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चीन के प्रभाव को रोकने में बहुत देर हो गई-वेईवेई
29-Sep-2020 7:34 PM
चीन के प्रभाव को रोकने में बहुत देर हो गई-वेईवेई

जॉन सिम्पसन

चीन के कलाकार और फि़ल्म निर्माता अई वेईवेई का कहना है कि चीन का वैश्विक प्रभाव इतना बढ़ चुका है कि अब इसे रोका नहीं जा सकता है।

वेईवेई ने कहा, ‘पश्चिमी देशों को वास्तव में दशकों पहले चीन के बारे में चिंतित होना चाहिए था। अब तो बहुत देर हो चुकी है, क्योंकि चीन को लेकर पश्चिम की निर्भरता बहुत बढ़ गई और इसे कम करने से चीन को काफी तकलीफ होगी और यही वजह है कि चीन की नाराजग़ी भी बढ़ी है।’ वेईवेई चीन की सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं। वो कहते हैं ‘यह एक पुलिस स्टेट है।’

चीन के सबसे मशहूर कलाकारों में से एक वेईवेई का नाम बीजिंग ओलंपिक के ‘बर्ड्स नेस्ट’ स्टेडियम की डिज़ाइनिंग करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुआ था।

वेईवेई का मानना है कि मौजूदा समय में चीन अपने राजनीतिक प्रभाव को लागू करने के लिए अपनी आर्थिक क्षमता का इस्तेमाल करता है। वो कहते हैं, ‘यह बिल्कुल सही है कि चीन हाल के सालों में बहुत मुखर हुआ है।’ लगभग एक दशक पहले चीन ने दुनिया के सामने एक विनम्र चेहरा पेश किया था। मंत्रियों ने ज़ोर देकर कहा था कि चीन अब भी एक विकासशील देश है और उसे पश्चिमी देशों से अभी बहुत कुछ सीखना है।

इसके बाद शी जिनपिंग सत्ता में आए। वो साल 2012 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सेक्रेटरी जनरल बने और उसके अगले साल अध्यक्ष। उन्होंने एक नए तरीके से चीज़ों को आगे बढ़ाया। पुराने समय की विनम्रता और साधारण बने रहने की प्रवृति फींकी पड़ गई और एक नए नारे का जन्म हुआ- ‘स्ट्राइव फॉर अचीवमेंट यानी उपलब्धि के लिए प्रयास करें।’

हालाँकि कुछ मायनों में चीन अब भी विकासशील देश ही है। जहाँ की 2।5 करोड़ जनता अब भी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है। लेकिन यह भी सही है कि यह पहले से ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और हो सकता है कि आने वाले सालों में यह अमरीका को पछाड़ भी दे। एक ओर जहाँ समय के साथ अमरीका के वैश्विक प्रभाव में कुछ गिरावट आई है, वहीं इससे चीन का प्रभाव और अधिक स्पष्ट रूप से बढ़ा ही है।

मैं अगर अपनी बात करूँ, तो मैंने चीन की बढ़ती राजनीतिक ताकत और हस्तक्षेप को पूरी दुनिया में बढ़ते देखा है। ग्रीनलैंड, कैरेबियाई क्षेत्र से लेकर पेरू तक और अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका से लेकर जिम्बाब्वे, पाकिस्तान और मंगोलिया तक। ब्रिटिश संसद की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष टॉम टुगेनहैट ने हाल ही में चीन पर आरोप लगाते हुए कहा था कि वो बारबाडोस पर दबाव बना रहा है कि वो रानी को राज्य के प्रमुख के तौर पर मानने से मना कर दे।

आज विश्व में हर जगह चीन की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर मौजूदगी है और अगर कोई भी देश चीन के बुनियादी हितों के लिए ख़तरा बनता है, तो उसे उसका परिणाम भुगतना पड़ता है। जब दलाई लामा ने ब्रिटेन का दौरा किया था, तो ब्रिटेन के साथ चीन के संबंध लगभग ख़त्म से हो गए। वहीं अभी हाल में जब चेक गणराज्य की संसद के स्पीकर ने ताइवान का दौरा किया, तो चीन के एक शीर्ष राजनयिक ने चेतावनी दे डाली कि ‘चेक सीनेट अध्यक्ष और उनके पीछे खड़ी चीन विरोधी ताकतों के उकसावे पर चीन की सरकार या फिर चीन के लोग शांत नहीं बैठेंगे और उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी होगी।’

बावजूद इसके चीनी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के एडिटर-इन-चीफ़ हू जि़जिन ऐसे किसी भी मत को स्वीकार नहीं करते हैं कि चीन दूसरे देशों को धमकाता है।

वो कहते हैं, ‘मैं पूछना चाहता हूँ कि चीन ने कब किसी देश की इच्छा के विरुद्ध जाकर कुछ किया है? यह अमरीका है, जो दुनिया के अलग-अलग देशों पर लगे प्रतिबंधों को जारी रखता है और विशेष तौर पर इतने सारे देशों पर आर्थिक प्रतिबंध। आप कौन से ऐसे देश को जानते हैं, जिस पर चीन ने प्रतिबंध लगाया हो?’

वो कहते हैं, ‘क्या हमने कभी भी किसी देश पर प्रतिबंध लगाए? हाँ कुछ विशेष मुद्दों पर हमने अपनी असहमति जरूर जाहिर की और वो भी तब जब बात सीधे हमारे देश पर आई।’

फिर भी चीन का कई देशों जैसे ताइवान, ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, भारत, ब्रिटेन और निश्चित तौर पर अमरीका के साथ गतिरोध है।

हां, ग्लोबल टाइम्स कभी-कभी जिस भाषा का इस्तेमाल करता है, वो पुराने माओ ज़ेडॉन्ग की सबसे खराब बयानबाजी की तरह लग सकता है। ग्लोबल टाइम्स के एडिटर-इन-चीफ़ हू से जब मैंने उनके ऑस्ट्रेलिया को लेकर लिखे गए संपादकीय ‘द च्युइंग-गम अंडर चाइना बूट (चीन के जूते में चिपका च्युइंग-गम)’ के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मौजूदा ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने लगातार चीन पर हमला किया और इससे उन्हें नाराजगी हुई। हू इसे अपना विचार बताते हैं और कहते हैं कि अपने विचार को ज़ाहिर करना, अभिव्यक्ति का अधिकार है।

ग्लोबल टाईम्स के एडिटर इन चीफ़ हू राष्ट्रपति शी के करीबी हैं और हम यह अंदाज़ा तो लगा ही सकते हैं कि वो ये बातें तब तक नहीं कह सकते हैं जब तक कि उन्हें इस बात का आश्वासन न हो कि उन्हें चीन के शीर्ष नेताओं का संरक्षण है। जब मैंने उनसे हॉन्ग कॉन्ग पर मत लेना चाहा, तो भी उन्होंने खुलकर बात की।

वो कहते हैं, ‘चीन की सरकार को हॉन्ग कॉन्ग के लोकतंत्र और स्वतंत्रता की मांग को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। जिसमें वहाँ के लोगों का सडक़ों पर आकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना भी शामिल है। लेकिन मूल बात ये है कि प्रदर्शन हों, लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से। हम हिंसक विरोध के प्रदर्शन के खिलाफ हैं और अगर ऐसे में पुलिस बल का इस्तेमाल किया जाता है तो हम इसके समर्थन में हैं।’

वो आगे कहते हैं, ‘अगर हिंसक प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को धमकी दी, उन पर हमला किया और उन पर पेट्रोल बम फेंके, तो मेरा मानना है कि पुलिस को अपनी बंदूकों के इस्तेमाल की अनुमति मिलनी चाहिए।’

कई विदेशी चिंतकों और विचारकों का मानना है कि वास्तव में चीन अपने डर को छिपाने के लिए ही इतना आक्रामक व्यवहार दिखाता है।

कम्युनिस्ट पार्टी सीधे चुन के नहीं आई है और ऐसे में यह जानने का कोई तरीक़ा नहीं है कि इसे चीन की जनता का कितना वास्तविक समर्थन है।

राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके सहयोगी इस बात से डरे हुए रहते हैं कि कैसे पुराना सोवियत साम्राज्य साल 1989 और 1991 ध्वस्त हो गया था, क्योंकि उसे आम लोगों का समर्थन नहीं था।

हालाँकि हू यह स्वीकार करते हैं कि मौजूदा समय में एक नया शीत युद्ध शुरू हो गया है। चीन का विवाद मूल तौर पर तो अमरीका के साथ ही है। हू का मानना है कि ट्रंप का लगातार आक्रामक होता रवैया कहीं ना कहीं तीन नवंबर को होने वाले अमरीका के नए राष्ट्रपति के चुनाव से भी जुड़ा हुआ है।

वो कहते हैं चुनावों के बाद चाहे जो भी जीते, माहौल में सुधार की संभावना है।

लेकिन कहीं ना कहीं यह वेईवेई की उस चेतावनी को ही पुष्ट करता है कि पश्चिम के लिए अब चीन के प्रभाव से बचने में बहुत देर हो चुकी है। (bbc.com/hindi)


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