तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’
छत्तीसगढ़ में अब आए दिन किसी न किसी शहर-कस्बे में किसी ईसाई परिवार में चल रही प्रार्थना सभा पर हिन्दू संगठनों का हमला हो रहा है, इसे धर्मांतरण करार देते हुए प्रार्थना सभा को बंद करवाया जाता है, लोगों को भगाया जाता है, कहीं-कहीं उन्हें पीटा भी जा रहा है, और खबर मिलते ही पुलिस भी आकर प्रार्थना सभा में शामिल लोगों को गिरफ्तार भी कर रही है। यह सिलसिला बढ़ते चल रहा है। प्रदेश में जबरिया, या लालच देकर, झांसा देकर धर्म परिवर्तन कराना, 1968 के एक कानून के तहत अपराध है, और इस पर एक बरस तक की कैद, और पांच हजार रूपए तक के जुर्माने का भी प्रावधान है। देश के अलग-अलग कुछ राज्यों ने धर्मांतरण के खिलाफ कड़े कानून बनाए हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में अभी कुछ महीने पहले की ऐसी एक कोशिश विधानसभा में कामयाब नहीं हो पाई है। आज पुलिस शायद हिन्दू संगठनों के विरोध को शांत करने के लिए ईसाई प्रार्थना सभाओं पर शांति भंग होने की आशंका जैसे मामूली जुर्म दर्ज करती है, लोगों को हिरासत में लेती है, या गिरफ्तार करती है। सवाल यह है कि किन लोगों ने शांति भंग की है, और किन पर यह जुर्म दर्ज होना चाहिए?
अब धर्मांतरण के खिलाफ लागू कानून की कुछ बुनियादी शर्तें देखें तो उसमें या तो जबरिया, या लालच देकर, या झांसा देकर धर्म-परिवर्तन करवाने की शर्तें हैं। सवाल यह उठता है कि किसी ईसाई परिवार में अगर लोग इकट्ठा होकर धार्मिक प्रार्थना करते हैं, तो उसमें ऊपर की इन शर्तों में से कौन सी शर्त लागू होती है? पुलिस जगह-जगह प्रार्थना सभा में शामिल लोगों को गिरफ्तार कर रही है, इसमें जुर्म क्या बनता है? और अगर किसी घर में किसी धर्म की प्रार्थना चल रही है, तो बलपूर्वक उसे रोकना, उसके खिलाफ प्रदर्शन करना, उसमें शामिल लोगों को पीटना, धमकाना, तोडफ़ोड़ करना, ये तमाम बातें जुर्म बनती हैं, या प्रार्थना? धर्मांतरण एक औपचारिक कानूनी कार्रवाई है, जिसके लिए कलेक्टर को 60 दिन पहले अर्जी देनी होती है, उसके बिना धर्मांतरण को कोई कानूनी दर्जा नहीं मिलता, बल्कि उसे धर्मांतरण कहा भी नहीं जा सकता। ऐसे में किसी दूसरे धर्म के संगठनों को इस राज्य में यह हक कैसे दिया जा रहा है कि वे किसी घर-परिवार के सामने भीड़ इकट्ठा करके अपने धर्म के नारे लगाएं, लोगों को वहां से निकालने के लिए धमकियां दें, और ईसाई प्रार्थना करने वालों को पीटें? क्या यह सुप्रीम कोर्ट के हेट-स्पीच केस के तहत दिए गए बार-बार के हुक्मों की परिभाषा में नफरती काम नहीं है? साम्प्रदायिक तनाव का काम नहीं है? तो ऐसे में कार्रवाई होनी किस पर चाहिए? कानून अपने हाथ में लेकर, और पैरों तले कुचलकर, किसी परिवार या धार्मिक समुदाय पर हमला करने वालों पर, या प्रार्थना करने वालों पर?
एक दूसरा दिलचस्प पहलू यह है कि भाजपा और हिन्दू संगठनों के एक प्रमुख नेता छत्तीसगढ़ में ईसाई बने हुए आदिवासियों को हिन्दू धर्म में वापिस लाने का ऑपरेशन घरवापिसी नाम का कार्यक्रम घोषित रूप से, और समारोह पूर्वक चलाते हैं। अब सवाल यह उठता है कि जो लोग ईसाई बन चुके थे, वे अब जब हिन्दू बन रहे हैं, तब वह धर्मांतरण नहीं हो रहा? तो ऐसे धर्मांतरण को महज ऑपरेशन घरवापिसी कह देने से वह धर्मांतरण की कानूनी औपचारिकताओं से मुक्त हो जाता है? यह पूरा सिलसिला सरकारी अफसरों, और खासकर पुलिस के एक धर्म के लिए काम करने का दिखता है। जगह-जगह ईसाई प्रार्थनाओं पर हमले होते हैं, और उन्हीं धर्मालुओं को गिरफ्तार किया जा रहा है, उनके पादरी गिरफ्तार हो रहे हैं। प्रार्थना के लिए किसी समुदाय के एकजुट लोगों को धर्मांतरण का आयोजन कहने का मतलब तो यह हो जाएगा कि जब इसी प्रदेश में एक-एक बड़े हिन्दू आयोजन के लिए दसियों हजार लोग इकट्ठा होते हैं, और वहां पर चमत्कारी बाबा लोग हिन्दू धर्म की चमत्कारी बातें कहते हैं, बीमार लोगों को ठीक करने की बातें कहते हैं, शिवलिंग की पूजा से बिना पढ़े हुए इम्तिहान में पास होने का दावा करते हैं, तो फिर क्या वे हिन्दू धर्म की तरफ लोगों को प्रभावित नहीं करते? बीमार को ठीक कर देने का वायदा करना, बिना पढ़े बच्चों को इम्तिहान पास करा देने का दावा करना, क्या इसे लुभावना-लालच नहीं कहा जा सकता? और ऐसे आयोजन में पूरी की पूरी सत्ता जुट जाती है, जो अफसर ईसाई प्रार्थना सभाओं पर कहर बनकर टूट पड़ते हैं, वे इन आयोजनों में प्रवचनकर्ताओं और चमत्कारी बाबाओं के पांवों की धूल पाने के लिए वर्दी के जूते उतारकर दंडवत हो जाते हैं। इसे क्या कहा जाए?
धर्मांतरण अगर जबरिया, धोखे से, या लालच देकर हो रहा है, तो उस पर कार्रवाई करने के लिए एक अलग प्रक्रिया है, और अदालत यह तय करेगी कि जिन पर तोहमत लगाई गई है, उन्होंने जुर्म किया है या नहीं। अदालत का यह काम किसी एक धर्म के हमलावर संगठनों को कैसे दिया जा सकता है, जो कि भीड़ और लाठियों की ताकत का राज कायम करने में लगे हुए हैं? अगर भीड़ किसी प्रार्थना को धर्मांतरण साबित करने की हकदार है, तो फिर अदालतों की जरूरत क्या है? लोकतंत्र में किसी एक धर्म पर सत्ता की मेहरबानी लोकतंत्र की ही साख खत्म कर देती है। लोगों को यह भी समझना चाहिए कि देश में करोड़ों दलित हिन्दू धर्म छोडक़र बौद्ध बनने पर क्यों मजबूर हुए थे? क्यों हिन्दुओं की जाति व्यवस्था इतनी हिंसक और बेइंसाफ थी कि लोगों ने उसे दुत्कारकर बौद्ध बनना बेहतर समझा। आज छत्तीसगढ़ में कुछ जातियों में अंतरजातीय विवाह पर लोगों को जिस रफ्तार से जात बाहर किया जाता है, उनका समाज के किसी परिवार के निजी कार्यक्रम में भी आना-जाना बंद करवा दिया जाता है, वे लोग अपने मां-बाप के घर भी नहीं जा सकते, ऐसे बहिष्कृत और तिरस्कृत लोग आखिर जाएं तो जाएं कहां? हिन्दू धर्म की किसी जाति के भीतर के होने के बावजूद उससे बहिष्कार झेलते हुए ऐसे लोग भी छत्तीसगढ़ में ईसाई बन रहे हैं। किसी समय दलित और आदिवासी ईसाई बने थे, और आज छत्तीसगढ़ में ओबीसी के बहुत से लोग ईसाई बन रहे हैं। जो हिन्दू समाज आज ‘न बंटने’ का नारा लगा रहा है, वह अपने भीतर ही कितने किस्म से लोगों को बांट चुका है, बांट रहा है, यह देखना भी भयानक है। जब सामाजिक बहिष्कार की बंदूक की नोंक पर किसी मां-बाप को मजबूर किया जाता है कि वे परिवार की शादी में भी उन बच्चों को न बुलाएं जिन्हें कि जात बाहर कर दिया गया है, तो ऐसा धर्म, और ऐसी जाति व्यवस्था सम्मान खो बैठती है। अगर हिन्दू संगठनों को धर्मांतरण रोकना है, तो सबसे पहले हिन्दू समाज के भीतर की ऐसी नाजायज और गैरकानूनी हिंसा रोकनी होगी, दलितों और आदिवासियों का अपमान और तिरस्कार बंद करना होगा, हिन्दू समाज के बहुसंख्यक तबके के खानपान पर एक बहुत छोटे सवर्ण तबके के खानपान की शर्तों को थोपना बंद करना होगा। आज तीन चौथाई से अधिक मांसाहारी आबादी वाले हिन्दू समाज में एक चौथाई से बहुत कम शाकाहारियों की शर्तें लादी जा रही हैं। और समाज में इन मुद्दों पर कोई सुधार भी नहीं हो रहा है, कट्टरता का नवजागरण हिन्दू समाज को भीतर ही खानपान से लेकर पहरावे तक, और शादी-ब्याह से लेकर दूसरे कई किस्म के मामलों में टुकड़ों में बांट रहा है। इन सब मुद्दों पर सोचने के बजाय कानून को पांवों तले कुचलकर ईसाईयों पर हमला बहुसंख्यक तबके की ताकत की बेजा इस्तेमाल छोड़ कुछ नहीं है। पता नहीं पिछले 5-6 बरस में ऐसे सैकड़ों हमलों के बाद भी राज्य का हाईकोर्ट हर सुबह महज उत्सुकता से अखबारों में ऐसी और घटनाएं पढ़ते रहता है। पढक़र वह क्या करता है, यह अब तक दिखा तो नहीं है।