विचार / लेख
-अरूण कान्त शुक्ला
लुई फिशर ने लिखा कि हो सकता है कि जब पूरी दुनिया गांधी को महान माने तब अंत में जाकर शायद भारत की जनता माने।
अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर ने महात्म्य गांधी पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक A Week With Gandhi लिखी। यह किताब 1942 में प्रकाशित हुई थी। इसमें फिशर ने महात्मा गांधी के साथ बिताए अपने एक सप्ताह के अनुभवों का वर्णन किया है। फिशर ने गांधीजी के विचार, उनका जीवन-दर्शन, उनकी दिनचर्या और उनके साथ हुई गहन चर्चाओं को दर्ज किया है।
फिशर लिखते हैं, पहली बार जब मैं उनसे मिलने गया तो हैरान रह गया। एक साधारण से कमरे में ज़मीन पर बैठा यह दुबला-पतला व्यक्ति जो हाथ से चरखा कात रहा था यह व्यक्ति इतना असाधारण व्यक्तित्व है कि इसे आधी दुनिया राष्ट्रपिता मानती है।
फिशर ने गांधीजी पूछा आप इतने बड़े आंदोलन के नेता होकर भी इतना साधारण सा जीवन क्यों जीते हैं?
गांधीजी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया क्योंकि मैं अपने लोगों से अलग नहीं दिखना चाहता। अगर भारत के करोड़ों लोग गरीबी में जी रहे हैं तो मेरा कर्तव्य है कि मैं भी उनके जैसा ही जीवन जियूँ। मैं अपने जीवन से ही जनता को रास्ता दिखा सकता हूँ, न कि उनसे अलग जीवन जीकर। मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।
एक बार बातचीत में लुई फिशर ने गांधीजी से पूछा क्या आपको विश्वास है कि अहिंसा के बल पर आप ब्रिटिश साम्राज्य जैसी ताक़त को हरा देंगे?
गांधीजी ने शांत स्वर में उत्तर दिया मेरा उद्देश्य किसी को हराना नहीं है। मैं केवल यह चाहता हूँ कि ब्रिटिश भी सत्य को स्वीकार करें। जब सत्य सामने खड़ा होता है, तो शक्तिशाली साम्राज्य भी टिक नहीं सकता। मैं तो ब्रिटेन के लोगों को भी इंसानियत सिखाना चाहता हूँ जो उन्होंने हमें गुलाम बनाकर खो दी है।
भारत छोड़ो आंदोलन के समय जब लुई फिशर ने गांधीजी से कहा कि आपके इस कार्य से युद्ध में बाधा पड़ेगी और अमरीका की जनता आपके इस आंदोलन को पसंद नहीं करेगी और लोग आपको मित्र राष्ट्रों का दुश्मन समझने लगेंगे। गांधी यह सुनकर एकदम चौंक गए और उन्होंने कहा कि फिशर तुम अपने राष्ट्रपति से कहो कि वे मुझे अपना आंदोलन छेडऩे से रोक दें । मैं एक समझौतावादी आदमी हूं और मुझे कभी भी यह नहीं लगता कि केवल मैं ही सही हूं।
फिशर ने लिखा कि गांधी के इस उत्तर ने उन्हें गहराई से झकझोर दिया। उन्हें लगा कि यहाँ एक ऐसा व्यक्ति बैठा है जो सत्ता नहीं, बल्कि आत्मा की जीत चाहता है।
फिशर बाद में लिखते हैं कि उस क्षण उन्हें समझ आया कि गांधी केवल एक राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि एक नैतिक शक्ति के प्रतीक हैं, जिनकी ताक़त उनका त्याग और सादगी है।विचारों के स्वच्छ हो जाने पर उनमें सत्य प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होने लगता है। जब विचार सत्यवादी हो जाते हैं तो व्यक्ति की वाणी भी सत्यवादी हो जाती है।फिशर लिखते हैं कि गांधीजी केवल भारत की ही संपत्ति नहीं हैं और भारत में उनकी असफलताओं से संसार के लिए उनके संदेश तथा उनके अर्थ का महत्त्व कम नहीं होगा। हो सकता है कि जब पूरी दुनिया गांधी को महान माने तब अंत में जाकर शायद भारत की जनता माने। इतिहास के निर्माता इतिहास के निर्णय को पहले से नहीं जान सकते।


