(नोट: पाकिस्तान में हाल के दिनों में ईश निंदा के आरोपों पर इस विस्तृत रिपोर्ट का मक़सद धर्म या किसी धार्मिक व्यक्तित्व की भावनाएं आहत करना नहीं बल्कि इस मामले की जानकारी सामने लाना है.)
दुबई की एक निजी कंपनी में नौकरी करने वाले उस्मान (बदला हुआ नाम) अप्रैल 2024 में पाकिस्तान वापस आए. दो दिन बाद ही उन्हें ईश निंदा के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया.
उस्मान इस वक़्त रावलपिंडी की अडयाला जेल में क़ैद हैं. उनके माता-पिता का कहना है कि उनके बेटे को सोशल मीडिया पर मिलने वाली एक महिला ने ईश निंदा के झूठे मुक़दमे में फंसाया है.
ईश निंदा के मुक़दमों में जेलों में ऐसे ही कम से कम 101 लोगों के परिवारों ने इस्लामाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसमें एक ऐसे समूह के ख़िलाफ़ जांच की अपील की गई है जो उनके अनुसार 'झूठे मुक़दमे' करने में शामिल है.
पंद्रह जुलाई को इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने पाकिस्तान सरकार को आदेश दिया कि इन मुक़दमों की जांच के लिए 30 दिनों में फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग कमीशन बनाए. इस केस का फ़ैसला सुनाते हुए इस्लामाबाद हाई कोर्ट के जज सरदार एजाज़ इसहाक़ ख़ान ने कहा कि यह कमीशन चार माह में ईश निंदा से जुड़े मुक़दमों की जांच पूरी करके अपनी फ़ाइनल रिपोर्ट पेश करे.
लेकिन इस फ़ैसले के कुछ ही दिनों बाद यानी 24 जुलाई को इस्लामाबाद हाई कोर्ट की ही एक डिविज़न बेंच ने कमीशन गठित करने के इस फ़ैसले पर रोक लगा दी.
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि पाकिस्तानी प्रशासन के सामने कथित ईश निंदा के मामलों में धोखाधड़ी के आरोप सामने आए हों.
अप्रैल 2024 में पंजाब पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने एक 'विशेष रिपोर्ट' में दावा किया था कि रावलपिंडी और इस्लामाबाद में "कुछ लोगों का समूह सक्रिय है जो युवाओं को ईश निंदा के झूठे आरोपों में फंसा रहा है और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमे एफ़आईए (फ़ेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) को भेज रहा है." यह रिपोर्ट इस्लामाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पेश की जा चुकी है.
इस रिपोर्ट में यह आरोप भी लगाया गया था कि कुछ मुक़दमों में ऐसे सबूत भी मिले हैं कि जिनके मुताबिक़ ईश निंदा के मुक़दमे दायर नहीं करने के बदले में "पैसों की मांग की गई."
इस्लामाबाद हाई कोर्ट में ईश निंदा के मुक़दमों में जेलों में क़ैद लोगों के घर वालों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील का कहना है कि मुवक्किलों के ख़िलाफ़ मुक़दमों में पाई गई समानता भी इन मुक़दमों को शक के दायरे में लाती है.
फ़ेसबुक पर संपर्क
उस्मान की मां का कहना है कि उनके बेटे से एक महिला ने पहली बार फ़ेसबुक पर संपर्क किया था. उस्मान की मां यह नहीं चाहतीं कि उनका नाम ज़ाहिर हो इसलिए हम उनका नाम नहीं दे रहे हैं.
उनका कहना है, "उन्होंने (उस्मान ने) मुझे बताया कि उनकी उस महिला से बात फ़ेसबुक मैसेंजर पर शुरू हुई थी और कुछ दिन बाद व्हाट्सऐप पर भी उनके बीच बातें होने लगीं. इसके बाद उस्मान को उस महिला ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप में शामिल किया."
"पहले पहल तो इस व्हाट्सऐप ग्रुप में अच्छी पोस्ट्स आती रहीं लेकिन बाद में उस महिला ने इस ग्रुप में कुछ ऐसी बातें शेयर कीं जिनकी वजह से मेरे बेटे ने उस व्हाट्सऐप ग्रुप को छोड़ दिया."
उस्मान की मां कहती हैं मेरे बेटे ने उस महिला से कहा, "आपने ग्रुप में जो भेजा है उसके बाद मेरे लिए आपसे संपर्क में रहना मुश्किल हो गया है."
इसके जवाब में उस महिला ने मैसेज भेजा, "मैं ऑफ़िस में हूं और मैंने कोई भी ऐसी चीज़ ग्रुप में नहीं भेजी है. आप मुझे वह पोस्ट्स ज़रा फ़ॉरवर्ड कर दें."
उस्मान की मां कहती हैं, "यह मेरे बेटी की ग़लती है… आपने यह पोस्ट्स उसे क्यों फॉरवर्ड कीं जब आपको मालूम था कि यह ईश निंदा जैसी चीज़ है?"
उन्होंने बताया कि उस महिला ने ऐसी कोई भी पोस्ट भेजने की बात से इनकार कर दिया था और उनके बेटे ने उस पर भरोसा कर लिया कि वाक़ई उन्होंने उसे व्हाट्सऐप ग्रुप पर कोई ऐसी पोस्ट नहीं भेजी जिसके दोनों मेंबर थे.
उनके मुताबिक़ उस महिला ने बाद में उनके बेटे को एक रेस्त्रां में मुलाक़ात के लिए बुलाया था लेकिन जब उस्मान वहां पहुंचे तो वह नहीं मिली. अलबत्ता उनकी जगह एफ़आईए के अधिकारी और कुछ दूसरे लोग मौजूद थे जिन्होंने उस्मान को प्रिवेंशन ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक क्राइम्स ऐक्ट (पीका) के तहत ईश निंदा के मुकदमे में गिरफ़्तार कर लिया.
बीबीसी उस्मान की मां की ओर से किए गए दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सका लेकिन ऐसे ही दावे दूसरे लोग भी करते हुए नज़र आते हैं.
महिलाओं से दोस्ती, सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप ग्रुप
ओसामा और सलीम (दोनों नाम असली नहीं) की कहानियां भी उस्मान से मिलती-जुलती हैं और वह भी ईश निंदा के मुक़दमों में अडयाला जेल में क़ैद हैं.
उनका कहना है कि सोशल मीडिया पर उनकी कुछ महिलाओं से दोस्ती हुई और उन्हें भी एक व्हाट्सऐप ग्रुप में शामिल किया गया था.
उनके परिवार वालों के अनुसार, जिन्होंने बीबीसी से पहचान ना बताने की शर्त पर बातचीत की, उन महिलाओं ने उन ग्रुप्स में ईश निंदा के आरोप वाली सामग्री शेयर की. जब उनके बेटों ने इसके बारे में पूछताछ की तो उन्होंने इस तरह की सामग्री शेयर करने से की बात से इनकार कर दिया और कहा कि वह यह पोस्ट्स उन्हें फ़ॉरवर्ड कर दें.
इन परिवारों के अनुसार उनके बेटों ने ऐसा ही किया और बाद में वह ईश निंदा के मुक़दमों में गिरफ़्तार कर लिए गए.
मुक़दमों में एक जैसी बातें
न केवल उन लोगों की कहानियों में समानता है बल्कि उनके ख़िलाफ़ दायर मुक़दमों में भी एक ही जैसी बात नज़र आती है.
पिछले कुछ सालों में ईश निंदा के आरोपों में दर्ज कई एफ़आईआर को पढ़ने के बाद कुछ सच्चाई सामने आती है. ऐसे मुक़दमों की संख्या बढ़ रही है और कुछ लोगों ने एक से ज़्यादा मुक़दमे भी दर्ज करवा रखे हैं.
यह सभी मुक़दमे सोशल मीडिया या व्हाट्सऐप पोस्ट्स की वजह से दर्ज करवाए गए हैं और ज़्यादातर मुक़दमों में ईश निंदा के आरोप वाली सामग्री भी एक जैसी ही नज़र आती है.
हाई कोर्ट में ईश निंदा के मुक़दमों से संबंधित याचिका एक ऐसे वक़्त में सुनी जा रही है जब पाकिस्तान में ऐसे मुक़दमों की संख्या बढ़ती देखी गई है.
ईश निंदा के आरोपों में जेलों में बंद लोगों के परिवार वालों के एक वकील उस्मान वड़ैच ने बीबीसी उर्दू को बताया, "हम क़ानून के जायज़ या नाजायज़ होने पर सवाल नहीं उठा रहे. उन परिवारों का कहना है कि इस क़ानून का ग़लत इस्तेमाल किया गया और उनके बच्चों के ख़िलाफ़ झूठे मुक़दमे बनाए गए."
ईश निंदा के मुक़दमों में इज़ाफ़ा और सरकारी रिपोर्ट्स
पाकिस्तान में मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले सरकारी संगठन 'नेशनल कमीशन फ़ॉर ह्यूमन राइट्स' (एनसीएचआर) ने पिछले साल एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके अनुसार पिछले साढ़े तीन सालों में देश में ईश निंदा के आरोप में क़ैद लोगों की संख्या बहुत बढ़ गई है. यह संख्या 2020 में 11 थी जो बढ़कर 767 पर पहुंच गई.
लेकिन इस रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि उन क़ैदियों के साथ मुक़दमों की सुनवाई शुरू होने के बाद क्या हुआ और न ही कोई ऐसा सरकारी आंकड़ा मौजूद है जिससे इस मामले में और जानकारी मिल सके.
एनसीएचआर की इस रिपोर्ट में सन 2020 से जुलाई 2025 तक के आंकड़े शामिल किए गए हैं और इसके अनुसार ईश निंदा के मुक़दमों में पंजाब की जेलों में 581, सिंध में 120, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में 64 जबकि बलूचिस्तान की जेलों में दो लोग क़ैद हैं. याद रहे कि पाकिस्तान में ईश निंदा एक ऐसा अपराध है जिसके साबित होने पर मौत की सज़ा भी सुनाई जा सकती है.
पिछले कुछ वर्षों में उन मुक़दमों में उस वक़्त इज़ाफ़ा देखा गया जब धार्मिक समूहों ने ईश निंदा के ख़िलाफ़ मुहिम तेज़ की और सरकार से यह मांग की कि सोशल मीडिया पर ईश निंदा वाली सामग्री शेयर करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए.
पिछले कुछ सालों में सरकारी अधिकारियों ने भी सोशल मीडिया पर 'ईश निंदा वाली सामग्री' के ख़िलाफ़ कार्रवाई तेज़ की है और लोगों से कहा है कि वह ऐसी सामग्री के ख़िलाफ़ शिकायत पाकिस्तानी टेलीकम्युनिकेशन अथॉरिटी और एफ़आईए को भेजें.
लेकिन ईश निंदा के आरोपों में जेलों में बंद कई लोगों के परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील उस्मान वड़ैच का दावा है कि उनके मुवक्किलों को ईश निंदा के मुक़दमों में फंसाया गया है.
उस्मान वड़ैच का मानना है कि ईश निंदा के मुक़दमों में इज़ाफ़े के पीछे एक संगठित समूह नज़र आता है. उनका कहना है कि ईश निंदा के कई मुक़दमों में मुद्दई भी एक ही हैं.
सरकार से जांच की मांग
ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ़ पाकिस्तान (एचआरसीपी) की सालाना रिपोर्ट में भी ऐसे ही समूह का ज़िक्र है जो इस संस्था के अनुसार ईश निंदा के मुक़दमों में इज़ाफ़े के पीछे है. एचआरसीपी ने भी सरकार से इस मामले की जांच की मांग की है.
कुछ समय पहले पाकिस्तान सरकार के क़ानूनी मामलों के प्रवक्ता बैरिस्टर अक़ील मलिक ने पाकिस्तान के निजी टीवी चैनल 'आज टीवी' के प्रोग्राम में कहा था कि सरकार इस मामले की जांच के लिए तैयार है.
एनसीएचआर और स्पेशल ब्रांच की रिपोर्ट में संदिग्ध बताए गए मुक़दमों का ज़िक्र करते हुए उनका कहना था, "पहली नज़र में यह लगता है कि मुद्दई एक ही हैं, एफ़आईआर की सामग्री एक जैसी है, तो इस मामले पर शक तो होता है."
बैरिस्टर अक़ील मलिक ने उस वक़्त कहा था, "मैं आपको बता सकता हूं कि (जांच के लिए) कमीशन अगले कुछ सप्ताह में बना लिया जाएगा."
लेकिन उनका यह भी कहना था कि ईश निंदा के सभी मुक़दमे झूठे नहीं हैं.