संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीका से निकाले लोगों का दर्द तो सबके सामने है, लेकिन उनका किया हुआ..
07-Feb-2025 5:02 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : अमरीका से निकाले लोगों का दर्द तो सबके सामने है, लेकिन उनका किया हुआ..

अब जब अमरीका से अवैध घुसे हुए, या बसे हुए हिन्दुस्तानियों का वापिस आना तय हो चुका है, जब दोनों सरकारें इस पर सहमत हो गई हैं कि अमरीका जितने भारतीय नागरिकों को भेजेगा, भारत उन्हें रखेगा, तब कुछ और बातों पर अभी मतभेद और विवाद बाकी है। भारत की संसद में विपक्ष ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की है कि वहां से निकाले जा रहे भारतीयों को हथकड़ी-बेड़ी लगाकर मालवाहक फौजी विमानों में पहुंचाया जा रहा है, और उनके साथ सामान्य मानवीय बर्ताव भी नहीं किया जा रहा है। इस पर विदेश मंत्री जयशंकर ने अमरीकी सरकार से बातचीत करने का भरोसा दिलाया है। कांग्रेस ने यह भी मांग की है कि जिस तरह एक दूसरे देश, कोलंबिया ने, अपने विमान भेजकर अपने लोगों को वापिस लाने का काम किया है, भारत ने क्यों नहीं किया? कांग्रेस ने यह भी गिनाया है कि जब ये विमान कोलंबियाई नागरिकों को अमरीका से लेकर अपने देश लौटे, तो वहां के शासन प्रमुख, राष्ट्रपति विमान में जाकर उनसे मिले, और उन्हें भरोसा दिलाया। लेकिन हथकड़ी-बेड़ी, और बदसलूकी से परे और कोई मुद्दा चर्चा के लायक नहीं बचा है। अमरीका वहां पहुंचे या बसे हुए, या घुसपैठ करते हुए सरहद पर पकड़ाए हुए लोगों को वापिस भेजने का हक रखता है। किसी भी देश को दूसरे देशों के अवैध आए लोगों को वापिस भेजने का हक रहता है, और इसी के तहत पिछले कई बरस से भारत में पीढिय़ों से बसे हुए लोगों से भी उनके कागज मांगे जा रहे हैं।

अब सवाल यह उठता है कि हिन्दुस्तान से लाखों लोग जाकर अमरीका में गैरकानूनी तरीके से क्यों बसे हुए हैं? वहां एक बेहतर जिंदगी की उम्मीद के लिए, या कारोबारी कामयाबी के लिए? अलग-अलग लोगों की अलग-अलग वजहें हो सकती हैं, लेकिन जिन लोगों को अमरीका निकाल रहा है, उनके बारे में भावनाओं से परे भी समझने की जरूरत है। पहली बात तो यह है कि इनमें से हर किसी को यह अच्छी तरह मालूम था कि न तो उन्हें तस्करों को 50 लाख से एक करोड़ रूपए तक देकर गैरकानूनी तरीके से अमरीका में घुसने का कोई हक है, और न ही उन्हें वहां कानूनी तरीके से जाकर समय सीमा के बाद रहने का हक है। इनमें से हर किसी को यह मालूम था कि वे अमरीकी कानून के खिलाफ एक गैरकानूनी काम कर रहे थे। किसी भी देश के लिए बिना दस्तावेजों वाले, बिना नागरिकता और कामकाज के इंतजाम वाले लोग एक समस्या रहते हैं। हर देश ऐसे लोगों की जांच करते रहता है क्योंकि किसी जुर्म या हादसे की हालत में ऐसे लोगों की शिनाख्त आसान नहीं रहती, और कई किस्म के कानूनी मामलों में इन्हें लेकर दिक्कत आती है। आज भी अमरीका के अलग-अलग प्रदेशों के कानून वहां देश की सरकार के फैसलों के खिलाफ हैं, और प्रदेश सरकारें राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के हर फैसले से सहमत भी नहीं हैं। अब भला कौन सा देश यह चाहेगा कि दूसरे देश के अवैध नागरिकों की वजह से उसके अपने देश में केन्द्र और राज्य में टकराव हो, सरकार और अदालत में टकराव हो? ये बातें निकाले जाने वाले लोगों को बहुत कड़वी लग सकती हैं, लेकिन हकीकत यही है। किसी भी देश में पकड़े गए ऐसे अवैध बसे हुए लोगों का बोझ वहां की सरकार पर रहता है, वहां की जेलों में उन्हें रखने का खर्च भी लगता है। और अभी-अभी एक सेंट्रल अमरीकी देश अल सल्वाडोर ने तो अमरीकी विदेश मंत्री के प्रवास के दौरान यह कहा है कि वह अमरीका की जेलों में बंद किसी भी तरह के कैदी को अपनी जेलों में रखने के लिए तैयार है, और यह बात अल सल्वाडोर के लिए कमाई की होगी, और अमरीका के लिए अपनी जेलों में अभी किए जा रहे खर्च में बचत की भी होगी। न सिर्फ अमरीका बल्कि किसी भी देश को यह तय करने का हक है कि दूसरे देशों के किन नागरिकों को वह अपने देश में शरण देना चाहता है, कामकाज का परमिट देना चाहता है, या नागरिकता देना चाहता है।

अब भारत लौटाए गए इन लोगों के सामने दिक्कत यह है कि एक सुनहरे भविष्य के सपने लेकर जाने के लिए इन्होंने 50 लाख से एक करोड़ तक तस्करों को दिए, ताकि उन्हें किसी तरह अमरीकी सरहद में घुसा दिया जाए। इस रकम के लिए पंजाब और गुजरात सरीखे कुछ राज्यों के नौजवानों ने पारिवारिक खेत-जमीन बेचकर, कई तरह के कर्ज जुटाकर बोझ खड़ा कर लिया था कि वे अमरीका में कमाकर इसे चुका देंगे, लेकिन अब अमरीका से निकाले जाने पर उनके लिए दुनिया के किसी भी विकसित देश में दुबारा जाने के रास्ते भी बंद हो चुके हैं। ऐसे लोगों की निराशा समझ में आती है क्योंकि उनके सामने पहाड़ सी जिंदगी, और उससे भी बड़े पहाड़ सा कर्ज बाकी है, और कोई काम उनके पास है नहीं। लेकिन भारत जैसे देश को अपनी हकीकत के बारे में सोचना चाहिए कि उसे छोडक़र सवा सात लाख लोग आज अमरीका में गैरकानूनी तरीके से क्यों बसे हुए हैं? वहां एक बेहतर भविष्य की संभावनाएं अधिक दिख रही होंगी, इसलिए वे जेलों में रहकर भी संभावना ढूंढ रहे हैं। इनके बारे में भारत के पैमानों से अगर देखा जाए तो ये लोग भारत में भी कोई रोजगार पा सकते थे, लेकिन हे सकता है कि वह रोजगार मजदूरी का हो, या किसी कारोबार के अदना से कर्मचारी का हो। हो सकता है कि वहां जाने वाले लोगों की उम्मीदें इसके मुकाबले कई गुना अधिक रही हों, और उन्हें भारत में उन्हें हासिल संभावनाएं पसंद नहीं आ रही हों।

आज भारत में बेरोजगारी कितनी भी हो, आर्थिक असमानताएं पहाड़ और खाई सरीखी क्यों न हों, कोई नागरिक भूखे नहीं मर रहे हैं, और सरकारी राशन के इंतजाम की वजह से लोग जिंदा हैं। अब यह विकल्प तो हर किसी के सामने था कि वे भारत में ही बाकी लोगों की तरह संघर्ष करते रहते, लेकिन उन्होंने एक जुर्म का रास्ता इस्तेमाल किया, और कई देशों का कानून तोड़ते हुए, वे अमरीका में गैरकानूनी तरीके से दाखिल हुए। ऐसे में उनके साथ हमदर्दी तो हो सकती है, लेकिन क्या भारत में उनको कोई मुआवजा भी दिया जा सकता है जिसकी कि मांग ऐसे कुछ परिवार कर रहे हैं? अगर कोई गैरकानूनी काम करते हुए उसके लिए, और उसकी वजह से किसी का नुकसान होता है, तो ऐसे लोग किसी मुआवजे के हकदार कैसे हो सकते हैं? न सिर्फ भारत बल्कि किसी भी देश के सामने उन लोगों की प्राथमिकता रहनी चाहिए जो कि देश में ही रहकर संघर्ष कर रहे हैं, काम पाने, या कोई कारोबार करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोग आज देश और दुनिया का कोई कानून भी नहीं तोड़ रहे हैं, और अपने ही देश से उन्हें उम्मीदें हैं। इस देश में जिंदा रहने की गुंजाइश न रहे, तब तो लोग किसी भी तरह से किसी भी देश में जाकर भूख से मौत से बचें, वह समझ आता है। लेकिन अधिक कमाई, बेहतर जिंदगी, और सुनहरे सपने लेकर अगर लोग दुनिया के दूसरे देशों का कानून तोड़ते हैं, तो उनके साथ तो वे देश अपने कानून के मुताबिक कार्रवाई करेंगे ही।

आज अमरीका से लौटे हुए लोग बता रहे हैं कि वहां की जेलों में उनके साथ अच्छा सुलूक नहीं हुआ, और उनसे 50 लाख से एक करोड़ रूपए लेकर उनकी तस्करी करने वाले गिरोहों ने भी उनसे बुरा सुलूक किया, तो इसमें भी कोई बहुत अटपटी बात नहीं है। हिन्दुस्तान के भीतर भी कई प्रदेशों की पुलिस अपनी ही बेकसूर जनता से सौ किस्म की बदसलूकी करती है, वह तो अमरीका में गैरकानूनी घुसपैठियों के साथ, मुजरिमों के साथ वहां की पुलिस का बर्ताव था, उसकी शिकायत का आज कोई औचित्य नहीं है। भारत की सरकार भारत के ही प्रदेशों में जेल में कैदियों से, और बाहर आम नागरिकों से राज्य की पुलिस के बर्ताव पर कोई काबू नहीं रख सकती, वह अमरीका से एक औपचारिक विरोध भी कर पाएगी, ऐसा सोचना मुश्किल है। भारत के भीतर जो सीमित संभावनाएं सभी लोगों के लिए हैं, उनसे परे जिनके सपने जुर्म की दुनिया तक पहुंच जाते हैं, उन्हें उसकी सजा के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत एक देश की तरह अपने नागरिकों के सामने है, और यह उनका अपना फैसला है कि उन्हें कानूनी रूप से यहां रहना है, या गैरकानूनी रूप से दूसरे देशों में जाना है, पहली बात की संभावनाएं, और दूसरी बात की आशंकाएं सबके सामने है।

  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news