जापान की एक रिपोर्ट है कि वहां 1916 में पैदा हुई एक महिला आज दुनिया की सबसे उम्रदराज कामकाजी नाई है। गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉड्र्स ने ठोक-बजाकर, सारे सुबूत देखकर उन्हें यह सर्टिफिकेट दिया है। शितसुई हाकोइशी नाम की यह महिला यह सर्टिफिकेट पाने के समारोह में अपनी 85 साल की बेटी, और 81 साल के बेटे के साथ पहुंची थी, और खुद चलती-फिरती, काम करने की हालत में थी। शितसुई का कहना है कि वे अभी दो बरस और काम करेंगी, उन्होंने कहा कि 110 बरस की उम्र तक कड़ी मेहनत से काम करना है। उनकी कहानी बड़ी दिलचस्प इसलिए है कि 14 बरस की उम्र में उन्होंने बाल काटना सीखना शुरू किया, 20 बरस की उम्र में पेशेवर नाई का सर्टिफिकेट मिल गया, और शादी हो गई। 1937 में जापान-चीन युद्ध में उनके पति की मौत हो गई, दूसरे विश्व युद्ध में टोक्यो पर अमरीकी बमबारी से उनका घर राख में तब्दील हो गया, लेकिन अपने बच्चों को लेकर जिंदा रहने के संघर्ष में वो काम करती चली गईं, और अभी 108 बरस की उम्र में बहुत अच्छी तरह अपना सलून चलाती हैं।
आज विश्व महिला दिवस है, और इस मौके पर एक महिला के संघर्ष की, उसकी कामयाबी की यह कहानी देखने लायक है। आज अधिकतर लोग सरकारी रिटायरमेंट की उम्र 58-60 साल आते-आते काम में दिलचस्पी खो बैठते हैं, उन्हें लगता है कि अब ईश्वर की साधना में, या नाती-पोतों के साथ बाकी की जिंदगी गुजार देना है। इस उम्र के बाद जो अधिक सक्रिय रहते हैं, वे भी अपने हमउम्र लोगों के साथ सुबह की सैर पर अगल-बगल के मैदान-बगीचे तक जाकर एक जगह डेरा डाल देते हैं, और आपस में इस चर्चा में जुट जाते हैं कि सुबह पेट कैसा साफ हुआ। इनमें से बहुतों के पास अपनी जिंदगी के कुछ संस्मरण सुनाने की हसरत रहती है, और आगे की जिंदगी मानो यादों के सफर में ही कटने के लिए बची रहती है। कुछ अधिक जिद्दी लोग योग, कसरत, या सुबह-शाम की सैर में लगते हैं, लेकिन कामकाजी जिंदगी को मानो गैरसरकारी काम किए हुए लोग भी रिटायरमेंट की उम्र तक छोड़ देने के चक्कर में रहते हैं, बल्कि बहुत से लोग तो इस उम्र के पहले भी वालंटरी रिटायरमेंट ले लेते हैं। ऐसे में 108 बरस की उम्र में दो बरस और काम करने का इरादा लोगों को दूसरी दुनिया का लग सकता है।
लेकिन एक बात पूरी दुनिया में एक सरीखी है कि महिलाएं पुरूषों के मुकाबले अधिक लंबी जिंदगी जीती हैं, और वे अधिक मेहनत भी करती हैं। शायद अधिक मेहनत करना, और कम खाना, और गम खाना भी वे वजहें रहती हैं जिनकी वजह से महिला अधिक उम्र तक न सिर्फ जीती है, बल्कि अधिक सेहतमंद भी रहती है। भारत जैसे देश में धार्मिक या आध्यात्मिक रुझान वाले अधिकतर लोग ऐसे दिखते हैं जो कि सरकारी रिटायरमेंट उम्र के बाद बाकी जिंदगी अपने-अपने धर्मों के, और पसंद के प्रवचनों में गुजार देना चाहते हैं। यही वजह है कि ऐसे एक-एक कार्यक्रम में लाखों लोग जुट जाते हैं। नतीजा यह होता है कि आमतौर पर जिंदगी से पलायन सिखाने वाले प्रवचनों को सुन-सुनकर लोग अपने आपको बुरा, पापी, अज्ञानी मानते रहते हैं, क्योंकि अगर वे अपने को ऐसा नहीं मानेंगे, तो फिर उन्हें प्रार्थना की जरूरत क्यों रह जाएगी? इसलिए बहुत से धर्मों में जिंदगी की जरूरी बातों को काम-वासना, पाप, लालच जैसे तमगे दे दिए जाते हैं, और लोगों को इनसे जूझते हुए, अपराधबोध और पाप की धारणा से मुक्ति पाने की कोशिश करते हुए बाकी जिंदगी भक्ति में गुजारना जरूरी लगता है। यह जिंदगी के असल संघर्ष से दूर धकेलने वाली एक धार्मिक-आध्यात्मिक साजिश रहती है जो कि लोगों के दिमाग में यह बात बैठा देती है कि वक्त से पहले, और किस्मत से अधिक कुछ नहीं मिलता। यह बात भी बैठा दी जाती है कि ऊपरवाला सब देख रहा है, और उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। नतीजा यह होता है कि ऐसी धार्मिक-आध्यात्मिक नसीहतों के बीच लोगों की काम करने की हसरत और मेहनत खत्म ही होने लगती है।
जापान की इस महिला की मिसाल देखने लायक है, और दुनिया भर में अलग-अलग बिखरी हुई ऐसी दूसरी मिसालें भी हैं। दुनिया के कुछ सबसे बड़े पूंजीनिवेशकों की मिसालें हैं कि उन्होंने अपनी अधिकतर दौलत 60 बरस की उम्र के बाद कमाई है। एक किसी दूसरी जगह आज ही किसी ने लिखा है कि 60 बरस की उम्र के बाद सबसे बड़ी कमाई अपनी सेहत को ठीक रखना है, और अच्छी सेहत से बड़ी बचत और कुछ नहीं हो सकती। जापान सबसे अधिक उम्रदराज लोगों का देश है, और आबादी के अनुपात में शतक पूरा करने वाले लोग शायद जापान में ही सबसे अधिक हैं। दुनिया भर में जिन लोगों को लगता है कि उनकी काम की उम्र निकल गई है, उन्हें अपने आपको किसी न किसी उत्पादक, रचनात्मक, और सकारात्मक काम में इसलिए व्यस्त रखना चाहिए कि इन दिनों बुढ़ापे में बढ़ चली कई तरह की कमजोर याददाश्त वाली बीमारियां दिमागी सक्रियता कम होने से भी उपजती हैं। इसलिए अपने आपको व्यस्त रखना लोगों को अपने परिवार और समाज में, आसपास के लोगों में अलग सम्मान तो दिलाता ही है, आत्मनिर्भर भी बनाए रखता है, और समाज में उनका योगदान भी याद रखा जाता है। इसलिए 60-65 की उम्र में जिन लोगों को परिवार की कई तरह की जिम्मेदारियां छोडक़र धर्म-आध्यात्म में जुट जाने का दिल करता है, उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि क्या वे रिटायर होने की उम्र पर कोई ऐसा नया काम भी शुरू कर सकते हैं जो उन्हें अगले कुछ दशकों तक, बाकी जिंदगी तक व्यस्त रखे? इस तरह के व्यस्त बुजुर्ग ही किसी परिवार को गैरजरूरी तनाव, परेशानी, और बोझ से बचा सकते हैं। एक बार जिन्होंने अपने आपको रिटायर मान लिया, वे आसपास के दायरे पर बोझ भी बनने लगते हैं, वरना 108 बरस की उम्र में अपना सलून चला रही जापानी नाई को देखें, जो दो बरस और काम करना चाहती है।
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