विचार / लेख
पवन वर्मा
ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित गल्प या उपन्यासों के साथ अमूमन यह सवाल जुड़ा रहता है कि उन्हें कितना सच माना जाए और कितना मिथकीय। खासतौर पर जब कोई रचना हाल ही की किसी त्रासदी से जुड़ी हो और मामला धार्मिक गुटों से संबंधित हो। ऐसे में इस पर सवाल खड़े होने और विवादों की गुंजाइश और बढ़ जाती है। हालांकि आश्चर्यजनक रूप से 1974 में जब भीष्म साहनी का उन्यास ‘तमस’ आया तो उस पर कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ। यह उपन्यास भारत-पाकिस्तान विभाजन की पृष्ठभूमि पर लिखा गया था औऱ इसमें दंगों के पीछे हिंदू-मुस्लिम कट्टरपंथियों की भूमिका का बेहद वास्तविक चित्रण था। इसके बावजूद यह उपन्यास न सिर्फ जल्दी ही हिंदी की सबसे अच्छी कृतियों में शामिल हो गया बल्कि खासा लोकप्रिय भी हुआ।
1987-88 में गोविंद निहलानी ने इसी उपन्यास और साहनी की दो और कहानियों पर आधारित ‘तमस’ नाम से ही एक टेलीफिल्म बनाई थी। जनवरी, 1988 में धारावाहिक के रूप में जब इस टेलीफिल्म का पहला भाग दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ तो इस पर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। यह वही दौर था जब राजनीति में कट्टर हिंदूवादी विचारधारा हावी हो रही थी। इस धारावाहिक पर भाजपा का कहना था कि दूरदर्शन को तुरंत ही इसका प्रसारण बंद करना चाहिए क्योंकि इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आर्यसमाज को धार्मिक उन्मादी बताकर इतिहास को विकृत करने की कोशिश की गई है। वहीं कुछ मुस्लिम समूहों का आरोप था कि ‘तमस’ में उनके समुदाय की बर्बर छवि दिखाई गई है।
वामपंथियों और उदारवादियों के साथ विद्यार्थियों का एक बड़ा तबका ऐसा भी था जो पूरी तरह ‘तमस’ के प्रसारण के पक्ष में था। राजनीतिक गलियारों में जब यह विवाद बढ़ता जा रहा था उसी समय बंबई उच्च न्यायालय में धारावाहिक का प्रसारण बंद करवाने के लिए एक याचिका दायर की गई। इसके पक्ष में अदालत में तर्क दिए गए कि ‘तमस’ का प्रसारण आम लोगों के मानस में पूर्वाग्रह पैदा कर सकता है। साथ ही हो सकता है कि इससे फिर दंगे जैसे हालात बन जाएं।
राजनीतिक विवाद और धार्मिक गुटों की संवेदनशीलता को देखते हुए यह प्रकरण तुरंत ही मीडिया में सुर्खियां बनने लगा। जब इस मामले पर अदालत का फैसला आया तो यह एक ऐतिहासिक फैसला साबित हुआ। बंबई उच्च न्यायालय में जस्टिस लैंटिन और सुजाता मनोहर की पीठ ने तमस के प्रसारण पर रोक संबंधी याचिका खारिज करते हुए फैसला दिया कि यह एक त्रासदी का विश्लेषण है। इसमे दिखाया गया है कि कैसे कट्टरपंथी दंगों को भडक़ाते हैं। फैसले में दोनों जजों ने आगे यह भी जोड़ा कि इसका प्रसारण आने वाली पीढिय़ों के लिए एक सबक होगा।
इस विवाद से जुड़ी एक दिलचस्प बात यह भी है कि दूरदर्शन ने बाद में तमाम तरह के दबावों और विरोधों के बावजूद ‘तमस’ के पूरे आठ भागों का प्रसारण किया था। ओमपुरी और दीपा साही के जीवंत अभिनय और गोविंद निहलानी के सधे हुए निर्देशन वाला यह धारावाहिक उस समय काफी लोकप्रिय भी हुआ। इसे दूरदर्शन के सबसे यादगार धारावाहिकों में गिना जाता है। (सत्याग्रह)