विचार / लेख
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-गिरीश मालवीय
एक साधारण सा फिल्म अभिनेता जिसकी कुछ दो चार फिल्म हिट हुई है संभवत: नशे की सही डोज न मिलने के कारण आत्महत्या कर लेता है और भारत का मीडिया उसकी आत्महत्या पर बवाल मचा देता है। लगभग पूरी फिल्म इंडस्ट्री शक के घेरे में आ जाती है। महीने दो महीने तक सुबह-शाम न्यूज चैनलों पर सिर्फ उसी से संबंधित न्यूज चलती है।
लेकिन जब देश के सबसे वरिष्ठ सांसदों में से एक जो सात बार लोकसभा का चुनाव जीतकर आया हो जो पूरे होशोहवास में आत्महत्या करने से पहले एक या दो नहीं, बल्कि 14 पन्नों का एक पत्र, ‘सुसाइड नोट’ के शीर्षक के साथ, वो भी अपने ऑफिशियल लेटरहैड पर लिखकर मुंबई के एक होटल के कमरे में पँखे पर झूल जाता है तो न सांसद की कोई चर्चा करता है न उसके सुसाइड नोट की कोई चर्चा करता है न उन परिस्थितियों की कोई चर्चा करता है जिसमें उलझ कर एक सांसद जैसे अधिकार संपन्न आदमी को अपनी जान देनी पड़ी और न उन नामों पर चर्चा करता है जिनका नाम उस सुसाइड नोट में लिखा है।
तो ऐसा क्यों होता है आपने कभी सोचा?
मीडिया में आज वो ताकत है जो किसी भी भी आलतू-फालतू मुद्दे को हमारे दिमाग में फिट कर दे और जिन जनसरोकार के मुद्दों का हमसे सीधा संबंध है उन्हें हमसे दूर कर दे। यह मीडिया का दानव जिसके वश में है वही हमारे सोचने-समझने की शक्ति को अपने कंट्रोल में किए हुए हैं वही राज कर रहे हैं।
खैर!...जाने दीजिए...यह सब बातें एक न एक दिन आपको समझ में आ ही जाएगी, मैं आपको यहाँ वो बता दूं जो हमारा मीडिया खासतौर पर हिंदी मीडिया बिल्कुल भी नहीं बता रहा है। कल मोहन डेलकर के युवा पुत्र अभिनव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर न्याय की माँग की है। गुजराती में लिखे गए पत्र में अभिनव डेलकर ने लिखा है, ‘मेरे पिता मोहन डेलकर को कुछ समय के लिए मानसिक रूप से तनाव में रखा गया है और इस पत्र को लिखने का उद्देश्य न्याय प्राप्त करना है
अभिनव लिखते हैं ‘मेरे पिता पर बहुत दबाव था। स्थानीय प्रशासन ने उनके और हमारे समर्थकों के लिए चीजों को बहुत कठिन बना दिया था। अभिनव ने कहा कि सांसद होने के बावजूद एक प्रकार असहायता की भावना उनमें आ गई थी वह अपने समर्थकों की मदद करने तक में स्वयं असमर्थ महसूस कर रहे थे।
अभिनव ने कहा कि डेल्कर के कई समर्थकों और आदिवासी श्रमिकों को एक स्थानीय सरकारी स्कूल में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने जिला परिषद चुनाव में उनका समर्थन किया था। ‘ये लोग मेरे पिता से मदद मांगने आएंगे। लेकिन वह असहाय थे क्योंकि स्थानीय प्रशासन उन्हें या मेरे पिता की उचित सुनवाई के लिए तैयार नहीं था। 27 जून, 2020 को बुलडोजर के साथ हमारे कॉलेज के बाहर 350 से अधिक पुलिस कर्मियों ने बिल्डिंग का ढांचा ढहा दिया था। उन्होंने तभी इस कार्य को तभी रोका जब मेरे पिता अदालत से स्टे लेकर के आए।
अभिनव इस पत्र में बताते हैं कि डेलकर को सरकारी कार्यों के लिए भी आमंत्रित नहीं किया जा रहा था। ‘पिछले कुछ वर्षों में, प्रशासन ने उन्हें भाषण देने से रोक दिया था। जब गृह मंत्री नित्यानंद राय एक अधिकारी के लिए आए थे, तब उन्होंने उन्हें आमंत्रित नहीं किया था। महाराष्ट्र के गृह मंत्री द्वारा दिया गया बयान 24 फरवरी को कहा गया है कि ष्ठहृ॥ प्रशासक सीधे मेरे पिताजी को आत्महत्या के लिए मजबूर करने में शामिल है। हम ष्ठहृ॥ के लोग ऐसे व्यक्ति को स्वीकार नहीं कर सकते। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप तुरंत ष्ठहृ॥ से प्रशासक प्रफुल्ल पटेल को हटा दें। मुझे मुंबई पुलिस द्वारा की गई जांच पर पूरा भरोसा है। यह एक बेटे की आपसे अपील है।’
उनके बॉडी गार्ड नंदू वानखेड़े का बयान भी सामने आया है जिसमे कहा गया है कि डेलकर पिछले कुछ दिनों से उदास थे। वानखेड़े ने कहा कि एक रात पहले मैं उनके साथ कमरे में था और उसे कुछ लिखते देखा। बाद में उन्होंने मुझे जाने के लिए कहा क्योंकि उन्होंने कहा कि वह अध्ययन करना चाहते हैं। ड्राइवर अशोक पटेल 1 बजे तक उनके साथ रहे। उन्होंने मुझे बताया कि सर (डेलकर) ने उनके जाने तक लिखना जारी रखा। अब हम मानते हैं कि यह सुसाइड नोट था।
इस सुसाइड नोट में भी इस ‘अन्याय’, ‘अपमान’ और उनके साथ बरते गए पूर्वाग्रह का उल्लेख किया गया है।
58 वर्षीय मोहन डेलकर आदिवासियों के बड़े हितैषी के रूप में गिने जाते थे। सांसद मोहन डेलकर, जो आदिवासी कोटे से चुने गए सांसद थे। बेहद आश्चर्य की बात है कि उनके लिए देश का आदिवासी समाज भी कुछ नही बोल रहा है, बड़े-बड़े आदिवासी नेता भी इस मसले पर खामोश है।
भारतीय राजनीति की यह कितनी बड़ी त्रासदी है कि एक उच्च शिक्षित साधन संपन्न नेता, जो सात बार सांसद रहा है, उसे ऐसी असहाय अवस्था में अपना जीवन समाप्त करना पड़ रहा है। लेकिन न मीडिया में न सोशल मीडिया में कोई इस बारे में बात तक करने को तैयार नहीं है।