विचार / लेख
- निखिल इनामदार
भारत की सॉफ़्टवेयर इंडस्ट्री बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है।
देश में प्राइवेट सेक्टर की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने मिड और सीनियर मैनेजमेंट लेवल पर 12 हजार से ज्यादा नौकरियां खत्म करने का ऐलान किया है। इससे कंपनी के कर्मचारियों की संख्या में दो फीसदी की कमी आएगी।
यह कंपनी लगभग पांच लाख से ज्यादा आईटी प्रोफेशनल्स को रोजगार देती है और 283 अरब डॉलर की भारतीय सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री का अहम हिस्सा मानी जाती है।
यह देश में व्हाइट-कॉलर नौकरियों की रीढ़ कही जाती है। व्हाइट कॉलर नौकरियां ऐसी नौकरियां होती हैं, जिनमें दफ्तर या पेशेवर माहौल में काम किया जाता है। इनमें शारीरिक मेहनत कम और दिमागी या मैनेजमेंट से जुड़ा काम ज्यादा होता है।
टीसीएस का कहना है कि यह कदम कंपनी को ‘भविष्य के लिए तैयार’ करने के लिए उठाया गया है, क्योंकि वह नए क्षेत्रों में निवेश कर रही है और बड़े पैमाने पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपना रही है।
पिछले कई दशकों से टीसीएस जैसी कंपनियां कम लागत पर वैश्विक ग्राहकों के लिए सॉफ्टवेयर बनाती रही हैं, लेकिन अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के चलते कई काम ऑटोमेटिक हो रहे हैं और ग्राहक नई तकनीक पर आधारित समाधानों की मांग कर रहे हैं।
कंपनी ने कहा, ‘कई री-स्किलिंग और नई भूमिकाओं में नियुक्ति की पहल चल रही है। जिन सहयोगियों की नियुक्ति संभव नहीं है, उन्हें कंपनी से रिलीज किया जा रहा है।’
छंटनी की बुनियादी वजह क्या है?
स्टाफिंग फर्म टीमलीज डिजिटल की सीईओ नीति शर्मा ने बीबीसी से कहा, ‘आईटी कंपनियों में मैनेजर लेवल के लोगों को हटाया जा रहा है और उन कर्मचारियों को रखा जा रहा है जो सीधे काम करते हैं, ताकि वर्कफोर्स को व्यवस्थित किया जा सके और क्षमता बढ़ाई जा सके।’
उन्होंने यह भी बताया कि एआई, क्लाउड और डेटा सिक्योरिटी जैसे नए क्षेत्रों में भर्तियां बढ़ी हैं, लेकिन जिस तेजी से नौकरियां जा रही हैं, उस अनुपात में नई भर्तियां नहीं हो रही हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह फ़ैसला देश की सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में ‘स्किल गैप’ को भी उजागर करता है।
बिजनेस सलाहकार कंपनी ‘ग्रांट थॉर्नटन भारत’ से जुड़े अर्थशास्त्री ऋषि शाह के मुताबिक, ‘जनरेटिव एआई के कारण प्रोडक्टिविटी में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। यह बदलाव कंपनियों को मजबूर कर रहा है कि वे अपने वर्कफोर्स स्ट्रक्चर पर फिर से विचार करें और देखें कि संसाधनों को एआई के साथ काम करने वाली भूमिकाओं में कैसे लगाया जाए।’
नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (नैसकॉम) का अनुमान है कि 2026 तक भारत को 10 लाख एआई प्रोफेशनल्स की जरूरत होगी, लेकिन फिलहाल देश के 20 फीसदी से भी कम आईटी प्रोफेशनल्स के पास एआई की स्किल है।
तकनीकी कंपनियां नए एआई टैलेंट तैयार करने के लिए ट्रेनिंग पर ज़्यादा खर्च कर रही हैं, लेकिन जिनके पास जरूरी स्किल नहीं है, उन्हें नौकरी से हटाया जा रहा है।
ट्रंप के टैरिफ़ संबंधी फ़ैसले का असर
एआई के आने से पैदा हुए बदलावों के अलावा, वैश्विक निवेश बैंकिंग फ़र्म जेफऱीज़ का कहना है कि टीसीएस का ऐलान भारत के आईटी सेक्टर में ‘ग्रोथ संबंधी व्यापक चुनौतियों को भी दिखाता है।’
जेफऱीज़ ने एक नोट में लिखा, ‘वित्त वर्ष 2022 से इंडस्ट्री स्तर पर नेट हायरिंग कमजोर रही है, इसके पीछे की वजह मांग में लंबे समय से चल रही गिरावट है।’
अमेरिका में आईटी सेवाओं की मांग पर भी असर पड़ा है, जो भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों की कुल कमाई का आधा स्रोत है। डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने इस पर असर डाला है।
हालांकि, टैरिफ मुख्य रूप से सामानों को प्रभावित करते हैं। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि कंपनियां टैरिफ़ से जुड़ी अनिश्चितताओं और अपनी ग्लोबल सोर्सिंग रणनीतियों के आर्थिक प्रभाव का आंकलन करते हुए आईटी पर होने वाले अतिरिक्त खर्च को रोक रही हैं।
जेफरीज के मुताबिक़, ‘एआई तकनीक अपनाने की वजह से अमेरिकी कंपनियां लागत कम करने के लिए दबाव बना रही हैं, जिससे बड़ी आईटी कंपनियों को कम स्टाफ के साथ काम करना पड़ रहा है।’
इसका असर अब बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे जैसे शहरों में दिखने लगा है, जो कभी भारत के आईटी बूम के केंद्र थे।
एक अनुमान के मुताबिक, पिछले साल इस सेक्टर में करीब 50 हजार लोगों की नौकरियां गई थीं। भारत की शीर्ष छह आईटी कंपनियों में नए कर्मचारियों की संख्या में 72त्न की कमी आई।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर
इसका असर भारत की व्यापक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है, जो हर साल वर्किंग फोर्स में शामिल होने वाले लाखों युवा ग्रेजुएट्स के लिए पर्याप्त नौकरियां बनाने में पहले से ही संघर्ष कर रही है।
मजबूत मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गैर-मौजूदगी में, इन सॉफ्टवेयर कंपनियों ने 1990 के दशक में भारत को दुनिया का बैक ऑफिस बनाया और ये लाखों नए आईटी वर्कर्स के लिए पसंदीदा विकल्प थीं।
इन्होंने एक नया समृद्ध मध्यम वर्ग तैयार किया, जिसने शहरों में विकास को बढ़ावा दिया और कारों के साथ घरों की मांग बढ़ाई।
लेकिन जब स्थिर और अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियां कम हो रही हैं, तब भारत की सर्विस सेक्टर आधारित आर्थिक वृद्धि पर सवाल उठने लगे हैं।
कुछ साल पहले तक भारत की बड़ी आईटी कंपनियां हर साल करीब 6 लाख नए ग्रेजुएट्स को नौकरी देती थीं। टीमलीज डिजिटल के अनुसार, पिछले दो साल में यह संख्या घटकर करीब 1.5 लाख रह गई है।
दूसरे उभरते हुए सेक्टर जैसे फिनटेक स्टार्टअप्स और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स बाकी युवाओं को रोजगार दे रहे हैं।
लेकिन नीति शर्मा के मुताबिक, ‘कम से कम 20-25 प्रतिशत नए ग्रेजुएट्स के पास कोई नौकरी नहीं होगी। ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स कभी भी आईटी कंपनियों जैसी बड़ी संख्या में हायरिंग नहीं कर पाएंगे।’
भारत के कई बड़े बिजनेस लीडर्स ने इन रुझानों के आर्थिक असर पर चिंता जताई है।
टीसीएस के ऐलान पर प्रतिक्रिया देते हुए दक्षिण भारत के बड़े म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर डी मुथुकृष्णन ने एक्स पर लिखा कि ‘घटता आईटी सेक्टर कई सहायक सेवाओं और उद्योगों पर नकारात्मक असर डालेगा, रियल एस्टेट को नुक़सान पहुंचाएगा और प्रीमियम खपत को बड़ा झटका देगा।’ कुछ महीने पहले मोटर टेक्नोलॉजी कंपनी एटॉमबर्ग के संस्थापक अरिंदम पॉल ने लिंक्डइन पर चेतावनी दी थी कि एआई भारत के मध्यम वर्ग पर गंभीर असर डाल सकता है।
उन्होंने लिखा था, ‘आज मौजूद करीब 40-50 फीसद व्हाइट-कॉलर नौकरियां खत्म हो सकती हैं। इसका सीधा मतलब होगा मध्यम वर्ग और खपत की कहानी का अंत।’
एआई के बदलावों के साथ भारतीय टेक कंपनियां कितनी जल्दी कदम मिलाती हैं, इसी पर तय होगा कि भारत दुनिया में तकनीकी क्षेत्र में अपनी बढ़त बनाए रख पाएगा या नहीं। इससे यह भी तय होगा कि भारत अपने मध्यम वर्ग का दायरा बढ़ाकर जीडीपी की रफ़्तार बनाए रख सकेगा या नहीं।


