विचार / लेख
राज ढाल
शिव सेना के बारे में कइयों को बहुत गलतफहमी हो गई है। कई उनको अंडर एस्टीमेट कर रहे है। मैं उनको कहना चाहता हूँ कि वो ऐसी भूल ना करे। सत्ताएं आती हैं जाती हैं समझौते बनते हैं टूटते हैं लेकिन ये सत्ताएं किसी विचारधारा को खत्म नहीं कर सकती।
मराठा कौम को जानना जरूरी है तभी मराठों की स्ट्रेंथ पता चलेगी। ये कौम अपनी कला साहित्य रंगमंच और राजनीति में गहन समझ रखती है। आजादी के बाद बनिया गुजरातियों के महाराष्ट्र पर वर्चस्व ने इन्हें अलग राज्य बनाने को प्रेरित किया।
(तब महाराष्ट्र गुजरात का ही एक हिस्सा था)
सत्ता तब भी अकड़ में थी, गुजराती मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने अलग राज्य की मांग करते मराठाओं को अपने काफिले की चलती कारों से कुचलवा दिया था लेकिन फिर भी महाराष्ट्र वजूद में आया और उसके साथ वजूद में आई शिव सेना यानी शिवाजी की सेना जिसका काम मुख्यत: मराठा अस्मिता की रक्षा करने का था।
जब बिहारी बिहार की अस्मिता की बात कर सकता है तमिलियन तमिल इलम की तो मराठा मराठियों की अस्मिता की बात क्यों नहीं कर सकता?
क्यों उसके राज्य में पहले नौकरी किसी बिहारी को गुजराती को या तमिलियन को मिले?
पहला हक मराठाओं का होना चाहिए मराठाओं को अगर महाराष्ट्र में ही नौकरीं नहीं मिलेगी तो और कहां मिलेगी..?
हां अगर उनको देने के बाद बच जाए तो दूसरो को मिले, इसमें कोई क्षेत्रवाद नहीं है। ये सीधे-सीधे अपने हितों को संरक्षण देना है। इसमें कोई दोष नहीं।
शिवसेना इसी सोच से पनपी
उसका महाराष्ट्र से बाहर आने का कोई इरादा नहीं था लेकिन मुसलमानों के अग्रेशन ने उन्हें अपने विस्तार का मौका दिया। किसी जमाने में मुसलमानों के एक बड़े तबके को अपनी बाजुओं पर बड़ा नाज रहता था। ताकत की जुबान समझते और समझाते थे।
हिन्दुओं को दाल-चावल खाने वाले समझते और गोश्त खाने वालों से क्या मुकाबला करेंगे ऐसी सोच रखते थे। रामजन्म भूमि बाबरी विवाद ने ये सोच और गहरी कर दी।
हिन्दुओं को अग्रेशन सिखाया शिवसेना ने ना कि भाजपा ने। आज मोदी मोदी का जाप करने वाले नहीं जानते कि मोदी बाला साहब ठाकरे के प्रशंसक थे उनका आशीर्वाद लेने जाते थे।
कौन नहीं जानता कि उस समय बाल ठाकरे क्या हैसियत रखते थे। अब चूंकि सत्ता का केंद्रीय पक्ष भाजपा के पास है वो शिवसेना को मामूली समझ रही है जबकि राज्यस्तर पर शिवसैनिक जमीन पर मौजूद है।
बाल ठाकरे मरे हैं, शिवसैनिक नहीं, मराठाओं को उनकी अस्मिता को चुनौती देने वाले इस बात को समझें। शिवसेना सत्ता में रहे या ना रहे, पर शिव सेना महाराष्ट्र में हमेशा रहेगी।
बिहार को उतरप्रदेश को गुजरात को ये बात समझ जानी चाहिए और उन्हें बाबर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए ।
वो कट्टर हिन्दू है और उनका हिंदुत्व भाजपा का मोहताज नहीं जहाँ मराठी अस्मिता का सवाल खड़ा होगा वहां मराठी एक ही पाले में होगा।
अगर कोई उन्हें हिन्दू मुस्लिम के खेल में कटघरे में खड़ा करने की चेष्ठा करेगा तो वो जान ले कि मराठाओं को हिन्दू सर्टिफिकेट लेने की नही बल्कि दूसरों को देने की आदत है।


