-अशोक पांडेय
एक ऐसा पतंगा होता है जो ग्यारह किलोमीटर दूर से अपनी मादा की खुशबू सूंघ सकता है। उसकी देह में कोई आहारनली नहीं होती। प्यूपा से बाहर निकलते ही उसके सिर के भीतर मौजूद नसों का एक गुच्छा उसे उसकी पार्टनर का पता दे देता है। इसके तुरंत बाद वह उडऩा शुरू कर देता है और अपनी पार्टनर तक पहुँचता है। दोनों का मिलन होता है। प्रकृति के कारोबार को आगे बढ़ाने वाला यह मिलन पतंगे के जीवन का हाई पॉइंट होता है। उसके बाद वह मर जाता है। इतनी ही उसकी जीवनयात्रा होती है। उसका समूचा जीवन इस एक यात्रा के लिए बना होता है जिसमें उसकी मृत्यु निहित होती है। इंसान भी पैदा होने के बाद से अनवरत उसी आखिऱी लक्ष्य की तरफ यात्रा करते रहते हैं। यह अलग बात है कि हम उस पतंगे जैसे नहीं हो सकते कि नाक की सीध में दौड़े चले जाएं। हमें रास्ते में असंख्य ठोकरें खाकर लडख़ड़ाना-गिरना होता है।
कॉलीन मैकलॉ के बेस्टसेलर उपन्यास ‘द थॉर्न बर्ड’ में एक मिथकीय चिडिय़ा का जिक्र है जो अपने जीवन में सिर्फ एक बार गाती है। उसके अद्वितीय गाने की मिठास की तुलना दुनिया की किसी भी आवाज से नहीं की जा सकती। घोंसले से बाहर निकलते ही वह बिना रुके-थमे तीखे कांटों वाले एक पेड़ की तलाश करती रहती है। उसके बाद वह अपने आप को उस पेड़ के सबसे लम्बे, सबसे तीखे कांटे पर धंसाना शुरू करती है। कांटा उसके दिल में समाता जाता है और वह गाना शुरू करती है। असहनीय पीड़ा से उपजा उसका गान दुनिया के सबसे मीठे स्वरों से ऊपर उठता ईश्वर तक जा पहुंचता है। कला-संगीत का उच्चतम पैमाना माना जा सकने वाला उसका वह गाना उसकी मौत पर समाप्त होता है।
हम उस चिडिय़ा जैसे भी नहीं हो सकते।
हम क़ुदरत की बनाई तरतीब को आगे बढ़ाते हुए दुनिया को और भी ख़ूबसूरत बनाने का ख़्वाब देखने के लिए बनाए गए थे। वसंत पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा करने का रिवाज भी शायद इसीलिये बनाया गया होगा कि ज्ञान और विद्या हासिल कर हम अपने जीवन को वह ख़ूबसूरती अता कर सकें, मौत से पहले जिसकी वह हक़दार है। वसंत पंचमी के मुबारक मौक़े पर हर किसी को उसका काँटा हासिल हो।वो कहती हैं, ‘अगर इस पर भी चर्चा होती तो अच्छा रहता। इसके लिए बजट आबंटन की बहुत