विचार / लेख
-पूनम वासम
जहाँ खेत जोतने अंदर गाँव जाने पर जेल, जहाँ वनौषधि के लिए जंगल जाने पर जेल, सूखी लकडिय़ां बटोरने जंगल जाने पर जेल, पानी पकडऩे (नहाने) तालाब जाने पर ढेरों पूछताछ की जाती हैं। जहाँ साप्ताहिक बाजार नमक, तेल खरीदी करने जाने पर मुखबीर समझकर जेल भेज दिया जाता है। जहाँ अपनी छोटी-मोटी जरूरतों की पूर्ति हेतु महुआ, तेंदू, चिरौंजी, इमली, अमचूर, टोरा बीनने पर ढेरों नियमों की लिस्ट पकड़ा देना। जहाँ पगडंडियों से शहर आते हुए फूलों, आयती और मनकी जैसी लड़कियों की तलाशी के नाम पर कुछ भी कर लेने की आजादी समझ लेना। जहाँ धनुष, बाण पकड़े आखेट पर जाते हुए आदिवासियों को नक्सली बताकर उनके हथियार उनसे छीन लेना। जहाँ बीजपंडुम मनाते जहाँ मेला, उत्सव मनाते जहाँ रेला नाचा करते हुए लोगों पर बेवजह गोलियां बरसा देना। जहाँ जल, जंगल, जमीन के सारे अधिकार उनसे छीनकर किसी और के हाथों में थमा देना। जहाँ निहत्थे आदिवासियों पर कभी भी किसी भी वक्त किसी भी कारण से हमला करने की आजादी हो। जहाँ उन्हें उनके ही घर से बाहर निकाल कर बेघर करने की तैयारी कर ली गई हो। जहाँ जल, जंगल, जमीन को नष्ट करने और उनके रखवालों को जंगल से बाहर कर देने की साजिश हो। वहाँ कुछ और हो भी क्या सकता है बेकसूर आदिवासियों की चीखती, तड़पती, फडफ़ड़ाती लाशों के सिवाय।
वह जितनी बार जंगल के सबसे ऊंचे टीले से दोहराते हैं-
सुनो साहब!
राजा मर गया, लेकिन प्रजा की मौत अभी बाकी है।
जंगल की सीमा पर हर बार एक सरकारी बयान चस्पा होता है
कि जंगलवाद सबसे बड़ा खतरा है देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए।
हर बार ऐसा उत्तर पाती एक सभ्यता घूरती है जंगल की देह
हड्डियों से बनी आँखों से!
उनकी आँखों में अब पानी नहीं उतरता।