विचार / लेख
-आशुतोष भारद्वाज
बीसवीं सदी के पहले दशक में जब विनायक सावरकर इंग्लैंड में रहते थे, उनकी एक अंग्रेज़ युवक से दोस्ती थी। हिंदी के मुहावरे में कहें तो डेविड गारनेट उभरते हुए लेखक थे, लेकिन उनकी माँ कांस्टेंस गारनेट की अनुवादक के रूप में वैश्विक प्रसिद्धि हो चुकी थी। आधुनिक साहित्य की महानतम अनुवादकों में शुमार कांस्टेंस तोलस्तोय और चेखव समेत तमाम रूसी लेखकों का अंग्रेज़ी में अनुवाद कर चुकी थीं, आगामी वर्षों में वे दोस्तोयेव्स्की के अनुवाद करने वाली थीं। ख़ुद डेविड भी बहुत जल्द वर्जीनिया वूल्फ़ के ब्लूम्सबरी समूह के सदस्य बनने वाले थे।
डेविड गारनेट के अलावा सावरकर की दोस्ती मदन लाल धींगड़ा जैसे क्रांतिकारियों से भी थी। उन दिनों सावरकर इंग्लैंड में क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए भारतीय युवकों को एकत्र कर रहे थे। १९०९ में मदन लाल ने लंदन में अभिजात्य अंग्रेज़ों की एक सभा में कर्ज़न वाइली के चेहरे पर कारतूसों से भरी अपनी पिस्तौल ख़ाली कर दी, और इससे पहले कि बदहवास अंग्रेज़ सिपाही उनकी तरफ़ दौड़ें, मदन लाल ने वही पिस्तौल अपनी कनपटी से लगाकर घोड़ा दबा दिया। अंग्रेज़ दुश्मन की हत्या करने के उन्माद में मदन भूल गये थे कि सारी गोलियाँ तो वे पहले ही वाइली के शरीर में उतार चुके थे, न उन्हें यह याद रहा कि उनके कोट की जेब में एक भरी हुई पिस्तौल और रखी थी।
मदन लाल पकड़े गए, मुक़दमा चला, फाँसी की सज़ा हुई। अंग्रेज़ों की धरती पर किसी भारतीय क्रांतिकारी द्वारा यह शायद पहली हत्या थी,वह भी अत्यंत उच्च अधिकारी की। बर्तानवी हुकूमत सकते में थी, लेकिन इससे बड़ा अचंभा अभी बाक़ी था।
फाँसी लगने से ठीक एक दिन पहले मदन लाल का बर्तानी पुलिस को दिया ज़बरदस्त बयान, देशभक्ति में डूबा हुआ बयान, एकदम गुप्त बयान जिसे पुलिस ने अदालत में भी पेश नहीं किया था, लंदन के अख़बार ‘डेली न्यूज़’ ने छाप दिया। अंग्रेज़ समुदाय सन्न।
यह बयान कैसे लीक हो गया? अख़बार के पास कैसे पहुँच गया? कौन सा अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी भारतीय क्रांतिकारियों से मिल गया? या इस बयान की एक प्रति और भी थी?
बाद में पता चला कि सावरकर के पास मदन लाल के बयान की मूल प्रति थी। ‘डेली न्यूज़’ के किसी सम्पादक से डेविड गारनेट की दोस्ती थी। सावरकर ने डेविड से आग्रह किया था कि क्या इस बयान को हम सार्वजनिक कर सकते हैं, डेविड ने तुरंत अपने दोस्त से सम्पर्क किया, और इस तरह एक भारतीय क्रांतिकारी का बयान एक अंग्रेज़ लेखक और अंग्रेज़ सम्पादक की मदद से लंदन के अख़बार में प्रकाशित हुआ।
लंदन के एक अन्य अख़बार ‘द टाइम्स’ ने इस बयान को मदन लाल के अदालत में दिए वक्तव्यों से मिलाया और लिखा कि “बहुत सम्भव है धींगड़ा ने इस बयान को ख़ुद नहीं लिखा था, किसी अन्य व्यक्ति ने उनके लिए लिखा था”।
ज़ाहिर है कि यह व्यक्ति कौन हो सकता था।
इस घटना को एक सौ बारह बरस हुए। आज कोई भारतीय सम्पादक कश्मीर या उत्तरपूर्व के किसी 'हत्यारे अलगाववादी' का ख़ुफ़िया बयान छापता है, उसे तुरंत देशद्रोही क़रार दिया जाएगा और अगर कोई लेखक ऐसा बयान छापने में मदद करेगा, सीधा राजद्रोह के इल्ज़ाम में जेल जायेगा।