-रुचिर गर्ग
इलाहाबाद महाकुंभ में हुई धर्म संसद में राहुल गांधी के खिलाफ प्रस्ताव पारित हुआ।
कहा गया कि राहुल गांधी ने मनुस्मृति को लेकर एक बयान दिया जिससे इसे पवित्र ग्रंथ मानने वाले करोड़ों आस्थावान लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं।
मीडिया की खबरों के मुताबिक शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि महीने भर के अंदर अगर राहुल गांधी ने अपना पक्ष नहीं रखा तो उनको हिन्दू धर्म से बहिष्कृत कर दिया जाएगा।
इस देश में मनुस्मृति को लेकर कोई टिप्पणी पहली बार नहीं हुई है।
इस देश में संविधान की प्रतियां जलाने वाले भी हैं और मनुस्मृति जलाने वाले भी।
धर्म संसद है तो यूनेस्को द्वारा दक्षिण एशिया के सुकरात कहे गए ई वी रामसामी पेरियार भी।
अभी मुद्दा यह है कि इस ऐलान को कांग्रेस पार्टी या उसके देश भर में मौजूद नेता कार्यकर्ता किस तरह लेते हैं।
वो राहुल गांधी की राय से इत्तेफाक रखते हैं या धर्मसंसद की चेतावनी से?
यह नजरअंदाज करने वाला सवाल नहीं है।
अगर आप राजनीति में हैं और राहुल गांधी को नेता मानते हैं तो अपनी राय साफ करनी चाहिए क्योंकि देश की हवा यह कह रही है कि आने वाले दिनों में इस या ऐसे सवालों के थपेड़ों का तो सामना करना ही होगा।
संसदीय राजनीति की जरूरतें नेताओं कार्यकर्ताओं को एक खौफ में तो रखती हैं-खौफ वोटों का,कथित तौर पर अलग-थलग कर दिए जाने का भी खौफ।
राहुल गांधी तो कहते रहे हैं-डरो मत!
उनके लाखों-करोड़ों समर्थक और पार्टी जन क्या कहते हैं ?
(लेखक कुछ बरस कांग्रेस में रहकर, अब सक्रिय राजनीति छोडक़र फिर मीडिया में लौटे हैं, इस दौरान वे कांग्रेस सीएम भूपेश बघेल के मीडिया सलाहकार भी थे)