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- चिंकी सिन्हा
वारदात के तीसरे दिन, लोगों के बीच से उठ रही आवाज़ बिल्कुल साफ़ सुनाई दे रही थी - 'या तो मुल्ज़िम को फांसी दो, या फिर उसका एनकाउंटर कर दो.'
फ़रीदाबाद के नेहरू कॉलेज में पढ़ने वाली कंचन डागर ने कहा कि, 'हत्यारे के साथ वही होना चाहिए, जैसा योगी के राज में होता है.'
कंचन, दक्षिणपंथी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी हुई हैं.
कंचन ने पुरज़ोर आवाज़ में नारा लगाया, 'गोली मारो सा@% को… लव जिहाद मुर्दाबाद.'
कंचन के साथ, हरियाणा के बल्लभगढ़ स्थित अग्रवाल कॉलेज के सामने जमा दूसरे छात्रों ने भी यही नारा दोहराया. वो गुरुवार का दिन था.
सोमवार को इसी अग्रवाल कॉलेज के बाहर 21 बरस की एक छात्रा को सरेआम गोली मार दी गई थी. पुलिस ने हत्या के अभियुक्त को गिरफ़्तार कर लिया था.
लेकिन, कॉलेज के बाहर जमा छात्रों को ना तो पुलिस पर भरोसा है और ना ही न्यायपालिका पर यक़ीन है.
उन्हें इस घटना के इंसाफ़ का एक ही तरीक़ा मंज़ूर है कि दोषी का एनकाउंटर करके ही, मृत छात्रा और उसके परिजनों को इंसाफ़ दिलाया जा सकता था.
कंचन डागर ने सवालिया अंदाज़ में कहा कि, "गोली मारने वाला मुसलमान है. मरने वाली छात्रा हिंदू थी. मुल्ज़िम का परिवार, उस लड़की पर धर्म बदलकर मुसलमान बनने का दबाव बना रहा था. भारत में लव जिहाद के बहुत से मामले सामने आ रहे हैं. अगर कोई लड़की ना कर देती है, तो उसे मार दिया जाता है. अगर वो हाँ करती है, तो फिर उसकी लाश सूटकेस में मिलती है. हमने ऐसे बहुत से मामलों के बारे में पढ़ा है. क्या नियम क़ानून सिर्फ़ हमारे लिए हैं? और उनका क्या?"
'उनका' से कंचन का मतलब था - कांग्रेस पार्टी और मुसलमान.
कंचन के साथ मौजूद एक और छात्रा गायत्री राठौर ने एक और क़दम आगे जाते हुए कहा, "हम चाहते हैं कि उसे दस दिन के अंदर फांसी दे दी जाये. या उसका वैसे ही एनकाउंटर कर दिया जाये, जैसे योगी की सरकार में होता है. भले ही वो ग़ैर-क़ानूनी क्यों ना हो."
पूर्वाग्रहों और ख़ौफ़ का जोड़ जमा
सोमवार की दोपहर को बल्लभगढ़ के अग्रवाल कॉलेज के बाहर जिस छात्रा को गोली मार दी गई थी, उनका नाम निकिता तोमर था.
उस दिन निकिता जैसे ही कॉलेज के बाहर निकलीं, वैसे ही तौसीफ़ नाम के युवक ने उन्हें गोली मार दी.
निकिता, तौसीफ़ को जानती थीं. दोनों फ़रीदाबाद के रावल इंटरेनशनल स्कूल में साथ-साथ पढ़ा करते थे.
उस रोज़, निकिता की माँ उन्हें लेने के लिए कॉलेज जा ही रही थीं कि उनके पिता के पास फ़ोन आया कि उनकी बेटी को गोली मार दी गई है.
इस केस के कुछ तथ्य इस तरह से हैं कि एक युवक ने कॉलेज के बाहर एक छात्रा को देसी कट्टे से गोली मार दी और उसके बाद वो मौक़े से फ़रार हो गया.
इस बात की तस्दीक़, सड़क के उस पार स्थित डीएवी स्कूल में लगे सीसीटीवी कैमरे की तस्वीरों से होती है.
इसके अलावा बाक़ी सभी बातें, लोगों की सोच, उनके पूर्वाग्रहों और ख़ौफ़ का जोड़ जमा हैं जिसमें एक समुदाय के लोग, दूसरे समुदाय के सदस्यों को अपने से अलग बताते हैं. उनके बारे में बुरा भला कहते हैं. उनकी बुरी छवि पेश करते हैं जिससे ये साबित हो कि दूसरा पक्ष, उनसे बिल्कुल अलहदा है.
किसी एक समुदाय को अपने से अलग बताना इस सोच पर आधारित है कि वो समुदाय, दूसरों के अस्तित्व के लिए ख़तरा है. इस सोच को मीडिया और राजनेता ख़ूब बढ़ावा देते हैं.

'लव जिहाद' जिसकी कोई क़ानूनी परिभाषा नहीं
भारत के मौजूदा क़ानूनों में 'लव जिहाद' की कोई परिभाषा नहीं तय की गई है. अब तक किसी भी केंद्रीय एजेंसी ने 'लव जिहाद' जैसी किसी घटना का ज़िक्र भी नहीं किया है.
ये बात ख़ुद केंद्र सरकार ने इस साल फ़रवरी में संसद को बताई थी. और इस बयान के ज़रिए दरअसल, केंद्र सरकार ने आधिकारिक तौर पर ख़ुद को दक्षिणपंथी संगठनों के 'लव जिहाद' वाले दावों से अलग कर लिया था. जबकि, देश के कई दक्षिणपंथी संगठन, मुस्लिम युवकों और हिंदू लड़कियों के संबंधों को 'लव जिहाद' कहकर निशाना बनाते रहे हैं.
भारत के संविधान की धारा-25, देश के हर नागरिक को अपने धर्म को मानने, अपनी आस्था के अनुरूप इबादत करने और अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने की आज़ादी देता है.
शर्त बस ये है कि किसी की धार्मिक गतिविधियों से नैतिकता, सामाजिक सौहार्द और किसी की सेहत को नुक़सान ना पहुँचे.
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) और दूसरी जाँच एजेंसियों ने केरल में दो अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच शादियों की कई घटनाओं की जाँच की थी. इनमें, साल 2018 में बहुत चर्चित हुआ हादिया के निकाह का मामला भी शामिल था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि 25 बरस की हादिया, अपने पति के साथ रहने के लिए स्वतंत्र हैं.
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सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में केरल हाई कोर्ट के उस फ़ैसले को भी रद्द कर दिया था जिसमें हादिया के पिता की अर्ज़ी पर, एक मुस्लिम युवक के साथ उसके निकाह को क़ानूनी तौर पर अमान्य घोषित कर दिया गया था.
लेकिन, करणी सेना के प्रमुख सूरजपाल अमू जो निकिता तोमर के घर भी पहुँचे थे, उनको इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि सरकार इस बारे में क्या कहती है, और 'लव जिहाद' को लेकर अदालत ने क्या फ़ैसला सुनाया. उनके लिए तो ये घटना एक मौक़ा थी.
करणी सेना के नेता उत्तर प्रदेश और हरियाणा के साथ-साथ अन्य इलाक़ों से निकिता तोमर के घर फ़रीदाबाद पहुँचे थे. वो 'मुसलमानों को पाकिस्तान भेजो' के नारे लगा रहे थे और वो इस मामले में अपने तरीक़े से इंसाफ़ करना चाहते हैं.
सूरजपाल अमू ने ऐलान किया कि करणी सेना की अपनी स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) है और ये टीम देशभर में 'लव जिहाद' के मामलों का पता लगाएगी और अपने अंदाज़ में 'इंसाफ़' करेगी.
सूरजपाल अमू ने कहा, "आप किस क़ानून की बात कर रहे हैं? मुसलमानों के लड़के अपना नाम बदलकर मासूम हिन्दू लड़कियों को फंसा रहे हैं. हम ये बात बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे."

पूरे केस को दिया गया 'लव जिहाद' का एंगल
जहाँ तक निकिता का मामला है, तो कहा जा रहा है कि उन्होंने साल 2018 में तौसीफ़ के ख़िलाफ़ की गई शिक़ायत को वापस ले लिया था. इसमें उन्होंने तौसीफ़ पर निकिता के अपहरण का इल्ज़ाम लगाया था.
बाद में दोनों के परिवारों के बीच एक समझौता हुआ जिसमें तय किया गया कि तौसीफ़ अब निकिता को परेशान नहीं करेगा. मगर, तौसीफ़ की हरकतें बंद नहीं हुईं.
वो निकिता को परेशान करता रहा. इसी वजह से निकिता को कॉलेज छोड़ने के लिए उनकी माँ साथ जाया करती थीं ताकि उनकी बेटी महफ़ूज़ रहे, उसे तौसीफ़ से कोई दिक़्क़त ना हो.
लेकिन, बाद में निकिता की माँ ने बेटी को कॉलेज छोड़ने जाना और वापस ले आना बंद कर दिया. उन्हें लगा कि अब उनकी बेटी को तौसीफ़ तंग नहीं करता.
निकिता के परिजनों ने तौसीफ़ के ख़िलाफ़ की गई शिकायत को वापस ले लिया था.
उसकी एक वजह ये थी कि लड़की वाले होने के कारण उन्हें अपनी बदनामी होने का ज़्यादा डर था. इससे उन्हें बेटी की शादी में अड़चनें आने का अंदेशा था और अब इस केस में छेड़खानी का मामला हटा कर, पूरे केस को 'लव जिहाद' का एंगल दे दिया गया है.
इसी तरह, उत्तर प्रदेश के हाथरस बलात्कार कांड में पीड़ित लड़की के परिवार ने बार-बार ये बात कही थी कि उन्होंने बेटी के साथ बलात्कार की शिक़ायत सिर्फ़ इसलिए नहीं की थी, क्योंकि इससे उन्हें अपनी बेटी की बदनामी का डर था, जिसका दंश उन्हें जीवन भर झेलना पड़ता.
लेकिन, निकिता के मामले पर नाराज़गी जता रही छात्राओं ने सहूलियत के हिसाब से सेलेक्टिव रुख़ अपनाया हुआ था.
उन्होंने पहले ही ये तय कर लिया कि निकिता की हत्या असल में 'लव जिहाद' है. उन्हें ये पता ही नहीं कि इस जुमले का कोई क़ानूनी आधार नहीं है. लेकिन, निकिता के कॉलेज और उसके घर के बाहर ये नारेबाज़ी जारी रही.
हरियाणा के सोहना रोड पर स्थित ये एक मध्यम वर्गीय सोसाइटी है. यहीं पर निकिता, एक छोटे से अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रहती थीं. उनका मकान ग्राउंड फ़्लोर पर है जिसमें दो कमरे हैं.
घर पर आने-जाने वालों के बैठने के लिए, बाहर एक तंबू लगाकर उसमें गद्दे बिछा दिए गए थे. दूर-दूर से, अलग-अलग संगठनों के लोग निकिता के घर पहुंच रहे थे. निकिता के माँ-बाप से बेटी की हत्या पर अफ़सोस जता रहे थे क्योंकि 'उस लड़की ने अपना मज़हब बचाने के लिए अपनी जान दे दी थी.'
अब निकिता को उसकी मौत के बाद एक नायिका, एक 'क्षत्राणी' के तौर पर पेश किया जा रहा है जिसके 'क़त्ल का बदला राजपूत लेने वाले हैं.'
लगभग 50 बरस की स्वदेशी, उसी सोसाइटी के पड़ोस वाले ब्लॉक में रहती हैं.
वे निकिता को याद करते हुए कहती हैं, "मैं उसे जानती थी. वो बहुत प्यारी लड़की थी. इंसाफ़ ज़रूर होना चाहिए. अभियुक्त को उसी जगह पर खड़ा करके गोली मार देनी चाहिए. यही इंसाफ़ होगा."
महेंद्र ठाकुर, दिल्ली से निकिता के घर पहुँचे थे. हमदर्दी जताने के लिए महेंद्र ने कहा कि 'वो निकिता की बिरादरी से ही हैं.'
उन्होंने कहा, "अगर क़ानून ने उसे सज़ा नहीं दी, तो हम देंगे. ठाकुरों का कोई भी लड़का उसे मार डालेगा. ये ज़रूर होगा. हम राजपूत हैं. वो ज़िंदा नहीं बचेगा. उसकी मौत होगी."
एक क़ौम से बदला लेने का प्रण
हरी दीवारों वाले उस अपार्टमेंट के लिविंग रूम के भीतर, एक न्यूज़ चैनल की रिपोर्टर ने निकिता की माँ को पकड़ रखा था. कैमरे लगा दिए गए थे और रिपोर्टर ने निकिता की माँ के बाल ठीक किए.
फिर उनके पिता से कहा कि वो उनके बगल में आकर बैठ जाएं. उसके बाद रिपोर्टर ने कैमरे की तरफ़ रुख़ करके कहा कि क्या एक लड़की का बाप बदला नहीं लेगा. इसके बाद वो 'लव जिहाद' पर काफ़ी देर तक अपनी बात कहती रहीं.
उस रिपोर्टर ने कहा कि समय आ गया है जब महिलाएं अपनी इज़्ज़त के लिए खड़ी हों और 'लव जिहाद' का डटकर मुक़ाबला करें.
ये कमरा अब दूसरे समुदाय को निशाना बनाने का अड्डा बन चुका था. वहीं बाहर का माहौल और भी हिंसक हो गया था.
मुस्लिम समुदाय के बहिष्कार की आवाज़ बुलंद की जा रही थी. उन्हें सबक़ सिखाने के लिए पाकिस्तान भेज देने के नारे लगाए जा रहे थे.
मौक़े पर मौजूद पुलिसवाले, थोड़ी दूरी बनाकर खड़े थे. कुछ लोग युवाओं से पूछ रहे थे कि क्या वो एक हिंदू लड़की के क़त्ल का बदला लेने को तैयार हैं? और पुलिसवाले बस तमाशबीन बने हुए थे.
मेज़ पर उन्होंने निकिता की तस्वीर लगा दी थी. जिस पर फूलों की माला चढ़ा दी गई थी. तस्वीर में निकिता नीले रंग के जम्पर में थीं. तस्वीर में उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी.
यहीं पर घूंघट काढ़े आ रही महिलाएं जमा होकर, निकिता को श्रद्धा के फूल अर्पित कर रही थीं.
निकिता की माँ विजयवती अक्सर रोने लगती थीं. वो बार-बार ये दोहरा रही थीं कि उनकी बेटी बहुत बहादुर थी. उनके पास अपनी बेटी जैसा साहस नहीं है. अगर कोई उन्हें बंदूक़ की नोंक पर गाड़ी में बैठने को कहता, तो वो ज़रूर बैठ जातीं.
विजयवती की बहन गीता देवी बार-बार ये कह रही थीं कि, "मेरी भांजी ने हिंदू धर्म के लिए अपनी जान दे दी. अगर वो उस दिन कार में बैठ जाती तो फिर उसकी माँ अपनी बेटी की इस कायरता के साथ कैसे ज़िंदगी बिता पाती."
गीता देवी ने विजयवती को ढांढस बंधाते हुए कहा कि, "बहन अब तुम इस फ़ख़्र के साथ जी सकती हो कि तुम्हारी बेटी बड़ी बहादुर थी."
माँ कह रही थीं कि निकिता नेवी लेफ़्टिनेंट बनना चाहती थी. और उसने 15 दिन पहले ही भर्ती की परीक्षा दी थी. इम्तिहान देने के बाद उसे यक़ीन था कि वो चुन ली जाएगी.
मौसी गीता ने कहा कि, "वो अफ़सर बनकर देश की सेवा करना चाहती थी."
माँ ने कहा कि बेटी को स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता था. वो रुकती ही नहीं थी.

राज्य सरकार और 'लव जिहाद' के एंगल से जाँच
हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि 2018 में निकिता के परिवार ने तौसीफ़ के ख़िलाफ़ जो FIR कराई थी, उसकी भी जाँच करने की ज़रूरत है. इस मामले की तफ़्तीश के लिए बनी SIT पुरानी FIR की भी जाँच करेगी.
अनिल विज ने ये भी कहा कि इस मामले की जाँच 'लव जिहाद' के एंगल से भी किए जाने की ज़रूरत है.
विज ने संकेत दिया कि 2018 में कांग्रेस ने निकिता के परिवार पर दबाव बनाकर तौसीफ़ के ख़िलाफ़ अपहरण का वो केस वापस कराया था जिसे फ़रीदाबाद में 1860 के इंडियन पीनल कोड के तहत दर्ज किया गया था.
वो एफ़आईआर 2 अगस्त 2018 को दर्ज कराई गई थी जिसमें निकिता के पिता मूलचंद तोमर ने आरोप लगाया था कि उनकी 18 साल की बेटी को अग्रवाल कॉलेज के बाहर से अगवा कर लिया गया था.
मौत के ख़तरे के बीच अंतरजातीय शादी और प्यार की कहानी
मूलचंद ने अपनी एफ़आईआर में तौसीफ़ को अभियुक्त बनाया था. उन्होंने कहा था कि निकिता की माँ को अभिषेक नाम के एक व्यक्ति का फ़ोन आया था जिसने बताया कि निकिता ने उसे कॉल करके बोला कि तौसीफ़ ने उसे अगवा कर लिया और अभिषेक ये बात निकिता के घरवालों को बता दे.
निकिता के घर पहुँचे जो लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे थे, उन्हें याद करते हुए बार-बार धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ उनकी ज़िद को सलाम कर रहे थे, उनमें कोई ये नहीं कह रहा था कि उसे इकतरफ़ा प्यार करने वाला एक युवक लगातार उसका पीछा करता रहा था.
छेड़खानी और पीछा करना एक अपराध है और देश में बहुत सी महिलाओं को किसी के मुहब्बत के प्रस्ताव को ठुकराने की भारी क़ीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है.
प्रेम प्रस्ताव ठुकराने का ख़मियाज़ा भुगतती औरतें
जनवरी 2020 तक के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े कहते हैं कि साल 2018 में हर 55 मिनट में पीछा करने का एक केस देश में कहीं ना कहीं दर्ज होता है.
उस साल छेड़खानी और पीछा करने के 9 हज़ार, 438 मामले दर्ज किये गए थे जो साल 2014 में दर्ज किये गए ऐसे मामलों से दोगुने अधिक थे.
NCRB का डेटा कहता है कि पीछा करने और छेड़खानी के इन 9438 केस में से महज़ 29.6 प्रतिशत केस में ही सज़ा हुई.
पीछा करने की घटनाओं को अक्सर पीड़िता के यौन अपराधों की दूसरी शिकायतों के साथ जोड़कर देखा जाता है. ये बात हाथरस वाले मामले में भी देखी गई थी, जहाँ लड़की के किरदार को सवालों के घेरे में खड़ा किया गया था.
भारत में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहाँ महिलाओं को किसी इंसान के प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार करने का ख़मियाज़ा एसिड अटैक जैसे निर्मम अपराध के तौर पर भुगतना पड़ा है क्योंकि मर्द किसी महिला द्वारा रिजेक्ट किये जाने को और अपनी सीमाओं का सम्मान कर पाने में असफल रहे.
ख़बरों के मुताबिक़, निकिता की हत्या का अभियुक्त तौसीफ़ दो दिन पहले कॉलेज गया था. लेकिन तब वो निकिता से नहीं मिल पाया था.
निकिता की हत्या के बाद उसके परिवार ने जो एफ़आईआर दर्ज कराई है, उसमें इस बात का ज़िक्र है कि तौसीफ़ उनकी बेटी को परेशान कर रहा था.
पुलिस का कहना है कि तौसीफ़ ने अपना जुर्म क़बूल कर लिया है. उसका कहना है कि वो निकिता से प्यार करता था, लेकिन जब निकिता ने उसका फ़ोन उठाना बंद कर दिया, तो उसने निकिता को 'सबक़ सिखाने' का फ़ैसला किया.
पुलिस अब निकिता के परिवार के उस आरोप की भी जाँच कर रही है कि तौसीफ़ और उसका परिवार निकिता पर धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनने और निकाह करने का दबाव बना रहे थे. गुरुवार को मूलचंद तोमर ने इन आरोपों को दोहराया.
बीबीसी के पास एफ़आईआर की जो कॉपी मौजूद है, उसमें अब तक तो निकिता पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने की बात नहीं दर्ज की गई है.
लेकिन अब जो माहौल बनाया जा रहा है, वो यही है कि निकिता अपने धर्म का बचाव कर रही थी, वो एक हिन्दू लड़की थी और इस्लाम क़ुबूल करने को तैयार नहीं थी.
लड़की की मौसी का कहना था कि "निकिता तो तौसीफ़ की धमकियों के बावजूद, अपना मज़हब बदलने को राज़ी नहीं हुई. उसने अपना धर्म बचा लिया. इसीलिए आज उसकी चौखट पर इतने लोग जमा हो रहे हैं."
निकिता की माँ ने भी अपनी कमज़ोर आवाज़ में यही बात दोहराई और कहा कि 'उन्हें इंसाफ़ चाहिए. तौसीफ़ का एनकाउंटर चाहिए.'
'लव जिहाद' की जाँच का हाल
लव जिहाद के जुमले ने पहली बार साल 2009 में देश भर में सुर्ख़ियाँ बटोरी थीं. तब केरल में ज़बरन धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगे थे और उसके बाद कर्नाटक में भी यही आरोप लगाये गए थे.
हालांकि, क़रीब दो साल की जाँच के बाद साल 2012 में केरल पुलिस ने कहा था कि 'लव जिहाद' का शोर बेवजह ही मचाया जा रहा है, शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने के आरोपों में कोई दम नहीं है.
सितंबर 2014 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी अपनी जाँच में पाया था कि उससे 'लव जिहाद' यानी शादी के लिए धर्म परिवर्तन के जिन छह मामलों की शिक़ायत की गई थी, उनमें से पाँच में कोई दम नहीं है. पर ये महज़ कुछ तथ्य हैं.
मौजूदा माहौल में धर्म परिवर्तन और 'लव जिहाद' के इल्ज़ाम लगाने की नई ज़मीन तैयार हो गई है.
निकिता के पिता मूलचंद तोमर कहते हैं, "जब हम पर पुराना वाला केस वापस लेने का दबाव बनाया गया था, तो उसके बाद हम यहाँ से चले जाना चाहते थे."
मूलचंद ने ये बोला तो रिपोर्टर ने उनसे कहा कि, "आप क्यों ये जगह छोड़ कर जाएंगे? आपके साथ तो पूरा मीडिया है."
इसके बाद उस रिपोर्टर ने अपने दर्शकों से जज़्बाती अपील करते हुए कहा कि 'वो समझें कि निकिता का परिवार यहाँ किस मुश्किल में रह रहा है. हिंदुओं की बहुसंख्यक आबादी वाले देश मे एक हिंदू परिवार ही ख़तरे में है.'
कौन है तौसीफ़
तौसीफ़ का ताल्लुक़ एक सियासी ख़ानदान से है. तौसीफ़ के दादा चौधरी कबीर अहमद, हरियाणा के नूँह से साल 1975 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे.
1982 में भी तौसीफ़ के दादा, कांग्रेस के टिकट पर हरियाणा की तवाड़ू सीट से विधायक चुने गए थे.
हरियाणा के एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि तब से तौसीफ़ का ख़ानदान कोई भी चुनाव नहीं हारा है. हालांकि, ये आरोप बेबुनियाद है कि कांग्रेस इस मामले में अभियुक्त की मदद कर रही है.
कांग्रेस की हरियाणा प्रदेश की अध्यक्ष कुमारी शैलजा भी मंगलवार को निकिता के परिवार से मिलने पहुँची थीं. उन्होंने कहा था कि 'इस अपराध से कांग्रेस का क्या संबंध है?'
तौसीफ़ के चाचा जावेद अहमद, पिछले साल हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीएसपी के टिकट पर मैदान में उतरे थे, पर वे चुनाव हार गए थे.
तौसीफ़ की बहन हरियाणा पुलिस में DSP तारिक़ हुसैन से ब्याही हैं.
सोहना में जावेद अहमद का लाल पत्थर से बना विशाल बंगला है. दोपहर के वक़्त जब हम वहाँ पहुंचे, तो कुछ मज़दूर काम में लगे हुए थे. कुछ बन रहा था.
बाद में, जब जावेद अहमद वहाँ पहुँचे तो कहा कि तौसीफ़ की अम्मी बीमार हैं और उसके पिता यहाँ हैं नहीं. पास में ही एक और बड़ा सा मकान था जो लाल बलुआ पत्थरों से ही बना था. जावेद अहमद ने बताया कि ये उनके बड़े भाई का मकान है और वे खेती करते हैं.
तौसीफ़ को बल्लभगढ़ पढ़ने के लिए भेजा गया था क्योंकि हरियाणा के मेवात इलाक़े में अच्छे स्कूल नहीं हैं, और उस समय कोई और विकल्प भी नहीं था. वहीं स्कूल में उसकी मुलाक़ात निकिता से हुई और दोनों में परिचय हो गया.

'तौसीफ़ को उसके किये की सज़ा मिले'
जावेद अहमद ने कहा, "मैं अब इस बारे में और बात नहीं करना चाहता क्योंकि हम पर भला कौन यक़ीन करेगा. हम तो मुसलमान ठहरे. दोनों साथ पढ़ते थे और वो उसे मैसेज करने या फ़ोन करने के लिए भला अपना नाम क्यों बदलेगा? हमें इस घटना पर बहुत अफ़सोस है. हम समझ सकते हैं कि लड़की के माँ-बाप पर क्या बीत रही होगी. जब पुलिस ने हमें फ़ोन किया तो हमने तौसीफ़ को उनके सुपुर्द कर दिया था."
चाचा कहते हैं, "तौसीफ़ एक भला लड़का था. वो ना सिगरेट पीता था और ना ही शराब को कभी हाथ लगाया. लेकिन, अब मैं कुछ और नहीं कहना चाहता. उसे उसके किये की सज़ा मिलनी चाहिए."
हालांकि, जावेद अहमद ने ये ज़रूर कहा कि इसे 'लव जिहाद' का मामला बनाया जा रहा है ताकि पूरे मामले को हिन्दू-मुस्लिम विवाद में तब्दील किया जा सके.
जावेद अहमद पूछते हैं, "लव जिहाद क्या है? क्या आप मुझे बता सकती हैं? बहुत से हिन्दू लड़के भी मुस्लिम लड़कियों से ब्याह करते हैं. दोनों समुदायों में बहुत से संबंध ऐसे हैं. आख़िर दोनों समुदायों के लोग आपस में शादी क्यों नहीं कर सकते?"
जब आप निकिता के घर से बाहर निकलते हैं, तो लड़की की तस्वीर पर लटक रही माला नज़र आती है. वो लड़की जिसे स्कूल जाना और पढ़ना बहुत अच्छा लगता था. जो अपनी माँ के लिए खाना पकाया करती थी और जो बहुत सी दूसरी लड़कियों की तरह कपड़े की गुड़िया अपने पास रखती थी.
वो ऐसी लड़की थी जिसके हज़ारों ख़्वाब थे. जो किसी भी आम लड़की के होते हैं. उस लड़की के साथ भी वही छेड़खानी और पीछा किये जाने की घटना हुई थी, जो बहुत सी लड़कियों की ज़िन्दगी में होता है.
लेकिन अब वो ऐसी लड़की बन गई है, जिसकी ज़िंदगी और मौत पर ऐसे लोग क़ाबिज़ हो गए हैं, जिनका उससे कोई वास्ता नहीं था. ठीक वैसे ही, जैसे किसी और आम लड़की के साथ होता है.(bbc)


