विचार / लेख
-दिनेश श्रीनेत
वो सितंबर के महीने की कोई तारीख थी और साल था 1972, जब मैं बेसब्री से उस रंग-बिरंगी पत्रिका का इंतजार कर रहा था। एक चित्रकथा जो पहली बार सुपरमैन और बैटमैन की कहानी हिंदी में लेकर आई थी। चंदामामा प्रकाशन की उस कॉमिक्स के पहले अंक में सुपरमैन और बैटमैन के ओरिजिन की कथा कही गई थी। लेकिन 10 वर्ष की उस उम्र में मेरा मन बैटमैन की एक कहानी में अटक गया।
कहानी एक खूबसरत शाम से शुरू होती है। कॉमिक्स का पहला पेज। एक आलीशान होटल के ओपन एयर रेस्टोरेंट में जहां पीछे स्वीमिंग पूल दिख रहा है, बैटमैन जमीन पर झुक गया है। उसके सिर पर बोतल से चोट लगी है और पीछे एक घबराई हुई सुंदर लडक़ी खड़ी है, जिसके हाथ में टूटी हुई शराब की बोतल है। यह कहानी पुराने रशियन नावेल या बाल्जाक के किसी उपन्यास की याद दिलाने वाले इन शब्दों से आरंभ होती है, ‘अमीर, मशहूर, तडक़-भडक़ वाले, अख़बारों की सुर्खियां बनाने वाले... चालाक और मक्कार व्यापारी और अधिकारी वर्ग के लोग उष्णकटिबंधीय सूरज और चाँद के तले अपना साप्ताहांत मनाने के लिए इस आलीशान होटल में इकट्ठा हुए हैं... लेकिन इन शानो-शौकत वालों की भीड़ में एक हत्यारा किसी को कत्ल करने के इरादे से घूम रहा है। और... बैटमैन उसे कुछ ही घंटों या मिनटों में बेनकाब कर सकता है।’
नीचे छोटे अक्षरों में लिखा था, कहानी- डैनी ओ नील। यह नाम अनायास ही मेरी स्मृति में नहीं दर्ज हुआ था। आगे जब यह नाम बैटमैन की कॉमिक्स से जुड़ता तो उसकी कहानियां अविस्मरणीय ही जातीं। तमाम अच्छी-बुरी खबरों के बीच इसी 11 जून को डैनी ओ नील के निधन की खबर भी आई और उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया। ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ से लेकर ब्लागर्स और यूट्यूबर्स ने जाने कहां से खोज-खोजकर उनकी कहानियों की चर्चा छेड़ी और उनके कभी न भूलने वाले योगदान को याद किया।
यह तय है कि अगर डैनी न होते तो टिम बर्टन और क्रिस्टोफर नोलन का बैटमैन भी न होता। यह डैनी थे जिन्होंने 60 के दशक में टीवी सीरियल से बनी बैटमैन की हल्की-फुल्की छवि को दोबारा से एक डार्क, गॉथिक और नॉयर शैली में प्रस्तुत किया। जैसा कि बैटमैन को होना चाहिए था। एक इंटरव्यू में वे कहते हैं, ‘सुपमैन से अलग इस किरदार के केंद्र में एक ट्रैजेडी है। वह एक मनुष्य है, और यही बात मुझे बतौर लेखक सबसे ज्यादा आकर्षित करती है।’
नोलन की ‘बैटमैन बिगिन्स’ में ब्रूस वेन के बचपन का वो दृश्य जब वह चमगादड़ों से भरे तहखाने में जाकर गिरता है, डैनी ओ नील की कॉमिक्स ‘द मैन हू फॉल्स’ पर आधारित है। जो चाँदनी रात में किसी बेहद ऊंची इमारत पर छलांग लगाने को तैयार बैटमैन से आरंभ होती है। डैनी कहते हैं, उसने यह पहले भी किया है, ‘कितनी बार? एक हजार बार? एक हजार बार अकेले जागते हुए, एक हजार तनाव से भरे क्षणों में, एक हजार बार यह खयाल नकारते हुए कि उससे चूक हो सकती है...’ और कहानी हमें अतीत में ले जाती है, जब बच्चा ब्रूस वेन एक छेद से जमीन के भीतर तहखाने में जा गिरता है जहां सैकड़ों चमगादड़ फडफ़ड़ाने लगते हैं। इस कहानी का अंत होता है बैटमैन की छलांग से। खुद पर यकीन रखते हुए मौत को छूते हुए गुजर जाने वाली इस छलांग के बीच में ही कहानी खत्म हो जाती है।
अंगरेजी साहित्य और दर्शनशास्त्र की शिक्षा हासिल करने वाले डैनी अपनी हर कहानी में असाधारण नाटकीय और मनोवैज्ञानिक तनाव रचते थे। न्यूयार्क टाईम्स बताता है कि ये वे शख्स था जिसने कॉमिक्स को एक गंभीर कला का दर्जा दिलाने में मदद की। उनकी ज्यादातर कहानियों में ‘यूनिटी ऑफ टाइम’ का निर्वहन अद्भुत ढंग से होता था। कई बार वास्तविक घटनाक्रम एक रात या महज कुछ घंटों के बीच सिमटा हुआ होता था, मगर उसके समानांतर एक कहानी पूरे जीवन का विस्तार लिये होती थी। इसका सबसे खूबसूरत उदाहरण उनकी कहानी ‘देयर इज नो होप इन क्राइम ऐली’ है।
यह कहानी शुरू होती है एक सडक़ से, जहां बीस साल पहले रौनक और चहल-पहल रहती थी, अब लेखक के शब्दों में, ‘हँसी और ठहाके खत्म हो गए और रोशनी मंद हो गई, और वे खूबसूरत औरतें और पुरुष सुख हासिल करने कहीं और चले गए... अब, केवल और केवल निराश और हताश इन सडक़ों पर चलते हैं।’ इसी के बीच एक बूढ़ी औरत रात को अकेली फुटपाथ पर चली जा रही है। उस औरत पर दो उचक्के हमला करते हैं। बैटमैन जो थका है और कई रातों से से सोया नहीं उसी बदनाम सडक़ की निगरानी कर रहा है। यह बूढ़ी औरत है लेस्ली थॉम्पकिंस, बैटमैन उसे बचाने पहुंचता है और एक शख्स उस पर बंदूक तानकर कहता है, ‘पास मत आओ... वरना गोली मार दूंगा।’
बैटमैन आक्रोश में कहता है, ‘तुम्हारी यह हिम्मत, तुम यहां मुझ पर गोली चलाओगे...’ कहानी हमें अतीत में ले जाती है और पता चलता है कि यही वो सडक़ थी जहां 20 साल पहले कभी रौनक हुआ करती थी और ब्रूस वेन अपने माता-पिता के साथ थिएटर देखकर लौट रहा था, जब वे उसकी आंखों के सामने किसी उचक्के की गोली के शिकार हो जाते हैं। उस वक्त पुलिस, तमाशबीन भीड़ और जमीन पर पड़े माता-पिता के शव के बीच उस सिसकते हुए लडक़े के पास एक औरत घुटनों के बल बैठ जाती है और बोलती है, ‘मैं लेसली थॉम्पकिंस हूँ, मेरे साथ आओ, मुझसे जो बन पड़ेगा वो सब तुम्हारे लिए करूंगी।’ डैनी ओ नील लिखते हैं ‘और सारी दुनिया में उसके लिए कुछ नहीं बचा था... सिवाय उसकी ममता भरी बांहों की तसल्ली और सांतवना भरे शब्दों का सुकून।’
करीब 20 साल बाद, वह बच्चा अब बैटमैन बन चुका है और वह स्त्री ही वह अकेली बुढ़ी औरत है। जब बैटमैन उसे बचाकर ले जाता है तो वो कहती है, ‘सालों पहले मैंने एक बहुत ही डरावना दृश्य देखा था, मेरी आँखों के सामने एक बच्चे के माता-पिता की हत्या हो जाती है। मैं उस बालक को कभी भूल नहीं पाई और ऐसी त्रासदी रोकने के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया।’ कहानी का शीर्षक है, ‘देयर इज नो होप इन क्राइम ऐली’ मगर अंत में बैटमैन के शब्द हैं, ‘आप... और आप जैसे लोग ही आशा की किरण हैं, गुनाहों की गली में। शायद एक अकेली आशा... जो हमारी बिगड़ी संस्कृति में बाकी रह गई है।’ यह बैटमैन की एक क्लासिक कॉमिक्स मानी जाती है और यह ओ हेनरी की किसी कहानी से कम खूबसूरत नहीं है।
डैनी ओ नील की मृत्यु की खबर सुनकर मुझे अफसोस हुआ। इस शख्स ने सिखाया था कि कहानी कैसे कही जाती है। बाकी उनके शब्द तो जैसे अंधेरे में चमकते जुगनू थे। उनकी एक और क्लासिक मानी जाने वाली कथा ‘द सीक्रेट ऑफ वेटिंग ग्रेवयार्ड्स’ से लिए गए दो उदाहरणों के साथ अपनी बात खत्म करता हूँ।
‘ये शुरुआत है एक भयानक और खतरनाक सैर की। खामोश रहो और सुनो, हवा की चीख मानों आत्माओं की तड़प हो... देखो... राख के रंग में चाँद को ऊपर उठते हुए, गहरी सांस लो और सूंघो, मौत की खुश्बू को... जब तुम जानना चाहो... इंतजार करती कब्रों के राज को (शीर्षक- ‘द सीक्रेट ऑफ वेटिंग ग्रेवयार्ड्स’)।’
कहानी के एक हिस्से में एक खूबसूरत युवती डोलोरेस कहती है, ‘बैटमैन हमें पकडऩा चाहता है... लेकिन यह उसकी भूल होगी...’
‘उसकी शोखी की धीमी गूंज़, उन पुरानी दीवारों के बीच गूंजती रही। और फिर एक कंपकंपी छूटी बैटमैन की पीठ में... क्योंकि डोलोरेस की आवाज में सच्चाई छिपी थी।’ (फेसबुक से)


