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कैसे रेंगने वाले शहर में बदला बेंगलुरु
29-Jul-2025 10:46 PM
कैसे रेंगने वाले शहर में बदला बेंगलुरु

भारत के तमाम शहरों को तेजी से स्मार्ट ट्रैफिक समाधान चाहिए। वरना, बेंगलुरु जैसी हालत उनकी हालत भी खस्ता कर देगी।

 डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी का लिखा-

दुनिया भर के तमाम संस्थानों और सरकारों को सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन मुहैया कराने वाला बेंगलुरु खुद अपनी समस्याओं का समाधान नहीं तलाश पा रहा है। ट्रैफिक समस्या के लिए बदनाम रहे आईटी कैपिटल बेंगलुरु में ट्रैफिक पुलिस ने अब इस समस्या के समाधान के लिए आईटी कंपनियों से ही गुहार लगाई है। ट्रैफिक पुलिस ने अब आईटी कंपनियों से शिफ्ट की टाइमिंग बदलने और बुधवार को वर्क फ्रॉम होम शुरू करने समेत कई सुझाव दिए हैं।

महानगर की लगातार बदतर होती ट्रैफिक समस्या पर कुछ हद तक अंकुश लगाने के लिए ट्रैफिक पुलिस, नगरपालिका, बेंगलुरु महानगर परिवहन निगम और आईटी उद्योग के प्रतिनिधियों के बीच हाल में हुई बैठक में कई उपाय सुझाए गए हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर इनका कितना असर होगा, यह कहना मुश्किल है। कई इलाको में आधारभूत ढांचों का निर्माण, तेजी से बढ़ती वाहनों की तादाद और बीते महीने बाइक टैक्सी पर लगी पाबंदियों ने हालात को बेकाबू करने में अहम भूमिका निभाई है।

अब तमाम उपायों को बेअसर होते देख कर ट्रैफिक पुलिस ने आईटी कंपनियों से इस मामले में मदद की गुहार लगाई है। पुलिस का कहना है कि बुधवार को सडक़ों पर ट्रैफिक सबसे ज्यादा होता है। आईटी कंपनियों के साथ बैठक में पुलिस ने उनसे बुधवार को कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की सुविधा देने की अपील की है। इसके साथ ही उनसे सुबह की शिफ्ट की टाइमिंग बदलने का भी अनुरोध किया गया है। ट्रैफिक पुलिस के संयुक्त आयुक्त कार्तिक रेड्डी डीडब्ल्यू से कहते हैं, ‘सुबह नौ से दस बजे तक सडक़ों पर भारी भीड़ रहती है। खासकर ज्यादातर कंपनियों के दफ्तर आउटर रिंग रोड पर हैं। वहां मेट्रो के निर्माण कार्य चलने से सडक़ों पर ऐसे ही भारी दबाव है। ऐसे में अगर कर्मचारियों की सुबह की शिफ्ट नौ से दस बजे के बजाय साढ़े सात बजे से साढ़े नौ के बीच कर दी जाए तो ट्रैफिक का दबाव काफी कम हो सकता है।’

रेड्डी कहते हैं कि कंपनियों को अपने कर्मचारियों को निजी वाहनों की बजाय कार पूलिंग से दफ्तर आने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। बैठक में परिवहन निगम से और ज्यादा तादाद में एसी बसों को सडक़ों पर उतारने का अनुरोध किया गया है ताकि आईटी कर्मचारी इनका इस्तेमाल कर सकें। रेड्डी बताते हैं कि परिवहन निगम ने और अतिरिक्त बसों को सडक़ों पर उतारने का भरोसा दिया है।

आईटी सेक्टर और ग्रेटर बेंगलुरु आईटी एंड कंपनीज एसोसिएशन ने वर्क फ्रॉम होम योजना का समर्थन किया है। लेकिन ऐसा उसी स्थिति में संभव होगा जब इसे ढंग से लागू किया जाए और कर्मचारियों को समय रहते इसकी सूचना दी जाए। एसोसिएशन के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, ‘इस मुद्दे पर प्रबंधन के साथ बातचीत की जाएगी।’

क्यों इतनी बदतर गई बेंगलुरु की यातायात व्यवस्था

लेकिन आखिर बेंगलुरु की ट्रैफिक समस्या कम होने की बजाय लगातार गंभीर क्यों हो रही है? परिवहन विभाग के एक अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "महानगर में 1।23 करोड़ वाहन पहले से पंजीकृत हैं। इसके अलावा इस साल के पहले छह महीनों के दौरान तीन लाख से ज्यादा नए निजी वाहनों का पंजीकरण किया जा चुका है। अकेले जून के दौरान ही करीब 50 हजार वाहनों का पंजीकरण किया गया है।’

बीते महीने बाइक टैक्सी पर हाईकोर्ट की पाबंदी ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। ट्रैफिक पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि इस पाबंदी के बाद पीक आवर में सडक़ों पर वाहनों की भीड़ 18 से 22  फीसदी तक बढ़ गई है। इन बाइक टैक्सियों का इस्तेमाल करने वाले लाखों लोग अब निजी वाहनों या तिपहिया स्कूटरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे सडक़ों पर भीड़ बढ़ी है।

ट्रैफिक पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, महानगर के निजी और सार्वजनिक वाहनों के अलावा रोजाना हजारों की तादाद में पड़ोसी जिलों से भी वाहन पहुंचते हैं।

लाने होंगे स्मार्ट समाधान

ट्रैफिक समस्या के समाधान के लिए विभाग ने अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधिरत सिग्नल व निगरानी प्रणाली की मदद लेने का फैसला किया है।  पुलिस के एक अधिकारी बताते हैं, फिलहाल महानगर के 501 ट्रैफिक सिग्नलों में से 169 एआई आधारित हैं। इस साल के आखिर तक एआई आधारित 110 नए सिग्नल जोड़े जाएंगे। यह प्रणाली किसी चौराहे के सभी लेनों में ट्रैफिक के घनत्व का विश्लेषण कर उसके आधार पर सिग्नल की टाइमिंग तय कर सकती है।

हाल में एक अध्ययन से पता चला है कि एक औसत भारतीय कर्मचारी घर से दफ्तर आने-जाने में साल भर में 754 घंटे खर्च करता है। बेंगलुरु में एक साल में घर से दफ्तर जाने वाले समय में औसतन 16 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2024 में 19 किमी की दूरा तय करने में जहां 54 मिनट समय लगता था वो इस साल बढ़ कर 63 मिनट हो गया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि महानगर में ज्यादातर आईटी कंपनियां कुछ वर्ग किमी के इलाके में ही फैली हैं। उनको वहां से हटा कर दूसरे हिस्सों में ले जाने पर विचार किया जा सकता है। लेकिन यह प्रक्रिया खर्चीली है और शायद ही कंपनियां इसके लिए तैयार हों।

परिवहन विभाग के पूर्व अधिकारी जी.एस.शेट्टी डीडब्ल्यू से कहते हैं, ‘मेट्रो जैसी कई परियोजनाओं के ढीले निर्माण कार्य ने समस्या को और जटिल बना दिया है। इन आधारभूत परियोजनाओं का निर्माण कार्य तेज करने के अलावा सबसे ज्यादा जाम वाले इलाकों में फ्लाईओवर बनाने पर भी विचार किया जा सकता है।’

वैसे, सरकार भी इस समस्या से अवगत है। लेकिन उसकी दलील है कि रातोंरात तस्वीर में बदलाव संभव नहीं है। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने बीते महीने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था कि सरकार इस समस्या के समाधान के लिए विभिन्न पहलुओं पर काम कर रही है। लेकिन इसे तत्काल हल करना मुश्किल है। (dw.com/hi)


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