद्ध समाचार पत्र ‘द नेशनल’ ने दुबई मीडिया कार्यालय द्वारा प्रदान किए गए ‘दुबई सिविल डिफेंस’ के बयान के हवाले से बताया कि इस घटना में 16 लोगों की मौत हुई है और नौ लोग घायल हुए हैं।
उसने बताया कि आग शनिवार को दुबई के अल रास इलाके में लगी। अल रास में दुबई का मसाला बाजार लगता है, जो दुबई क्रीक के निकट पर्यटन का बड़ा केंद्र है।
इस घटना के संबंध में टिप्पणी करने के ‘द एसोसिएटेड प्रेस’ के अनुरोध का प्राधिकारियों ने फिलहाल जवाब नहीं दिया है।
सरकार के बयान में आग लगने का कोई कारण नहीं बताया गया है, लेकिन यह संकेत दिया गया है कि पांच मंजिला अपार्टमेंट में किसी समस्या के कारण आग लगी।
एपी सिम्मी नोमान नोमान 1604 0837 दुबई (एपी)
ब्रैंडन ड्रेनन
वॉशिंगटन, 15 अप्रैल. अमेरिका की अटलांटा जेल की एक कोठरी में एक व्यक्ति की मौत हो गई है जिसके बाद व्यक्ति के परिवार के वकील ने आरोप लगाया है कि 'जेल में कीड़ों और खटमलों ने उन्हें जीवित खा लिया.'
लाशॉन थॉम्पसन को दुराचार के आरोप में जेल की सज़ा हुई थी. जजों ने उन्हें मानसिक तौर पर बीमार घोषित किया था जिसके बाद उन्हें फुलटॉन काउंटी जेल की साइकियाट्रिक शाखा में रखा गया था.
थॉम्पसन के परिवार के वकील माइकल डी हार्पर ने उनके शव की तस्वीरें जारी की हैं जिसमें उनके शव पर लाखों कीड़ों और खटमलों को देखा जा सकता है.
माइकल हार्पर ने संवाददाताओं को बताया कि वो इस मामले में आपराधिक जांच की मांग की जा रही है और ये मामला फिलहाल अदालत में है.
उन्होंने एक बयान जारी कर कहा, "थॉम्पसन जेल की एक बेहद गंदी कोठरी में मृत पाए गए थे. उन्हें कीड़ों और खटमलों ने ज़िंदा खा लिया था. जिस कोठरी में उन्हें रखा गया था वो किसी बीमार जानवर को रखने लायक भी नहीं थी. वो इस तरह की मौत के हकदार नहीं थे."
अमेरिकी न्यूज़ वेबसाइट यूएसए टुडे के अनुसार फुलटॉन काउंटी जेल की डॉक्टर की रिपोर्ट में कहा गया है कि थॉम्पसन को गिरफ्तार करने के तीन महीनों के बाद 19 सितंबर को वे जेल की कोठरी में अचेत अवस्था में मिले थे.
रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय पुलिस और मेडिकल कर्मचारियों ने उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन बाद में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.
वहीं अमेरिका में बीबीसी के मीडिया पार्टनर सीबीएस न्यूज़ ने कहा है माइकल हार्पर का आरोप है कि जेल अधिकारियों और डॉक्टरों को इस बात का पता था कि थॉम्पसन की हालत लगातार बिगड़ती जा रही है लेकिन उन्होंने उनकी मदद करने की या उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की.
डॉक्टर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि साइकियाट्रिक शाखा की जेल के उनके कमरे में "खटमलों की गंभीर समस्या थी," हालांकि रिपोर्ट में कहीं भी ये नहीं कहा गया है कि उनके शरीर में इस कारण किसी तरह के घाव या चोट के निशान थे.
रिपोर्ट में मौत के कारण के बारे में लिखा गया है कि अब तक इसका निर्धारण नहीं किया जा सका है.
क्या जानलेवा हो सकते हैं खटमल?
माइकल हार्पर ने जो तस्वीरें जारी की हैं उनमें थॉम्पसन के चेहरे और छाती के हिस्से में सैंकड़ों की संख्या में खटमल देखे जा सकते हैं.
कुछ तस्वीरें जेल के उस कमरे की हालत भी दर्शाती हैं, जहां थॉम्पसन को रखा गया था.
खटमलों के जानकार और केंटकी यूनिवर्सिटी में कीटविज्ञानी माइकल पॉटर कहते हैं जेल की तस्वीरों में जो स्थिति दिख रही है वो "डराने वाली हैं."
वो कहते हैं, "20 से अधिक सालों से मैं खटमलों से जुड़े मामलों पर शोध कर रहा हूं. जो तस्वीरें मैं देख रहा हूं अगर वो सही तस्वीरें हैं तो मैंने आज से पहले कभी इस तरह का मामला नहीं देखा."
वो कहते हैं कि खटमलों का काटना अक्सर जानलेवा नहीं होता लेकिन कुछ मामलों में अगर व्यक्ति लंबे वक्त तक खटमलों से जूझता है तो उसके शरीर में खून की गंभीर कमी हो सकती है. अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो ये जानलेवा हो सकता है.
माइकल पॉटर कहते हैं, "खटमल ख़ून पीते हैं और साफ बात है कि बड़ी संख्या में खटमल आपके शरीर से अधिक खून चूसेंगे" जिससे व्यक्ति को एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है.
वो समझाते हैं कि शरीर की अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है. संक्रमण से बचने की कोशिश में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता एक तरह का केमिकल छोड़ती है.
पॉटर कहते हैं कि अगर ये केमिकल अधिक मात्रा में छोड़ा गया तो इससे रक्तचाप अचानक कम हो सकता है और व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ़ हो सकती है. इस स्थिति को एनाफ़ायलैटिक शॉक कहा जाता है जो जानलेवा हो सकता है.
मामले में पुलिस ने शुरू की जांच
फुलटॉन काउंटी शेरिफ़ के दफ्तर ने इस मामले में एक बयान जारी कर कहा है कि इस मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं.
बयान में लिखा है, "ये बात किसी से छिपी नहीं है कि मौजूदा सुविधाएं चरमराने वाली अवस्था में हैं और तेज़ी से और भी बिगड़ती जा रही हैं. ऐसे में सभी कैदियों और कर्मचारियों को स्वच्छ, व्यवस्थित और स्वस्थ माहौल देना बेहद मुश्किल है."
फुलटॉन काउंटी जेल का संचालन शेरिफ़ का दफ्तर ही करता है. शेरिफ़ दफ्तर का कहना है कि थॉम्पसन की मौत का कारणों की विस्तृत जांच शुरू कर दी गई है.
इसके अलावा बयान में कहा गया है कि "फुलटॉन काउंटी जेल में खटमलों, जूंओं और कीड़ों की समस्या से निपटने के लिए तुरंत 5 लाख डॉलर की व्यवस्था की गई है."
बयान में कहा गया है कि "जेल के हालातों की निगरानी के लिए सुरक्षा दौरे से जुड़े प्रोटोकॉल को भी अपडेट किया गया है."
"जांच में कैदियों को दी जा रही मेडिकल सुविधाओं के बारे में भी विस्तृत पड़ताल की जा रही है, इससे ये भी पता चलेगा कि इस मामले में आपराधिक अपराध तय किए जाएंगे."
शेरिफ़ के दफ्तर ने ये भी कहा कि यहां एक नई और बड़ी जेल बनाई जानी चाहिए जहां "कैदियों के लिए बेहतर सुविधाएं, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, सुरक्षा और साफ-सफाई हो."
फुलटॉन काउंटी जेल के बारे में पहले भी कहा जाता रहा है कि यहां कैदियों की संख्या काफी अधिक है, उनके लिए मूल सुविधाओं का घोर अभाव है और साथ ही यहां की सुविधाओं के लिए बजट कम है.
बीते साल साउथर्न सेंटर फ़ॉर ह्यूमन राइट्स ने 'अनकंटेन्ड आउटब्रेक्स ऑफ़ लाइस, स्केबीज़ लीव पीपल एट फुलटॉन जेल डेजरेसली मालनोरिश्ड' (फुलटॉन जेल में जुंओं और चर्मरोग के अनियंत्रित प्रकोप के कारण बुरी तरह कुपोषित कैदी) नाम का एक बयान जारी किया था.
रिपोर्ट में संस्था ने कहा था कि जेल के सामने कई तरह की मुश्किलें हैं. संस्था ने अपनी रिपोर्ट में "भविष्य में कीड़ों का प्रकोप रोकने" और जेल में साफ सफाई बढ़ाने की भी सलाह दी थी. (bbc.com/hindi)
बीजिंग, 15 अप्रैल चीन ने शनिवार को कहा कि उसने बीच हवा में मिसाइल को मार गिराने की क्षमता रखने वाले हथियार का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है, जो अंतरिक्ष से आ रहे हथियारों को मार गिराने की उसकी क्षमता में प्रगति का संकेत है।
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि यह परीक्षण चीनी क्षेत्र के भीतर शुक्रवार देर रात किया गया और इसने ‘‘परीक्षण का वांछित उद्देश्य’’ हासिल किया।
मंत्रालय ने बताया कि यह परीक्षण ‘‘रक्षात्मक प्रकृति का था और इसका निशाना किसी देश की ओर नहीं था।’’
बहरहाल, चीन ने कोई और जानकारी नहीं दी, मसलन क्या उसने सच में किसी लक्ष्य को भेदा, कितनी मिसाइल छोड़ी गई और वे कहां गिरीं।
ऐसी प्रणालियों में जमीन से मार करने वाली कई इंटरसेप्टर मिसाइलें और बड़ी संख्या में राडार तथा अग्नि नियंत्रण प्रणाली शामिल होती हैं और इनका उद्देश्य बीच हवा में परमाणु या अन्य हथियार ले जाने में सक्षम आईसीबीएम समेत बैलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराना होता है।
चीन के पास पहले ही दुनिया की सभी प्रकार की मिसाइलों का सबसे बड़ा शस्त्रागार है और ऐसा माना जाता है कि वह तेजी से इसका विस्तार कर रहा है।
पिछले वर्ष अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन के पास अभी करीब 400 परमाणु हथियार हैं और 2035 तक यह संख्या बढ़कर 1,500 तक पहुंच सकती है। (एपी)
ब्रिक्स देशों को पश्चिम सिर्फ अर्थव्यवस्था में तेजी करते देशों के तौर पर देखता रहा जबकि ये गठबंधन पश्चिमी मुख्यधारा से बाहर एक कूटनीतिक और वित्तीय मंच बनाने की तैयारी कर रहा है.
डॉयचे वैले पर एस्ट्रिड प्रांगे की रिपोर्ट-
ब्रिक्स शब्दावली एक लिहाज से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के बारे में बताने वाली कुछ कुछ आशावादी शब्दावली थी. लेकिन अब ब्रिक्स नाम से मशहूर ये देश- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका- मौजूदा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय और राजनीतिक मंचों के विकल्प के रूप में खुद को खड़ा कर रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय और सुरक्षा मामलों के जर्मन संस्थान, एसडब्लूपी के उप निदेशक ग्युंथर माइहोल्ड कहते हैं, "उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाला मिथक अब फीका पड़ चुका है. ब्रिक्स देश अपने भूराजनीतिक पल का अनुभव कर रहे हैं."
ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका- ग्लोबल साउथ यानी गरीब और विकासशील देशों के प्रतिनिधियों के रूप में खुद को पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए "जी7 का एक वैकल्पिक मॉडल" भी मुहैया कराया गया है.
जी7 दुनिया के सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के प्रमुखों का एक "अनौपचारिक मंच" है जिसकी स्थापाना 1975 में हुई थी. जर्मनी, फ्रांस, द यूनाइटेड किंगडम, इटली, जापान, कनाडा और अमेरिका और यूरोपीय संघ इसके सदस्य हैं.
विश्व बैंक के मॉडल को चुनौती
ब्रिक नाम से साथ आए देशों में शुरुआती सदस्य ब्राजील, रूस, भारत और चीन थे. 2001 में जिम ओ'नील ने ये नाम दिया था. उस समय वो बहुराष्ट्रीय निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स में मुख्य अर्थशास्त्री थे. उस दौरान ये चार देश, उच्च आर्थिक वृद्धि दर बनाए रखने में सफल रहे थे और ब्रिक का लेबल इन देशों के भविष्य के आर्थिक आशावाद के नाते दिया गया था.
इस लेबल के विरोधियों का कहना है कि अपनी व्यापक विविधताओं को देखते हुए ये देश इस तरह एक समूह में रखे जाने के लिए उपयुक्त नहीं थे और ये महज गोल्डमैन सैक्स का मार्केटिंग शिगूफा था.
लेकिन निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए जिसे बाजारू हथकंडा बताया गया था, वही हूबहू जी7 की तरह सरकारों के बीच सहयोग के एक मंच के रूप में उभर आया. ब्रिक के चार देशों की पहली बैठक 2009 में रूस के येकातेरिनबुर्ग में हुई थी.
2010 में साउथ अफ्रीका को भी समूह में शामिल कर लिया गया. इस तरह ब्रिक में एस अक्षर जुड़कर, समूह का नाम ब्रिक्स हो गया.
बीज राशि के रूप में 50 अरब डॉलर के साथ, 2014 में ब्रिक्स देशों ने विश्व बैंक (वर्ल्ड बैंक) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के विकल्प के रूप में नव विकास बैंक (न्यू डेवलेपमेंट बैंक) की स्थापना कर दी.
इसके अलावा, भुगतान को लेकर जूझते सदस्य देशों की मदद के लिए एक लिक्विडिटी व्यवस्था भी निर्मित की गई जिसे नाम दिया गया आकस्मिक आरक्षित निधि व्यवस्था (कंटिन्जेंट रिजर्व अरेंजमेंट.)
ये पेशकश न सिर्फ ब्रिक्स देशों के खुद के लिए आकर्षक थीं बल्कि दूसरे विकासशील और उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए भी मददगार थी जिन्होंने पूर्व में मदद के बदले आईएमएफ के ढांचागत सुधार कार्यक्रमों और कड़े उपायों का दर्द झेला था. इसीलिए कई देशों ने ब्रिक्स समूह में शामिल होने की इच्छा जताई है.
ब्रिक्स बैंक के दरवाजे नये सदस्यों के लिए खुले हैं. 2021 में मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, उरुग्वे और बांग्लादेश ने शेयर उठाए. लेकिन बैंक के संस्थापक देशों के 10 अरब डॉलर के निवेश के मुकाबले ये राशि बहुत ही कम थी.
विस्तार के लिए तैयार
दक्षिण अफ्रीकी विदेश मंत्री नालेदी पैन्डोर ने कहा है कि ब्रिक्स समूह को लेकर विश्वव्यापी दिलचस्पी "बहुत ज्यादा" है. +शुरुआती मार्च में उन्हें टीवी पत्रकारों से कहा कि उनके पास 12 देशों से चिट्ठियां आई पड़ी हैं.
उन्होंने बताया, "एक देश सउदी अरब है. संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, अल्जीरिया, अर्जेन्टीना, मेक्सिको और नाइजीरिया भी" ब्रिक्स में आना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, "निर्धारित मापदंड तैयार कर लेने के बाद हम फैसला करेंगे." उन्होंने बताया कि दक्षिण अफ्रीका में अगस्त में होने वाली बैठक के दौरान ये विषय एजेंडे में होगा.
ब्रिक्स सदस्य देशों में सबसे हाल की आर्थिक हलचलों का उन शुरुआती मान्यताओं या मिथकों से कोई संबंध नहीं जिनके आधार पर समूह की स्थापना हुई थी. पांच सदस्यों में से सिर्फ चीन ने तब से निरंतर और व्यापक वृद्धि दर्ज की है.
2010 में चीन का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6 खरब डॉलर से बढ़कर, 2021 में करीब 18 खरब डॉलर हो गया था. लेकिन ब्राजील, अफ्रीका और रूस की अर्थव्यवस्थाएं शिथिल रही. भारत की जीडीपी बेशक 1.7 खरब डॉलर से बढ़कर 3.1 खरब डॉलर तक पहुंच गई लेकिन चीन की वृद्धि के मुकाबले ये कुछ भी नहीं थी.
यूक्रेन में रूसी युद्ध की शुरुआत से ही, ब्रिक्स देशों ने तथाकथित पश्चिम से खुद को दूर ही रखा है. न भारत, ब्राजील, साउथ अफ्रीका और ना ही चीन, रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल हैं. भारत और रूस के बीच लगभग ऐतिहासिक स्तर के व्यापार संबंधों को देखते हुए या रूसी खाद पर ब्राजील की निर्भरता को देखते हुए ये लगातार स्पष्ट होता गया है.
रूस के खिलाफ कोई प्रतिबंध नहीं
पिछले साल के आखिर में इकोनॉमिक्स ऑब्जर्वेटरी में शेफील्ड यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञानी मैथ्यू बिशप ने लिखा था कि, "कूटनीतिक तौर पर यूक्रेन में युद्ध ने रूस समर्थित पूर्व और पश्चिम के बीच एक गाढ़ी विभाजक रेखा खींच दी है.
नतीजतन, कुछ यूरोपीय और अमेरिकी नीति-निर्माता इस बात से चिंतित हैं कि वैश्विक वृद्धि और विकास को प्रभावित करने की खातिर गठित, ब्रिक्स उभरती हुई शक्तियों का आर्थिक क्लब कम और सत्तावादी राष्ट्रवाद से परिभाषित राजनीतिक क्लब ज्यादा बन सकता है."
अंतरराष्ट्रीय और सुरक्षा मामलों के जर्मन संस्थान से जुड़े माइहोल्ड इस बात से सहमत हैं. वो कहते हैं कि "ब्रिक्स गठबंधन, पश्चिम को काउंटर करने वाले मंच की अपेक्षा, बढ़ते हुए संप्रभु और स्वायत्त विचार का मंच ज्यादा बन रहा है. माइहोल्ड मानते हैं कि दोध्रुवीय दुनिया में साउथ अफ्रीका, भारत और ब्राजील, सीधे तौर पर बेहतर शर्तों के लिए जोर लगा रहे हैं."
माइहोल्ड कहते हैं कि दूसरी ओर, चीन अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए ब्रिक्स के मंच का इस्तेमाल कर रहा है. उन्होंने यूक्रेन की लड़ाई में मध्यस्थता की चीनी पेशकश और साउथ अफ्रीका में रूस और चीन के साझा सैन्य अभ्यासों की ओर ध्यान दिलाया.
माइहोल्ड मानते हैं कि, पश्चिम ने ब्रिक्स के रवैये में इस बदलाव को नोटिस कर लिया है और वो इसका जवाब देने की कोशिश कर रहा है. उनके मुताबिक, "पश्चिमी देश बहुत करीब से देख रहे हैं. 2022 में जर्मनी में हुई जी-सात बैठक में उन्होंने सुनिश्चित किया कि साउथ अफ्रीका और भारत को आमंत्रित किया जाए, ताकि ऐसा न लगे कि जी7, ब्रिक्र्स के रास्ते में आ रहा है." (dw.com)
मुस्लिमों के लिए हरम अल-शरीफ और यहूदियों के टेंपल माउंट के रूप में जाने जाने वाले स्थल पर इस्राएल और फलस्तीन के लोगों के बीच अक्सर संघर्ष होते रहते हैं. डीडब्ल्यू ने जानने की कोशिश की कि इन संघर्षों की वजह क्या है.
डॉयचे वैले पर तानिया क्रेमर की रिपोर्ट-
पिछले हफ्ते, ऐसे वीडियो वायरल हुए थे जिनमें इस्राएली पुलिस के अफसर यरुशलम के पुराने शहर स्थित अल-अक्सा मस्जिद में प्रवेश करते हैं और वहां नमाज अदा कर रहे लोगों को डंडों और राइफल की बटों से बार-बार पीटते हैं. कई दिन बीत जाने के बाद भी इस शहर में रहने वाले फलस्तीनी लोग सदमे में थे और नाराज थे.
यरुशलम में रहने वाले फलस्तीनी नागरिक हनान अक्सर अल-अक्सा मस्जिद में नमाज पढ़ने जाती हैं. वो कहती हैं, "मैं दुखी हूं, मैं गुस्से में हूं, लॉजिक कहां है, सम्मान कहां है, जब वे लोगों को पीट रहे हैं, महिलाओं को पीट रहे हैं. यह पवित्र महीना है और कुल मिलाकर यह प्रार्थना करने की जगह है और हमारे लिए सब कुछ है.”
यरुशलम के मुस्लिम इलाके में रहने वाले दूसरे लोगों की भावनाएं भी बिल्कुल ऐसी ही थीं. अल-अक्सा मस्जिद परिसर में पिछले हफ्ते दो बार छापेमारी की गई थी. यह वह जगह है जिसे मुस्लिम लोग हरम अल-शरीफ भी कहते हैं और यहीं वह जगह भी है जिसे यहूदी लोग टेंपल माउंट कहते हैं.
इस पवित्र स्थल के प्रवेश द्वार पर स्थित एक स्पाइस शॉप के मालिक हाशेम ताहा कहते हैं, "इन तस्वीरों को देखकर हर व्यक्ति परेशान और आहत हुआ होगा. नमाज पढ़ते लोगों को वहां से हटाना, बुरी तरह से पीटना...कोई भी व्यक्ति इन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकता है.”
क्या है अहमियत
वहीं इस्राएली पुलिस ने एक बयान जारी कर कहा है कि वे लोग ‘एक हिंसक दंगे को रोकने के लिए परिसर में घुसने के लिए मजबूर हुए थे.' इसरायल की पुलिस ने करीब 350 लोगों को गिरफ्तार भी किया है. लेकिन मस्जिद में मौजूद फलस्तीनी प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि पुलिस बल का इस्तेमाल ज्यादती थी और अनावश्यक थी.
टेंपल माउंट/ हराम अल-शरीफ मुस्लिमों और यहूदियों के पवित्र स्थल के साथ-साथ ईसाइयों के लिए भी एक पवित्र स्थल माना जाता है. यहूदियों का मानना है कि यह वह पवित्र स्थल है जहां किसी समय में बाइबिल में उल्लिखित दो मंदिर हुआ करते थे और यहूदी धर्म में इसे सबसे पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है.
वहीं उस पहाड़ी चोटी को अल-अक्सा मस्जिद परिसर कहा जाता है जहां से यह प्राचीन शहर पूरा दिखाई पड़ता है और यह मस्जिद इस्लाम धर्म में मक्का और मदीना के बाद तीसरी सबसे पवित्र जगह मानी जाती है.
इस्लाम की मान्यता के अनुसार पैगंबर मुहम्मद एक रात मक्का से यरुशलम आए और फिर यहीं से वो जन्नत के लिए प्रस्थान कर गए. रमजान के दौरान यहां श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भारी भीड़ होती है.
पिछले हफ्ते तक, कुछ दिन पहले हुई एक घटना के अलावा रमजान शांतिपूर्वक बीत रहा था. लेकिन यहूदी पर्व पासओवर के ठीक एक दिन पहले हिंसक छापेमारी ने हिंसा और बढ़ा दी जिससे स्थिति काफी गंभीर हो गई.
अल-अक्सा मस्जिद पर की गई कार्रवाई की प्रतिक्रिया में गजा के फलस्तीनी चरमपंथी समूहों ने गजापट्टी के आस-पास के इसरायली शहरों पर रॉकेट से हमले किए. यही नहीं, दक्षिणी लेबनान और सीरिया की तरफ से भी उत्तरी इसरायल की ओर रॉकेट दागे गए.
शुक्रवार सुबह फलस्तीनी बंदूकधारियों के हमले में कब्जे वाले पश्चिमी किनारे में तीन ब्रिटिश-इसरायली महिलाओं की मौत हो गई. शुक्रवार को ही एक अन्य घटना में इटली के एक पर्यटक की कथित तौर पर एक कार से टक्कर लगने के कारण मौत हो गई.
सोमवार को, इसरायली सेना ने एक 15-वर्षीय फलस्तीनी लड़के की उस समय गोली मारकर हत्या कर दी, जब वे लोग जेरिको के पास एक फलस्तीनी शरणार्थी शिविर पर छापेमारी कर रहे थे.
पवित्र स्थल से जुड़ी अटूट आस्था
हाल के वर्षों में, अल-अक्सा परिसर की घटनाओं ने इसरायली और फलस्तीनी लोगों के बीच कई बार संघर्षों को भड़काया है. साल 2000 में लिकुड पार्टी के दिवंगत नेता एरियल शेरोन के नेतृत्व में इसरायल के सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल टेंपल माउंट के दौरे पर गया था.
शेरोन के इस दौरे को द्वितीय फलस्तीनी इंतिफादा यानी विद्रोह को भड़काने की वजह माना जाने लगा. इसके कई साल बाद, 2017 में हजारों श्रद्धालुओं ने अल-अक्सा मस्जिद के प्रवेश द्वार पर एअरपोर्ट की तरह मेटल डिटेक्टर्स लगाए जाने के विरोध में परिसर के बाहर प्रदर्शन किया.
ये मेटल डिटेक्टर्स मस्जिद परिसर के पास दो इस्राएली पुलिस अधिकारियों की हत्या के बाद लगाए गए थे. हालांकि बाद में इस्राएली अधिकारियों ने तीन बंदूकधारियों को मार गिराया था.
विरोध प्रदर्शन दूसरे देशों में भी होने लगे और ये तब तक जारी रहे जब तक कि इसरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने इन मेटल डिटेक्टर्स को वहां से हटाने का आदेश नहीं जारी कर दिया.
पवित्र स्थल तक पहुंचने के लिए इस्राएल की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर भी कई बार विवाद हुआ है. इस्राएली अधिकारी* अक्सर अल-अक्सा मस्जिद में नमाजियों की उम्र को लेकर प्रतिबंध लगाते रहते हैं तो कई बार फलस्तीनियों के गजा और पश्चिमी किनारे से यरुशलम की यात्रा पर प्रतिबंध लगाते हैं.
साल 2021 में अल-अक्सा मस्जिद में छापेमारी और टकराव के कारण हिंसा भड़क गई थी जो गजा में इसरायल और इस्लामी चरमपंथी समूह हमास के बीच 11 दिनों तक जारी रही.
पवित्र स्थल पर ‘सिकुड़ती जगह'
टू-स्टेट सलूशन की बात करने वाले एक गैर सरकारी संगठन टेरेस्ट्रियल जेरुसलम के संस्थापक डेनियल सीडमान कहते हैं, "फलस्तीनी जगह सिकुड़ती जा रही है. पांच साल पहले अल-अक्सा और एस्प्लेनेड यरुशलम में सबसे कम कब्जे वाली जगहें थीं. लेकिन आज यह यरुशलम में सबसे ज्यादा कब्जे वाली जगह बन गई हैं.”
वो कहते हैं, "इसके लिए कोई एक स्पष्ट कारण नहीं है. यरुशलम में सामान्य रूप से हम लोग जो देख रहे हैं, उसे मैं वास्तव में आस्था का शस्त्रीकरण कहता हूं जहां विमर्श को संचालित और नियंत्रित करने वाले आंदोलन ज्यादा अतिवादी, ज्यादा निरंकुश और ज्यादा बहिष्करण वाले हैं.”
इस्राएल की अति-दक्षिणपंथी सरकार के संदर्भ में वो आगे कहते हैं, "निश्चित तौर पर यह बात यरुशलम के अतिराष्ट्रवादी टेंपल माउंट आंदोलन के संदर्भ में है जो 1967 में छोटे पैमाने पर शुरू हुआ और आज सत्ता में है.”
दूसरी ओर, फलस्तीनी तरफ से हमास जैसे इस्लामी चरमपंथी समूह हैं जिन्होंने खुद को अल-अक्सा का ‘रक्षक' घोषित कर रखा है. इसरायल का आरोप है कि फलस्तीनी लोग हिंसा भड़काने के लिए पवित्र स्थल से संबंधित किसी भी मुद्दे का इस्तेमाल करते हैं.
यह पवित्र स्थल 1967 से ही इसरायल के कब्जे में है जब उसने जॉर्डन के साथ चले छह दिन तक के युद्ध के बाद पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया था. बाद में इसरायल ने पूर्वी हिस्से को अपने देश में मिला लिया और इस पूरे शहर को अपने देश की राजधानी घोषित कर दिया.
लेकिन ज्यादातर देशों ने यरुशलम को इसरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता नहीं दी है. वहीं फलस्तीनी लोग पूर्वी यरुशलम को भविष्य में अपने देश की राजधानी के तौर पर देखते हैं और शांति वार्ताओं में इस पर चर्चा होना अभी बाकी है.
1967 से लेकर अब तक राजनीतिक रूप से इस संवेदनशील इलाके का प्रशासन एक सेट ऑफ अरेंजमेंट्स के जरिए चलाया जाता है जिसे यथास्थिति कहा जाता है और इसके तहत पुराने शहर के सभी धार्मिक स्थलों को रेग्युलेट किया जाता है.
इस व्यवस्था के तहत इसरायल इन इलाकों की सुरक्षा और पुलिसिंग के लिए जिम्मेदार है जबकि पड़ोसी देश जॉर्डन ने इस जगह के संरक्षक के तौर पर अपनी ऐतिहासिक भूमिका बनाए रखी है. वक्फ नामक एक मुस्लिम धार्मिक ट्रस्ट अल-अक्सा की दिन-प्रतिदिन की व्यवस्था देखता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति की कोशिश
यहां टकराव के बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने बुधवार को एक बयान में पुष्टि की कि इसरायल ‘पूजा की स्वतंत्रता, सभी धर्मों के प्रवेश की आजादी और टेंपल माउंट पर यथास्थिति के लिए प्रतिबद्ध है और इसे बदलने की किसी भी तरह की हिंसक चरमपंथी गतिविधि को इजाजत नहीं दी जाएगी.'
इस्राएल और फलस्तीन के बीच जारी इस तनाव को खत्म करने के लिए अमेरिका के साथ जॉर्डन और मिस्र भी बातचीत में शामिल थे और दोनों देशों ने हाल ही में हुई घटनाओं की निंदा की है. तुर्की और सऊदी अरब ने भी घटनाओं की निंदा की है.
मंगलवार को जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय, जिनके इसरायल के प्रधानमंत्री से रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं, ने जोर देकर कहा कि ‘यरुशलम के मुस्लिम और यहूदी पवित्र स्थलों के ऐतिहासिक और कानून यथास्थिति का उल्लंघन करने वाले सभी एकतरफा कार्रवाइयों को तत्काल रोकने की जरूरत है.'
इस बार रमजान ऐसे समय में पड़ा है जब यहूदी पर्व फसह और ईसाई पर्व ईस्टर की छुट्टियां भी हैं. जैसा कि उन्होंने पहले फसह की शुरुआत में किया था कि यहूदी माउंट मूवमेंट पर लौटते हैं और अन्य लोगों के बीच, यहूदी चरमपंथी समूहों ने टेंपल माउंट पर बकरियों की बलि देने के एक अनुष्ठान को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया.
लेकिन पिछले सालों की तरह बकरियों को ले जा रहे लोगों को पुलिस ने रोक दिया और जानवरों को जब्त कर लिया गया. हालांकि, पुलिस द्वारा अत्यधिक संरक्षित यहूदी पर्यटकों ने बिना किसी और घटना के छुट्टी के दौरान शांतिपूरवक इस स्थल का दौरा किया.
यहूदियों को आमतौर पर उस स्थान पर जाने की अनुमति है जहां माना जाता है कि कभी मंदिर हुआ करते थे, लेकिन उन्हें वहां प्रार्थना करने की अनुमति नहीं है. इजराइल में प्रमुख रब्बियों का कहना है कि यहूदियों को वर्जित पवित्र भूमि को छूने से रोकने के लिए इस क्षेत्र में नहीं चढ़ना चाहिए.
हालांकि हाल के वर्षों में धुर-दक्षिणपंथी यहूदी टेंपल माउंट एक्टिविस्ट्स ने क्षेत्र में और अधिक यात्राओं को प्रोत्साहित किया है, साथ ही कुछ लोगों ने गुप्त रूप से प्रार्थना भी की है. फलस्तीनियों और उनके समर्थकों ने इसे एक भड़काऊ और यथास्थिति को बिगाड़ने वाली कार्रवाई बताया है.
इस्राएल की नई सरकार में पुलिस व्यवस्था देश के नेशनल सिक्योरिटी मिनिस्टर इतमार बेन-ग्वीर के अधीन है जो कि धुर-दक्षिणपंथी हैं. कुछ दिनों पहले, उन्होंने टेंपल माउंट में प्रार्थना पर प्रतिबंध लगाने को उन्होंने ‘भेदभाव' करार देते हुए यथास्थिति को बदलने की वकालत की थी.
डेनियल सीडमान कहते हैं, "दस साल पहले टेंपल माउंट पर मुस्लिम, यहूदी ये सभी लोग इस्लामिक वक्फ के मेहमान के रूप में आते थे. आज, ये सभी लोग यह कहते हुए आ रहे हैं कि हम आपके मेहमान नहीं बल्कि हम यहां के जमींदार हैं. इससे ‘सर्वश्रेष्ठ साझा स्थान' का विचार नष्ट होता जा रहा है.”
मंगलवार को इस्राएल सरकार ने अपने सुरक्षा एजेंसियों की सिफारिश पर कार्रवाई करते हुए रमजान के आखिरी दस दिनों में गैर-मुस्लिमों की यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया है, जैसा कि पिछले वर्षों में भी किया जाता रहा है. (dw.com)
चैटबोट, रोबोट और दूसरी अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीकें पर्यटन उद्योग को भी बदल रही हैं. इन सबका भविष्य कैसा है?
डॉयचे वैले पर जोनास मार्टिनी की रिपोर्ट-
चैट जीपीटी से अगर आप मायोर्का के आस-पास ऐसी घूमने वाली जगहों की जानकारी मांगिये जहां बहुत ज्यादा पर्यटक ना जाते हों तो यह आपको ऐसी तमाम जगहें और वहां की परंपरागत खाने-पीने की चीजें सुझा देगा जो कि हर ट्रैवल गाइड में मौजूद होंगी. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) चैटबोट आपको पाल्मा के कैथीड्रल, सोलेर के मशहूर और सुरम्य शहर और सदियों पुरानी आइसक्रीम पार्लर कान जोआन डेसाइगो के बारे में सुझाव देगा. दूसरे शब्दों में कहें तो अगर आप पर्यटन के लिए कुछ छिपे हुए जगहों की तलाश में हैं तो चैटजीपीटी पर बिल्कुल भरोसा ना करें.
चैटजीपीटी ने मुझे बताया, "जब इनसाइडर टिप्स की बात आती है तो यह व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और अनुभवों की बात हो जाती है और एक एआई मॉडल होने के नाते यह मेरे पास नहीं है. यदि आपको ज्यादा स्पेसिफिक और निजी जानकारियां चाहिए तो मेरी सलाह होती है कि आप स्थानीय गाइड या फिर स्थानीय लोगों से संपर्क करिए जो कि आपको इनसाइडर टिप्स दे सकें.”
खास जानकारी नहीं
हालांकि सरल और ज्यादा स्पष्ट प्रश्न वही हैं जो चैटजीपीटी पर मौजूद हैं. मसलन, अगर आप चैटबोट से सवाल पूछेंगे कि बस से पाल्मा के बीचोंबीच स्थित प्लाका डेस्पान्या चौक पहुंचने के लिए कैसे जाया जाए तो वो इसका तुरंत और बिल्कुल सही जवाब देगा. इसी तरह मायोर्का के परंपरागत पपरिका सॉसेज, सोबरासदा के बारे में पूछने पर बिल्कुल सही जानकारी मिलती है. बिल्कुल ऐसा ही मेरे सवाल पर हुआ जब मैंने पूछा कि क्या द्वीप पर टिप देने का कोई रिवाज है, तो जवाब मिला -ऐसा होता है और दस फीसदी टिप देना आमतौर पर सही माना जाता है.
दक्षिण जर्मनी की रावेन्सबर्ग-वेंगर्टन यूनिवर्सिटी ऑफ अप्लायड साइंसेज में बिजनेस इनफॉर्मेटिक्स की प्रोफेसर वोलफ्राम हॉपकेन कहती हैं, "जब तक पर्यटन-विशेष चैटबोट्स शहरों को गाइड करने के लिए नहीं होंगे तब तक यह लंबा नहीं होगा. हालांकि तकनीक अभी भी काफी अत्याधुनिक है. इतना ही नहीं बल्कि एआई एप्लीकेशनों का इस्तेमाल पर्यटन से संबंधित दूसरे क्षेत्रों में काफी व्यापक तौर पर हो रहा है.”
एआई पहले से ही काफी फैला हुआ है
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल आजकल ज्यादातर कंपनियों के संचालन में किया जा रहा है, हालांकि यात्रियों को हमेशा इसकी जानकारी नहीं होगी. उदाहरण के लिए, एयरलाइंस एआई का इस्तेमाल यह जानने के लिए करते हैं कि कितने यात्री अपनी यात्रा रद्द कर सकते हैं या फिर उसे आगे बढ़ा सकते हैं. दूसरी कंपनियां इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल फर्जी ऑनलाइन बुकिंग का पता लगाने में करती हैं. यहां तक कि वेनिस में एआई का इस्तेमाल भीड़ को नियंत्रित करने में भी हो रहा है.
हॉपकेन कहती हैं, "ऐसे तमाम एआई एप्लीकेशन हैं जिनका इस्तेमाल यात्री, सेवा प्रदाता, सैरसपाटे वाली जगहें और ऑनलाइन ट्रैवल प्लेटफॉर्म कर रहे हैं.”
यही नहीं, लोग छुट्टियां बिताने के लिए भी कई मायनों में एआई की मदद ले रहे हैं. आजकल अक्सर देखा जाता है कि यदि आप किसी टूअर ऑपरेटर से संपर्क करते हैं तो हो सकता है कि उसके जरिए आप किसी वास्तविक व्यक्ति की बजाय ऑनलाइन चैटबोट के संपर्क में आ जाएं. उसके बाद इंटेलीजेंस सिस्टम हैं, जैसे होटल बुकिंग प्लेटफॉर्म्स ग्राहकों को उनकी खास पसंद और प्राथमिकताओं के लिए इनका प्रयोग करते हैं. इसके अलावा, रोबोट तो धीरे-धीरे अब होटल और रेस्टोरेंट में काम संभालना शुरू ही कर चुके हैं.
हालांकि वो रोबोट्स जो रेस्टोरेंट्स में मेजों से गंदे भोजन इकट्ठा करते हैं और उन्हें रसोई तक ले आते हैं, वे बहुत साफ-सुथरे नहीं होते. हॉपकिन्स कहती हैं कि ऐसे रोबोट रेस्टोरेंटों में अपने आप नेवीगेट नहीं कर सकते. उनके साथ सभी लोग लोग बातचीत नहीं करना चाहेंगे. यही कारण है कि एआई एप्लीकेशंस को पर्यटन व्यवसाय के कुछ क्षेत्रों मसलन, व्यापार और हॉस्पिटैलिटी में तो इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन अन्य जगहों पर नहीं.
चैटजीपीटी पर आंख मूंदकर भरोसा मत करिए
हॉपकेन इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि चैटजीपीटी जैसी तकनीक निश्चित तौर पर तेजी से महत्वपूर्ण हो जाएंगी. चैटबोट्स के गलत या कम सही परिणाम कुछ क्षेत्रों में इतने खतरनाक या भयानक नहीं होते, खासकर जब बात पर्यटन क्षेत्र की जानकारी के बारे में होती है. कोई भी व्यक्ति जो चैटजीपीटी पर मायोर्का के मारीवेंट पैलेस के बारे में जानना चाहता है तो उसे निराशा हाथ लगेगी क्योंकि यह इमारत आम लोगों के लिए नहीं खुली है. मारीवेंट पैलेस पाल्मा के बाहरी हिस्से में है जो कि शाही परिवार का गर्मियों के मौसम में निवास स्थान होता है.
यह देखा जाना अभी बाकी है कि क्या चैटबॉट वास्तव में आजमाई हुई गाइड बुक या मानव यात्रा गाइड की जगह ले सकेंगे. चैटजीपीटी को खुद ऐसा नहीं लगता कि वह आने वाले समय में ऐसा कर सकेगा, "हालांकि मैं एक डिजिटल सहायक के रूप में उपयोगी हो सकता हूं, पर मुझे नहीं लगता कि मैं ट्रैवल गाइड और स्थानीय लोगों की तरह अनुभव के आधार पर को राय बना सकूंगा.” (dw.com)
सउदी अरब और हूथी समूह के बीच जारी वार्ताओं और कैदियों के बीच होने वाली अदलाबदली के बावजूद युद्ध के खत्म होने के कोई ठोस निशान नहीं दिखते. ज्यादात यमनी गुट बातचीत से बाहर रखे गए हैं.
डॉयचे वैले पर जेनिफर होलाइज की रिपोर्ट-
यमन में सउदी अरब के राजदूत मोहम्मद बिन सईद अल-जबेर और हूथी विद्रोहियों के राजनीतिक प्रमुख महदी अल-मशत ने पिछले दिनों गर्मजोशी से हाथ मिलाये थे. तब उम्मीद जगी थी कि जल्द ही यमन में लडाई खत्म हो सकती है. हूथी के कब्जे वाली राजधानी सना में सउदी और हूथी प्रतिनिधियों के बीच रविवार से शांति वार्ता चल रही है.
वार्ता के मुख्य विषयों में दोनों युद्धरत पक्षों के बीच छह महीने की संधि भी शामिल है. सउदी अरब के समर्थन वाली अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार और ईरान समर्थक हूथी समूह के बीच लड़ाई जारी है. समझौते के तहत हूथी के नियंत्रण वाले सना हवाईअड्डे और होडाइडा में लाल सागर बंदरगाह को फिर से खोलने, सरकार के नियंत्रण वाले ताइज शहर में हूथी नाकाबंदी उठाने, हूथी के नियंत्रण वाले रास्तों से सरकारी तेल ठिकानों से तेल निर्यात की बहाली और यमनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने जैसे मुद्दे शामिल हैं.
बातचीत के ताजा दौर से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय उम्मीद के बावजूद, शांति स्थापना को लेकर कुछ संदेह भी हैं. एक वजह ये है कि यमन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार की कार्यकारी संस्था, राष्ट्रपति काउंसिल को वार्ताओं में शामिल नहीं किया गया था. दूसरे यमनी दलों को भी नहीं रखा गया जैसे कि सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल(एसटीसी) के अलगाववादियों को.
यमन के दो प्रमुख राजनीतिक धड़ों, हूथियों और सरकार के बीच 2014 से लड़ाई छिड़ी है. ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों ने सना पर कब्जा कर सरकार को अपदस्थ कर दिया था. 2015 में हालात और बिगड़ गए, जब सउदी अरब की अगुवाई में नौ देशों के गठबंधन ने रेड सी तट पर बसे अदन शहर में अंतरराष्ट्रीय मान्यता वाली सरकार को बहाल करने के लिए दखल दिया.
ये क्रूर संघर्ष- जिसे सउदी अरब और ईरान के बीच एक प्रॉक्सी-वॉर यानी छद्म युद्ध की तरह देखा जाता है- करीब पांच लाख जानें ले चुका है और हजारों लोगों को देश में ही विस्थापित कर चुका है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक तीन करोड़ से थोड़ा अधिक की कुल आबादी में करीब एक तिहाई लोग पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर हैं. युद्धग्रस्त देश के हालात को दुनिया के सबसे भयानक मानवीय संकटों में एक माना जाता है.
शांति वार्ताओं से 'बढ़ सकता है विघटन का खतरा'
बर्लिन के थिंक टैंक, यमन पॉलिसी सेंटर जर्मनी की निदेशक मारवा बाबाड को लगता है कि मौजूदा वार्ताओं का दरअसल लक्ष्य, युद्ध का खात्मा नहीं है. उन्होंने डीडब्लू को बताया, "स्थायी शांति के लिए खिड़की खुली रखनी है तो यमनी दलों के बीच प्रमुख मतभेदों को दूर करना ही होगा."
वो कहती हैं, "ओमान का उद्देश्य यमन में राष्ट्रीय स्तर की व्यापक शांति स्थापित कराने का नहीं था बल्कि वो हूथियों को सीमा पार से हमले बंद करने के लिए मनाना चाहता था और सउदी अरब और हूथियों के बीच संबंधों को सामान्य कराना चाहता था."
धुरविरोधी ईरान के साथ सात साल से ठप्प पड़े संबंधों को मार्च में बहाल करने की सहमति जताने के बाद, क्षेत्रीय शत्रुओं से संबंधों को सुधारने की कोशिशों की सउदी अरब की फेहरिस्त में, अगला नाम हूथी समूह का हो सकता है. ये कोई छिपी बात नहीं कि सउदी अरब, यमन में महंगे पड़ रहे छद्म युद्ध से निकलने के लिए छटपटा रहा है.
सना सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक स्टडीज में वरिष्ठ शोधकर्ता अब्दुलघनी अल-इरायनी ने डीडब्लू को बताया कि उन्हें लगता है, यमन को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया गया. वो कहते हैं, "सउदी अरब, क्षेत्र में टिकाऊ स्थिरता और सुरक्षा के लिए अपने दूरगामी हितों को दांव पर लगाकर छोटी अवधि के उद्देश्यों को पूरा कर रहा है."
"सउदी अरब ने दूसरे तमाम दलों की कीमत पर हूथियों को यमन का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार दे दिया." वो आगाह करते हैं उसका ये कदम, राजनीतिक सत्ता में किसी को भागीदार बनाने की हूथियों की अनिच्छा के साथ मिलकर देश में अस्थिरता को और तीव्र कर सकता है.
अल-इरायनी कहते हैं, "मौजूदा वार्ता से क्षेत्रीय विघटन का जोखिम और बढ़ सकता है क्योंकि दूसरी पार्टियां हूथी के नियंत्रण में रहने को राजी नहीं होंगी."
उन्होंने इस संदर्भ में देश के दक्षिण में जारी उस आंदोलन की ओर ध्यान दिलाया जो 2017 से अपना एजेंडा चलाता आ रहा है. अल-इरयानी के मुताबिक सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल, एसटीसी के अलगाववादी बहुत मुमकिन है कि एकतरफा अलगाव की घोषणा कर दें.
ऐसा हुआ तो यमन और अधिक अस्थिरता का शिकार होगा. वो कहते हैं, "एसटीसी पूरे दक्षिण पर नियंत्रण को तैयार नहीं, ना ही हूथी गुट पूरे उत्तर पर नियंत्रण कर सकता है, लिहाजा हम दो राज्यों को अलग होता नहीं देख रहे, बल्कि यमनी राज्य के विघटन के मुहाने पर खड़े हैं."
उन्हें इस पर भी शक है कि नयी सरकारी संस्थाओं के रूप में हूथियों या एसटीसी को कोई अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल पायेगी.
इसकी वजह से, युद्ध खत्म होने के बाद, अंतरराष्ट्रीय निवेश पर नकारात्मक असर पड़ेगा और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया भी धीमी पड़ेगी.
शांति के लिए चाहिए पुनर्निर्माण, मेल-मिलाप और आर्थिक सुधार
संघर्षों के विश्लेषक और ब्रसेल्स स्थित यूरोपीय शांति संस्थान में वरिष्ठ यमनी सलाहकार, हिशम अल-ओमाइसी को भी इस पर संदेह है कि सउदी अरब और हूथियों के बीच विशिष्ट शांति वार्ताएं, स्थायी समाधान दे सकती हैं.
उन्होंने डीडब्लू को बताया, "यमन में 21 सूबे और 333 जिले हैं. सबकी अपनी अपनी खास समस्याएं हैं. समावेशिकता और ऊपर से नीचे की ओर देखने की सोच के बगैर यमन में कोई भी शांति प्रक्रिया टिकाऊ नहीं हो सकती."
अल-ओमाइसी ने कहा कि शांति बहाली की खातिर यमन को पुनर्निर्माण के लिए योजनाओं, समन्वय के रास्तों और तरीकों, और आर्थिक सुधारों की जरूरत है, और "इन सबके बगैर, और भरोसा कायम करने वाले उपायों को लागू किए बिना मौजूदा शांति वार्ता, बस दावों को बढ़ाचढ़ाकर पेश करने जैसा होगा."
इस बीच, उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में हो रही कैदियों की अदलाबदली इस सप्ताह संपन्न हो जाएगी. मार्च में यमन सरकार ने 706 हूथियों और हूथी विद्रोहियों ने 181 कैदियों को छोड़ने का वादा किया था.
बृहस्पतिवार सुबह, 14 कैदियों की पहली खेप की अदलाबदली हो भी गई. वार्ता में शामिल सरकारी प्रतिनिधिमंडल के आधिकारिक प्रवक्ता माजिद फदाएल ने ट्विटर पर इस अदलाबदली की तस्दीक की है. (dw.com)
वैज्ञानिकों ने कुछ साल पहले दुनिया के सबसे पुराने चमगादड़ों के कंकाल को खोजा था. अब उनकी प्रजाति का पता चल गया है और उम्मीद की जा रही है कि इनसे उड़ने वाले स्तनधारियों की उत्पत्ति के बारे में अहम सुराग मिलेंगे.
अमेरिका के व्योमिंग इलाके में इन कंकालों की खोज हुई थी. नई रिसर्च में जिन जीवों की बात की गई है वो इकारोनिक्टेरिस गुनेली प्रजाति के हैं जिसके बारे में पहले जानकारी नहीं थी. इनमें से एक कंकाल 2017 में और दूसरा 1994 में मिला था. आज दुनिया में मौजूद 14,000 से ज्यादा जीवों की प्रजातियों का इनसे संबंध है.
चमगादड़ों के ये कंकाल 5.2 करोड़ साल पुराने हैं. ये दो और प्रजातियों से जुड़े हैं जिनके कंकाल उसी इलाके में पहले मिले थे, हालांकि वो इनसे थोड़े नये थे. जहां उनकी खोज हुई है इयोसिन एपॉक के दौर में यह सबट्रॉपिकल इलाका एक ताजे पानी की झील पर नम पारिस्थितिकी तंत्र था. इयोसिन एपॉक का कालखंड 5.6-3.3 करोड़ साल पहले तक का माना जाता है. उस कालखंड में महाद्वीप आज जिस रूप में दिखाई पड़ते हैं उस तरफ जाने की प्रक्रिया जारी थी.
जीव समान लेकिन प्रजाति अलग
नीदरलैंड्स की नेचुरलिस बायोडाइवर्सिटी सेंटर से जुड़े जीवाश्मविज्ञानी टिम रीटबेर्गेन नई रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक हैं. उनका कहना है, "यह चमगादड़ आज के कीटपतंगों को खाने वाले चमगादड़ों से ज्यादा अलग नहीं था." रीटबेर्गेन ने बताया, "अगर यह अपने पंखों को मोड़ कर शरीर के साथ सटा ले तो आसानी से हमारी हथेली में छिप जायेगा. इसके पंख तुलनात्मक रूप से छोटे और चौड़े हैं जो उड़ने के दौरान खूब फड़फड़ाते हैं. इसके दांत साफ तौर पर यह दिखा रहे हैं कि यह कीड़ों को खाने वाला चमगादड़ है. इस बात की पूरी संभावना है कि यह इकोलोकेटिंग चमगादड़ है." इकोलोकेटिंग चमगादड़ शिकार और उड़ान भरने के लिए तरंगों का इस्तेमाल करते हैं जो चमगादड़ों में आम है.
इसके दांत नुकीले और उभरे हुए हैं जो कीड़ों की बाहरी त्वचा को काटने के काम आते हैं, इनकी बनावट उस तरह की नहीं है जो फल खाने में मददगार हो.
बहुत कुछ नहीं बदला है चमगादड़ों में
इन दोनों जीवाश्मों में यह देखा जा सकता है कि चमगादड़ अपने इतिहास की शुरुआत में जिस रूप में थे उसके कई तत्व आज के दौर की आधुनिक प्रजातियों में भी मौजूद हैं. रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखक और एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के जीवाश्मविज्ञानी मैट जोन्स का कहना है, "चमगादड़ बहुत हद तक वैसे ही दिखते हैं जैसे कि जीवाश्म के रिकॉर्ड में एक पूरा कंकाल. हमारे पास ऐसा कुछ भी नहीं कि हम इसे आधा चमगादड़ कह सकें या फिर दूसरे शब्दों में हमारे पास संक्रमण काल का कोई अच्छा जीवाश्म नहीं है."
इसके साथ ही जोन्स ने यह भी कहा, "इकारोनिक्टेरिस गुनेली आधुनिक चमगादड़ों से थोड़ा अलग है, इसके पैर लंबे हैं औऱ हाथ की हड्डियां भी लंबाई में थोड़ी अलग है. सबसे ज्यादा नजर आने वाली चीज है कि इसकी तर्जनी में नाखून हैं. उस दौर की दूसरी प्रजातियों में भी नाखून है, लेकिन आज के दौर के ज्यादातर चमगादड़ों में यह लुप्त हो चुका है."
यह प्रजाति उसी इलाके में मिली दो और प्रजातियों के काफी करीब है इनके नाम हैं इकारनिक्टेरिस इंडेक्स और ओनिकोनिक्टेरिस फिनेइ. इससे पता चलता है कि उस दौर के चमगादड़ों में जितना सोचा गया था उससे कहीं ज्यादा विविधता थी.
यह जीवाश्म चमगादड़ों के अब तक के सबसे पुराने कंकाल का है. दोनों कंकाल पूरे हैं और काफी हद तक सुरक्षित भी. इस दौर के जो दूसरे जीवाश्म मिले हैं उनमें कुछ दांत और जबड़ों के हिस्से हैं जिनकी खोज चीन और पुर्तगाल में हुई थी.
और पुराना हुआ चमगादड़
चमगादड़ों के इतिहास के बारे में वैज्ञानिक कई सवालों के जवाब ढूंढ रहे हैं. इस पुराने कंकाल से अब इस बात की पुष्टि हो गई है कि पूरी तरह से विकसित पहला चमगादड़ अब तक जो सोचा गया था उससे लाखों साल पहले धरती पर आया था. जोन्स का कहना है, "शायद पैलियोसिन इपोक के दौरान उनकी उत्पत्ति हुई, यह लगभग एक करोड़ साल का वो अंतराल है जो मिसोजोइक युग और इओसिन एपॉक के बीच में था." 6.6 करोड़ साल पहले डायनासोर के खत्म होने के बाद इसी दौर में उत्पत्ति से जुड़े कई प्रयोग शुरू हुए और स्तनधारी जीवों का धरती पर प्रभुत्व शुरू हुआ.
सिर्फ दो कशेरुकी जीव समुदाय ही उड़ने की काबिलियत हासिल कर सके इनमें एक था उड़ने वाला सरीसृप टेरोसॉर और दूसरा चिड़िया. ये दोनों चमगादड़ों से पहले धरती पर आ गये थे. धूमकेतू ने टेरोसॉर का अस्तित्व मिटा दिया. वैज्ञानिक आज भी यह गुत्थी नहीं सुलझा पाये हैं कि कौन सा स्तनधारी चमगादड़ों का पूर्वज था.
जोन्स का कहना है, "चमगादड़ संभवतया छोटे पेड़ों पर रहने वाले कीटभक्षी स्तनधारियों से विकसित हुए. हालांकि उस दौर के ऐसे कई कीटभक्षियों के जीवाश्म मौजूद हैं जिनसे शायद चमगादड़ों की उत्पत्ति हुई लेकिन किससे यह साफ नहीं है."
एनआर/सीके (रॉयटर्स)